लोहा Iron

प्राप्ति (Occurrence): लोहा एक संक्रमण धातु है। भूगर्भिक तत्वों में लोहा का चौथा स्थान है। प्रकृति में लोहा मुक्तावस्था में नहीं पाया जाता है। हरी सब्जियों में यह प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यह मानव रक्त के हीमोग्लोबीन में भी उपस्थित रहता है।

लोहे का निष्कर्षण: लोहे के निष्कर्षण में वात भट्टी (Blast Furnace) का प्रयोग किया जाता है। लोहा का निष्कर्षण मुख्यतः लाल हेमाटाइट (Red Haematite) अयस्क से किया जाता है। मैग्नेटाइट लोहे का चुम्बकीय अयस्क है।

लोहे की किस्में (varieties of Iron): लोहे की मुख्यतः तीन किस्में होती हैं-

  1. ढलवां लोहा (Cast Iron): इसमें कार्बन की मात्रा अपेक्षाकृत अधिक (2.5%) होती है। इसी कारण यह कठोर और भंगुर होता है। इसमें फॉस्फोरस (P), सिलिकान (Si) और मैंगनीज (Mn) आदि अशुद्धियों के रूप में उपस्थित रहता है। यह सबसे निम्न कोटि का लोहा होता है। यह भी दो प्रकार का होता है- सफेद ढलवां लोहा (white Cast Iron) तथा भूरा ढलवां लोहा (Brown Cast Iron)। सफेद ढलवां लोहा में कार्बन की अधिकांश मात्रा संयुक्त अवस्था में रहती है, जबकि भूरा ढलवां लोहा में कार्बन की अधिकांश मात्रा ग्रेफाइट के सूक्ष्म रवों के रूप में संपूर्ण पिंड में वितरित रहती है।
  2. पिटवां लोहा (wrought Iron): इसे ढलवां लोहा से प्राप्त किया जाता है। यह अपेक्षाकृत शुद्ध लोहा होता है। यह आघातवर्ध्य और तन्य होता है। अतः इससे चादरें (sheets) एवं तार (wires) बनाये जा सकते हैं। इसमें कार्बन की मात्रा सबसे कम (0.12 – 0.25%) होती है।
  3. इस्पात (Steel): यह लोहा और कार्बन का एक मिश्रधातु (AIloy) है। इसमें कार्बन की मात्रा ढलवां लोहा से कम (0.25 से 1.5%) होता है। यह चार प्रकार का होता है-

(a) मृदुल इस्पात (Mild steel): इसमें कार्बन की मात्रा 0.1% रहती है। यह आघातवर्धनीय और तन्य होता है। इससे चादरें (Sheets) तथा तार (wires) बनाये जाते हैं।

(b) मध्य इस्पात (Medium Steel): इसमें कार्बन की मात्रा 0.5% होती है। यह अपेक्षाकृत कठोर होता है। इसका उपयोग रेल लाइन, पुल, जहाज आदि के निर्माण में होता है।

(c) कठोर इस्पात (Hard Steel): इसमें कार्बन की मात्रा लगभग 1.5% होती है। इससे औजार (tools) बनाये जाते हैं।

(d) मिश्र इस्पात (Alloy steel): इसके अंतर्गत स्टेनलेस इस्पात, क्रोम इस्पात, मैंगनीज इस्पात, टंगस्टन इस्पात, निकेल इस्पात आदि आते हैं। साधारण लौह इस्पात में लोहा और कार्बन रहता है। यदि इसमें कोई अन्य धातु (Cr, Mn, Ni) मिला दी जाए, तो उसे मिश्र इस्पात (Alloy steel) कहते हैं। इसका सबसे अच्छा उदाहरण स्टेनलेस इस्पात (stainless steel) है। स्टेनलेस स्टील पर वायु, जल आदि के प्रभाव से जंग नहीं लगता है।


इस्पात की मिश्रधातुएँ

  1. स्टेनलेस इस्पात (Stainless Steel): इसमें 15% क्रोमियम रहता है। यह कठोर होता है, तथा इसमें जंग भी नहीं लगता है। इसका उपयोग बर्तन, ब्लेड, वाल्व आदि बनाने में होता है।
  2. मैंगनीज इस्पात (Manganese Steel): इसमें लोहा के साथ 6 से 15% मैंगनीज होता है। यह बहुत कठोर एवं कम घिसने वाला होता है। इससे रेल की पटरियाँ, स्विच एवं काटने की मशीनें बनायी जाती हैं।
  3. निकेल इस्पात (Nickel Steel): इसमें 3 से 4% निकेल होता है। यह कठोर एवं लचीला होता है, तथा इसमें जंग नहीं लगता है। इससे धुरे, बिजली के तार, हवाई जहाज एवं मोटर के कल-पुर्जे बनाये जाते हैं।
  4. इनवार (Invar): इसमें निकेल 36% होता है। इसमें प्रसार-गुण नहीं होता है। इससे घड़ी के पेण्डुलम की छड़ें एवं स्केल (पैमाना) बनाये जाते हैं।
  5. टंगस्टन स्टील (Tungsten Steel): इसमें टंगस्टन (W) 10 से 20% रहता है। यह बहुत ही कठोर एवं मजबूत होता है। इससे स्प्रिंग एवं चुम्बक, काटने के औजार तथा तेजी से चलने वाले औजार बनाये जाते हैं।
  6. क्रोम-वेनेडियम स्टील (Chrome Venadium Steel): इसमें क्रोमियम 0.1 से 1% एवं वेनेडियम 0.15 से 0.5% रहता है। इसमें अधिक भार सहने की शक्ति होती है। इससे बियरिंग, गियर्स (Gears) एवं धुरे बनाये जाते हैं।
  7. क्रोम इस्पात (Chrome Steel): इसमें क्रोमियम 5% रहता है। यह बहुत ही कठोर होता है। इससे तिजोरी (safevaults), बॉल-बियरिंग (Ball-Bearings) तथा पत्थर काटने वाले मशीनों के दांत (Jaws of Stone Crushing Machines) बनाए जाते हैं।

लोहे के भौतिक गुण: शुद्ध लोहा सफेद, मुलायम तथा रवादार धातु है। इसका द्रवणांक 1533°C, क्वथनांक 2450°C तथा घनत्व 7.86 होता है। यह आघातवर्ध्य एवं तन्य होता है। इसमें चुम्बकीय गुण पाया जाता है।

लोहे के रासायनिक गुण: यह साधारण ताप पर शुष्क हवा से कोई प्रतिक्रिया नहीं करता है। आर्द्र हवा के संपर्क में आने पर इस पर जंग लगता है। शुद्ध लोहे की शुद्ध जल के साथ कोई प्रतिक्रिया नहीं होती है, लेकिन साधारण जल में इस पर जंग लगता है। लाल तप्त लोहे पर जलवाष्प प्रवाहित करने पर फेरसोफेरिक ऑक्साइड और हाइड्रोजन गैस बनता है। यह हैलोजन से प्रतिक्रिया कर हैलाइड तथा सल्फर के साथ गर्म करने पर सल्फाइड बनाता है। यह क्षारों के साथ कोई प्रतिक्रिया नहीं करता है। यह तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के साथ प्रतिक्रिया कर फेरस क्लोराइड एवं हाइड्रोजन गैस बनाता है। यह तनु सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ प्रतिक्रिया कर फेरस सल्फेट एवं हाइड्रोजन गैस बनाता है। यह गर्म एवं सान्द्र सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ प्रतिक्रिया कर फेरस एवं फेरिक सल्फेट तथा सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) गैस बनाता है। यह ठंडा एवं तनु नाइट्रिक अम्ल से प्रतिक्रिया कर फेरस नाइट्रेट एवं अमोनियम नाइट्रेट बनाता है। यह गर्म एवं तनु नाइट्रिक अम्ल के साथ प्रतिक्रिया कर फेरिक नाइट्रेट एवं नाइट्रिक ऑक्साइड गैस बनाता है। यह सान्द्र नाइट्रिक अम्ल के साथ प्रतिक्रिया कर फेरिक नाइट्रेट एवं नाइट्रोजन परऑक्साइड गैस बनाता है।

लोहे की निष्क्रियता (Passivity of Iron): अति सान्द्र या सधूम नाइट्रिक अम्ल में लोहे का एक टुकड़ा डालने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं होती है। लोहा का टुकड़ा अम्ल में डालने पर निष्क्रिय हो जाता है, इसे निष्क्रिय लोहा (Passive Iron) कहते हैं। निष्क्रिय लोहा तनु हाइड्रोक्लोरिक अम्ल या तनु सल्फ्यूरिक अम्ल के साथ कोई प्रतिक्रिया नहीं करता है। लोहे की निष्क्रियता उस पर फेरसोफेरिक ऑक्साइड (Fe3O4) की परत बैठ जाने के कारण होती है। निष्क्रिय लोहे को पुनः सक्रिय बनाने के लिए उसे हाइड्रोजन के प्रवाह में गर्म किया जाता है।

लोहे पर जंग लगना (Rusting of Iron): लोहे को आर्द्र वायु में छोड़ देने पर उसके ऊपर लाल रंग की एक ढीली परत बैठ जाती है, जिसे जंग (Rust) कहते हैं। इस क्रिया को जंग लगना कहते हैं। लोहे पर यह जंग हवा की नमी और ऑक्सीजन के कारण लगता है। लोहे को निम्नलिखित विधियों द्वारा जंग लगने से बचाया जा सकता है-

(i) लोहे के ऊपर पीच, अलकतरा या ऐलुमिनियम पेण्ट लगा देने पर

(ii) लोहे की लाल तप्त कर उसके ऊपर जलवाष्प प्रवाहित करने से Fe3O4 की परत बैठ जाती है, जो लोहे की जंग लगने से बचाता है।

(iii) लोहे को जस्तीकृत (Galvanised) करके।

नोट:

  • लोहे में जंग लगना रासायनिक परिवर्तन का उदाहरण है।
  • लोहे पर जंग लगने से लोहे का भार बढ़ जाता है।
  • लोहे में जंग लगने में बना पदार्थ फेरसीफेरिक ऑक्साइड होता है। यह भूरी परत के रूप में लोहे पर जम जाती है।
  • लोहे के गैल्वेनाइज्ड (जस्तीकृत) चादर पर जस्ते की परत चढ़ी रहती है।

इस्पात का तप्तीकरण (Tempering of Steel): इस्पात को लाल तप्त कर जल या तेल में डुबाकर शीघ्र ही ठंडा करने से इस्पात अत्यंत कठोर एवं भंगुर हो जाता है। इस क्रिया से इस्पात अत्यंत कठोर एवं भंगुर हो जाता है। यह क्रिया इस्पात का कठोरीकरण कहलाता है एवं ऐसा इस्पात द्रुत शीतलित इस्पात (Quenched Steel) कहलाता है। द्रुत शीतलित इस्पात को पुनः गर्म करके धीरे-धीरे ठंडा करने पर वह लचीला एवं कम भंगुर हो जाता है। इस क्रिया को इस्पात का ऐनीलीकरण (Annealing of steel) कहते हैं। इस्पात का कठोरीकरण करने के पश्चात् ऐनीलीकरण की क्रियाओं को सम्मिलित रूप से इस्पात का तप्तीकरण कहते हैं।

लोहे के यौगिक

  1. फेरस सल्फेट (Ferrous Sulphate): फेरस सल्फेट (FeSO4.7H2O) को हरा कसीस या Green vitriol कहा जाता है। यह हल्के हरे रंग का उत्फुल्ल रवा है। इसमें सात अणु रवा जल उपस्थित रहता है। यह हरा कसीस तथा इप्सम लवण का समाकृतिक (Isomorphous) है। इसका उपयोग स्याही बनाने एवं मोह्र लवण (Mohr’s salf) बनाने एवं रंग उद्योग में होता है। अनार्द्र लवण का उपयोग भोजन में लोहे की कमी को पूरा करने के लिए दवा के रूप में होता है। रंग उद्योग में भी इसका उपयोग होता है।
  2. फेरिक क्लोराइड (Ferric Chloride): अनार्द्र फेरिक क्लोराइड काला एवं आर्द्र फेरिक क्लोराइड पीला पसीजने वाला रवेदार ठोस है। यह जल में घुलनशील होता है। इसका उपयोग कटे स्थान से खून का बहना रोकने के लिए किया जाता है, क्योंकि यह खून को आतंचित (Coagulate) कर थक्का बनाता है। इसका उपयोग दवा के रूप में भी होता है।
  3. आयरन सल्फाइड (Ferrous Sulphide): आयरन सल्फाइड को झूठा सोना या बेवकूफों का सोना कहा जाता है। इसका उपयोग किप्प के उपकरण (Kipp’s Apparatus) द्वारा प्रयोगशाला में हाइड्रोजन सल्फाइड गैस बनाने में होता है।
  4. मोहर लवण (Mohr’s salt): FeSO4(NH4)2SO4.6H2O को मोह्र लवण कहा जाता है। यह हल्के हरे रंग का रवादार पदार्थ है जो जल में विलेय तथा ऐल्कोहॉल में अविलेय होता है। इसका उपयोग आयतनी विश्लेषण में, नीली स्याही बनाने में, रंगाई में, रंगचापक के रूप में, चमड़ा रंगने में, कृषि में हानिकारक कीड़ों को मारने में तथा प्रयोगशाला में अवकारक के रूप में होता है। इसका उपयोग रंगीन क्षार मूलकों के परीक्षण में भी होता है।

नोट:

  • शरीर में लोहे की कमी से एनीमिया तथा अधिकता से लौहमयता (Siderosis) रोग होता है। अफ्रीका के बाँटू आदिवासियों में लौहमयता रोग पाया जाता है। ऐसा उनमें लोहे के बतन में बीयर (Beer) के सेवन के कारण होता है।
  • बेसेमर प्रक्रम से वृहत् मात्रा में Pig Iron से इस्पात का उत्पादन होता है। इसका आविष्कार 1855 ई० में हेनरी बेसेमर ने किया।
  • रेजर बनाने में अधिक कार्बन युक्त इस्पात का प्रयोग किया जाता है।
  • स्थायी चुम्बक बनाने में इस्पात का उपयोग होता है।

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