दक्षिण-पूर्व एशियाई संधि संगठन Southeast Asia Treaty Organization – SEATO

(अब अस्तित्वहीन)

दक्षिण-पूर्व एशियाई संधि संगठन (सीटो) 1955 से 1977 तक अस्तित्व में था। इसके गठन के पीछे प्रमुख उद्देश्य साम्यवादियों की विस्तारवादी नीति से दक्षिण-पूर्व एशिया की रक्षा करना था। इसका मुख्यालय बैंकॉक में था। आस्ट्रेलिया, फ्रांस, ब्रिटेन, न्यूजीलैंड, फिलीपीन्स, थाईलैंड और संयुक्त राज्य अमेरिका इसके सदस्य थे।

सीटो का गठन सितंबर 1954 में मनीला में हुई दक्षिण-पूर्व एशिया सामूहिक रक्षा संधि के आधार पर हुआ। इस संधि पर आस्ट्रेलिया, फ्रांस, न्यूजीलैंड, पाकिस्तान, फिलीपीन्स, थाईलैंड, ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रतिनिधियों ने हस्ताक्षर किए थे। यह संधि फरवरी 1955 में प्रभाव में आई। 1968 में पाकिस्तान इससे अलग हो गया तथा 1975 ने फ्रांस में इसे वित्तीय सहायता देना बंद कर दिया। सीटो की अंतिम बैठक फरवरी 1976 में हुई। जून 1977 में इसे भंग कर दिया गया।

सीटो के उद्देश्य थे-

  1. साम्यवाद के विनाशक, विध्वंसक विस्तार, जिसकी अभिव्यक्ति कोरिया और इंडो-चीन में सैन्य आक्रमण तथा मलेशिया और फिलीपीन्स में संगठित सशस्त्र सेनाओं के समर्थन के रूप में हुई थी, को रोकने के लिये पारस्परिक सहायता और स्वावलंबन की भावना पैदा करना;
  2. स्वतंत्र संस्थाओं को मजबूत करना, तथा;
  3. आर्थिक प्रगति एवं सामाजिक कल्याण को प्रोत्साहन देना

सीटो एक कमजोर क्षेत्रीय रक्षा प्रणाली थी, लेकिन सम्मेलनों, सूचनाओं और विचारों के आदान-प्रदान, प्रशिक्षण कार्यक्रमों, संयुक्त सैन्य अभ्यासों तथा अन्य उपायों द्वारा इस संगठन को सामूहिक नियोजन के लिये एक उपयोगी यंत्र बनाने की कोशिश की गई। सीटो के पास कोई स्थायी बल नहीं था। यह सदस्य देशों, जो संयुक्त सैन्य अभ्यासों में भाग लेते थे, की गतिमान मारक क्षमता पर निर्भर था। वियतनाम, कबोडिया और लाओस (इंडो-चीन के उत्तरवर्ती देश) सीटो के सदस्य नहीं थे फिर भी सीटो प्रोटोकॉल के अंतर्गत इन्हें सैन्य सुरक्षा प्रदान की गयी थी। सीटो सांस्कृतिक आदान-प्रदान, लोक स्वास्थ्य कार्यक्रम तथा आर्थिक सहयोग जैसी गैर-सैन्य गतिविधियों से भी जुड़ा था। फिर भी, यह एक प्रभावशाली संगठन के रूप में विकसित नहीं हो सका। इसकी विफलता का एक कारण यह भी था कि कई दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशियाई देश इसमें सम्मिलित नहीं हुए थे। इसके अतिरिक्त, साम्यवाद के खतरे के विस्तार और इससे लड़ने के तरीकों के संबंध में सीटी के सदस्यों में मतैक्य नहीं था।

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