तत्वों की आवर्त सारणी Periodic Table of Elements

1869 में रूस के एक वैज्ञानिक, दमित्री डवानोविच मैन्डलीफ ने रसायनज्ञों ने लिए एक बहुत ही उपयोगी तथा सरल संकल्पना प्रस्तुत की उसने बताया कि अगर तत्वों को उसके परमाणु भार के क्रम से लिखा जाए तो उनके गुणधर्मो में एक स्पष्ट आवर्तन नजर आता है।

लगभग 120 वर्षों से वैज्ञानिक तत्वों को उनके गुणों के आधार पर वर्गीकृत करके विभिन्न समूह में बांटने का प्रयास करते रहे हैं। लीथियम, सोडियम और पोटेशियम को एक वर्ग में रखा गया है जिसको क्षार धातु वर्ग कहा गया। ये सभी धातु हैं, ये सहज ही जल से अभिक्रिया करते हैं और क्षारीय विलयन बनाते हैं। इन क्षारीय विलयनों को क्षार कहते हैं। इन सभी धातुओं की संयोजकता एक है। फ्लूओरीन, क्लोरीन, ब्रोमीन और आयोडीन को एक दूसरे समूह में रखा गया। जिसे हैलोजन वर्ग कहते हैं। इन सभी हैलोजन तत्वों के गुण में काफी समानता है। ये सभी अधातु हैं और बड़े अभिक्रियाशील हैं। इन सभी की संयोजकता एक है और ये जल से अभिक्रिया करके अम्ल बनाते हैं। ये तत्व सामान्यत: साधारण लवणों में उपस्थित होते हैं। ग्रीक भाषा में हैलो का अर्थ है लवण और जन का अर्थ है उत्पन्न करने वाला। मैग्नीशियम, कैल्सियम, और बेरियम तत्वों को जिनके गुण समान होते हैं, एक अलग वर्ग में रखा गया। इस वर्ग को क्षारीय मृदा धातु वर्ग कहा गया। उस समय तक ज्ञात 63 तत्वों में से कोई ऐसा सामान्य गुण नहीं मिला जिसको आधार मान कर तत्वों को वर्गीकृत किया जा सके।

मैंडेलीफ का आवर्त-नियम

मैंडेलीफ ने तत्वों को वर्गीकृत करने का प्रयास किया। वह रूस में रसायन शास्त्र के अध्यापक थे। उन्होंने अनुभव किया कि उस समय ज्ञात सभी 63 तत्वों में गुणों के आधार पर कोई क्रम होना चाहिए। यह क्रम तत्वों को वर्गीकृत करने में, उनकी अभिक्रियाओं को समझने में और किसी तत्व के गुणों की भविष्य वाणी करने में सहायता करेगा। नियमबद्ध करना, समझना तथा अनुमान लगाना वास्तव में यही विज्ञान का लक्ष्य है। उसने यह तक प्रस्तुत किया कि एक सफल वर्गीकरण वह है, जो सरल तथा व्यापक हो, उपयोगी हो और एक विशेष गुण पर आधारित हो। महत्वपूर्ण बात यह थी कि किस आधार पर वर्गीकरण किया जाना चाहिए। पहले किये गये एक प्रयास में सोडियम और लैड (सीसा) को एक ही वर्ग में रखा गया क्योंकि वे दोनों धातु थे। परन्तु यही एक ऐसा समान गुण है, जो इन दोनों तत्वों में पाया जाता है, अन्यथा इनके सभी गुण भिन्न हैं। अत: तत्वों को धातुओं और अधातुओं में वगीकृत करना पर्याप्त नहीं था। एक ऐसे मूल गुण की आवश्यकता थी जिसके आधार पर परमाणुओं के अधिकांश गुणों को सहज ही समझा जा सके और उनका स्पष्टीकरण किया जा सके।

मैंडेलीफ ने 63 कार्ड लिए और उन पर तत्वों के नाम एवं गुण लिखे। इसके बाद उसने उन तत्वों के बारे में ज्ञात सभी प्रमाणों की जाँच की और समान गुण वाले तत्वों के कोडों को पृथक करके उनको दीवार पर एक साथ पिन से लगा दिया। उनकी कार्ड व्यवस्था अथवा सारणी की भाँति थी। जब तत्वों को उनके बढ़ते हुए परमाणु भार के क्रम में व्यवस्थित किया गया तो सात वर्ग बने। प्रत्येक वर्ग के सभी तत्व लगभग सभी गुणों में समान थे। एक निश्चित अन्तर के बाद तत्वों के गुण दोहराए गए, अर्थात् प्रत्येक सातवें तत्व के बाद आने वाले तत्व के गुण पहले वाले तत्व के समान पाये गये। इस आधार पर तत्वों की व्यवस्था धात्वीय गुण, घनत्व अथवा किसी अन्य गुण पर आधारित व्यवस्था से स्पष्टतया अच्छी पाई गई। उसने इस प्रवृत्ति पर आधारित एक नियम को अभिव्यक्त किया। अर्थात् तत्वों के गुण, उनके परमाणु भार के आवर्ती-फलन होते हैं। यही मैंडेलीफ का आवर्त नियम है। अब उसने टाइटेनियम तत्व के साथ एक महत्वपूर्ण कार्य किया। इसको ऐलुमिनियम के नीचे न रखकर, मैंडेलीफ ने इसको सिलिकन के नीचे उनके समान गुणों के आधार पर रखा। इससे ऐलुमिनियम के नीचे स्थान रिक्त रह गया। यदि आवर्त नियम सही है तो इसका अर्थ होगा कि यह रिक्त स्थान किसी ऐसे तत्व से भरना चाहिए जिसकी अभी तक खोज नहीं हुई है। इसके अतिरिक्त, इस तत्व का परमाणु भार 48 से कम होना चाहिए तथा गुण, बोरॉन एवं ऐलुमिनियम के समान होने चाहिए। मैंडलीफ का यह अनुमान ही आवर्त-नियम पर आधारित था, गैलियम तत्व की खोज के साथ ही पाँच वर्षों के अन्दर सत्य सिद्ध हो गया।

परमाणु गुण ही आधार है

मैंडेलीफ के आवर्त-नियम के विषय में कुछ बातें ध्यान देने योग्य हैं –


  1. प्रारंभिक प्रयासों की तुलना में उसने तत्वों को मूल आधार पर वर्गीकृत किया।
  2. स्कैन्डियम, गैलियम तथा जर्मेनियम जैसे अनेक तत्वों के गुणों का पूर्वानुमान वह आवर्त सारणी में उनके स्थानों के आधार पर कर सका।
  3. सोना तथा प्लेटिनम् जैसे तत्वों के परमाणु भारों में त्रुटियों का पूर्वानुमान कर सका।
  4. सारणी की कोई विशेषता गलत सिद्ध नहीं हुई। यहाँ तक कि जब नये तत्वों का एक सम्पूर्ण समूह, जैसे अक्रिय गैसें खोजी गई तो उन्हें भी कोई परिवर्तन किये बिना, सारणी में स्थान मिल गया। मैंडेलीफ को उस समय तक ज्ञात 63 तत्वों को सारणी में स्थान देना था। उनको द्वारा निर्मित सारणी में प्रत्येक नये तत्व (जिनकी अभी खोज नहीं हुई थी) के लिए एक उचित एवं नियत स्थान था। इन नये तत्वों के सारणी में स्थान पाने से पहले से ज्ञात तत्वों के क्रम में कोई परिवर्तन नहीं आया।

मैंडेलीफ की यह कल्पना बहुत ही महत्वपूर्ण थी, क्योंकि इसने परमाणु गुण को आधार के रूप में मानने पर बल दिया। ज्ञात तत्वों के वर्गीकरण के लिए, उसने दो बातों को ध्यान में रखा: पहला था- समान तत्वों को एक समूह में रखना तथा दूसरा था-तत्वों को बढ़ते हुए परमाणु भार के अनुसार क्रम में रखना। उसने उस समय ज्ञात परमाणु भारों को केवल संदर्श संख्या के रूप में माना। उनके द्वारा बनाई गई तत्वों की इस व्यवस्था में कोई कठिनाई अनुभव नहीं हुई। याद करें, उसने टाईटेनियम के साथ क्या किया? यह आवश्यक है क्योंकि इसके बावजूद भी कि परमाणु भार एक तत्व से अगले तत्व तक किसी निश्चित क्रम में नहीं बदलते, उन्होंने इनका उपयोग किया। आपको याद होगा, उसने टाइटेनियम को उपयुक्त स्थान पर वर्गीकृत करने में सफलता पाई।

इलेक्ट्रॉनिक विन्यास मूलाधार है

हम तत्वों की आवर्त-सारणी के मूलाधार को सीधे ही देख सकते हैं। सारणी को 8 उर्ध्वाधर कॉलम, जिनको वर्ग कहते हैं और 7 है। प्रथम आवर्त में केवल 2 तत्व-हाइड्रोजन एवं हीलियम हैं। दूसरे तथा तीसरे आवर्त में आठ-आठ तत्व हैं। चौथे एवं पाँचवें आवर्त में, प्रत्येक में 18 तत्व हैं जबकि छठा आवर्त सबसे बड़ा है और इसमें 32 तत्व हैं। इन तत्वों में दुर्लभ मृदा धातु के 14 तत्व भी सम्मिलित हैं।

2, 8, 8, 18, 18, 32 तत्वों का यह अनुक्रम तत्काल यह प्रस्तावित करता है कि ये संख्याएँ विभिन्न तत्वों के परमाणुओं के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास को निरूपित करती हैं। परमाणु क्रमांक प्रोटॉनों की संख्या के बराबर है और यह प्रत्येक उदासीन परमाणु में इलेक्ट्रॉनों की संख्या के भी बराबर है। प्रथम इलेक्ट्रॉनिक कोष में केवल दो इलेक्ट्रान रह सकते हैं, दूसरे कोष में केवल आठ, इत्यादि। प्रथम, दूसरे तथा तीसरे आवतों के तत्वों के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास को लिखें।

प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय आवर्त के तत्वों का इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
तत्व परमाणु क्रमांक इलेक्ट्रॉनिक विन्यास
H 1 1
He 2 2
Li 3 2, 1
Be 4 2, 2
B 5 2, 3
C 6 2, 4
N 7 2, 5
O 8 2, 6
F 9 2, 7
Ne 10 2, 8
Na 11 2, 81
Mg 12 2, 82
AI 13 2, 83
Si 14 2, 84
р 15 2, 85
S 16 2, 86
CI 17 2, 87
Ar 18 2, 88

अब हम किसी परमाणु गुण पर आधारित मैंडेलीफ की व्यवस्था की तर्कसंगति को देख सकते हैं और मैंडेलीफ के प्रयासको सराह सकते है कि वे आवर्त-सारणी के आधुनिक रूप के कितने निकट थे। क्या आप बता सकते हैं कि प्रथम आवर्त में केवल दो तत्व क्यों होते हैं? प्रथम कोष में केवल दो इलेक्ट्रॉन हो सकते हैं। अत: इसमें केवल दो तत्व ही हो सकते हैं जिनक परमाणु क्रमांक 1 तथा 2 हैं। दूसरे आवर्त में 8 तत्व ही क्यों होते हैं, 7 अथवा 9 क्यों नहीं? किसी निश्चित वर्ग में तत्वों के गुण समान क्यों होते हैं?

वर्ग

उर्ध्वाधर कॉलमों को, जिनको वर्ग कहते हैं, I तथा VII तथा VIII अथवा शून्य अंकित किये गए हैं। शून्य वर्ग या वर्ग VIII दायें छोर पर स्थित है और वर्गI बायें छोर पर स्थित है एक ही वर्ग के सभी तत्वों के बाह्यतम कोष में इलेक्ट्रॉनों को संयोजी इलेक्ट्रॉन कहते हैं।

किसी परमाणु के रासायनिक गुण अधिकांशत: इसके संयोजी इलेक्ट्रॉनों द्वारा नियंत्रित होते हैं। यही कारण है कि किसी निश्चित वर्ग में उपस्थित परमाणु के गुण समान होते हैं। वर्ग 1 में स्थित परमाणुओं के बारे में विचार करें। इन परमाणुओं के इलेक्ट्रॉनिक विन्यास हैं: H(1), Li(2,1), Na(2,8,1), K(2, 8,8,1) आदि।

ये परमाणु बहुत ही कम ऊर्जा उपलब्ध होने पर भी अपने एकमात्र संयोजी इलेक्ट्रॉन को सहज ही खो सकते हैं और एकमात्र धन आवेश युक्त आयन बना सकते हैं। इस प्रकार, वर्ग 1 वे तत्व अपनी रासायनिक अभिक्रियाओं में एक संयोजी हैं और स्वभाव में आयनिक होते हैं। ऐसे ही वर्ग II के तत्वों के परमाणु सहज ही अपने दोनों इलेक्ट्रॉनों को खो सकते हैं। वे दो धन आवेश युक्त आयन बनाते हैं और इसलिए द्विसंयोजी हैं।

आवर्त-सारणी के दूसरे छोर पर वर्ग VII के तत्व हैं जिनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास हैं: F (2,7), C1 (2, 8,7), Br(2,8,18,7) आदि। ये परमाणु अपने संयोजी कोषों में इलेक्ट्रॉन को आसानी से ग्रहण करके अपने कोषों को पूर्ण कर लेते हैं। इससे परमाणु एक मात्र ऋण आवेश युक्त आयन बनाते हैं।

क्लोरीन (2, 8,7) + इलेक्ट्रॉन क्लोराइड आयन (2, 8, 8) अतः वर्ग VII के तत्व अपनी अभिक्रियाओं में सामान्यतया आयनिक हैं और ऋण आवेश युक्त एक संयोजी होते हैं। शून्य ग्रुप के तत्व अत्याधिक निष्क्रिय हैं एवं प्राय: रासायनिक अभिक्रिया नहीं करते हैं। इनके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास हैं: He (2), Ne(2,8), Ar(2,8,8) इत्यादि। इनके बाह्यतम कोष पहले से ही पूर्णतया भरे होते हैं। इसके परमाणुओं में इलेक्ट्रॉनों को खोने अथवा ग्रहण करने की प्रवृत्ति नहीं है। अत: शून्य ग्रुप के तत्वों की संयोजकता शून्य है अथवा ये तत्व शून्य संयोजक हैं और क्रियाशील नहीं हैं।

तृतीय आवर्त के तत्वों के कुछ गुण
वर्ग I II III IV V VI VII VIII
तत्व Na Mg AI Si P S CI Ar
इलेक्ट्रॉनविन्यास 2, 8,1 2, 8,2 2, 8,3 2, 8,4 2, 8,5 2, 8,6 2, 8,7 2, 8,8
परमाणु त्रिज्या  (nm में) 0.186 0.160 0.143 0.117 0.110 0.104 0.099 0.154
तत्व का स्वभाव धातु धातु धातु अधातु अधातु अधातु अधातु अधातु
आबन्धन के प्रकार आयनिक आयनिक आयनिक सह-संयोजक सह-संयोजक सह-संयोजक सह-संयोजक आयनिक
ऑक्साइड Na2O MgO AL2O3 SiO2 SO3 CL2O7

SO3

CI2O6

CIO2

Cl2O

आवर्त

आवर्त-सारणी में तत्वों की क्षैतिज पंक्तियों को आवर्त अथवा पंक्तियाँ कहा जाता है। प्रथम आवर्त में हाइड्रोजन तथा हीलियम हैं। लीथियम, बेरीलियम, बोरोन, कार्बन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, फ्लुओरिन तथा निऑन दूसरे आवर्त में हैं। कुल मिलाकर 7 आवर्त अथवा पंक्तियां हैं। प्रथम आवर्त के तत्वों में एक इलेक्ट्रॉन-कोष होता है। दूसरे आवर्त के तत्वों में इलेक्ट्रॉनों के दो कोष होते हैं। किसी आवर्त अथवा पंक्ति में बाई से दांई ओर जाने पर, संयोजी इलेक्ट्रॉन-कोष उत्तरोत्तर भरता जाता है। उदाहरणार्थ, प्रथम आवर्त में H (1), He(2)। दूसरे आवर्त में इलेक्ट्रॉनिक व्यवस्था इस प्रकार है : Li(2,1), Be(2,2), B(2,3), C(2,4), N(2,5), O(2,6), F(2,7) तथा Ne(2,8)। तीसरे आवर्त के तत्वों में तीन इलेक्ट्रॉन-कोष होते हैं: Na(2,8, 1) जबकि चौथे आवर्त अथवा पंक्ति के तत्वों में चार इलेक्ट्रॉन-कोश होते हैं: Ca(2, 8, 8, 2) इत्यादि। किसी निश्चित आवर्त में, बाह्यतम अथवा संयोजी कोश वर्ग I से VIII वर्ग तक उत्तरोत्तर भरता जाता है। दूसरी ओर, किसी निश्चित वर्ग में ऊपर से नीचे जाने में इलेक्ट्रॉन कोषों की संख्या बढ़ती जाती हैं परन्तु बाह्यतम कोष में इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान रहती है। इस प्रकार सारणी में किसी तत्व का स्थान इसके इलेक्ट्रॉनिक विन्यास द्वारा निर्धारित किया जाता है और इसलिए इसके रासायनिक गुण भी इलेक्ट्रॉन विन्यास पर निर्भर करते हैं।

किसी आवर्त में तत्वों के गुण किस प्रकार विकसित होते हैं अथवा बदलते हैं? किसी एक आवर्त में बायें से दाईं ओर जाने पर धात्विक गुण कम होते जाते हैं तथा अधात्विक गुण बढ़ते जाते हैं। बायें छोर पर स्थित वर्ग I तथा II के तत्व धातु हैं और जब हम मध्य तक पहुंचते हैं, जैसे वर्ग IV से आधातु मिलते हैं।

तीसरी पंक्ति के तत्वों में अनेक रोचक प्रवृत्तियाँ देखी गई हैं। अब आप इस प्रवृत्ति के कारण को समझ सकते हैं और अध्ययन करने के बाद निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दे सकते हैं:

  1. दूसरे आवर्ती में सोडियम से क्लोरीन की ओर जाने पर परमाणु का आकार उत्तरोत्तर छोटा क्यों होता जाता है? अर्थात् परमाणु की त्रिज्या क्यों घटती जाती है?
  2. आर्गन का परमाणु, क्लोरीन को परमाणु की अपेक्षा आकार में क्यों बड़ा है?
  3. सिलिकन चतु:संयोजक क्यों है, जबकि क्लोरीन एक संयोजक है?

शुद्ध सोने को 24 कैरट कहते हैं तथा यह काफी नर्म होता है। इसलिए आभूषण बनाने के लिए यह उपयुक्त नहीं होता है। इसे कठोर बनाने के लिए इसमें चाँदी या ताँबा मिलाया जाता है। भारत में अधिकांशतः आभूषण बनाने के लिए 22 कैरट सोने का उपयोग होता है। इसका तात्पर्य यह है कि 22 भाग शुद्ध सोने में 2 भाग ताँबा या चाँदी का मिलाया जाना।

डमित्री इवानोविच मेन्डलीफ (1834-1907)

मेन्डेलीफ का जन्म 8 फरवरी 1834 में रूप के पश्चिमी साइबेरिया के टोबोलस्क स्थान में हुआ था। अपनी प्रारंभिक शिक्षा के बाद मेन्डेलीफ अपनी माँ के प्रयासों के कारण ही विश्वविद्यालय में प्रवेश पा सके। अपनी खोज को उन्होंने माँ को समर्पित करते हुए लिखा, “उन्होंने मुझे उदाहरण देकर समझाया, प्यार से समझाया, अपने शेष संसाधनों एवंशक्ति व्यय करके मेरे साथ विभिन्न स्थानों पर गई। वह जानती थीं कि विज्ञान की मदद से, बिना हिंसा के, लेकिन प्यार एवं दृढ़ता से अंध विश्वास, असत्य धारणाओं एवं गलतियों को दूर किया जा सकता है”। उनके द्वारा प्रस्तावित तत्वों की व्यवस्था को मेन्डेलीफ की आवर्त सारणी कहा जाता है। आवर्त सारणी रसायन में एकमात्र सिद्धांत साबित हुआ। इसमें नए तत्वों की खोज के लिए प्रेरणा मिली।

Leave a Reply to Anonymous Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *