प्रशांत समुदाय Secretariat of the Pacific Community – SPC

यह समुदाय (Community) दक्षिण प्रशांत क्षेत्र के लोगों के आर्थिक और सामाजिक विकास से जुड़ा एक क्षेत्रीय अंतरसरकारी संगठन है।

औपचारिक नाम: कमीशन डू पैसिफिके सुड (Commission du Pacifique Sud)

मुख्यालयः नाओमी (न्यू कैलेडोनिया)।

सदस्यता: अमेरिकी सामोआ, आस्ट्रेलिया, कुक द्वीप समूह, फिजी, फ़्रांस फ्रेंच पोलेनेशिया, गुआम, किरिबाती, मार्शल द्वीप समूह, माइक्रोनेशिया महासंघ, नौरू, न्यू कैलेडोनिया, न्यूजीलैण्ड, निऊ, उत्तरी मरिआना द्वीप समूह, पलाऊ, पापुआ न्यू गिनी, पिटकैर्न द्वीप समूह, सामोआ, सोलोमन द्वीप, टोकेलाऊ, टोंगा, तुवालु, ब्रिटेन, संयुक्त राज्य अमेरिका, वनुआतु, और वेलिस तथा फुटुना द्वीप समूह।

आधिकारिक भाषाएं: अंग्रेजी और फ्रेंच।

उत्पति एवं विकास

प्रशांत समुदाय की स्थापना 1946 में आस्ट्रेलिया, फ्रांस, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकारों के मध्य कैनबरा (आस्ट्रेलिया) में हुई एक संधि के आधार पर दक्षिण-प्रशांत आयोग के रूप में हुई। यह संधि जुलाई 1948 में प्रभाव में आई। आरंभ में एसपीसी का कार्य था- हस्ताक्षरकर्ता देशों द्वारा शासित दक्षिणी प्रशांत द्वीप समूहों के आर्थिक, सामाजिक और स्वास्थ्य विषयों पर उन्हें सलाह देना। न्यु गिनी के पश्चिम भाग पर अपना शासन खोने के बाद नीदरलैंड 1962 में इस संगठन से अलग हो गया। आयोग के क्षेत्र और कार्य में विस्तार लाने के लिये मूल कैनबरा संधि में कई नये दस्तावेज जोड़ दिये गये हैं। आज एसपीसी के सदस्य वे देश भी हैं, जो पहले आश्रित-राज्य थे।


फरवरी 1998 में एसपीसी का नाम बदलकर प्रशांत समुदाय (Pacific Community) कर दिया गया।

उद्देश्य

एसपीसी के प्रमुख उद्देश्य निम्नांकित हैं:

  1. दक्षिण-प्रशांत द्वीपों की सरकारों और लोगों के द्वारा क्षेत्र के सामूहिक उद्देश्यों, समस्याओं तथा आवश्यकताओं पर अपने-अपने विचार व्यक्त करने के लिये एक सामूहिक मंच प्रदान करना;
  2. क्षेत्र के लोगों की मौलिक आवश्यकताओं की पूर्ति में सहायता देना;
  3. क्षेत्रीय संसाधनों के विकास में एक उत्प्रेरक का कार्य करना, और;
  4. क्षेत्र की आवश्यकताओं से जुड़ी सूचनाओं के संकलन और प्रसार के लिये एक केंद्र का कार्य करना।

सरंचना

एसपीसी के संगठनात्मक ढांचे में दक्षिण-प्रशांत सम्मेलन, सरकारी और प्रशासनिक प्रतिनिधि समिति (सीआरजीए) तथा सचिवालय सम्मिलित हैं। दक्षिण-प्रशांत सम्मेलन (अब प्रशांत समुदाय सम्मेलन के नाम से ज्ञात) एसपीसी का शासी निकाय है तथा इसमें सभी सदस्य देश और क्षेत्र भाग लेते हैं। इसके प्रमुख कार्य हैं- एक महानिदेशक को नियुक्त करना, प्रमुख नीतिगत विषयों का निर्धारण करना तथा आयोग के बजट और कार्यक्रमों की जांच करना। सीआरजीए में भी सभी सदस्य देश और क्षेत्र सम्मिलित होते हैं। आयोग के कार्यक्रमों के मूल्यांकन के लिये इसकी प्रत्येक वर्ष बैठक होती है। यह अपनी प्राप्तियों (findings) की रिपोर्ट सम्मेलन में प्रस्तुत करती है। सचिवालय का प्रधान अधिकारी महानिदेशक होता है, जिसकी सहायता के लिये दो उप-महानिदेशक होते हैं। सचिवालय सूचना सेवाएं उपलब्ध कराता है।

गतिविधियां

एसपीसी के कार्य के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं- भू-संसाधन, सामाजिक संसाधन और सामुद्रिक संसाधन। यह तकनीकी सहायता, सलाहकारी सेवाएं, सूचना और निकासी गृह (clearing house) सेवाएं उपलब्ध कराता है। यह क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय स्तर पर क्षेत्रीय सम्मेलनों, प्रशिक्षण कार्यक्रमों, कार्यशालाओं का भी संचालन करता है। सदस्य देशों की विशिष्ट मांगों की पूर्ति के लिये उन्हें छोटी अनुदान-राशि और इनाम भी दिये जाते हैं। 1986 में एसपीसी की मेजबानी में आयोजित एक सम्मेलन में दक्षिण-प्रशांत प्राकृतिक संसाधन और पर्यावरण संरक्षण अभिसमय को अपनाया गया। 1990 तक एसपीसी दक्षिण प्रशांत क्षेत्रीय पर्यावरण कार्यक्रम (South Pacific Regional Environment Programme—SPREP) के लिये क्रियान्वयन एजेंसी का कार्य करता था। इसके बाद एसपीआरईपी एक स्वायत्त और आर्थिक रूप से स्वतंत्र निकाय में परिवर्तित हो गया। 1996 में एसपीसी ने कई सुधार कार्यक्रमों का अनुमोदन किया, जिन्हें 1997 में क्रियान्वित किया गया। दक्षिण-प्रशांत सम्मेलन ने एसपीसी सचिवालय के सामुद्रिक कार्यक्रम और दूरसंचार नीतियों से जुड़े उत्तरदायित्वों को भी अपने ऊपर ले लिया।

समय के साथ उपजी क्षेत्रीय आवश्यकताओं के प्रत्युत्तर देने और अन्य संगठनों के साथ क्षेत्रीय समन्वय प्रबंधों हेतु एसपीसी ने अपने कार्यक्षेत्र में परिवर्तन करने पर ध्यान दिया।

एसपीसी ने व्यापक तौर पर तकनीकी, अनुसंधानात्मक, शैक्षणिक एवं नियोजन सेवाओं के प्रदायन द्वारा क्षेत्र के लोगों की मदद की। यह कार्य एसपीसी के 2007-12 की समयावधि के कॉर्पोरेट योजना के तहत् निर्देशित हैं, जो तीन स्तंभों-सदस्यों की अधिमान्यताओं पर ध्यान देना; अंतरराष्ट्रीय, प्रादेशिक, एवं राष्ट्रीय स्तर पर रणनीतिक संलग्नता; और संगठन की रणनीतिक स्थिति-पर आधारित है।

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