भारत में ईस्ट इण्डिया कंपनी एवं ब्रिटिश शासन के अधीन संवैधानिक विकास Constitutional Development in India under East India Company and British rule
भारतीय गणतंत्र का संविधान राजनीतिक क्रांति का परिणाम नहीँ है। यह जनता के मान्य प्रतिनिधियोँ के निकाय के अनुसंधान और विचार विमर्श के परिणामस्वरूप अस्तित्व मेँ आया। वर्तमान भारतीय संविधान का निर्माण एक संविधान सभा द्वारा हुआ। संविधान सभा के निर्माण से पूर्व ब्रिटिश सरकार ने समय समय पर कई अधिनियम बनाये, जो इस प्रकार हैं –
रेग्युलेटिंग एक्ट या अधिनियम 1773
- इस अधिनियम के अंतर्गत कलकत्ता प्रेसीडेंसी मेँ एक ऐसी सरकार स्थापित की गई, जिसमें गवर्नर जनरल और उसकी परिषद के चार (फिलिप, फ्रांसिस, क्लेवरिंग, मानसन व् बरवैल) सदस्य थे, जो अपनी सत्ता का उपयोग संयुक्त रुप से करते थे।
- कंपनी के साथ शासन पर संसदीय नियंत्रण स्थापित किया गया।
- कलकत्ता मेँ एक उच्चतम यायालय की स्थापना 1774 मेँ की गई। इसे सिविल, आपराधिक, नौसेना तथा धार्मिक मामलोँ मेँ अधिकारता प्राप्त थी।
- कंपनी द्वारा शासन के लिए पहली बार एक लिखित संविधान प्रस्तुत किया गया।
- सरकारी अधिकारियों को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रुप से किसी रुप मेँ उपहार लेने पर प्रतिबंध लगा दिया। गया।
संशोधनात्मक अधिनियम, 1781
- कोलकाता की सरकार को बंगाल, बिहार और उड़ीसा के लिए भी विधि बनाने का अधिकार प्रदान किया गया।
- कंपनी के अधिकारी शासकीय रुप से किए गए अपने कार्य के लिए सर्वोच्च नयायालय के कार्य क्षेत्र से बाहर हो गए।
- सर्वोच्च यायालय का कार्यक्षेत्र और स्पष्ट कर दिया गया।
- न्यायालय की अपनी आज्ञाएं तथा आदेश लागू करते समय, सरकार नियम तथा विनिमय बनाते समय भारत के सामाजिक धार्मिक रीति रिवाजोँ पर भी ध्यान देगी।
पिट्स इंडिया अधिनियम, 1784
- बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के नियंत्रण हैतु उसके ऊपर बोर्ड और कंट्रोल की स्थापना की गई, जिसके सदस्योँ की नियुक्ति इंग्लैण्ड का सम्राट करता था।
- भारत मेँ प्रशासन गवर्नल जनरल तथा उसकी तीन सदस्योँ वाली एक परिषद को दे दिया गया।
- गवर्नर जनरल की परिषद की सदस्य संख्या 4 से घटाकर 3 कर दी गई साथ ही मद्रास तथा बंबई की सरकारोँ को पूरी तरह से बंगाल सरकार के अधीन कर दिया गया।
- बंबई तथा मद्रास प्रेसीडेंसी गवर्नर-जनरल और उसकी परिषद के अधीन कर दी गई।
1786 का अधिनियम
- गवर्नर जनरल को मुख्य सेनापति की शक्तियाँ दे दी गई।
- गवर्नर जनरल को अपनी परिषद के निर्णयों को विशेष परिस्थिति मेँ रद्द करने तथा अपने निर्णय लागू करने का अधिकार दिया गया।
चार्टर अधिनियम 1793
- इसके द्वारा सभी कानूनों एवं विनियमों की व्याख्या का अधिकार नयायालय को दे दिया गया।
- कंपनी के व्यापारिक अधिकारोँ को और 20 वर्षोँ के लिए बढ़ा दिया गया।
- अपनी परिषद के निर्णयों को रद्द करने की जो शक्ति लार्ड कार्नवालिस को दी गई थी, वह आने वाले गवर्नर जनरल तथा गवर्नरोँ को भी दे दी गई।
- गवर्नर जनरल का बंबई तथा मद्रास प्रेसीडेंसियों पर अधिकार स्पष्ट कर दिया गया।
चार्टर अधिनियम 1813
- भारत मेँ कंपनी के व्यापारिक एकाधिकार को समाप्त करके कुछ प्रतिबंधोँ के साथ समस्त अंग्रेजो को भारत से व्यापार करने की खुली छूट मिली।
- भारतीय शिक्षा पर एक लाख रुपए की वार्षिक धनराशि के व्यय का प्रावधान किया गया।
- भारत मेँ इसाई मिशनरियोँ को धर्म प्रचार की अनुमति दी गई।
- भारतीय राजस्व से व्यय करने के लिए नियम एवं पद्धतियाँ बनाई गगयीं।
चार्टर अधिनियम 1833
- भारत मेँ अंग्रेजी राज के दौरान संविधान निर्माण के प्रथम संकेत 1833 के चार्टर अधिनियम मेँ मिलते हैं।
- इसके द्वारा कंपनी के व्यापारिक अधिकार पूर्णतः समाप्त कर दिए गये।
- बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल कहा जाने लगा तथा गवर्नर जनरल को सभी नागरिक तथा सैन्य शक्तियां प्रदान की गई।
- भारतीय कानूनों का वर्गीकरण किया गया तथा इस कार्य के लिए विधि आयोग की व्यवस्था की गई।
चार्टर अधिनियम 1853
- विधायी कार्योँ के लिए परिषद मेँ 6 विशेष सदस्य जोड़कर इसका विस्तार कर दिया गया।
- कंपनी के लोक सेवको की नियुक्ति के लिए खुली प्रतियोगिता परीक्षा की एक प्रणाली को आधार बनाकर प्रस्तुत किया गया।
- इसी अधिनियम के द्वारा भारत मेँ संसदीय पद्धति के आरंभ का संकेत मिलता है, इसके तहत पहली बार कार्यपालिका तथा विधायी शक्तियों को पृथक करने का एक ठोस कदम उठाया गया और संपूर्ण भारत के लिए एक पृथक विधान परिषद की स्थापना की गई, आगे चलकर इसी विधान परिषद ने एक लघु संसद का रुप धारण कर लिया।
- इन सदस्योँ को विधियां तथा विनियम बनाने के लिए बुलाई गई बैठकोँ के अलावा परिषद मेँ बैठने तथा मतदान करने का अधिकार नहीँ था। इन सदस्योँ को विधायी परिषद कहा जाता था।
स्मरणीय तथ्य 1773 से 1853 के बीच भारत के महत्वपूर्ण संवैधानिक सुधार मेँ प्रगति हुई उच्चतम यायालय की स्थापना, कार्यपालिका तथा विधायी शक्तियों का पृथक्करण, विधि आयोग की स्थापना और सिविल सेवा मेँ खुली नियुक्ति इतिहास महत्वपूर्ण हैं। |
ब्रिटिश शासन के अधीन संवैधानिक विकास
1858 का अधिनियम
- ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन की समाप्ति और ब्रिटिश सरकार का सीधा शासन प्रारंभ होना।
- गवर्नर जनरल को द वायसरॉय ऑफ इंडिया का पदनाम भी दिया गया। यह प्रतिवर्ष भारत नैतिक एवं आर्थिक प्रगति की रिपोर्ट संसद के समक्ष प्रस्तुत करता था।
- भारत मेँ शासन तथा राजस्व से संबंधित अधिकार तथा कर्तव्य भारत के लिए राज्य सचिव का पदनाम भी दिया गया।
- भारत सचिव ब्रिटिश कैबिनेट का सदस्य होता था तथा ब्रिटिश संसद के प्रति उत्तरदायी था, किंतु उसका वेतन भारत पर भारित था। उसकी सहायता के लिए 15 सदस्योँ वाली भारतीय परिषद थी।
1861 का अधिनियम
- इस अधिनियम द्वारा ब्रिटिश सरकार ने वायसराय तथा प्रांतो के गवर्नर के अधिकार बढ़ा दिए।
- भारतीयों के साथ व्यवस्थापन के कार्य की बात अवश्य हुई थी। लेकिन अधिनियम मेँ ऐसा प्रावधान नहीँ था।
- पोर्टफोलियो व्यवस्था का प्रारंभ हुआ तथा वायसराय को विपत्ति मेँ अध्यादेश जारी करने का अधिकार दिया गया।
- गैर-अधिकारी सदस्योँ के साथ व्यवस्थापनी व्यवस्था को प्रारंभ किया गया।
1892 का अधिनियम
- यह अधिनियम 1861 के अधिनियम का एक संशोधनात्मक विधेयक था।
- व्यस्थापिकाओं मेँ प्रवेश प्रतिबंधित समिति एवं अप्रत्यक्ष रुप से निर्वाचित सदस्योँ का प्रावधान किया गया।
- सदस्योँ को व्यवस्थापिकाओं मेँ बजट पर विचार-विमर्श करने तथा प्रश्न पूछने का अधिकार दिया गया। संसदीय व्यवस्था का प्रारंभ कहा जा सकता है।
1909 का अधिनियम
- यह भारत के सचिव मार्ले तथा गवर्नर जनरल मिंटो के प्रयासों द्वारा तैयार किया गया था, अतः यह मार्ले-मिंटो सुधारों के नाम से भी जाना जाता है।
- इस अधिनियम मेँ केंद्रीय तथा प्रांतों की व्यवस्थापिकाओं की सदस्य संख्या बढ़ा दी गयी।
- प्रथम बार जाति, वर्ग, धर्म आदि के आधार पर पृथक निर्वाचन क्षेत्र बनाने का प्रावधान किया गया, मुसलमानोँ के पृथक निर्वाचन क्षेत्र बनाए गए।
- पूरक प्रश्न पूछने का अधिकार व्यवस्थापिका सदस्योँ को दिया गया।
1919 का अधिनियम
- यह मांटेग्यू चेंसफोर्ड सुधारों के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि ये दोनो क्रमशः भारत मंत्री तथा गवर्नर जनरल थे। इसमेँ एक प्रस्तावना भी जोड़ी गई।
- द्विसदनीय केंद्रीय व्यवस्थापिका का प्रावधान एवं प्रत्यक्ष निर्वाचन का प्रावधान किया गया।
- सांप्रदायिक चुनाव क्षेत्रोँ को और अधिक व्यापक बनाया गया, केवल उन लोगोँ को मताधिकार प्रदान किया गया जो एक निश्चित धनराशि सरकार को कर के रुप मेँ देते थे।
- प्रांतो मेँ दोहरे शासन प्रबंध की स्थापना की गयी अर्थात आरक्षित विषयों का प्रशासन गवर्नर अपनी कार्यकारिणी द्वारा करता था और हस्तांतरित विषयों का प्रशासन गवर्नर अपने भारतीय मंत्रियो की सहायता से करता था।
- गवर्नर जनरल की परिषद के सदस्योँ मेँ से 3 सदस्योँ का भारतीय होना आवश्यक था।
1935 का भारतीय शासन अधिनियम
- 1932 मेँ तैयार किए गए एक श्वेत पत्र (वाइट पेपर) पर आधारित था, इनमेँ कोई प्रस्तावना नहीँ थी।
- इसमेँ अखिल भारतीय संघ जिसमे 11 ब्रिटिश प्रांत, 6 चीफ कमिश्नर क्षेत्र तथा स्वेच्छा से सम्मिलित होने वाली देसी रियासतेँ सम्मिलित थीं।
- केंद्र व उसकी इकाइयो के बीच तीन सूचियां संघ सूची, राज्य सूची व समवर्ती सूची बनाए गई, जिसमे क्रमशः 59, 54 और 36 विषय थे।
- अवशिष्ट शक्तियां गवर्नर जनरल मेँ निहित थीं।
- इसके तहत 11 प्रांतो मेँ से 6 प्रांतो मेँ भी द्विसदनात्मक व्यवस्था का प्रारंभ हुआ।
- प्रांतो मेँ द्वैध शासन समाप्त कर दिया गया, उन्हें स्वतंत्र एवं स्वशासन का अधिकार दिया गया, किंतु गवर्नर को विशेष अधिकार प्रदान किये गए।
- केंद्र मेँ द्वैध शासन की स्थापना तथा मताधिकार का विस्तार किया गया।
- शक्तियोँ का विभाजन केंद्र तथा प्रांतो मेँ किया गया तथा संघीय न्यायालय की स्थापना की गई।
- भारतीय परिषद का अंत कर दिया गया तथा सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति का विस्तार किया गया।
- ब्रिटिश संसद की सर्वोच्चता बनी रही तथा बर्मा, बराड़ एवं अदन को भारत से पृथक कर दिया गया।
भारत स्वतंत्रता अधिनियम, 1947
- 3 जून 1947 को प्रस्तुत की गई माउंटबेटन योजना के आधार पर ब्रिटिश संसद ने 4 जुलाई, 1947 को भारत स्वतंत्रता अधिनियम पारित कर दिया तथा इसे 18 जुलाई, 1947 को सम्राट द्वारा अनुमति प्रदान कर दी गई।
- 15 अगस्त 1947 को यह लागू कर दिया गया। भारत को एक स्वतंत्र व संप्रभुता संपन्न राज्य घोषित किया गया।
- इसमेँ 15 अगस्त 1947 से दो डोमिनियन राज्य भारत तथा पाकिस्तान की स्थापना की गई।
- दोनो राज्यों के लिए ब्रिटिश सरकार पृथक-पृथक और यदि दोनों सहमत हों तो संयुक्त गवर्नर जनरल नियुक्त करेगी।
- दोनों राज्य अपनी-अपनी संविधान सभा मेँ अपने देश के लिए संविधान का निर्माण कर सकते हैं।
- जब तक नया संविधान नहीँ बनेगा, तब तक शासन 1935 के अधिनियम के अनुसार चलेगा।
- ब्रिटिश सरकार 15 अगस्त, 1947 के पश्चात दोनो राज्यों पर कोई भी नियंत्रण नहीँ रखेगी।
- इन राज्योँ की व्यवस्थापिकाओं द्वारा बनाए गए कानून को इस आधार पर निरस्त नहीँ किया जाएगा।
अतिमहत्वपूर्ण स्मरणीय तथ्य
- कलकत्ता मेँ सर्वोच्च यायालय की स्थापना 1774 मेँ हुई थी।
- 1786 मेँ गवर्नर को अपनी परिषद की राय ठुकरा देने का अधिकार दे दिया गया तथा गवर्नर जनरल द्वारा बनाए गए कानूनों को रेग्युलेशन कहा जाता था तथा मैकाले गवर्नर जनरल की परिषद का प्रथम कानूनी सदस्य था।
- 1833 मेँ विधि आयोग का गठन किया गया तथा उसे भारतीय कानूनों को सचिव तथा संहिताबद्ध करने को कहा गया।
- 1833 के चार्टर अधिनियम के तहत बंगाल के गवर्नर जनरल को भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया।
- विलियम बेंटिक भारत का प्रथम गवर्नर जनरल था। उसे ही बंगाल का अंतिम गवर्नर जनरल होने का श्रेय प्राप्त है।
- 1858 के भारत सरकार अधिनियम के तहत गवर्नर जनरल को वायसराय का नाम दिया गया।
- सत्येंद्र प्रसाद सिंह गवर्नर जनरल की कार्यकारी परिषद के लिए चुने जाने वाले प्रथम भारतीय थे। उन्हें विधि सदस्य बनाया गया।
- 1919 के मांटेग्यू-चेंसफोर्ड सुधारों के तहत सर्वप्रथम प्रत्यक्ष चुनाव प्रारंभ हुए तथा पृथक समुदायिक प्रतिनिधित्व की स्थापना 1909 के मार्ले मिंटो सुधारों मेँ की गई थी। लार्ड मिंटो को सांप्रदायिक निर्वाचक मंडल का जनक माना जाता है।
- प्रांतो मेँ द्वैध शासन व्यवस्था 1919 के भारत सरकार अधिनियम या मांटेग्यू-चेंसफोर्ड सुधारों के तहत हुई थी।
- सिक्ख, एंग्लो इंडियन, ईसाइयों तथा यूरोपियों को 1935 मेँ पृथक सामुदायिक प्रतिनिधित्व मिला था।
- भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना 1935 मेँ हुई थी।
अनिवार्य तथ्य
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प्रमुख क्रमिक तिथि संचिका | |
1687 | मद्रास मेँ भारत के प्रथम नगर निगम का गठन किया गया। |
1722 | लॉर्ड वारेन हैस्टिंग्स ने जिला कलेक्टर का पद निर्मित किया। |
1829 | लार्ड विलियम बेंटिक द्वारा मंडल आयुक्त का पद निर्मित किया गया। |
1859 | लार्ड केनिंग ने पोर्टफोलियो पद्धति प्रारंभ की। |
1860 | बजट प्रणाली लायी गयी। |
1870 | वित्तीय विकेंद्रीकरण के संबंध मेँ लार्ड मेयो के प्रस्ताव ने भारत मेँ स्थानीय स्वशासन से संबंधित संस्थाओं के विकास का प्रारुप तैयार किया। |
1872 | लार्ड मेयो के समय मेँ भारत की पहली जनगणना हुई। |
1881 | लार्ड रिपन के कार्यकाल मेँ भारत की पहली नियमित जनगणना हुई। |
1882 | लार्ड रिपन के प्रस्ताव को स्थानीय स्वशासन का अधिकृत आदिलेख या महाधिकार पत्र (Magna कार्टा) माना जाता है। कोर्ड रिपन को भारत में स्थानीय स्वशासन का जनक कहा जाता है। |
1905 | लार्ड कर्जन ने कार्यकाल की पद्धति को (Tenure System) आरंभ किया। |
1905 | भारत सरकार के एक निर्णय के तहत् रेलवे बोर्ड का गठन हुआ। |
1921 | केंद्र मेँ लोक लेखा समिति (Public Account Committee) बनाई गई। |
1921 | आम बजट से रेल बजट को अलग कर दिया गया। |
1935 | केंद्रीय विधायिका के एक अधिनियम के तहत भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना की गई। |