रक्त की संरचना Human Body – Structure of Blood

रक्त लाल रंग का चिपचिपा तरल है, जो हमारे शरीर में काम करने के लिए कोशिकाओं को भोजन और ऑक्सीजन देता है। एक स्वस्थ मनुष्य के शरीर में लगभग 5 लिटर रक्त होता है। मानव रक्त में प्लाज्मा (Plasma) तथा रक्त कणिकाएं (Blood corpuscles) होती हैं। प्लाज्मा हल्के पीले रंग का द्रव होता है, जिसमें लगभग 92 प्रतिशत पानी तथा 8 प्रतिशत प्रोटीन, चीनी लवण और दुसरे पदार्थ होते हैं- लाल रक्त कणिकाएं (Red blood corpuscles), श्वेत रक्त कणिकाएं (White blood corpuscles) तथा प्लेटलेट्स (Platelets)।

लाल रक्त कणिकाएँ या एरिथ्रोसाइट्स (Erythrocytes) चपटी, गोल तथा दोनों ओर से बीच में दबी हुई (Biconcave) होती हैं। इनमें नाभिक (Nuclei) नहीं होता। लाल रक्त कणिकाओं में एक लौहयुक्त प्रोटीन पाया जाता है, जिसे हीमोग्लोबिन कहते हैं। इसी के कारण रक्त का रंग लाल होता है। हीमोग्लोबिन, आॉक्सीजन को अवशोषित करके आॉक्सी हीमोग्लोबिन नामक अस्थायी पदार्थ बनाता है, जो विखंडित होकर ऑक्सीजन को मुक्त करता है। यही ऑक्सीजन शरीर के विभिन्न भागों में पहुंचती है। इनका जीवनकाल 50 से 120 दिन तक होता है। इनका आकार 0.0007 मिमी. होता है। इनका निर्माण अस्थिमज्जा या बोनमैरो में होता है। एक घन मिलीमीटर में लगभग 50 लाख लाल रक्त कण होते हैं।

श्वेत रक्त कणिकाएं या ल्यूकोसाइट्स कई प्रकार की होती हैं। ये आकार में लाल रक्त कणिकाओं से बड़ी होती हैं, लेकिन इनकी संख्या उनकी तुलना में कम होती है। एक घन मिलीमीटर में इनकी संख्या 5 से 10 हजार होती है। इनमें नाभिक होता है। हीमोग्लोबिन न होने के कारण इनका रंग सफेद होता है। जब कभी शरीर के किसी हिस्से में बाहरी हानिकारक जीवाणुओं का

चारों वर्गों के साथ एण्टीबॉडी का वितरण

रुधिर वर्ग एण्टीजन (RBC में) एण्टीबॉडी (रक्त प्लाज्मा में)

भारतीय समाज %

A केवल A केवल b 23.50
B केवल B केवल a 34.50
AB AB दोनों कोई नहीं 7.50
O कोई नहीं ab दोनों 34.50

हमला होने लगता है, तो वहां पर भारी संख्या में श्वेत कणिकाएं पहुंचकर जीवाणुओं से लड़ना शुरू कर देती हैं और उन्हें मार कर खा जाती हैं। इसके अलावा ये शरीर के घायल हिस्सों की अन्य टूटी-फूटी कोशिकाओं को खा कर उस हिस्से को साफ करती हैं, ताकि ये कोशिकाएं शरीर में रोग न फैला पाएं जीवाणु एक प्रकार का विषैला पदार्थ भी पैदा करते हैं, जो शरीर के लिए बहुत हानिकारक होता है। श्वेत कणिकाएं रक्त के कुछ विशेष प्रोटीन को प्रतिरक्षी या एण्टीबॉडीज (Antibodies) में बदल देती हैं। प्रतिरक्षी से जीवाणुओं द्वारा उत्पन्न विष निष्क्रिय हो जाता है। इस प्रकार ये रोगों से शरीर की रक्षा करती हैं। ये घाव को भरने में भी मदद करती हैं। इसके अलावा ये कभी-कभी आवश्कता पड़ने पर खाद्य पदार्थों को भी शरीर में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाती हैं।

रक्त प्लेटलेट्स या थ्राम्बोसाइट्स का आकार 0.002 मिमी. से 0.004 मिमी. तक होता है। एक घन मिलीमीटर में इनकी संख्या 1,50,000 से 4,00,000 तक होती है। इनमें नाभिक नहीं होता। इनका कार्य शरीर के कट जाने पर रक्त बहाव को रोकना है, ताकि शरीर से रक्त की मात्रा कम न हो। जिन लोगों के रक्त में प्लेटलेट्स की संख्या कम होती है, उनका रक्त बहना बहुत देर तक नहीं रुक पाता।


रूधिर वर्ग

जब कभी किसी घायल या रोगी मनुष्य के शरीर में रक्त की कमी हो जाती है, तो उसके शरीर में अन्य व्यक्ति का रक्त चढ़ाया जाता है, जिससे उसका जीवन बचाया जा सके। लेकिन किसी भी व्यक्ति का रक्त किसी भी रोगी को नहीं दिया जा सकता। इसके लिए रक्त वर्ग मिलाना होता है। सर्वप्रथम कार्ल लैण्ड स्टाइनर (Karl Land Steainer) ने सन् 1931 में मनुष्य के रक्त को तीन वर्गों में बांटा था। इनके बाद डी-कैस्टीलो (De-Castello) तथा स्टूलरी (Stulri) ने मनुष्य के रक्त में चौथे वर्ग का भी पता लगाया। अब मनुष्य के रक्त को चार वर्गों में बांटा गया है। ये हैं – रुधिर वर्ग A, रुधिर वर्ग B, रुधिर वर्ग AB तथा रुधिर वर्ग O।

रुधिर वर्गों की भिन्नता लाल कणिकाओं (RBC) में मौजूद एक विशेष पदार्थ के कारण होती हैं, जिसे एण्टीजन (Antigen) कहते हैं। एण्टीजन दो प्रकार के होते हैं- एण्टीजन A और एण्टीजन B। रक्त प्लाज्मा (Blood Plasma) में एण्टीबॉडी या प्रतिरक्षी (Antibody) ‘a’ तथा एण्टीबॉडी ‘b’ दो महत्वपूर्ण पदार्थ पाए जाते हैं। एण्टीजन A तथा एण्टीबॉडी b वाले रक्त (वर्ग A) को एण्टीजन B तथा एण्टीबॉडी a (वर्ग B) के साथ चिपक जाती हैं, लेकिन एण्टीजन A के साथ एण्टीबॉडी b तथा एण्टीजन B के साथ एण्टीबॉडी a मिलाने पर रक्त कणिकाएं आपस में नहीं चिपकती। इन रक्त समूहों में O वर्ग किसी भी रोगी को दिया जा सकता है तथा AB वर्ग का रोगी किसी भी वर्ग का रक्त ले सकता है। इनके अतिरिक्त रक्त में Rh फैक्टर भी होता है। रक्त चढ़ाते समय इसका भी ध्यान रखना पड़ता है।

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