निःशस्त्रीकरण एवं शस्त्र नियंत्रण पर भारत का दृष्टिकोण India’s Perspectives On Arms Control And Disarmament

निःशस्त्रीकरण से तात्पर्य है, मौजूदा हथियारों में कमी एवं नियंत्रण करना, जबकि शस्त्र नियंत्रण से आशय है, भविष्य में हथियारों का नियंत्रण करना।

स्वतंत्रता प्राप्ति से ही भारत निरंतर सार्वभौमिकरण, भेदभाव रहित एवं प्रभावी सहयोग के सिद्धांतों के आधार पर वैश्विक निःशस्त्रीकरण के उद्देश्य से कार्य करता रहा है। भारत का विश्वास है कि नाभिकीय हथियारों से विमुक्त विश्व वैश्विक सुरक्षा एवं स्वयं भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा में वृद्धि करेगा। 1948 में, भारत ने आणविक ऊर्जा का इस्तेमाल केवल शांतिपूर्वक गतिविधियों एवं विकास तक सीमित रखने का विश्व का आह्वान किया। 1961 में, भारत ने अन्य गुटनिरपेक्ष देशों के साथ मिलकर संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रस्ताव रखा कि नाभिकीय एवं थर्मो-न्यूक्लिर हथियारों का इस्तेमाल संयुक्त राष्ट्र चार्टर का उल्लंघन समझा जाए। 1964 में भारत ने नाभिकीय हथियारों के प्रसार को तुरंत प्रतिबंधित करने का सुझाव दिया।

भारत का दृष्टिकोण रहा है कि निःशस्त्रीकरण की व्यवस्था सभी देशों पर लागू होनी चाहिए और सख्त अंतरराष्ट्रीय नियंत्रणाधीन क्रियान्वित की जानी चाहिए। इस पृष्ठभूमि के प्रतिकूल,भारत ने 1968 की नाभिकीय अप्रसार संधि (एनपीटी) पर यह कहते हुए हस्ताक्षर करने से मना कर दिया कि यह संधि असमान एवं भेदभावपरक है।

भारत की नाभिकीय नीति दो चिंताओं द्वारा निर्देशित होती है- (i) आणविक कार्य के प्रयोग की स्वतंत्रता, और (ii) राष्ट्रीय सुरक्षा। समग्र आणविक निःशस्त्रीकरण पर जोर देते हुए, 1996 में अस्तित्व में आई व्यापक परीक्षण प्रतिबंध संधि (सीटीबीटी) पर हस्ताक्षर करने से भारत ने मना कर दिया। भारत ने कहा कि संधि भेदभाव परक है और भारत जैसे देशों के सुरक्षा हितों को ध्यान में रखकर नहीं बनाई गई है। भारत ने सीटीबीटी में तीन संशोधन प्रस्तावित किए:

  1. इसे सभी देशों पर लागू होना चाहिए जिसमें पांच नाभिकीय हथियार वाले देश भी शामिल हों
  2. इसके द्वारा भूमिगत परीक्षण भी प्रतिबंधित होने चाहिए
  3. ऐसा हमेशा के लिए किया जाना चाहिए।

भारत ने आणविक ऊर्जा पर आणविक हथियारों से संपन्न राष्ट्रों का दोहरा चरित्र देखते हुए वर्ष 1998 में पोखरन में शक्ति नाम से आणविक परीक्षण किए। लेकिन भारत ने इस मामले में नो फर्स्ट यूज नीति को अपनाया है।

वैश्विक, भेदभाव रहितत या सत्यापन योग्य नाभिकीय निःशस्त्रीकरण के लिए भारत का सहयोग जारी रहा। संयुक्त राष्ट्र महासभा के 66वें सत्र को सम्बोधित करते हुए प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने नाभिकीय शस्त्र रहित एवं अहिंसक विश्व की पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी द्वारा प्रस्तुत कार्य योजना की ओर ध्यान दिलाया जिससे नाभिकीय निःशस्त्रीकरण को समयबद्ध, बिना भेदभाव के तरीके से हासिल करने के लिए मजबूत रोड मैप उपलब्ध कराया। उन्होंने यह भी टिप्पणी की कि नाभिकीय शस्त्र अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए निरंतर खतरा बना हुआ है। वर्ष के दौरान भारत ने कान्फ्रेंस ऑन डिसआरमामेन्ट, यूएनजीए की पहली समिति, यूएन निःशस्त्रीकरण आयोग, सातवां रिव्यू कान्फ्रेंस ऑफ द बायोलॉजिकल एण्ड टाक्सिन्स वीपन्स कनवेन्शन तथा चौथा रिव्यू कान्फ्रेंस तथा कन्वेशन आन सर्टेन कन्वेशनल वीपन्स में भागीदारी की तथा अपने विचार रखे। 16-17 जनवरी, 2012 को नई दिल्ली में नाभिकीय सुरक्षा सम्मेलन प्रक्रिया के भाग के रूप में भारत ने शेरपा ऑफ द समिट लीडर्स की बैठक आयोजित की 122 सितंबर, 2011 को न्यूयार्क में सुयंक्त राष्ट्र सेक्रेटरी जनरल द्वारा नाभिकीय सुरक्षा पर आयोजित एक उच्चस्तरीय बैठक में तथा अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी में नाभिकीय सुरक्षा मुद्दों पर आयोजित अन्य बैठकों में भारत ने अपने पक्ष प्रस्तुत किए। एसियान रीजनल फोरम की बैठक, कान्फ्रेन्स ऑन इन्टरेक्शन एंड कान्फिडेन्स बिल्डिंग मेजर्स इन एशिया तथा वकिग लेवल मीटिंग्स अंडर एसियान डिफेन्स मिनिस्टर प्लस प्रोसेस में वर्ष के दौरान भी भारत ने भागीदारी की तथा अपने पक्ष प्रस्तुत किए।


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