अंतरराष्ट्रीय न्यायालय International Court of Justice – ICJ

अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) संयुक्त राष्ट्र का प्रमुख न्यायिक अंग है। इसका मुख्यालय दि हेग (नीदरलैंड) में स्थित है। इसकी स्थापना 26 जून 1945 को सैन फ्रांसिस्को में हस्ताक्षरित विधेयक के अनुरूप हुई थी, जो संयुक्त राष्ट्र चार्टर का ही एक अभिन्न भाग है। सभी संयुक्त राष्ट्र सदस्य इसके अनुमोदक हैं। स्विट्जरलैंड द्वारा भी इसे स्वीकार किया गया है। इस न्यायालय का उद्देश्य सदस्य राष्ट्रों द्वारा सामने रखे गये विवादों की सुनवाई एवं निपटारा करना तथा महासभा, सुरक्षा परिषद या महासभा द्वारा अधिकृत अन्य सहयोगी संगठन के अनुरोध करने पर किसी वैधानिक प्रश्न से संबंधित परामर्श उपलब्ध कराना है।

कोई भी सदस्य देश किसी मामले को न्यायालय की सुनवाई हेतु प्रस्तुत कर सकता है। फिर भी किसी भी देश को अपने विवाद को न्यायालय के सामने रखने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। अन्य देश अपने मामलों को सुरक्षा परिषद द्वारा तय की गयी शर्तों के अधीन न्यायालय के समक्ष ला सकते हैं। निजी व्यक्ति को विवाद का पक्ष नहीं बनाया जा सकता है।

अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में 15 न्यायाधीश होते हैं, जिनका चुनाव 9 वर्षीय कार्यकाल के लिए महासभा एवं सुरक्षा परिषद द्वारा स्वतंत्र रूप से किया जाता है। एक-तिहाई स्थानों के लिए प्रति तीन वर्षों के बाद चुनाव होते हैं। न्यायाधीश विभिन्न राष्ट्रीयताओं से संबद्ध होते हैं तथा स्थायी विवाचन न्यायालय (1899 व 1907 के हेग सम्मेलनों द्वारा स्थापित) में मौजूद राष्ट्रीय समूहों द्वारा नामांकित किये जाते हैं। अंर्तराष्ट्रीय न्यायालय में विश्व की प्रमुख वैधानिक व्यवस्थाओं का प्रतिनिधित्व होता है तथा किसी भी राष्ट्र के दो न्यायाधीशों को नहीं चुना जाता है। किसी भी न्यायाधीश को राजनीतिक या प्रशासनिक गतिविधियों में भाग लेने की स्वीकृति नहीं दी जाती। न्यायाधीशों को अपेक्षित सेवा शर्तों के उल्लंघन की स्थिति में ही पदच्युत किया जा सकता है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय तीन वर्षीय कार्यकाल हेतु अपने अध्यक्ष एवं उपाध्यक्ष का चुनाव करता है।

न्यायालय का अधिकार क्षेत्र निम्नलिखित चार पद्धतियों द्वारा सुनिश्चित होता है-

  1. दो या अधिक राज्य विशेष समझौतों के माध्यम से अपने पारस्परिक विवादों को न्यायालय के सामने ला सकते हैं।
  2. किसी बहुपक्षीय संधि में यह प्रावधान किया जा सकता है कि संधि की व्याख्या से जुड़े मामालों पर अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में ही विचार-विमर्श किया जा सकेगा।
  3. किसी द्वि-पक्षीय संधि द्वारा किसी विशिष्ट मामले की सुनवाई अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में कराये जाने की व्यवस्था की जा सकती है।
  4. न्यायालय में प्रक्रिया शुरू होने के बाद अनौपचारिक रूप से किसी मामले में न्यायालय का अधिकार क्षेत्र विस्तृत हो सकता है।

अपने अधिकार क्षेत्र से जुड़े विवाद को न्यायालय स्वयं ही सुलझाता है। न्यायालय द्वारा सामान्य सिद्धांतों, पूर्व न्यायिक फैसलों तथा प्रख्यात विधिशास्त्रियों के विचारों के प्रकाश में मामलों का न्याय-निर्णयन किया जाता है।

यदि किसी पक्ष की राष्ट्रीयता से संबद्ध न्यायाधीश पीठ में शामिल नहीं होता, तो प्रत्येक पक्ष एक तदर्थ न्यायधीश का पदनाम सुझा सकता है। ऐसे तदर्थ न्यायाधीश के लिए संबद्ध पक्ष की राष्ट्रीयता होना जरूरी नहीं होता तथा उसे अन्य न्यायधीशों के साथ पूर्ण समानता प्राप्त होती है।

सभी प्रश्नों का निर्णय उपस्थित न्यायाधीशों के बहुमत द्वारा होता है। इनकी कोरम संख्या 9 होती है। सम मतों की स्थिति में अध्यक्ष द्वारा दुबारा निर्णायक मत डाला जा सकता है। न्यायालय का निर्णय अंतिम होता है, यद्यपि नये निर्णायक कारकों के आधार पर निर्णय की तारीख से 10 वर्षों के भीतर पुनर्विचार का अनुरोध किया जा सकता है। न्यायालय द्वारा विशेष मामलों की सुनवाई हेतु तीन या अधिक न्यायधीशों वाले समूहों का गठन किया जा सकता है। 1993 में पर्यावरण मामलों पर सात सदस्यीय दल का गठन किया गया था।


न्यायालय का पंजीयन विभाग पंजीयक के नेतृत्व में न्यायालय के समक्ष लाये गये मामलों की सूची तैयार करता है। अंग्रेजी तथा फ्रांसीसी अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की आधिकारिक भाषाएं हैं।

Leave a Reply to bandar55 Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *