सरल आवर्त गति आवर्त गति Periodic motion

जब कोई पिंड एक निश्चित समयान्तराल में एक ही निश्चित पथ पर बार-बार अपनी गति को दोहराता है, तो उसकी गति को आवर्त गति कहते हैं तथा यह निश्चित समयान्तराल आवर्त काल (Time Period) कहलाता है। एक सेकण्ड में वह अपनी गति को जितनी बार दोहराती है, वह उसकी आवृति (Frequency) कहलाती है। इसका SI मात्रक हर्ट्ज (Hz) होता है।

सरल आवर्त गति (Simple Harmonic Motion): यदि कोई वस्तु एक सरल रेखा पर मध्यमान स्थिति (mean position) के इधर-उधर इस प्रकार की गति करे, कि वस्तु का त्वरण मध्यमान स्थिति से वस्तु के विस्थापन के अनुक्रमानुपाती हो तथा त्वरण की दिशा मध्यमान स्थिति की ओर हो, तो उसकी गति सरल आवर्त गति कहलाती है।

सरल आवर्त गति की विशेषताएँ:

(a) सरल आवर्त गति करने वाला कण जब अपनी मध्यमान स्थिति (mean position) से गुजरता है, तो

(i) उस पर कोई बल कार्य नहीं करता है।

(ii) उसका त्वरण शून्य होता है।

(iii) वेग अधिकतम होता है।


(iv) गतिज ऊर्जा (K.E.) अधिकतम होती है।

(v) स्थितिज ऊर्जा (P.E.) शून्य होती है।

(b) सरल आवर्त गति करने वाला कण जब अपनी गति के अन्त बिन्दुओं (extreme or end points) से गुजरता है, तो-

(i) उसका त्वरण अधिकतम होता है।

(ii) उस पर कार्य करने वाला प्रत्यानन बल (Restoring Force) अधिकतम होता है।

(iii) गतिज ऊर्जा शून्य होती है।

(iv) स्थितिज ऊर्जा अधिकतम होती है।

(v) वेग शून्य होता है।

प्रत्यानन बल Restoring Force: जब कण अपनी साम्य स्थिति में रहता है, तो उस पर लगने वाला बल शून्य होता है। किन्तु जब कण को साम्य स्थिति से विस्थापित कर दिया जाता है, तो उस पर एक ऐसा बल कार्य करने लगता है, जो सदैव साम्य स्थिति की ओर दिष्ट होती है।

इस बल को प्रत्यानन बल कहते है। इस बल का प्रयास सदैव यही होता है कि कण साम्य स्थिति में आ जाए। इस बल के कारण ही कण में त्वरण उत्पन्न होता है और वह दोलन करती है।

सरल लोलक Simple Pendulum: यदि एक भारहीन व लम्बाई में न बढ़ने वाली डोरी के निचले सिर से पदार्थ के किसी गोल परन्तु भारी कण को लटकाकर डोरी को किसी दृढ़ आधार से लटका दें, तो इस समायोजन को सरल लोलक कहते हैं। यदि लोलक (Bob) को साम्य स्थिति से थोड़ा विस्थापित करके छोड दें, तो इसकी गति सरल आवर्त गति होती है।

उदाहरण :

(1) लम्बाई बढ़ने पर आवर्तकाल भी बढ़ जाता है और यदि लंबाई घट जाए तो आवर्तकाल भी घट जाएगा। यही कारण है कि यदि कोई लड़की झूला झुलते-झुलते खड़ी हो जाए, तो उसका गुरुत्व केन्द्र ऊपर उठ जाएगा और प्रभावी लम्बाई घट जाएगी, जिससे झूले का आवर्त काल घट जाएगा। अर्थात् झूला जल्दी-जल्दी दोलन करेगा।

(ii) आवर्त काल लोलक के द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है, अतः इमूलने वाली लड़की की बगल में कोई दूसरी लड़की आकर बैठ जाए, तो आवर्त काल पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।

(ii) किसी लोलक घड़ी को पृथ्वी तल से ऊपर या नीचे ले जाया जाए तो घड़ी का आवर्तकाल (T) बढ़ जाता है, अर्थात् घड़ी सुस्त हो जाती है, क्योंकि पृथ्वी तल से ऊपर या नीचे जाने पर ५ का मान कम होता है।

(iv) यदि लोलक घड़ी की उपग्रह पर ले जाएँ तो वहाँ भारहीनता के कारण g = 0, अतः घड़ी का आवर्तकाल (T) अनन्त हो जाएगा, अतः उपग्रह में लोलक घड़ी काम नहीं करेगी।

(v) गर्मियों में लोलक की लम्बाई (I) बढ़ जाती है इसलिए उसका आवर्त काल T भी बढ़ जाता है। फलतः घड़ी सुस्त हो जाती है। सर्दियों में लम्बाई (I) कम हो जाने से आवर्त काल T भी कम हो जाती है और लोलक घड़ी तेज चलने लगती है।

(vi) चन्द्रमा पर लोलक घड़ी को ले जाने पर उसका आवर्त काल बढ़ जाएगा, क्योंकि चन्द्रमा पर g का मान पृथ्वी के g के मान का 1/6 गुना है।

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