भारत-श्रीलंका सम्बन्ध India-Sri Lanka relations

श्रीलंका, भारत के दक्षिण में स्थित एक छोटा-सा द्वीपीय देश है। दोनों राष्ट्र सांस्कृतिक आधार पर वर्षों से घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं। सैन्य गुटों का विरोध, औपनिवेशिक स्वतंत्रता, निःशस्त्रीकरण एवं हिंद महासागर को शांतिपूर्ण रखने के प्रयास संबंधी मुद्दों पर दोनों देश समान विचार रखते हैं। इसके अतिरिक्त दोनों देशों के मध्य विवाद के क्षेत्र भी रहे। सबसे मुख्य विवादित मुद्दा तमिलों, जो कि भारतीय मूल के हैं एवं ब्रिटिश शासकों द्वारा बागवानी मजदूरों के रूप में श्रीलंका ले जाए गए थे, की नागरिक एवं समान अधिकार दिलाने से संबंधित हैं। पिछले दो वर्षों में भारत-श्रीलंका संबंध और अधिक घनिष्ठ हुए हैं। मई 2000 में विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने श्रीलंका की यात्रा की तथा श्रीलंका में स्थायी शांति की बहाली हेतु श्रीलंकाई शीर्ष नेताओं से बातचीत की। फरवरी 2001 में श्रीलंका की राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंग भारत की यात्रा पर आयीं और आपसी विश्वास व समझबूझ पर आधारित घनिष्ठ एवं मैत्रीपूर्ण संबंधों की प्राथमिकता को दोहराया। भारत द्वारा श्रीलंका को 100 मिलियन डॉलर का ऋण किस्तों के रूप में उपलब्ध कराया गया है। भारत-श्रीलंका के बीच मार्च 2000 से मुक्त व्यापार समझौता लागू किया गया तथा दोनों देशों के मछुआरों को पेश आ रही परेशानियों को सुलझाने हेतु कई कदम उठाये गये। भारत विपत्ति के समय सदैव श्रीलंका को सहायता प्रदान करता रहा है। भारत सरकार द्वारा श्रीलंका को कई ऋण प्रदान किये गये हैं। दिसम्बर 2004 में सुनामी आपदा के पश्चात् श्रीलंका सरकार के अनुरोध पर नौवहन जहाजों व हैलिकॉप्टरों में भारी मात्रा में राहत सामग्री भेजी गई।

लिट्टे, जो श्रीलंका सरकार के लिए पिछले तीन दशक से भी अधिक समय से सिरदर्द एवं चुनौती बना हुआ था, का सफाया करने में हाल में श्रीलंका सरकार को सफलता प्राप्त हुई है। इसके साथ ही श्रीलंका को अपनी सबसे बड़ी आंतरिक समस्या से निजात मिली। लेकिन अगर गौर से देखा जाए तो मूल समस्या अभी भी बनी हुई है। वस्तुतः लिट्टे का जन्म भारतीय तमिलों को समान नागरिकता एवं अधिकार दिलाने के उद्देश्य से हुआ था। अतः जब तक तमिलों का सम्मान सहित पुनर्वास एवं अधिकार स्थापित नहीं होते, तब तक लिट्टे के पतन के बाद भी हिंसा जारी रहेगी। अगर भारत की भूमिका के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो उसे अपनी नीति जारी रखनी होगी और यह सुनिश्चित करना होगा कि तमिलों को उनका सही स्थान एवं संवैधानिक अधिकार प्राप्त हों। इस संदर्भ में श्रीलंका के संविधान के 15वें संशोधन में जो वादे भारत से किए गए हैं उनका जल्द से जल्द कार्यान्वयन हो।इसकी सफल परिणति के लिए भारत को विश्व समुदाय का समर्थन भी हासिल करना होगा।

भारत ने श्रीलंका में संकट की स्थिति में बड़े पैमाने पर राहत सहायता एवं विस्थापितों के लिए फैमिली पैक और दवाएं भेजी। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2008 में भारत, श्रीलंका का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार रहा और उसके साथ द्विपक्षीय व्यापार 3.27 अरब अमरीकी डॉलर तक पहुंच गया है। भारत, श्रीलंका में दूसरा सबसे बड़े निवेशक के रूप में भी सामने आया है।

पिछले वर्षों में विभिन्न स्तरों पर द्विपक्षीय आदान प्रदान तथा श्रीलंका में आंतरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों के विकासात्मक सहयोग के लागू होने की सार्थक प्रगति से दोनों देशों के बीच दोस्ताना सम्बंधों को और मजबूत करने में मदद मिली है। वर्तमान में भारत-श्रीलंका सम्बंध मजबूत हैं तथा ऐतिहासिक लगाव तथा मजबूत आर्थिक एवं विकासात्मक भागीदारी के समूह विरासत जो कि पिछले वर्षों में बनी है, पर निर्मित होकर सार्थक ऊंचाई छूने को तत्पर हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *