चुम्बकत्व Magnetism

लगभग 600 ईसा पूर्व से ज्ञात है कि मैग्नेटाइट नामक खनिज पदार्थ के टुकड़ों में लोहे के पदार्थों को आकर्षित करने का गुण है। ऐसे पदार्थों को चुम्बक (Magnet) कहा गया एवं लोहे को आकर्षित करने के गुण को चुम्बकत्व (Magnetism) कहा गया। प्रकृति में मिलने के कारण इन्हें प्राकृतिक चुम्बक (Natural Magnet) कहते हैं। रासायनिक रूप से यह लोहे का ऑक्साइड (Fe3o4) होता है। इसकी कोई निश्चित आकृति नहीं होती है। कुछ पदार्थों को कृत्रिम विधियों द्वारा चुम्बक बनाया जा सकता है, जैसे लोहा, इस्पात, कोबाल्ट आदि। इन्हें कृत्रिम चुम्बक (Artificial Magnet) कहते हैं। ये विभिन्न आकृति की होती हैं, जैसे- छड़ चुम्बक, घोड़ा-नाल चुम्बक, चुम्बकीय सूई आदि।

चुम्बक के गुण

आकर्षण (Attraction): चुम्बक में लोहे, इस्पात आदि धातुओं को अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता होती है। यदि किसी चुम्बक को लौह बुरादों के पास लाया जाय, तो बुरादा चुम्बक में चिपक जाता है। चिपके हुए बुरादे की मात्रा, चुम्बक के दोनों सिरों पर सबसे अधिक एवं मध्य में सबसे कम होती है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि चुम्बक की आकर्षण शक्ति उसके दोनों किनारों पर सबसे अधिक एवं मध्य में सबसे कम होती है। चुम्बक के किनारे के दोनों सिरें को चुम्बक के ध्रुव (pole) कहलाते हैं।

दिशात्मक गुण (Directional Property): यदि किसी चुम्बक को धागे से बाँधकर मुक्त रूप से लटका दिया जाय, तो स्थिर होने पर उसका एक ध्रुव उत्तर की ओर और दूसरा ध्रुव दक्षिण की ओर हो जाता है। उत्तर दिशा सूचित करने वाले ध्रुव को चुम्बक का उत्तरी ध्रुव या धनात्मक धुव (North Pole or +ve Pole) तथा दक्षिण दिशा सूचित करने वाले धुव को चुम्बक का दक्षिणी ध्रुव या ऋणात्मक ध्रुव (south Pole or -ve Pole) कहते हैं। चुम्बक के ऊत्तरी ध्रुव को N से एवं दक्षिणी ध्रुव को S से व्यक्त करते हैं। दंड चुम्बक के दोनों ध्रुवों से होकर गुजरने वाली काल्पनिक सरल रेखा को उस चुम्बक का चुम्बकीय अक्ष (Magnetic Axis) कहते हैं। दोनों ध्रुवों के बीच की दूरी को चुम्बकीय लम्बाई (Magnetic Length) कहते हैं। मुक्त रूप से लटकता हुआ दंड चुम्बक जब स्थिर होता है तब उसके अक्ष से होकर गुजरने वाली एक उर्ध्वाधर समतल को चुम्बकीय याम्योत्तर (Magnetic Meridian) कहते हैं।

ध्रुवो का आकर्षण एवं प्रतिकर्षण (Attraction & Repulsion of Poles): दो चुम्बकों के असमान (unlike) धुव (अर्थात् उत्तरी-दक्षिणी) एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं तथा दो समान (like) ध्रुव (अर्थात् उत्तरी-उत्तरी या दक्षिणी-दक्षिणी) एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं। एक विलग (isolated) ध्रुव का कोई अस्तित्व नहीं होता। किसी चुम्बक को बीच से तोड़ देने पर इसके ध्रुव अलग-अलग नहीं होते, बल्कि टूटे हुए भाग पुनः चुम्बक बन जाते हैं तथा प्रत्येक भाग में उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुव उत्पन्न हो जाते हैं। अतः एक अकेले चुम्बकीय ध्रुव का कोई अस्तित्व नहीं होता है।

चुम्बकीय प्रेरण (Magnetic Induction): चुम्बक चुम्बकीय पदार्थों में प्रेरण द्वारा चुम्बकत्व उत्पन्न कर देता है। नर्म लोहे की छड़ को किसी शक्तिशाली चुम्बक के एक धुव के समीप लायें, तो वह छड़ भी एक चुम्बक बन जाती है। छड़ के उस सिरे पर जो चुम्बक के ध्रुव के समीप है, विपरीत ध्रुव बनता है तथा छड़ के दूसरे छोर पर समान ध्रुव बनता है। इस घटना को चुम्बकीय प्रेरणा कहते हैं।

चुम्बकीय क्षेत्र (Magnetic Field): चुम्बक के चारों ओर का वह क्षेत्र, जिसमें चुम्बक के प्रभाव का अनुभव किया जा सकता है, चुम्बकीय क्षेत्र कहलाता है। चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा चुम्बकीय सूई (magnetic needle) से निर्धारित की जाती है। चुम्बकीय क्षेत्र का मात्रक C.G.S पद्धति में गॉस (Gauss) तथा S.I. पद्धति में टेसला (Tesla–T) होता है। (1 Gauss = 104 Tesla)


चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता या, चुम्बकीय तीव्रता (Intensity of a Magnetic Field or Magnetic Intensity): चुम्बकीय क्षेत्र में क्षेत्र के लम्बवत् एकांक लम्बाई का ऐसा चालक तार रखा जाए जिसमें एकांक प्रबलता की धारा प्रवाहित हो रही हो, तो चालक पर लगने वाला बल ही चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता की माप होगी। चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता एक सदिश राशि है। इसका मात्रक न्यूटन/ऐम्पीयर मीटर अथवा वेबर/मी०2 या टेसला (T) होता है।

चुम्बकीय बल रेखाए (Magentic Lines of Force): चुम्बकीय क्षेत्र में बल-रेखाएँ वे काल्पनिक रेखाएँ हैं, जो उस स्थान में चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा का सतत प्रदर्शन करती हैं। चुम्बकीय बल-रेखा के किसी भी बिन्दु पर खींची गई स्पर्श-रेखा उस बिन्दु पर चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा को प्रदर्शित करती है।

चुम्बकीय बल-रेखाओं के गुण:

(i) चुम्बकीय बल-रेखाएँ सदैव चुम्बक के उत्तरी ध्रुव से निकलती हैं तथा वक्र बनाती हुई दक्षिणी ध्रुव में प्रवेश कर जाती हैं और चुम्बक के अन्दर से होती हुई पुनः उत्तरी ध्रुव पर वापस आती हैं।

(ii) दो बल-रेखाएँ एक-दूसरे को कभी नहीं काटती हैं।

(iii) चुम्बकीय क्षेत्र जहाँ प्रबल होता है, वहाँ बल-रेखाएँ पास-पास होती हैं।

(iv) एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र की बल-रेखाएँ परस्पर समान्तर एवं बराबर-बराबर दूरियों पर होती हैं।

चुम्बकशीलता (Permeability): जब किसी चुम्बकीय क्षेत्र में कोई चुम्बकीय पदार्थ रखा जाता है, तो उससे होकर अधिक-से-अधिक चुम्बकीय बल रेखाएँ गुजरती हैं। जैसे- यदि एक कच्चे लोहे की छड़ को किसी चुम्बकीय क्षेत्र में रख दिया जाता है, तो क्षेत्र की बल रेखाएँ, जो लोहे के छड़ के अलग-बगल की हवा में रहती हैं, मुड़कर लोहे के छड़ से होकर जाती हैं। अर्थात् लोहे की छड़ जितना स्थान छेकती है, उस स्थान पर हवा हने से जितनी बल रेखाएँ रहती हैं, उनसे अधिक बल रेखाएँ उस स्थान पर लोहे की छड़ के रहने से रहती हैं। इससे स्पष्ट है कि लोहा बल-रेखाओं का बहुत अच्छा चालक है। पदार्थ की इस चालक-शक्ति को चुम्बकशीलता कहते है। अतः किसी पदार्थ की चुम्बकशीलता हवा की तुलना में बल-रेखाओं के चालन की उसकी शक्ति है। अर्थात् पदार्थ का वह गुण जिसके कारण उसके भीतर चुम्बकीय बल-रेखाओं की सघनता बढ़ या घट जाती है चुम्बकशीलता कहलाती है। चुम्बकशीलता को μ (म्यू) से निरूपित करते हैं।

[latex]\mu =\frac { B }{ H }[/latex]

जहाँ H = हवा में प्रति वर्ग मी० बल रेखाओं की संख्या

    B = चुम्बकीय पदार्थ में प्रति वर्ग मी० से गुजरने वाली बल रेखाएँ।

चुम्बकशीलता का मात्रक हेनरी/मी० होता है।

नोट: ऐलुमिनियम की चुम्बकशीलता लोहे से कम होती है।

चुम्बकीय प्रवृति (Magnetic susceptibility): किसी पदार्थ की चुम्बकीय प्रवृति से यह समझा जाता है कि वह पदार्थ कितनी सुगमता से कितना अधिक चुम्बकत्व ग्रहण करता है। यदि चुम्बकन क्षेत्र (Magnetic field) अर्थात् पदार्थ को चुम्बकित करने वाले बल का मान H हो और वह पदार्थ में चुम्बकन तीव्रता I उत्पन्न कर सके, तो चुम्बकीय प्रवृति

[latex]\chi \quad =\quad \frac { 1 }{ H } \quad =\quad K (नियतांक)[/latex]

यहाँ χ को काई पढ़ा जाता है। K (नियतांक) को पदार्थ की चुम्बकीय प्रवृति कहते हैं। अतः एकांक चुम्बकन-क्षेत्र के कारण किसी पदार्थ में जो चुम्बकन-तीव्रता उत्पन्न होती है, उसे उस पदार्थ की चुम्बकीय प्रवृति कहते हैं।

चुम्बकीय पदार्थ के प्रकार (Types of Magnetic substances): सभी पदार्थों में थोडा बहुत चुम्बकीय गुण पाया जाता है, क्योंकि प्रयोग से यह देखा गया है कि जब पदार्थों को शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है, तो उन पर कुछ न कुछ अंश तक चुम्बकीय प्रभाव अवश्य ही पड़ता है। इस प्रभाव के आधार पर पदार्थ को तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है-

(i) अनुचुम्बकीय (Paramagnetic): कुछ पदार्थ ऐसे हैं, जिन्हें चुम्बकीय क्षेत्र में लटका देने पर विक्षेप की दिशा समानान्तर हो जाती है। इन पदार्थों के अन्दर प्रेरित चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा बाह्य आरोपित चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा में ही होती है। इस श्रेणी के पदार्थों की चुम्बकशीलता μ और चुम्बकीय प्रवृति K का मान बहुत कम होता है। ऐसे पदार्थों को जब समरूप चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है, तो हवा की अपेक्षा पदार्थ से होकर अधिक बल रेखाएँ गुजरती हैं। इन पदार्थों के उदाहरण है- प्लैटिनम, क्रोमियम, सोडियम, पोटाशियम, ओंक्सीजन, ऐल्युमिनियम आदि।

(ii) लौह-चुम्बकीय (Ferromagnetic): उन पदार्थों को लौह-चुम्बकीय कहते हैं, जो चुम्बकों द्वारा आकर्षित होते हैं तथा जिन्हें चुम्बकित भी किया जा सकता है। वास्तव में ये पदार्थ अनुचुम्बकीय ही हैं, लेकिन इनमें अनुचुम्बकीय पदार्थों के गुण इतने अधिक परिमाण में पाए जाते हैं कि इन्हें एक अलग श्रेणी में रखा जाता है। लौह चुम्बकीय पदार्थों के लिए μ एवं K का मान बहुत अधिक होता है। लौह चुम्बकत्व उन्हीं पदार्थों में पाया जाता है, जिनकी बनावट विशेष प्रकार से क्रिस्टलीय (crystalline) होती है। द्रव और गैस की कोई विशेष बनावट नहीं होती, इसीलिए वे कभी लौह-चुम्बकीय नहीं होते हैं। इस श्रेणी में तीन तत्व लोहा (Fe), कोबाल्ट (Co) और निकेल (Ni) तथा उनके मिश्रधातु आते हैं।

(iii) प्रतिचुम्बकीय (Diamagnetic): कुछ पदार्थ ऐसे भी हैं, जिन्हें चुम्बकीय क्षेत्र में लटका देने पर वे क्षेत्र के समकोणिक दिशा में आ जाते हैं। इस श्रेणी के पदार्थों की चुम्बकशीलता μ का मान बहुत कम और चुम्बकीय प्रवृति K का मान ऋणात्मक होता है। ऐसे पदार्थों को जब समरूप चुम्बकीय क्षेत्र में रखा जाता है, तो हवा की अपेक्षा पदार्थ से होकर कम बल रेखाएँ गुजरती हैं। बिस्मथ, एण्टीमनी, चाँदी, ताँबा, जिक, सोना, सीसा, जल, अल्कोहल, हवा, हाइड्रोजन आदि इस श्रेणी के पदार्थ हैं।

चुम्बक के प्रकार: चुम्बक दो प्रकार के होते हैं- अस्थायी तथा स्थायी।

अस्थायी चुम्बक (Temporary Magnet): नर्म लोहा (soft iron) शीघ्र ही चुम्बक बन जाता है और शीघ्र ही इसका चुम्बकत्व समाप्त भी हो जाता है। इसीलिए अस्थायी चुम्बक बनाने के लिए नर्म लोहे का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए विद्युत घण्टी, ट्रांसफॉर्मर क्रोड़, डायनेमो आदि के अस्थायी चुम्बक नर्म लोहे के बनाये जाते हैं।

स्थायी चुम्बक (Permanent Magnet): फौलाद या इस्पात (steel) कठिनता से चुम्बक बनता है और कठिनता से ही इसका चुम्बकत्व समाप्त होता है। उदाहरण के लिए लाउडस्पीकर, दिक्सूचक, गैल्वेनोमीटर आदि के स्थायी चुम्बक इस्पात के ही बनाये जाते हैं।

क्यूरी ताप (Curie-Temperature): जब किसी लौह-चुम्बकीय पदार्थ को गर्म किया जाता है, तो उसकी चुम्बकीय प्रवृति K परम ताप T के व्युत्क्रमानुपाती (inversely proportional) होती है, अर्थात् [latex]K\quad \propto \quad \frac { 1 }{ T }[/latex] इसे क्यूरी का नियम (Curie’s Law) कहते हैं।

ताप बढ़ने से K का मान घटता है। ताप बढ़ाते जाने पर एक ऐसा ताप आता है, जिस ताप पर यह लौह चुम्बकीय पदार्थ अनुचुम्बकीय पदार्थ बन जाता है। इस ताप को क्यूरी ताप (CurieTemp.) कहते हैं। क्यूरी ताप से ऊपर लौह-चुम्बकीय पदार्थ की चुम्बकीय प्रवृति उस ताप का व्युत्क्रमानुपाती होता है, जितना ताप क्यूरी बिन्दु से ऊपर रहता है। कोबाल्ट, निकेल और लोहा के क्यूरी बिन्दु क्रमशः लगभग 373K, 673K और 973 K हैं।

डोमेन (Domains): लौह चुम्बकीय पदार्थ में प्रत्येक परमाणु ही एक चुम्बक होता है और उनमें असंख्य परमाणुओं के समूह होते हैं, जिन्हें डोमेन कहते हैं। एक डोमेन में 1018 से 1021 तक परमाणु होते हैं। लौह चुम्बकीय पदार्थों का तीव्र चुम्बकत्व इन डोमेनों के कारण ही होता है।

पार्थिव चुम्बकत्व या भू-चुम्बकत्व (Terresterial magnetism or, Earth’s Magnetism): जब किसी चुम्बकीय सूई को स्वतंत्रतापूर्वक उसके गुरुत्व केन्द्र से लटकाया जाता है, तो वह हमेशा उत्तर-दक्षिण दिशा में स्थिर होता है। इस तरह से चुम्बकीय सूई को एक निश्चित दिशा में स्थिर होना, पृथ्वी की सतह पर चुम्बकीय क्षेत्र की उपस्थिति को बताता है। पृथ्वी के चुम्बकीय बल क्षेत्र के अध्ययन से पता चलता है कि पृथ्वी का आचरण एक विशाल चुम्बक जैसा है, जिसका चुम्बकीय उत्तरी ध्रुव भौगोलिक दक्षिणी धुव की ओर और चुम्बकीय दक्षिणी धुव भौगोलिक उत्तरी ध्रुव की ओर होता है। मुक्त रूप से निलंबित सूई को यदि पृथ्वी पर उत्तर से दक्षिण की ओर ले जाया जाए तो ऐसे दो स्थान मिलते हैं, जहाँ सूई की दिशा उर्ध्वाधर हो जाता है। इन दो स्थानों में एक स्थान पर उर्ध्वाधर सूई का उत्तरी ध्रुव पृथ्वी की ओर हो जाता है। इस स्थान को पृथ्वी का चुम्बकीय उत्तरी ध्रुव कहते हैं। दूसरे स्थान पर उर्ध्वाधर सूई का दक्षिणी ध्रुव पृथ्वी की ओर हो जाता है। इस स्थान को पृथ्वी का चुम्बकीय दक्षिणी ध्रुव कहते हैं। पृथ्वी के केन्द्र से होकर एक सरल रेखा की कल्पना करें, जो पृथ्वी के चुम्बकीय उत्तरी तथा दक्षिणी ध्रुवों से गुजरती है। इस सरल रेखा को पृथ्वी का चुम्बकीय अक्ष कहते हैं। पृथ्वी के भौगोलिक अक्ष एवं चुम्बकीय अक्ष के बीच का कोण लगभग 17° होता है। अतः पृथ्वी के भौगोलिक तथा चुम्बकीय ध्रुव एकु-दूसरे से अलग होते हैं।

किसी स्थान पर पृथ्वी के चुम्बकीय क्षेत्र को तीन तत्वों द्वारा व्यक्त किया जाता है- दिक्पात् कोण, नमन कोण तथा चुम्बकीय क्षेत्र का क्षेतिज घटक।

(i) दिक्पात कोण (Angle of Declination): किसी स्थान पर भौगोलिक याम्योत्तर तथा चुम्बकीय याम्योत्तर के बीच के कोण को दिक्पात कोण कहते हैं।

नोट: किसी स्थान पर पर चुम्बकीय याम्योत्तर (Magnetic Meridian) वह उर्ध्वाधर समतल है, जो पृथ्वी के चुम्बकीय अक्ष से गुजरता है और भौगोलिक याम्योतर (Geographical Meridian) वह उर्ध्वाधर समतल है, जो पृथ्वी के भौगोलिक अक्ष से गुजरता है।

(ii) नमन कोण (Angle of Dip): किसी स्थान पर पृथ्वी का सम्पूर्ण चुम्बकीय क्षेत्र क्षेतिज तल के साथ जितना कोण बनाता है, उसे उस स्थान का नमन कोण कहते हैं। पृथ्वी के ध्रुव पर नमन कोण का मान 90° तथा विषुवत रेखा पर 0° होता है।

(iii) चुम्बकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक (Horizontal component of Earth’s Magnetic Field): पृथ्वी के सम्पूर्ण चुम्बकीय क्षेत्र का क्षैतिज घटक (H) अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग होता है। परन्तु इसका औसत मान लगभग 0.4 गॉस या 0.4 × 10-4 टेसला माना जाता है।

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