कार्बनिक रसायन की प्रमुख घटनाएँ Major Process of Organic Chemistry

(A) सजातीय श्रेणी (Homologous series): कार्बनिक यौगिकों की वह श्रेणी जिसके सभी सदस्यों में एक ही क्रियाशील मूलक उपस्थित रहता है, जिसके सदस्यों के रासायनिक गुणों एवं संरचना में परस्पर समानता पायी जाती है, और जिसके किसी भी दो क्रमागत सदस्यों के बीच सदैव —CH2— अंतर रहता है, सजातीय श्रेणी कहलाता है, तथा इसके सदस्य परस्पर समजात (Homologous) कहलाते हैं। कार्बनिक रसायन में पायी जाने वाली यह घटना सजातीयता (Homology) कहलाती हैl

ऐल्केन की एक सजातीय श्रेणी है। ऐल्कोहॉल भी एक सजातीय श्रेणी की रचना करते हैं। उदाहरणार्थ, मिथाइल ऐल्कोहॉल (CH3OH), इथाइल ऐल्कोहॉल (C3H5OH), प्रोपाइल ऐल्कोहॉल (C3H7OH), इत्यादि। इस प्रकार की अनेक श्रेणियाँ कार्बनिक रसायन में पायी जाती हैं। इन सजातीय श्रेणी के सदस्यों को एक सामान्य सूत्र द्वारा व्यक्त किया जाता है, जैसे- ऐल्कोहॉल-  CnH2nOH, ऐल्डिहाइड CnH2nCOH इत्यादि।

सजातीय श्रेणियों में निम्नलिखित विशिष्ट गुण पाये जाते हैं

  1. किसी सजातीय श्रेणी के सभी सदस्यों का एक ही सामान्य सूत्र द्वारा व्यक्त किया जाता है। उदाहरणार्थ, एल्केन श्रेणी का सामान्य सूत्र CnH2n+2 ऐल्कीन का CnH2n+2 ऐल्कोहॉल का CnH2N ऐल्कोहॉल का CnH2n+1OH आदि हैं।
  2. किसी सजातीय श्रेणी का प्रत्येक सदस्य उसी श्रेणी के अन्य सदस्यों का समजात (Homologous) कहलाता है। श्रेणी का कोई भी सदस्य अपने से अगले तथा पिछले सदस्य के अणुसूत्र से —CH­2— का अंतर प्रदर्शित करता है।
  3. किसी श्रेणी के सभी सदस्यों को कुछ सामान्य प्रतिक्रियाओं द्वारा बनाया जा सकता है।
  4. किसी श्रेणी के सभी सदस्यों में चूंकि एक ही क्रियाशील मूलक उपस्थित रहता है, इसलिए उनके रासायनिक गुण समान होते हैं।
  5. एक सजातीय श्रेणी के किसी भी सदस्य के अणुभार तथा उसके बगल वाले सदस्य के अणुभार के बीच 12 amu का अंतर होता है।
  6. अणुभार की वृद्धि के साथ-साथ सजातीय श्रेणी के सदस्यों के भौतिक गुणों जैसे-क्वथनांक (Boiling Point), द्रवणांक (Melting Point), घनत्व (density) आदि में क्रमिक परिवर्तन होता है।

(B) बहुलीकरण (Polymerisation): बहुलीकरण वह रासायनिक प्रतिक्रिया है, जिसमें किसी यौगिक के दो या दो से अधिक गुण मिलकर एक बड़े अणु का निर्माण करते हैं। इस प्रतिक्रिया के फलस्वरूप बने यौगिक बहुलीकृत यौगिक या बहुलक कहलाते हैं। उदाहरणार्थ- ऐसीटिलीन गैस यदि लाल-तप्त ताँबे की नली में प्रवाहित की जाय तो ऐसीटिलीन (C2H2) के तीन अणु बहुलीकृत होकर बेंजीन (C6H6) बनाते हैं।

बहुलीकरण की विशेषताएँ

(1) बहुलीकरण एक उत्क्रमणीय (Reversible) क्रिया है और बहुलक सरलता से आरम्भिक यौगिक में परिणत हो जाता है ।

(2) बहुलक यौगिक का अणु-भार आरम्भिक यौगिक के अणु-भार का पूर्ण गुणक होता है।


(3) बहुलीकरण में एक ही प्रकार के अणु परस्पर संयोग करते हैं।

(4) बहुलीकरण में कार्बन परमाणु नया बन्धन नहीं बनाते हैं।

(5) बहुलीकरण में जल आदि के छोटे अणु मुक्त नहीं होते है।

महत्वपूर्ण पॉलीमर (बहुलक)
पॉलीमर मोनोमर उपयोग
1. पॉलीथीन एथिलीन (CH2=CH2) थैलियाँ, ट्यूब, पैकिंग सामग्री बनाने में
2. पॉली स्टाइरीन स्टाइरीन (C6H5CH = CH2) रेडियो व टेलीविजन कैबिनेट बनाने में
3. पॉली प्रोपाइलीन प्रोपाइलीन (CH3CH = CH2) ट्यूब बनाने में
4. टैफ्लॉन टेट्राफ्लुओरोएथिलीन नॉन-स्टिक कुकिंग बर्तन बनाने में
5. पॉली विनाइल क्लोराइड विनाइल क्लोराइड

(CH2=CHCl)

केबिल बनाने में
6. नॉयलॉन H2N (CH2)6NH2 तथा

HOOC(CH2)4COOH

वस्त्र उद्योग में
7. टेरेलीन HOCH2CH2OH तथा C6H4(COOH)2 वस्त्र उद्योग में

(c) किण्वन (Fermentation): किण्वन शब्द की उत्पत्ति  मूल लैटिन शब्द Fervere से हुई है जिसका अर्थ होता है, उबलना। जटिल (Complex) कार्बनिक यौगिकों के अणु-जीवों (Micro-organisms) या अणु-जीवों से रहित जटिल नाइट्रोजनयुक्त पदार्थों जिन्हें एन्जाइम कहते हैं, द्वारा मन्द गति से अपघटित होकर सरल यौगिकों में परिवर्तित होने की क्रिया को किण्वन कहते हैं। अणु-जीव या जटिल नाइट्रोजनयुक्त पदार्थ जो किण्वन की क्रिया में उत्प्रेरक जैसा कार्य करते हैं, किण्व (Ferment) कहलाते हैं। दूध या गीले आटे का खट्टा होना, दही का जमना, गन्ने के रस से शराब एवं सिरका बनना, वनस्पति एवं जैव पदार्थों का सड़ना आदि किण्वन के उदाहरण हैं। किण्वन-क्रियाएँ यीस्ट (Yeast) अथवा जीवाणुओं (Bacteria) की उपस्थिति में होती हैं। किण्वन की क्रिया ऊष्माक्षेपी हैं, इसमें ऊष्मा उत्पन्न होती है। इस क्रिया में एक या एक से अधिक गैसे (CO2, H2, CH2 आदि) निकलती हैं और इन गैसों के निकलने से ऐसा प्रतीत होता है, कि घोल उबल रहा है। किण्वन-क्रियाओं का ज्ञान लोगों को बहुत प्राचीनकाल से ही था, परन्तु उनका वैज्ञानिक अध्ययन सर्वप्रथम लुई पाश्चर नामक फ्रांसीसी रसायनशास्त्री ने किया।

(D) समावयवता (Isomerism): वे यौगिक जिनके आण्विक सूत्र एक ही होते हैं, किन्तु जिनके अणुओं में परमाणुओं की व्यवस्था भिन्न-भिन्न होती है तथा भौतिक एवं रासायनिक गुण भिन्न-भिन्न होते हैं, समावयवी (Isomers) कहलाते है और ऐसी घटना समावयवता कहलाती है। जैसे-नार्मल ब्यूटेन तथा आइसो ब्यूटेन दोनों का आण्विक सूत्र C4H10 होता है, लेकिन संरचना सूत्र में भिन्नता के कारण उनके गुणों में अंतर होता है। अतः नॉर्मल ब्यूटेन तथा आइसो ब्यूटेन दोनों ब्यूटेन के समावयवी हैं।

समावयवता का वर्गीकरण दो प्रमुख वर्गों में किया गया है-

  1. सरंचनात्मक समावयवता (structural isornerism): कार्बनिक यौगिकों की संरचना में अंतर होने के कारण संरचनात्मक समावयवता की घटना पायी जाती है।
  2. त्रिविम समावयवता (Stereo isomerism): कार्बनिक यौगिकों के अणुओं में उपस्थित परमाणुओं एवं मूलकों के अंतरिक्ष (space) में विन्यास की विभिन्नता के कारण त्रिविम समावयवत की घटना पायी जाती है।

(E) भंजन (Cracking): उच्च अणुभार वाले हाइड्रोकार्बन के अणुओं को ताप द्वारा निम्न अणुभार वाले अणुओं में तोड़ने की प्रकृति को भंजन कहते हैं।

संतृप्त हाइड्रोकार्बन के बड़े अणु (गर्म भंजन) → संतृप्त हाइड्रोकार्बन के छोटे अणु + असंतृप्त हाइड्रोकार्बन के छोटे अणु

डीकेन C10H22 (गर्म भंजन) → ओक्टेन C8H8 + एथिलीन C2H4

डीकेन C10H22 (गर्म भंजन) → हेप्टेन C7H16 + प्रोपीन C3H6

साधारणतया पेट्रोलियम से केवल 20% पेट्रोल ही प्राप्त होता है। विश्व में पेट्रोलियम की दिन प्रतिदिन बढ़ती आवश्यकता को इससे पूरा कर पाना सम्भव नहीं है। अतः इस आवश्यकता की पूर्ति के लिये भंजन का उपयोग किया जाता है। इसके द्वारा उच्च क्वथनांक वाले हाइड्रोकार्बनों को पेट्रोल में परिणत कर दिया जाता है।

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