अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष International Monetary Fund – IMF

इस कोष की स्थापना जुलाई 1944 में सम्पन्न हुए संयुक्त राष्ट्र मौद्रिक एवं वित्तीय सम्मेलन (ब्रेटन वुड्स, संयुक्त राज्य अमेरिका) में हस्ताक्षरित समझौते के अंतर्गत की गयी, जो 27 दिसंबर, 1948 से प्रभावी हुआ। आईएमएफ द्वारा 1 मार्च, 1947 को औपचारिक रूप से कार्य करना शुरू कर दिंया गया। इस कोष का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय वित्तीय एवं मौद्रिक स्थिरता को बनाये रखने के उपाय करना तथा अंतरराष्ट्रीय व्यापार के विस्तार एवं पुनरुत्थान हेतु वित्तीय आधार उपलब्ध कराना है। आईएमएफ आर्थिक व सामाजिक परिषद के साथ किये गये एक समझौते (जिसे 15 नवंबर, 1947 को महासभा की मंजूरी प्राप्त हुई) के उपरांत संयुक्त राष्ट्र का विशिष्ट अभिकरण बन गया। इसका मुख्यालय वाशिंगटन डीसी में स्थित है।

आईएमएफ के मुख्य उद्देश्यों में एक स्थायी संस्था (जो अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक समस्याओं पर सहयोग व परामर्श हेतु एक तंत्र उपलब्ध कराती है) के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक सहयोग को बढ़ावा देना, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के विस्तार एवं संतुलित विकास को प्रोत्साहित करना तथा इस प्रकार से सभी सदस्यों के उत्पादक संसाधनों के विकास और रोजगार व वास्तविक आय के उच्च स्तरों को कायम रखना; विनिमय स्थिरता को प्रोत्साहित करना तथा सदस्यों के बीच व्यवस्थित विनिमय प्रबंधन को बनाये रखना; सदस्यों के मध्य चालू लेन-देन के संदर्भ में भुगतानों की एक बहुपक्षीय व्यवस्था की स्थापना में सहायता देना; सदस्यों को अस्थायी कोष उपलब्ध कराकर उन्हें अपने भुगतान संतुलनों के कुप्रबंधन से निबटने का अवसर एवं क्षमता प्रदान करना तथा सदस्यों के अंतरराष्ट्रीय भुगतान संतुलनों में व्याप्त असंतुलन की मात्रा व अवधि को घटाना इत्यादि सम्मिलित हैं।

आईएमएफ के पूंजीगत संसाधनों में विशेष कर्षण अधिकार (Special Drawing Rights-SDRs) एवं मुद्राएं शामिल हैं, जिनका भुगतान सदस्य देश आईएमएफ में प्रवेश लेते समय अपने निर्धारित कोटों के अनुसार करते हैं। किसी सदस्य के कोटे का निर्धारण सामान्यतः अन्य सदस्य देशों के सापेक्ष उसकी आर्थिक स्थिति के आधार पर किया जाता है। कोटे के 25 प्रतिशत तक का भुगतान आरक्षित परिसम्पत्तियों के रूप में किया जाता है तथा शेष भुगतान सदस्य की अपनी मुद्रा के रूप में किया जा सकता है। सदस्य का कोटा आईएमएफ के नीतिगत मामलों में उसकी मत शक्ति तथा कोष से उसको उधार मिल सकने वाली विदेशी मुद्रा की मात्रा को निर्धारित करता है। संयुक्त राज्य अमेरिका, जर्मनी, जापान, फ़्रांस एवं इंग्लैंड को कोटे की विशालता की दृष्टि से आईएमएफ़ में अग्रणी स्थान प्राप्त है। पूंजीगत संसाधनों के अलावा आईएमएफ उधारों द्वारा भी अपने संसाधनों को बढ़ाता है।

आईएमएफ द्वारा 1969 में भुगतान खातों के संतुलन को स्थापित करने हेतु अंतरराष्ट्रीय स्वर्ण भंडारों व् राष्ट्रीय मुद्राओं को अनुपूरित करने के लिए आरक्षित परिसंपत्ति के एक प्रकार के रूप में एसडीआर का निर्माण किया गया। वर्तमान में एसडीआर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की मुख्य आरक्षित परिसम्पति है तथा सदस्य देशों द्वारा उनके अंतरराष्ट्रीय भंडारों के एक अंग के रूप में धारण की जाती है। एक सदस्य इस विशेष खाते का उपयोग दूसरे सदस्यों से जरूरी विदेशी मुद्रा प्राप्त करने में कर सकता है।

एसडीआर वास्तविक धन नहीं है तथा इसे स्वर्ण आधार भी प्राप्त नहीं है। इसका निर्माण स्वयं आईएमएफ द्वारा किया गया है और यह कोष द्वारा प्रबंधित एक विशेष खाते में प्रविष्टियां दर्ज करने वाली किताब का रूप ले चुका है। इसका मूल्य 5 देशों की मुद्राओं (पौंड, मार्क, येन, डॉलर व फ्रेंक) की भारित टोकरी (weighted basket) के आधार पर आंका जाता है। कभी-कभी इसे कागजी स्वर्ण भी कहा जाता है क्योंकि सदस्य देश इसका प्रयोग राष्ट्रीय मुद्राओं के विनिमय में केन्द्रीय बैंकों के बीच भुगतान के साधन के रूप में या आरक्षित मुद्रा के रूप में करना चाहते हैं। आईएमएंफ सदस्यों को उनके कोटे के अनुरूप एसडीआर वितरित करता है। एसडीआर का प्रथम बंटवारा 1 जनवरी, 1970 को हुआ था और तब से पांच बार इसका वितरण हो। चुका है।

दिसंबर 1998 तक आईएमएफ के सदस्य देशों की संख्या 182 तक पहुंच चुकी थी। विश्व बैंक से सम्बद्ध होने के लिए आईएमएफ की सदस्यता प्राप्त होनी आवश्यक है। कोष की सदस्यता प्राप्त करते समय सदस्य देश को स्थायी विनिमय दरों की एक व्यवस्था के संवर्द्धन तथा व्यवस्थित विनिमय समझौतों के सुनिश्चियन हेतु आईएमएफ एवं अन्य सदस्यों के साथ सहयोग करने की प्रतिवद्धता व्यक्त करनी होती है। दूसरे शब्दों में, सदस्यों को घरेलू एवं बाहरी नीतियों, जो भुगतानों के संतुलन तथा विनिमय दर पर प्रभाव डाल सकती हैं, से जुड़ी कुछ प्रतिबद्धताएं स्वीकारनी पड़ती हैं।

आईएमएफ सदस्य देशों को उनकी अल्पकालीन या मध्यावधिक भुगतान कठिनाइयों से उबरने हेतु अपने संसाधन उपलब्ध कराता है, जो उनके निकासी अधिकारों की मात्रा, पुनर्भुगतान की शर्तों इत्यादि से सम्बद्ध सीमाओं के अधीन होते हैं। यह समझौते अनुच्छेद के अधीन सदस्य देशों पर आरोपित प्रतिबद्धताओं के परिचालन पर भी नियमित निगरानी रखता है तथा सदस्यों से अपनी विनिमय दर नीतियों एवं मूलभूत वित्तीय व आर्थिक आंकड़े उपलब्ध कराने का अनुरोध करता है।


सदस्य देश कोष द्वारा प्रदत्त अपने निकासी अधिकारों का प्रयोग अपने राष्ट्रीय रूप से अधिगृहीत अंतरराष्ट्रीय मुद्रा भंडारों के साथ कर सकते हैं ताकि भुगतान संतुलन के घाटे की वित्त पूर्ति की जा सके।

कोष के सामान्य निकासी अधिकारों के अंतर्गत सदस्य अपने कोटे का 125 प्रतिशत तक उधार ले सकते हैं। ये अधिकार सशर्त साखों के रूप में होते हैं। उधार लेने वाले देश की अपने भुगतान घाटे के सुधार हेतु आईएमएफ के कार्यक्रमों को स्वीकार करना पड़ता है। सदस्य देशों को 3 से 5 वर्ष की अवधि के भीतर अपने उधार को चुकाना पड़ता हैं। आईएमएफ कर्जदाता देश की पूर्व सहमति के बिना अपनी योजना में किसी भी मुद्रा का उपयोग नहीं कर सकता।

अपने-अपने भुगतान संतुलन की समस्या से निबटने में सदस्यों की सहायता करने के लिए आईएमएफ द्वारा क्षतिपूर्तिकारी वित्तीयन सुविधा (1963), अस्थायी तेल सुविधा (1974 एवं 1975), एक न्यास कोष (1976) तथा एक विस्तारित कोष सुविधा (1974) की स्थापना की गयी थी। अक्टूबर 1985 में बोर्ड ऑफ गवर्नर्स द्वारा संरचनात्मक व्यवस्थापन सुविधा (Structural Adjustment Facility–SAF) की स्थापना को मंजूरी प्रदान की, जो निम्न आय वाले देशों को भुगतान संतुलन की समस्या से उबरने हेतु अपनी राष्ट्रीय नीति में बदलाव लाने की शर्त पर रियायती ऋण उपलब्ध कराती है। मार्च 1986 में एसएएफ की औपचारिक रूप से स्थापना की गयी तथा इसे 2.7 अरब एसडीआर का कोष आवंटित किया गया।

अक्टूबर 1987 में आईएमएफ एवं विश्व बैंक की संयुक्त वार्षिक बैठक में वृद्धिशील संरचनात्मक व्यवस्थापन सुविधा (ईएसएएफ) की स्थापना को स्वीकृति प्रदान की गयी। ईएसएएफ को 20 देशों से 6 अरब एसडीआर का कोष प्राप्त हुआ। इन देशों में संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल नहीं था। ईएसएएफ का मूल उद्देश्य अत्यधिक कर्ज के बोझ से दबे निम्न आय वाले देशों को सहायता प्रदान करना था। अक्टूबर 1999 में ईएसएएफ का नाम परिवर्तित करके निर्धनता उन्मूलन एवं विकास सुविधा (Poverty Reduction and Growth Facility–PRGF) रख दिया गया।

अगस्त 1988 में क्षतिपूरक एवं आपातिक वित्तीयन सुविधा की स्थापना की गयी, जिसके अंतर्गत आईएमएफ समर्पित व्यवस्थापन कार्यक्रमों को लागु करने वाले देशों को व्यापकतर संरक्षण उपलब्ध कराया जाता है। दिसंबर 1997 में अनुपूरक आरक्षण सुविधा (एसआरएफ) की स्थापना हुई, जिसका उद्देश्य बाजारी साख को आकस्मिक विनाशकारी क्षति पहुंचने के फलस्वरूप वृहत अल्पकालिक कर्ज ले चुके देशों को उनकी भुगतान संतुलन समस्या से निबटने में सहायता प्रदान करना है। अप्रैल 1999 में आपातिक साख सीमा (सीसीएल) की स्थापना अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संक्रमण की समस्याओं से निबटने के लिए की गयी। 1999 में आरंभ किये गये पहलकारी उपायों के माध्यम से आईएमएफ (विश्व बैंक के साथ सहयोग करते हुए) भारी कर्ज से दबे गरीब देशों (एचआईपीसीज) की समस्याओं पर भी ध्यान देता है।

आईएमएफ एवं विश्व बैंक का एक संगठनात्मक ढांचा एक समान है। आईएमएफ एक बोर्ड ऑफ़ गवर्नर्स, बोर्ड ऑफ एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर्स, अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली पर एक अंतरिम समिति तथा एक प्रबंध निदेशक व कर्मचारी वर्ग के द्वारा अपना कार्य करता है। कोष की सभी शक्तियां बोर्ड ऑफ गवर्नर्स में निहित होती हैं। इस बोर्ड में प्रत्येक सदस्य देश का एक गवर्नर एवं एक वैकल्पिक प्रतिनिधि शामिल रहता है। इसकी बैठक वर्ष में एक बार होती है। बोर्ड ऑफ गवर्नर्स द्वारा अपनी अधिकांश शक्तियां 24 सदस्यीय कार्यकारी निदेशक बोर्ड को हस्तांतरित कर दी गयी हैं। इस कार्यकारी निदेशक बोर्ड की नियुक्तियां निर्वाचन सदस्य देशों या देशों के समूहों द्वारा किया जाता है। प्रत्येक नियुक्त निदेशक को अपनी सरकार के निर्धारित कोटे के अनुपात में मत शक्ति प्राप्त होती है। जबकि प्रत्येक निर्वाचित निदेशक अपने देश समूह से सम्बद्ध सभी वोट डाल सकता है। कार्यकारी निदेशकों द्वारा अपने प्रबंध निदेशक का चयन किया जाता है, जो कार्यकारी बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में कार्य करता है। प्रबंध निदेशक आईएमएफ के दिन-प्रतिदिन के कार्यों को सम्पन्न करता है। एक संधि समझौते के अनुसार आईएमएफ का प्रबंध निदेशक यूरोपीय होता है जबकि विश्व बैंक का अध्यक्ष अमेरिकी नागरिक होता है

वर्ष 1991 में एसडीआर के मूल्य निर्धारण में पांच मुद्राओं का भार इस प्रकार था-

  1. अमेरिकी डॉलर 40 प्रतिशत,
  2. जर्मन मार्क 21 प्रतिशत,
  3. जापानी येन 17 प्रतिशत,
  4. ब्रिटिश पाउण्ड 11 प्रतिशत तथा
  5. फ्रांसीसी फ्रेंक 11 प्रतिशत

अंतरराष्ट्रीय मौद्रिक क्षेत्र में एसडीआर, स्वर्ण की मुद्रा की भूमिका अदा करता है। इसलिए इसे कागजी स्वर्ण के नाम से भी जाना जाता है।

जनवरी 2008 में 13वीं सामान्य समीक्षा के बाद आईएमएफ की कुल कोटा राशि 2,17,300 मिलियन एसडीआर थी। वैश्विक मंदी से निपटने के लिए आईएमएफ ने सदस्य राष्ट्रों को उनके अभ्यंशों के आधार पर 250 अरब एसडीआर की राशि का आवंटन करने का निर्णय लिया था। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अभ्यंशों को स्वर्ण तथा स्थानीय करेंसी के रूप में जमा कराया जाता है। प्रत्येक सदस्य देश की प्रवेश के समय कोटे की 25 प्रतिशत राशि स्वर्ण या डॉलर के रूप में जमा करनी होती है तथा कोटे का शेष भाग वह अपनी करेन्सी के रूप में जमा करा सकता है। फरवरी 2003 में की गई अभ्यंशों की 12वीं समीक्षा के बाद आईएमएफ की कुल अभ्यंश राशि 213 अरब एसडीआर थी। 13वीं समीक्षा के अंतर्गत सदस्य राष्ट्रों के कोटों में परिवर्तन उनकी अर्थव्यवस्था की स्थिति के अनुरूप ही किया गया था। कोटा पुनरीक्षण के चलते सदस्य देशों की मत शक्ति में भी परिवर्तन हो जाता है। आईएमएफ की इण्टरनेशनल मॉनिटरी एण्ड फाइनेंशियल कमेटी (आईएमएफसी) के द्वारा 18वीं बार अभ्यशों में परिवर्तन की संस्तुति की थी जिसे आईएमएफ ने अप्रैल 2008 में स्वीकृति प्रदान की।

सितंबर 2006 में सिंगापुर में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की सालाना बैठक में चीन सहित चार उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मतशक्ति में वृद्धि का फैसला किया गया था। इसके लिए इनके कोटे में वृद्धि की गई थी। किसी देश की मतशक्ति उसके कोटे के द्वारा ही निश्चित होती है। कोटे का निर्धारण संबंधित देश के सकल घरेलू उत्पाद तथा अर्थव्यवस्था के अन्य मानकों के आधार पर किया जाता है तथा कोटे में वृद्धि होने पर उस देश को मुद्रा कोष में अपना वित्तीय योगदान भी बढ़ाना होता है।

भारत, जो अभी तक अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से समय-समय पर अपनी आवश्यकतानुसार ऋण लेता रहा है, अब इसके वित्त पोषक राष्ट्रों में शामिल हो गया है। अब भारत इस बहुपक्षीय संस्था को ऋण उपलब्ध कराने लगा है। मई व जून 2003 में दो अलग-अलग किश्तों में कुल मिलाकर 205 मिलियन एसडीआर (291.70 मिलियन डॉलर) की राशि भारत ने मुद्रा कोष को (फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन प्लान-एफटीपी) के अंतर्गत उपलब्ध कराई।

वैश्विक मंदी से निपटने के लिए 14वीं समीक्षा (वर्ष 2010 में) के तहत् सदस्य राष्ट्रों की मदद के लिए अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने लगभग 250 अरब एसडीआर का आवंटन सदस्य देशों में किया गया। इससे इन देशों को अपने विदेशी मुद्रा कोष को सुदृढ़ कर तरलता का प्रवाह बढ़ाने में मदद मिली। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के 14वें कोटा पुनरीक्षण के अंतर्गत भारत के कोटा में होने वाली वृद्धि 5821.5 मिलियन एसडीआर से बढ़कर 13114 मिलियन एसडीआर हो गई तथा वह इस संस्था का आठवां बड़ा कोटाधारी हो गया।

अब भारत का कोटा 2.44 प्रतिशत से बढ़कर 2.75 प्रतिशत हो गया।

18 अप्रैल, 2012 को दक्षिणी सूडान को भी आईएमएफ का सदस्य बना लिए जाने पर आईएमएफ की सदस्य संख्या दिसंबर 2013 की स्थिति के अनुसार 188 हो गई है।

भारत का मुद्रा कोष से घनिष्ठ संबंध रहा है और उसके नीति-निर्माण एवं कार्य संचालन में भारत निरंतर योगदान देता रहा है। समय-समय पर आर्थिक सहायता और परामर्श द्वारा भारत मुद्रा कोष से लाभान्वित हुआ है।

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