भारत की ऋतुएँ Season’s of India

भारत का उत्तरी भाग शीतोष्ण कटिबंध में और दक्षिणी भाग उष्ण कटिबंध में है| उत्तर भारत में तीन ऋतुएँ होती हैं| मार्च के आरंभ से 15 जून तक ग्रीष्म ऋतु, मध्य जून से सितम्बर तक वर्षा ऋतु  और ओक्टूबर से फरवरी तक सहित ऋतु| इसके विपरीत दक्षिण भारत में प्रायः वर्ष भर मौसम एक सा रहता है और सहित ऋतु नहीं होती| भारत मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological department) के अनुसार वर्ष को ऋतुओं के अनुसार इस प्रकार बांटा जा सकता है-

उत्तर पूर्वी मानसूनी पवनो का मौसम North East Mansoon Season

शुष्क शीत ऋतु – यह दिसम्बर के आरम्भ से 15 मार्च तक रहता है, यह भूमि से चलने वाली उत्तर-पूर्वी मानसून का मौसम होता है|

शुष्क ग्रीष्म ऋतु – मध्य मार्च से मध्य जून तक यह ऋतु रहती रहती है|

दक्षिणी-पश्चिमी मानसूनी पवनों का मौसम South West Mansoon Season

वर्षा ऋतु – मध्य जून से सितम्बर के आखिर तक, समुद्र से चलने वाली दक्षिण-पश्चिमी मानसूनी पवनों का मौसम होता है|

शरद ऋतु – सितम्बर के आरंभ से नवम्बर के मध्य तक दक्षिण-पश्चिम मानसून प्रत्यावर्तन काल की ऋतु|


शुष्क शीत ऋतु Dry Winter Season

अक्टूबर के प्रारंभ से ही उत्तर भारत में आकाश बदल रहित होता है| भारत में शुष्क सहित ऋतु का मौसम दिसम्बर से प्रारंभ हो जाता है| चूँकि इस समय सूर्य दिसम्बर के अंत तक मकर रेखा पर पहुँच जाता है, इस समय एशिया में उच्च वायुदाब की पेटी बन जाती है| इन पछुआ पवनो की शाखा दखिन की or मुद कर भारत के उत्तरी-पश्चिमी भागों में थोड़ी या सामान्य वर्षा कराती है| यह वर्षा रबी की फसल के लिए महत्वपूर्ण होती है| इस समय पंजाब और राजस्थान में न्यूनतम तापमान पाया जाता है|

इस समय दक्षिण भारत के कोरोमंडल तट पर भी वर्ष होती है| दक्षिण भारत में शांत डोलड्रम (Doldrum) आते हैं, जिसमे पवने चक्कर लगाती हुए समुद्र से नमी ग्रहण करती हैं| भारत में शीतकाल में होने वाली वर्षा की मात्र बहुत कम होती है, सम्पूर्ण वर्षा का केवल 5%| परन्तु यह वर्षा  उत्तर भारत में गेंहू, जौ चना, और सब्जियों व् फलों की फसलों के लिए बहुत लाभदायक होती हैं|

उष्ण शुष्क ग्रीष्म ऋतु Hot Dry Summer Season

मार्च महीने में सूर्य विषुवत रेखा पर होता है, जिसके पश्चात् वह कर्क रेखा की ओर बढ़ना प्रारंभ कर देता है, जिसके फलस्वरुप निम्न वायुदाब उत्तरपश्चिम भारत की तरफ बढ़ने लगता है| मार्च में सर्वाधिक तापमान दक्षिण भारत में पाया जाता है, लगभग 40°C| जुलाई के प्रारंभ में पश्चिमी राजस्थान में न्यूनतम वायुदाब पाया जाता है| इसके प्रभाव से हिन्द महासागर की दक्षिण-पूर्वी व्यापारिक पवने विषुवत रेखा को पर का भारतीय महाद्वीप में तेजी से बढती हैं मार्च से मई तक निम्न वायु दब की दशा में पवनो की दिशा व मार्ग में परिवर्तन होते रहते हैं निकटवर्ती स्थलों और समुद्र में स्थानीय पवने चलने लगती हैं| उत्तर भारत में तेज चलने वाली पवनो को ‘लू (Loo)’ कहते हैं| यह पवने मैदानी में दिन में अधिक गर्मी पड़ने के कारन चलती हैं| जब इन शुष्क पवनो से आद्र पवने मिलती हैं, तो उनसे आंधियां, ओलावृष्टि, तेजवर्षा होती है| पश्चिम बंगाल में इन पवनो को काल वैशाखी (Norwester) कहते हैं|

समुद्री प्रभाव के कारण यह गर्म पवने दक्षिण भारत में नहीं चलती हैं| इस वर्षा को बसंत ऋतु की तूफानी वर्षा कहते है तथा दक्षिण भारत में इस प्रकार होने वाली वर्षा को आम्र वर्षा (Mango Shower) कहते हैं| कहवा एवं चाय उत्पादन वाले क्षेत्रों में यह वर्षा काफी लाभदायक होती है और इस वर्षा के बाद चाय की फसलों में नयी कोपलें उगने लगती हैं| उत्तर पश्चिमी भारत में निम्न वायुदाब के कारण वायुमंडल में एक अगाध (Through) बन जाता है, जिसे मानसूनी अगाध (monsoon through) कहते हैं| इस अगाध के चारों ओर स्थानीय पवनों के चलने के कारण तापमान में वृद्धि और दाब में कमी होती है, और  उत्तर भारत में तीव्र व् शक्तिशाली पवने चलने लगती हैं| कुछ पश्चिमी चक्रवातीय पवनें (westerly depressions) पूर्व की ओर 125° देशांतर तक तथा उत्तर में 30° अक्षांशों के मध्य एशिया में फ़ैल जाती है| इन पछुआ पवनों के प्रभाव से और जेट स्ट्रीम(Jet Streams) की उत्पत्ति हो जाती है| इसके प्रभाव से चीन में शीतकालीन वर्षा होती है|

वर्षा ऋतु या दक्षिण पश्चिम मानसून का मौसम Rainy or South West Mansoon

इस मानसून का समय जून के प्रारंभ से लेकर सितम्बर के अंत तक माना जाता है| इस समय सूर्य कर्क रेखा पर चमकता है एवं वायुमंडल की अवस्थाओं में बड़ा परिवर्तन होता है उत्तर पश्चिम भाग में निम्न वायु दब के कारन हिन्द महासागर से बहने वाली पवने यहाँ आने का प्रयास करने लगती हैं एवं धीरे-धीरे मानसून पुरे भारत में फैलने लगता है| दक्षिण पश्चिम मानसून पवने दक्षिणी प्रायद्वीप की स्थिति के कारन दो शाखाओं में विभक्त हो जाती हैं| इसमें एक बंगाल की कड़ी व् दूसरी अरब सागर की शाखा के नाम से भारत में प्रवेश करती हैं|

अरब शाखा का भारत में अधिक विस्तार होता है तथा बंगाल की खाड़ी की शाखा का सिमित बहग ही भारत में प्रवेश करता है, शेष भाग म्यांमार, थाईलैंड व मलेशिया की तरफ चला जाता है| मानसून का चलना दो से चार महीनों तक रहता है| लौटते समय या और भी धीरे धीरे चलता है| सामान्यतः उत्तर-पश्चिमी भारत में अक्टूबर के प्रारंभ में तथा शेष भारत नवम्बर के अंत तक लौटता है| अरब सागरीय शाखा सीधे पश्चिमी घाट को पर करते समय दक्षिण के पठार के पूर्व की ओर उतरने पर यह पूना गर्म होने लगती है, अतः पठार के भीतरी भागों में कम वर्षा होती है| इसे वृष्टि छाया का प्रदेश ( Rain Shadow Area) कहते हैं| इसके कारण दक्षिण में इलायची की पहाड़ियों पर वर्षा बहुत कम हो जाती है| तमिलनाडु में अक्टूबर से दिसम्बर के मध्य तक बहुत अधिक वर्षा होती है|

बंगाल की कड़ी का मानसून अत्यंत वेग से वर्षा कर्ता है| इस मानसून की एक शाखा खासी पहाड़ियों से टकराती है, जहाँ इसे 1500 मी. की ऊंचाई तक उठाना पड़ता है| अतः यहाँ स्थित चेरापूंजी, मौसिनराम के निकट भरी वर्षा होती है| 1958 में मौसिनराम में 1392 सेमी. वर्षा हुई थी| इस मानसून की विशेता यह है कि पश्चिम की ओर बढ़ने पर यह शुष्क होता जाता है एवं वर्षा भी कम होती जाती है|

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भारत में वर्षा के प्रकार Types Of Rain In India

भारत में होने वाली वर्षा का 85% पर्वतीय वर्षा (Orographical Rains) के रूप में प्राप्त होता है| हिमालय व् पश्चिमी घाट के सभी क्षेत्रों में यहाँ मानसूनी पवने पर्वतों को पार करने के लिए प्रयत्नशील होती हैं और इस प्रकार पवनों के ऊँचे उठने के कारण वे ठंडी हो जाती हैं|

चक्रवातीय वर्षा Cyclonic Rain

अधिकतर चक्रवातों और तूफानों के कारन होती हैं| चक्रवात तपमान में स्थानीय अंतर के कारण बनते हैं चक्रवात अपने क्षेत्र में वर्षा को केन्द्रीभूत व् घनीभूत करते हैं|

संवाहनीय वर्षा Convectional Rain

स्थानीय गर्मी के कारन जलज मेघ बनने रहते हैं| गर्मी द्वारा वायु में संवाहनीय धाराएं उत्पन्न होती हैं, जिस कारण इस प्रकार की वर्षा होती है|

भारतीय वर्षा की विशेषताएं Features Of The Indian Rain

भारत की औसत वर्षा 108 सेमी. मणि गयी है, परन्तु इसमें उल्लेखनीय परिवर्तन सामान्य से +30 या –20 सेमी. तक होते रहते हैं|

भारत की सम्पूर्ण वर्षा का 75% भाग दक्षिण पश्चिम मानसून से, मानसून उपरांत काल (सितम्बर-अक्टूबर) से 13% भाग, शीतकालीन मानसून (जनवरी-फरवरी) से 3% भाग और शेष 10% भाग पूर्व मानसून काल (मार्च-मई) द्वारा पाया जाता है|

देश में होने वाली वर्षा विश्वास जनक नहीं होती है, कभी-कभी घनघोर वर्षा होती है, जिससे कारण बाढ़ आ सकती है और कभी-कभी उसी स्थान पर सुखा पढ़ जाता है| किसी साल वर्षा समय से पूर्व आरंभ हो जाती है तथा किसी वर्ष समय से पूर्व समाप्त हो जाती है|

भारत में वर्षा का वितरण भी एक समान नहीं है| पोरबंदर से दिल्ली और फिरोजपुर को जोड़ने वाली समवृष्टि (isoyet) के पश्चिम में वर्षा की मात्रा 50 सेमी. से घाट कर 15 सेमी. तक हो जाती है|

वर्षा लगातार नहीं होती है, अपितु कुछ दिनों के अंतर पर रुक रुक कर होती है| किन्ही भागों में वर्षा तेज होती है तथा अन्य भागों पर बौछार के रूप में होती है|

पहाड़ों के पवनमुखी ढालों (wind ward) पर उनके विमुख ढालों (lee ward)की अपेक्षा कहीं अधिक वर्षा होती है| जैसे महाराष्ट्र, मुंबई में 187.5 सेमी., मौसिनराम (चेरापूंजी) में 1392 सेमी., जो की पवंमुखी ढल पर स्थित हैं और अधिक वर्षा प्राप्त करते हैं| वहीँ मुंबई से केवल 150 किमी. दूर स्थित पुणे में 50 सेमी. और मौसिनराम (चेरापूंजी) से 40 किमी. दूर स्थित शिलांग में मात्र 215 सेमी. वर्षा इनके पवन विमुख ढाल पर स्थित होने के कारण होती है|

देश के कुल क्षेत्रफल का लगभग 16% भाग सूखे से प्रभावित होता है|

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