कार्बनिक यौगिक Organic Compounds

  1. मिथेन (Methane): यह ऐल्केन श्रेणी का प्रथम सदस्य है। यह एक कार्बनिक गैस है। इसे मार्श गैस के नाम से भी जाना जाता है। प्राकृतिक रूप से यह सब्जियों के विघटन से प्राप्त की जाती है। प्रयोगशाला में यह सोडियम ऐसीटेट को सोडालाइम के साथ गर्म करके प्राप्त किया जाता है। ऐल्युमिनियम कार्बाइड पर जल की प्रतिक्रिया से व्यापारिक स्तर पर मिथेन प्राप्त किया जाता है। यह प्राकृतिक गैस का प्रमुख अवयव है। उसमें यह 90% मात्रा में मौजूद रहता है। हवा के साथ यह विस्फोटक मिश्रण बनाता है, जिस कारण कोयले की खानों में प्रायः भयानक विस्फोट हुआ करते हैं। इसका उपयोग गैसीय ईंधन के रूप में, कार्बनिक यौगिकों के निर्माण में, कार्बन ब्लैक बनाने में, हाइड्रोजन के औद्योगिक उत्पादन आदि में होता है। इसकी आकृति समचतुष्फलकीय (Tetrahedral) होती है तथा बंधनों के बीच का कोण 109° 28′ होता है।
  2. एथीलिन (Ethylene): यह ऐल्कीन श्रेणी का प्रथम सदस्य है। प्रयोगशाला में एथोलिन बनाने के लिए इथाइल ऐल्कोहॉल तथा अधिक मात्रा में सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल को 170°C पर गर्म किया जाता है। इसका उपयोग पॉलीथीन प्लास्टिक बनाने, मस्टर्ड गैस बनाने, निश्चेतक के रूप में, ऑक्सी एथोलिन ज्वाला उत्पन्न करने आदि में होता है।
  3. ऐसीटिलीन (Acetylene): यह ऐल्काइन श्रेणी का प्रथम सदस्य है। इसे प्रयोगशाला में कैल्सियम कार्बाइड पर जल की प्रतिक्रिया द्वारा बनाया जाता हैं। इसका उपयोग प्रकाश उत्पन्न करने, कपूर बनाने, निश्चेतक के रूप में, धातुओं को काटने जोड़ने में, बेजीन के संश्लेषण में, कच्चे फलों को कृत्रिम रूप से पकाने आदि में होता है। इसकी खोज अमेरिकी वैज्ञानिक विल्सन ने की थी।
  4. सी० एफ० सी० (C.F.C.): सी० एफ० सी० का पूरा रूप क्लोरो फ्लोरो कार्बन (Chloro fluoro carbon) होता है। यह क्लोरीन, फ्लोरीन तथा कार्बन परमाणुओं के यौगिकों का संघटन है। यह ओजोन परत के क्षरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। सी० एफ० सी० को फ्रिऑन (Freon) भी कहा जाता है ।
  5. फ्रिऑन (Freon): इसका रासायनिक नाम क्लोरो पलोरो कार्बन (CFC) है। इसका उपयोग विलायक, प्रशीतक व परिक्षेपक के रूप में होता है।
  6. इथाइल ऐल्कोहॉल (Ethyl Alcohol): यह एक रंगहीन द्रव है, जो अत्यधिक ज्वलनशील होता है। इसके पीने से मानव शरीर में उत्तेजना पैदा होती है। इस कारण इसका उपयोग मादक द्रव या शराब (wine) के रूप में किया जाता है। यह फलों व स्टार्चयुक्त अनाजों से प्राप्त किया जाता है। औद्योगिक दृष्टि से इसका उत्पादन किण्वन विधि द्वारा किया जाता है। इसका उपयोग मोटर व हवाई जहाजों में ईंधन के रूप में, पारदर्शक साबुन बनाने में, इत्र व अन्य सुगन्धित पदार्थ बनाने में, शराब आदि के निर्माण में किया जाता है।
  7. मिथाइल ऐल्कोहॉल (Methyl Alcohol) यह एक विषैला द्रव होता है, जिसका गंध शराब की तरह होता है। इसके सेवन से व्यक्ति अंधा हो जाता है तथा अधिक मात्रा में पी लेने से मृत्यु तक भी हो सकती है। जहरीली शराब पीने वालों की अधिकांश मृत्यु इसी मिथाइल ऐल्कोहॉल के कारण होती है। इसे सबसे पहले लकड़ी के भंजन आसवान से बनाया गया था। इसका उपयोग पेट्रोल के साथ मिलाकर ईंधन के रूप में, कृत्रिम रंग बनाने में तथा वार्निश आदि के विलायक के रूप में होता है।
  8. इथिलीन ग्लाइकॉल (Ethylene Glycol): यह एक डाइहाइड्रिक ऐल्कोहॉल है तथा अपने मीठे स्वाद के कारण इस नाम से पुकारे जाते हैं। ठंडे प्रदेशों में हिमांक कम करने के लिये इसका उपयोग कारों के रेडियेटरों में किया जाता है ।
  9. ग्लिसरॉल (Glycerol): यह ट्राइहाइड्रिक ऐल्कोहॉल श्रेणी का प्रमुख सदस्य है। यह प्रोपेन का ट्राइहाइड्रॉक्सी व्युत्पन्न है। इसका व्यापारिक नाम (Commercial Name) ग्लिसरीन (Glycerine) है। यह मुक्त अवस्था में शक्कर के किण्वित घोल (Fermented sugar solution) तथा रक्त (Blood) में अल्प मात्रा में पाया जाता है। संयुक्त अवस्था में यह वसा तथा वनस्पति तेलों में उच्च कार्बनिक अम्लों के ईस्टर (ग्लिसराइड) के रूप में पाया जाता है। यह एक अति आर्द्रताग्राही (Hygroscopic) पदार्थ है। सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल की उपस्थिति में यह सान्द्र नाइट्रिक अम्ल के साथ प्रतिक्रिया कर ग्लिसरिल टाइनाइट्रेट (ट्राइनाइट्रो ग्लिसरीन या TNG) बनता है। TNG एक शक्तिशाली विस्फोटक है, जिसका उपयोग डाइनामाइट (Dynamite) एवं अन्य विस्फोटक बनाने में होता है। ग्लिसरॉल का उपयोग पारदर्शक साबुन, जूतों की पॉलिश, छापे की स्याही, श्रृंगार की सामग्रियाँ बनाने, अनेक कार्बनिक यौगिकों के बनाने में, शक्तिवर्द्धक दवा बनाने, स्नेहक के रूप में, परिरक्षक के रूप में, प्रतिहिमीभूत (Antifreeze) आदि के रूप में होता है।
  10. डाइइथाइल ईथर (Diethyl Ether): ईथर श्रेणी के सदस्यों में डाइइथाइल ईथर सबसे महत्वपूर्ण है। इसे सिर्फ ईथर भी कहा जाता है। जर्मनी के एक चिकित्सक बैलेरियस कोरडस ने सोलहवीं शताब्दी में इथाइल ऐल्कोहॉल को सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ गर्म करके इसे बनाया था। विलियमसन-संश्लेषण विधि द्वारा इसे सर्वप्रथम विलियमसन ने संशलेषित किया था । इसका उपयोग निश्चेतक (Anaesthetic agent) के रूप में होता है। यह क्लोरोफॉर्म से अच्छा निश्चेतक माना जाता है।
  11. क्लोरोफॉर्म (Chlorofrom): इसकी खोज सर्वप्रथम 1831 में लीबिग ने की। सन् 1848 में सिम्पसन ने बतलाया कि यह निश्चेतक (Anaesthetic Agent) है और उन्होंने चीड़-फाड़ के कामों (surgery) में इसका उपयोग किया। श्वास के साथ इसका वाष्प लेने से बेहोशी होती है। यही कारण है कि इसका उपयोग निश्चेतक के रूप में होता है।
  12. आयोडोफॉर्म (Iodoform)- यह पीले रंग का रवेदार पदार्थ है, जिसमें एक तरह की गन्ध होती है। यह जल में अघुलनशील परन्तु ऐल्कोहॉल एवं ईथर में घुलनशील है। यह उर्ध्वपातित होता है। यह एक तीव्र कीटाणुनाशक (Bactericidal) पदार्थ है। अतः जीवाणुनाशक (Antiseptic) की तरह इसका उपयोग दवा में होता है।
  13. पायरीन (Pyrine): कार्बन टेट्राक्लोराइड (CCI4) को पायरीन के नाम से जाना जाता है, जो बिजली से लगी आग बुझाने के काम आता है।
  14. यूरिया (Urea): यूरिया को सर्वप्रथम 1773 में मूत्र से प्राप्त किया गया था। वोहलर (Wohler) ने 1828 में इसे अमोनियम सायनेट से प्रयोगशाला में संश्लेषित किया था। यह पहला कार्बनिक यौगिक था, जिसे प्रयोगशाला में संश्लेषित किया गया। यूरिया में46% नाइट्रोजन की मात्रा पायी जाती है। यह एक ठोस रंगहीन, गंधहीन पदार्थ है, जो जल में विलेय है। यह जीव जन्तुओं के मूत्र में उपस्थित रहता है। इसका मुख्य उपयोग उर्वरक के रूप में होता है। इसके अतिरिक्त नाइट्रोजन गैस, बेरोनल दवा बनाने में, यूरिया प्लास्टिक बनाने में भी इसका प्रयोग किया जाता है।
  15. फॉर्मेलीन (Formalin): फार्मल्डिहाइड का 40% तनु विलयन फॉर्मेलीन कहलाता है। यह एक उत्तम परिरक्षक (Preservatives) के रूप में प्रयुक्त होता है।
  16. फॉर्मिक अम्ल (Formic Acid): यह एक मोनो-काबॉक्सिलिक अम्ल (Monocarboxylic Acid) है। यह काबॉक्सिलिक अम्ल श्रेणी का प्रथम सदस्य है। यह लाल चींटी (Red ants) तथा मधुमक्खी में पाया जाता है। सर्वप्रथम यह लाल चींटी को जल के साथ स्रावित करके बनाया गया था। इसी कारण इसे फॉर्मिक अम्ल कहा गया, क्योंकि लैटिन (Latin) भाषा में लाल चींटी का नाम फॉर्मिकस (Formicus) है। इसका उपयोग रोगाणुनाशी के रूप में, गठिया रोग की दवा के रूप में, रबड़ उद्योग, चमड़ा उद्योग, कपड़ा उद्योग आदि में होता है।
  17. ऐसीटिक अम्ल (Acetic Acid): यह अनेक फलों के रसों में मुक्त अवस्था में पाया जाता है। यह विशेष रूप से सिरके (Vinegar) में पाया जाता है। इसे व्यापारिक स्तर पर पाइरोलिग्नियस अम्ल (Pyrolignious Acid) से प्राप्त किया जाता है। सेलुलोज ऐसीटेट के रूप में इसका उपयोग फोटोग्राफिक फिल्म तथा रेयान (Rayon) बनाने में होता है। इसका 4-6% तनु घोल सिरका (Vinegar) कहलाता है।
  18. ऑक्जैलिक अम्ल (OxalicAcid): यह द्वि-कर्बोक्सिलिक अम्ल (Dicarboxylic Acid) है। यह पोटैशियम लवण के रूप में प्रायः वनस्पतियों में पाया जाता है। पोटैशियम हाइड्रोजन लवण के रूप में यह ऑक्जैलिस (Oxalis) तथा रूमेक्स (Rurnex) परिवार के पौधों में पाया जाता है। कैल्सियम ऑक्जैलेट (Calciurn Oxalate) के रूप में यह प्रायः पौधों के कोशिकाओं (Cells) में पाया जाता है। थोड़ी मात्रा में यह मूत्र में भी पाया जाता है। मानव गुर्दे (Kidney) में कैल्सियम ऑक्जैलेट के एकत्रित होने के कारण ही पथरी (stone) की बीमारी पैदा होती है। फेरस ऑक्जैलेट के रूप में इसका उपयोग फोटोग्राफी में होता है। इससे कपड़े में लगे स्याही के धब्बे दूर किये जाते हैं।
  19. एसीटोऐसटिक अम्ल (Acetoacetic Acid)- यह एक रंगहीन द्रव है। यह अपघटित होकर एसीटोन व कार्बन डाइऑक्साइड में परिवर्तित हो जाती है। मधुमेह के रोगियों के मूत्र में इसकी अधिकता पायी जाती है।
  20. पाइरोलिग्नियस अम्ल (Pyroligneous Acid): लकड़ी के भंजक स्रवण (Destructive Distination) के पश्चात् पाइरोलिग्नियस अम्ल प्राप्त होता है। इसमें ऐसीटिक अम्ल, ऐसीटोन एवं मिथाइल ऐल्कोहॉल उपस्थित होता है।
  21. साइट्रिक अम्ल (Citric Acid): यह एक मोनो हाइड्रॉक्सी ट्राइकाबॉक्सिलिक अम्ल है, जो साइट्रस अर्थात् खट्टे फलों (नीबू, संतरा आदि) में पाया जाता है।
  22. लेक्टिक अम्ल (Lactic Acid): यह एक मोनोहाइड्रोक्सी अम्ल है, जो जल में हाइड्रोजन बंधों के कारण अधिक विलेय परन्तु कार्बनिक विलायकों में अविलेय होता है। यह खट्टे दूध में उपस्थित रहता है। मांसपेशियों में इसी अम्ल के एकत्रित होने के कारण थकावट का अनुभव होता है।
  23. टार्टरिक अम्ल (Tartaric Acid): यह डाइहाइड्रॉक्सी डाइकर्बोक्सिलिक अम्ल है, जो इमली तथा अंगूर में उपस्थित रहता है। इसका उपयोग बैकिंग पाउडर बनाने में किया जाता है।
  24. बेंजीन (Benzene)- यह सभी ऐरोमैटिक यौगिकों का जन्मदाता माना जाता है। सबसे पहले फैराडे (Faraday) ने सन् 1825 ई० में इसका आविष्कार किया था। तत्पश्चात हॉफमैन (Hoffrnann) ने कोलतार के आंशिक स्रवण से प्राप्त अंशों में इसकी उपस्थिति का पता लगाया और बाद में बर्थेलोट (Berthelot) ने ऐसीटिलीन गैस से इसका संश्लेषण किया। इसका उपयोग घोलक के रूप में, ऊनी कपड़ों की शुष्क धुलाई में, पेट्रोल के साथ मिलाकर मोटर ईधन के रूप में, अनेक एरोमैटिक यौगिकों के निर्माण में, विस्फोटकों के निर्माण आदि में होता है।
  25. नाइट्रोबेंजीन (Nitrobenzene): इसे मिरबेन का तेल (Oil of Mirbane) भी कहा जाता है। यह एरोमैटिक नाइट्रो यौगिक श्रेणी का प्रथम सदस्य है। यह बेंजीन के एक हाइड्रोजन परमाणु को नाइट्रो मूलक (—NO2) द्वारा प्रतिस्थापित करने पर बनता है। इसे सर्वप्रथम मिश्चरलिच (Mitscherlich) ने 1834 में प्राप्त किया था। इसका उपयोग ट्राइनाइट्रोबेंजीन (TNB) नामक विस्फोटक के निर्माण में होता है।
  26. ऐनिलीन (Aniline): यह बेंजीन का एमिनो व्युत्पन्न (Amino Derivative) है। इसे सर्वप्रथम अन्वरडार्वेन (Unverdorben) ने 1826 में नील (Indigo) को कली चूना के साथ स्रावित कर बनाया था। संग (Runge) ने अलकतरा (Coaltar) में 1834 में इसे प्राप्त किया था। फ्रित्स्क (Fritsche) ने 1840 में नील को सान्द्र क्षार के घोल के साथ गर्म करके इसे बनाया तथा इसका नाम ऐनिलीन दिया। एनिलीन शब्द की उत्पत्ति पुर्तगाली (Portuguese) शब्द ऐनिल (Anil) से हुई है, जिसका अर्थ नील (Indigo) होता है। इसका उपयोग रबड़ उद्योग में, औषधियों के निर्माण में तथा अनेक रंजकों (Dyes) के उत्पादन में होता है।
  27. फिनॉल (Phenol): यह बेंजीन का मोनोहाइड्रोक्सी व्युत्पन्न (Mono Hydroxy Derivative) है। इसे कार्बोलिक अम्ल (Carbolic Acid) भी कहा जाता है। इसे सर्वप्रथम 1834 में संगे (Runge) ने कोलतार (Coaltar) से प्राप्त किया था। यह बेंजीन केन्द्र के हाइड्रोजन का हाइड्रॉक्सिल मूलक द्वारा प्रतिस्थापन होने से प्राप्त होता है। इसका उपयोग पिक्रिक अम्ल (विस्फोटक), फिनॉल्फथैलीन, बेकेलाइट, सैलोल, एस्प्रीन, सैलिसिलिक अम्ल आदि के निर्माण में होता है।
  28. बेंजाल्डिहाइड (Benzaldehyde)- यह एक रंगहीन बादाम की गंध वाला कार्बनिक यौगिक है। इसका उपयोग स्वादिष्ट मसाला बनाने व रासायनिक क्रियाओं में किया जाता है।
  29. बेन्जोइक अम्ल (Benzoic Acid): यह एक ऐरोमैटिक कार्बोक्सिलिक अम्ल है। इसका प्रयोग खाद्य पदार्थों के संरक्षण में किया जाता है।
  30. सैलिसिलिक अम्ल (salicylic Acid): यह एक श्वेत क्रिस्टलीय एरोमैटिक अम्ल है। इसका उपयोग दर्द निवारक दवाओं के निर्माण में होता है।
  31. टॉलूईन (Toluene): इसे सर्वप्रथम टॉलू बाल्सम (Tolu Balsam) नामक एक रेजिन (Resin) के शुष्क स्राव द्वारा प्राप्त किया गया था। इसी आधार पर इसका नामकरण किया गया। इसका व्यापारिक नाम टॉलूऑल (Toluol) हैं। इसका उपयोग टी० एन० टी० (TNT) विस्फोटक के निर्माण में, घोलक के रूप में, शुष्क धुलाई (Dry Cleaning) में, सैकरीन (saccharin) एवं क्लोरामिन टी० (Chloramine-T) नामक दवाओं के निर्माण में तथा पेट्रोल एवं बेजीन के साथ प्रतिहिमीभूत (Antifreeze) के रूप में होता है।
  32. सैकरीन (sacchrin): टॉल्वीन (C6H5CH3) के ऑक्सीकरण से बनाया जाने वाला आर्थोसल्फाबेंजामाइड (C6H4SO2CONH) चीनी से 550 गुना मीठा होता है, जिसका प्रयोग शर्बतों में तथा मधुमेह (डायबिटीज) के रोगियों के लिये चीनी की जगह किया जाता है। इसका भोज्य मान (Caloric value) कुछ भी नहीं होता है।
  33. नेप्थेलीन (Naphthalene): यह एक पॉलीन्यूक्लियर हाइड्रोकार्बन है, जिसकी गोलियाँ कीड़ों को कपड़े से दूर रखने में उपयोगी होती है।
  34. कार्बोहाइड्रेट (Carbohydrates): यह वनस्पतियों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। ये कई प्रकार के होते हैं, जैसे: मोनोसैकराइड, डाइसैकराइड, ट्राइसैकराइड, ऑलिगो सैकराइड आदि। ये तुरन्त ऊर्जा प्रदान करने वाले कार्बनिक यौगिक होते हैं। ग्लूकोज, शर्करा, स्टार्च आदि कार्बोहाइड्रेट के प्रमुख उदाहरण है।
  35. नायलॉन (Nylon)- यह एक पॉलिएमाइड रेशा है। ऐडिपिक अम्ल का संघनन हेक्सामेथिलीन डाइऐमीन के साथ कराने पर नायलॉन प्राप्त होता है। इसका उपयोग मछली पकड़ने वाली जाल, रस्सियां आदि बनाने में होता है। प्राकृतिक रेशे से भिन्न यह कवक, बैक्टीरिया एवं कीड़ों का प्रतिरोधी है। यह बहुत कम जल अवशोषित करता है, जिससे इसके भींगे कपड़े आसानी से सूखते हैं।
  36. थाईकॉल (Thiokol): यह दूसरा कृत्रिम रबर है, जो डाइक्लोरो इथेन (Dichloro Ethane) को पॉलीसल्फाइड (Polysulphide) के प्रतिक्रिया से बनाया जाता है। इसका उपयोग खनिज तेल ले जाने वाले पाइप बनाने में, विलायक जमा करने वाला टैंक (Solventstorage Tank) आदि बनाने में किया जाता है। थाईकॉल रबर को ऑक्सीजन मुक्त करने वाले रसायनों के साथ मिलाकर रॉकेट इंजनों में ठोस ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  37. बैकेलाइट (Bakelite): यह फिनॉल तथा फॉर्मेल्डिहाइड को सोडियम हाइड्रॉक्साइड की उपस्थिति में गर्म करके प्राप्त किया जाता है। इसका उपयोग रेडियो, टेलीविजन आदि के केस, बाल्टी आदि बनाने में किया जाता है।
  38. पॉलीथीन (Polythene): यह एक थर्मोप्लास्टिक है, जो एथिलीन के बहुलीकरण से प्राप्त किया जाता है। इसका उपयोग पाइप, तार के ऊपर आवरण, पैकिंग थैलियाँ आदि बनाने में किया जाता है।
  39. 39. रैक्सिन (Rexin): यह एक कृत्रिम चमड़ा है। इसका निर्माण सेल्यूलोज नामक वनस्पति से होता है। अच्छे रैक्सिन मोटे केनवास पर पाइरोक्सिलिन का लेप देकर बनाया जाता है।
  40. टेफ्लॉन (Teflon): एथिलीन के चारों हाइड्रोजन परमाणुओं को फ्लोरीन द्वारा प्रतिस्थापित करने पर टेट्राफ्लोरो एथिलीन (C2F2) बनता है, जिसके बहुत से अणु बहुलीकृत होकर टेफ्लॉन नामक प्लास्टिक का निर्माण करते हैं। यह एक अदहनशील पदार्थ है । इस पर सान्द्र अम्लों एवं क्षारों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। यह एक अन्यंत उपयोगी प्लास्टिक है। इसका उपयोग अनेक उपकरणों एवं यंत्रों के निर्माण में होता है।
  41. पॉलीविनाइल क्लोराइड (Polyvinyl Chloride): यह विनाइल क्लोराइड के बहुलीकरण से प्राप्त होता है। इसका उपयोग पतली चादरें, फिल्म, बरसाती, हवा या पानी से फूलने वाले खिलौने आदि बनाने में किया जाता है।
  42. नियोप्रिन (Neoprene): यह एक संश्लिष्ट रबड़ है। यह 2-क्लोरोब्यूटाडाइन के बहुलीकरण से प्राप्त होता है। प्राकृतिक रबड़ की तरह यह जल्दी से जलता नहीं है। इस पर तेल और विलायकों का प्रभाव अपेक्षाकृत कम पड़ता है। यह उच्च ताप पर भी स्थायी होता है। इसका उपयोग विद्युत् केबुल में विद्युत् अवरोध पदार्थ के रूप में होता है।
  43. अश्रु गैस (Tear Gas): अश्रु गैस का प्रयोग कभी-कभी अनियंत्रित भीड़ को तीतर- बीतड़ करने के लिये किया जाता है। इस गैस के मानव नेत्र के सम्पर्क में आने से ऑखों में जलन पैदा होती है, एवं अश्रु टपकने लगते हैं। एल्फा क्लोरो एसीटोफिनॉन, एक्रोलिन आदि कुछ प्रमुख अश्रु गैस हैं। इसे ग्रीनस में भरकर प्रयोग किया जाता है।
  44. मस्टर्ड गैस (Mustard Gas): यह एक विषैली गैस है, जिसका प्रयोग प्रथम विश्व युद्ध के समय रासायनिक हथियार (Chemical weapons) के रूप में किया गया। जब एथिलीन की प्रतिक्रिया सल्फर मोनोक्लोराइड के साथ करायी जाती है, तो मस्टर्ड गैस प्राप्त होती है। इसमें सरसों तेल (Mustard oil) की तरह झांस (smell) होती है, जिस कारण इसका यह नाम पड़ा। इसकी वाष्प त्वचा पर फफोला पैदा करती है, तथा फेफड़ों को अत्यधिक प्रभावित करती है। इसकी वाष्प रबड़ को भी पार कर जाती है।
  45. ल्यूइसाइट (Lewsite): मस्टर्ड गैस की तरह यह भी एक अत्यंत ही जहरीली गैस है, जिसका उपयोग द्वितीय विश्व युद्ध में रासायनिक हथियार (Chemical weapons) के रूप में किया गया था। ऐसीटिलीन की प्रतिक्रिया जब आर्सेनिक ट्राइक्लोराइड (AlCl3) से निर्जल (Anhydrous) एल्युमीनियम क्लोराइड (AICI3) की उपस्थिति में करायी जाती है, तो ल्यूइसाइट नामक एक विषैली गैस बनती है।
  46. क्लोरोपिक्रिन (Chloropicrin): यह एक विषैली गैस है, जिसका प्रयोग युद्ध काल में किया जाता है। क्लोरोफार्म की प्रतिक्रिया नाइट्रिक अम्ल के साथ कराने पर क्लोरोपिक्रिन प्राप्त होता है।
  47. मिथाइल आइसोसायनेट (Methyl Isocynate): यह एक विषैली गैस है। भोपाल में कीटनाशक दवा बनाने वाली कम्पनी यूनियन कार्बाइड कारखाने से इसी गैस का रिसाव दुर्घटनावश हुआ था, जिससे काफी संख्या में लोग प्रभावित हुए थे।
  48. मार्श गैस (Marsh Gas): मिथेन को मार्श गैस के नाम से जाना जाता है। मिथेन का ऐसा नामकरण इसके दलदली जगहों में पाये जाने के कारण हुआ है। यह तालाबों के रुके हुए जल और दलदली स्थानों पर बुलबुलों के रूप में निकलता है। दलदली स्थानों पर नीचे दबी हुई वनस्पति और जैव पदार्थों के जीवाणु विच्छेदन से इसकी उत्पत्ति होती है।
  49. क्लैथरेट (Clathret): यह समुद्र की तलहटी में भारी मात्रा में जमा ईधन है, जो मूल रूप से पानी के अणुओं ने फॅसी मिथेन (CH4) गैस है। सैकड़ों वर्ष पहले जैविक प्रक्रिया से क्लैथरेट का निर्माण हुआ है। इसका उपयोग रेफ्रिजरेटरों में प्रशीतक, वातानुकूलित संयंत्रों, इलेक्ट्रॉनिक उद्योग, ऑप्टिकल उद्योग तथा फार्मेसी उद्योग में व्यापक रूप से होता है।
  50. 50. गोबर गैस (Gobar Gas): गीले गोबर के सड़ने से ज्वलनशील मिथेन गैस बनती है, जो वायु की उपस्थिति में सुगमता से जलती है। गोबर गैस संयंत्र में गोबर से गैस बनने के पश्चात शेष बचे पदार्थ का उपयोग कार्बनिक खाद के रूप में किया जाता है।
  51. द्रवीभूत प्राकृतिक गैस (Liquified Natural Gas): द्रवित पेट्रोलियम गैस (LPG) की तरह ही यह प्राकृतिक गैसों का द्रवित रूप है। इसमें मुख्यतया मिथेन रहती है, अर्थात इसका मुख्य संघटक मिथेन है।
  52. एल० एस० डी० (L.S.D.): इसका पूरा नाम लाइसर्जिक अम्ल डाइथाइलेमाइड है। यह एक भ्रम उत्पन्न करने वाली दवा है।
  53. एस्पीरिन (Aspirin): एसीटाइल सैलिसिलिक अम्ल को एस्पीरिन कहा जाता है। यह एक ज्वरनाशी तथा पीड़ानाशी दवा है।
  54. पैरल्डिहाइड (Paraldehyde): निर्जल ऐसीटल्डिहाइड में सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल डालकर गर्म करने से पैरल्डिहाइड प्राप्त होता है। इसका उपयोग नींद लाने वाली दवा के रूप में होता है।
  55. यूरोट्रोपीन (Urotropine): इसका रासायनिक नाम हेक्सामिथिलीन टेट्राऐमीन (Hexamethlene Tetramine) है। फार्मेल्डिहाइड की प्रतिक्रिया अमोनिया के साथ कराने पर यूरोट्रोपीन प्राप्त होता है। इसका उपयोग मूत्र रोग की दवा के रूप में होता है।
  56. क्लोरेटोन (Chloretone): कास्टिक पोटाश (KOH) की उपस्थिति में ऐसीटोन क्लोरोफार्म के साथ संघनित होकर क्लोरेटोन नामक यौगिक बनाता है। इसका उपयोग पहाड़ी यात्रा या समुद्री यात्रा में चक्कर आने से रोकने की दवा के रूप में होता है।
  57. गेमेक्सेन (Gammexene): इसका रासायनिक नाम बेंजीन हेक्साक्लोराइड (Benzene Hexachloride या B.H.C.) है। यह एक प्रबल कीटाणुनाशक है।
  58. क्लोरल (Chloral): यह एक तैलीय व रंगहीन द्रव है । इसे क्लोरीन पर ऐसीटल्डिहाइड की प्रतिक्रिया से बनाया जाता है। इसका रासायनिक नाम ट्राइक्लोरोऐसीटल्डिहाइड है। इसका मुख्य उपयोग डी० डी० टी० (D.D.T.) बनाने में किया जाता है।
  59. डी० डी० टी० (D.D.T.): इसका पूरा नाम डाइक्लोरो डाइफिनाइल ट्राइक्लोरोइथेन यह एक प्रमुख कीटाणुनाशक (Germicide) है। इसे क्लोरल से बनाया जाता है।

5. महत्वपूर्ण कार्बनिक यौगिक और उनके उपयोग
1. मिथेन काला रंग, मोटर टायर तथा छापाखाने की स्याही बनाने में, प्रकाश तथा ऊर्जा उत्पादन में, मेथिल ऐल्कोहॉल, फार्मेल्डोडाइड व क्लोरोफार्म आदि बनाने में।
2. ब्यूटेन द्रव अवस्था में L.P.G. ईंधन के रूप में उपयोग।
3. एथिलीन कच्चे फलों को पकाने एवं उसके संरक्षण में,. मस्टर्ड गैस बनाने में, निश्चेतक के रूप में, ऑक्सी-एथिलीन ज्वाला उत्पन्न करने में आदि।
4. एसीटिलीन प्रकाश उत्पन्न करने में, ऑक्सी-एसीटिलीन ज्वाला उत्पन्न करने में, नारसिलेन नामक निश्चेतक के रूप में, निओप्रीन नामक कृत्रिम रबर बनाने में, कच्चे फलों को कृत्रिम रूप से पकाने में आदि।
5. पोलीथीन तारों और केबिलों के विद्युत् रोधन में, बोतलों की टोपियों के स्तर में, न टूटने वाली बोतलें, पाइप, बाल्टी, ग्लास आदि बनाने में।
1.  पॉलीस्टाइरीन अम्ल की बोतलों की टोपियों में, संचायक सेलों के केस बनाने में आदि।
2.  एथिल ब्रोमाइड स्थानीय निशचेतक के रूप में।
3.  क्लोरोफॉर्म शल्य क्रिया में निश्चेतक के रूप में, रबर, चर्बी, लाह आदि के विलायक के रूप में, जीवाणुनाशक होने के कारण जन्तुओं और वनस्पतियों से पदार्थों के संरक्षण में आदि।
9. मिथाइल ऐल्कोहॉल मिथिलेटेड स्पिरिट बनाने में, कृत्रिम रंग बनाने में, वार्निश तथा पॉलिश बनाने में, पेट्रोल के साथ मिलाकर इंजनों में ईधन के रूप में आदि।
10. मिथाइल ऐल्कोहॉल शराब तथा अन्य ऐल्कोहलीय पेय बनाने में, दवाओं के काम आने वाले टिंचर बनाने में, वार्निश तथा पॉलिश बनाने में, विलायक के रूप में, मेथिलेटेड स्पिरिट बनाने में, रंग उद्योग में, फलों का इत्र तथा सुंगध बनाने में, पारदर्शक साबुन बनाने में, स्प्रिट लैम्प और स्टीवों में, मोटरकार इंजनों में ईंधन के रूप में, घावों को धोने में, कीटाणुनाशक के रूप में आदि।
11. ग्लिसरॉल नाइट्रोग्लिसरीन बनाने में, घड़ियों के कल-पुर्जे को चिकना रखने में, मोहरों की स्याही, जल के रंग, जूतों की पॉलिश तथा श्रृंगार सामग्री बनाने में, पारदर्शक साबुन बनान में, सूजन आदि को ठंडक पहुँचाने वाले मलहम बनाने में, मिठाई, शराब और फलों के संरक्षण में आदि।
12. फार्मल्डिहाइड जीवाणुनाशक के रूप में, फोटोग्राफी की प्लेटों पर जिलेटिन फिल्म को स्थिर रखने में, अंडे की सफेदी से वाटर प्रफ कपड़ा बनाने में आदि।
13. फॉर्ममिन्ट गले की दवा के रूप में, चूसने वाली गोलियाँ बनाने में आदि।
14. ऐसेटल्डिहाइड रंग तथा दवा बनाने में, मेटा ऐसेटल्डिहाइड नामक नींद लाने की दवा बनाने में, प्लास्टिक बनाने में आदि।
15. ऐसीटीन वार्निश, काडाइट, क्लोडियन सेलूलोस, कृत्रिम रेशम आदि को घोलने में, कृत्रिम रेशम तथा संश्लेषित रबर बनाने में, सल्फोनल, क्लोरेटोन, क्लोरोफॉर्म, आयडोफॉर्म आदि दवाओं के निर्माण में।
16. फॉर्मिक अम्ल जीवाणुनाशक के रूप में, फलों के रसों को सुरक्षित रखने में, चमड़े के व्यापार में, रबर के व्यवसाय में, रबर का स्कंदन करने में आदि।
17.एसीटिक अम्ल प्रयोगशाला में अभिकर्मक के रूप में, सिरके के रूप में, आचार, चटनी आदि बनाने में, औषधि तथा रंग उद्योग में आदि।
18.एसीटाइल क्लोराइड एसीटामाइड तथा एसीटिक ऐन्हाइड्राइड बनाने में।
19.एसीटिक ऐन्हाइड्राइड रंग उद्योग में, एस्पीरिन नामक दवा बनाने में, सेलूलोस से नकली रेशम बनाने में आदि।
20. एसीटामाइड चमड़े, कपड़े आदि को मुलायम करने तथा कागज की नम करने में आदि।
21. इथाइल एसीटेट दवाओं में, कृत्रिम सुगन्ध उत्पन्न करने में आदि।
22. ऑक्जेलिक अम्ल कपड़ों की छपाई तथा रंगाई में, रोशनाई और कोलतार के रंग बनाने में, चमड़े के विरंजन में, 10% विलयन से रोशनाई के निशान साफ करने में आदि।
23. यूरिया खाद के रूप में, फॉर्मल्डिहाइड तथा यूरिया प्लास्टिक बनाने में, उनके – दवाओं के निर्माण में आदि।
24. ग्लूकोज विभिन्न तरह के शराब बनाने में, ग्लूकोस के रूप में, मिठाइयों मुरब्बों तथा फलों के रस सुरक्षित रखने में, कैल्सियम ग्लूकोनेट नामक औषधि के रूप में आदि।
25. बेंजीन विलायक के रूप में, शुष्क धुलाई में, पेट्रोल के साथ मिश्रित कर इंजनों के ईधन के रूप में आदि।
26. टॉलूईन शुष्क धुलाई में, विलायक के रूप में, दवा उद्योग में, रंग उद्योग में, विस्फोटक बनाने में आदि।
27. क्लोरोबेंजीन एनीलिन एवं फिनॉल के औद्योगिक निर्माण में आदि।
28. नाइट्रोबेंजीन मिरबेन के तेल के नाम से साबुनों, पॉलिशों आदि में सस्ती सुगन्ध के रूप में।
29. ऐनिलीन रंगों के व्यवसाय में, औषधियों के निर्माण में आदि।
30. फिनॉल कार्बोलिक साबुन बनाने में, जीवाणुनाशक के रूप में, बेकेलाइट के निर्माण में, फेनेसिटिन, एस्पीरिन और सेलोल बनाने में आदि।
30. बेन्जल्डिहाइड रंग उद्योग में, सुगन्धित पदार्थों के निर्माण में आदि।
31. बेन्जोइक अम्ल दवा बनाने में, फलों के रस के संरक्षण में आदि।
33. बेन्जीन सल्फोनिक अम्ल सैकेरीन बनाने में, विलेय रंगों के निर्माण में, सल्फा ड्रग बनाने में आदि।
34. ईथर निश्चेतक के रूप में, विलायक के रूप में, ठंडक पैदा करने में, ऐल्कोहॉल बनाने में आदि।
35. कार्बन टेट्राक्लोराइड अग्निशामक के रूप में।
36. यूरोट्रोपीन मूत्र रोगों के उपचार में।
37. गेमेक्सीन कीटाणुनाशक के रूप में।

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