ऑक्सीजन Oxygen

ऑक्सीजन (O), सल्फर (S) सेलेनियम (Se), टेल्युरियम (Te) एवं पोलोनियम (Po) को आधुनिक आवर्त सारणी के वर्ग 16 में रखा गया है। वर्ग 16 के प्रथम चार तत्वों- ऑक्सीजन (O) सल्फर (S), सेलेनियम (Se) तथा टेल्युरियम (Te) को सम्मिलित रूप से कैल्कोजेन (Chalcogens) कहा जाता है। अयस्क बनाने वाले तत्वों को कैल्कोजेन कहा जाता है। (Chalcogen = ore Forming Elements) वर्ग 16 के तत्वों को प्रतिरूपी तत्व (Typical Elements) अथवा सामान्य तत्व (Common Elements) भी कहा जाता है। वर्ग 16 के तत्वों में ऑक्सीजन को छोड़कर सभी ठोस अवस्था में पाये जाते हैं। वर्ग 16 के तत्वों में पोलोनियम (Po) रेडियो सक्रियता का गुण प्रदर्शित करता है। यह बहुत ही अस्थायी होता है। आवर्त सारणी के ज्ञात सभी तत्वों में पोलोनियम के सर्वाधिक समस्थानिक (27) पाये जाते हैं।

ऑक्सीजन गैस (Oxygen Gas): ऑक्सीजन गैस की खोज सर्वप्रथम स्वीडन के शीले (scheele) नामक वैज्ञानिक ने 1772 ई० में की थी। यह एक रंगहीन, गंधहीन एवं वायु से कुछ भारी गैस है। इसे ठंडा करने पर यह नीले रंग के द्रव में परिवर्तित हो जाती है। यह गैस स्वयं नहीं जलती, परन्तु जलने में सहायक होती है। ऑक्सीजन की प्रकृति अनुचुम्बकीय होती है। इसके अणु द्विपरमाण्विक होते हैं। ऑक्सीजन को प्राण वायु (Life Air) कहा जाता है। आयतन के विचार से वायु में लगभग 20.29% मात्रा ऑक्सीजन की होती है। संयुक्त अवस्था में यह जल में पाया जाता है, जिसमें भार के विचार से यह 88.9% रहता है। प्रयोगशाला में ऑक्सीजन गैस पोटैशियम क्लोरेट (KClO3) को मैंगनीज डाइऑक्साइड (MnO2) उत्प्रेरक की उपस्थिति में 375°C तापक्रम पर गर्म करके बनायी जाती है। कृत्रिम श्वसन में हीलियम और ऑक्सीजन के मिश्रण का प्रयोग होता है। ऑक्सीजन का उपयोग ऑक्सी हाइड्रोजन एवं ऑक्सी- ऐसीटिलीन ज्वाला उत्पन्न करने में होता है। द्रवीभूत ऑक्सीजन का उपयोग रॉकेट ईंधन (Rocket Fuel) के रूप में होता है। ऑक्सीजन के तीन समस्थानिक होते हैं- 8O16, 8O17 तथा 8O18 मानव-शरीर में सर्वाधिक मात्रा में पाया जाने वाला तत्व ऑक्सीजन (O) है। यदि पृथ्वी पर सारी वनस्पति नष्ट हो जाए, तो सभी जीव-जन्तु ऑक्सीजन के अभाव में मर जाएँगे। वायुमंडल में समस्त ऑक्सीजन हरे पौधों द्वारा प्रकाश संशलेषण (Photosyntheis) प्रक्रिया के फलस्वरूप उत्पन्न हुई है।

ओजोन (ozone): वायुमंडलीय ऑक्सीजन पर अल्टा वायलेट किरणों (U.V rays) के प्रभाव से ओजोन (Ozone) उत्पन्न होती है। यह ऑक्सीजन का एक अपरूप (AIlotrop) है। इसका अणु त्रिपरमाणुक होता है। इसमें सड़ी मछली की तरह गंध होती है। ओजोन गैस सूर्य से आने वाली पराबैंगनी किरणों (Ultraviolet Rays) को पृथ्वी की सतह पर आने से रोकती है। समुद्रतल से 25 किमी० की ऊँचाई पर ओजोन की सान्द्रता अधिकतम होती है। ओजोन गैस चांदी (Ag) के चमक को काला कर देती है। ओजोन गैस ऑक्सीकारक एवं अवकारक दोनों प्रकार के गुण प्रदर्शित करता है। ओजोन एथिलीन जैसे असंतृप्त कार्बनिक यौगिकों के साथ संयोग कर ओजोनाइड बनाता है।

ओजोन के उपयोग: (i) कीटाणुनाशक के रूप में (ii) जल को साफ तथा शुद्ध करने में (iii) हवा को शुद्ध करने में (iv) खाद्य पदार्थों को सड़ने से बचाने में (v) कृत्रिम रेशम बनाने में

नोट:

  • ओजोनमंडल पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करके पृथ्वी के जीवोंकी रक्षा करता है।
  • सी० एफ० सी० (CFC) के एक अणु में ओजोन के एक लाख अणुओं को नष्ट करने की क्षमता होती है।
  • वतमान में ओजोन की 30% सतह झीनी हो चुकी है।
  • ओजोन परत में सर्वप्रथम सुराख उत्तरी गोलार्द्ध के ऊपर हुआ, क्योंकि ओजोन परत को नष्ट करने की अभिक्रियाएँ निम्न तापमान (-80°C) पर होती है।
  • ओजोन परत को क्षति पहुँचाने वाले गैस- CFC-11, CFC-12, CFC-22 क्लोरीन, ब्रोमीन, फ्लोरीन, मिथेन, नाइट्रस ऑक्साइड, CO2 आदि है।

Leave a Reply to Anonymous Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *