भारत: हिमालय India: Himalayas

हिमालय पर्वत की उत्पत्ति एवं विकास

आज से करोड़ों वर्ष पूर्व पृथ्वी पर महाद्वीपों और महासागरों का विभाजन आज से सर्वथा भिन्न था। हिमालय पर्वत और उसके पूर्व में स्थित बर्मा के पर्वत तथा पश्चिम की ओर हिंदूकुश से लेकर यूरोप में फैली आल्पस व कारपेथियन पर्वत श्रेणियों तक एक विशाल महासागर लहराता था, जिसे टेथिस सागर कहा जाता है। इस सागर के दोनों तरफ महाद्वीपों का विस्तार था, जिसमें इसके उत्तर में स्थित महाद्वीप को अंगारा भूमि कहते थे और दक्षिण में स्थित महाद्वीप को गोण्डवाना भूमि कहते थे, जिसके अवशेष वर्तमान में दक्षिण अमरीका के पूर्वी भाग, अफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और प्रायद्वीपीय भारत में विद्यमान हैं।

विकास

हिमालय पर्वत एक नवीन वलित पर्वत है जो भारत की उत्तरी सीमा पर स्थित है। त्रिभुजाकार हिमालय उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व की दिशा में लगभग 2,400 किलोमीटर तक अविच्छिन्न रूप से व्याप्त है। इस पर्वत की चौड़ाई पश्चिम में 400 किमी. तथा पूरब में 160 किमी. है। असम के उत्तर पूर्व में हिमालय पर्वतमाला ब्रह्मपुत्र नदी को पार कर दक्षिण-पश्चिम की ओर मुड़ जाती है। ये हिमालय की पूर्व शाखाएं हैं। इन शाखाओं के अंतर्गत आने वाली पहाड़ियों के नाम उत्तर से दक्षिण की ओर यह हैं- परकाई, नागा और मिजो। असम में इनकी एक शाखा पूरब पश्चिम की ओर फैली है, जिनकी मुख्य पहाड़ियां हैं- गारो, खासी, जयंतिया और लुशाई।

वृहत् हिमालय या हिमाद्रि: इस भाग की औसत चौड़ाई 120 किमी. से 190 किमी. तथा औसत ऊंचाई 6000 मीटर है। इसे हिमाद्रि, वृहत् एवं आंतरिक हिमालय के नाम से भी जाना जाता है। इसका निर्माण लगभग 7 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ है। ये श्रृंखलाएं ग्रेनाइट, नीस, शिस्ट जैसी आर्कियन चट्टानों से संघटित हैं।

यह नंगा पर्वत से लेकर नामचा वब पर्वत तक एक पर्वतीय दीवार के रूप में फैला है। इसकी ऊंचाई पश्चिम में नंगा पर्वत के रूप में 8126 मीटर तथा पूर्व में नामचा वर्बा पर्वत के रूप में 7756 मीटर है।

मिलाम, गंगोत्री, जेमू आदि हिमनद महत्वपूर्ण हैं। यहां हिमनदियां कश्मीर में 2400 मीटर की ऊंचाई तक तथा मध्य एवं पूर्वी भाग में 4000 मीटर की ऊंचाई तक पाई जाती हैं। सामान्यतः 500 मीटर से अधिक ऊंचाई पर हिमरेखा पायी जाती है। पूर्वी भाग की तुलना में पश्चिमी भाग में हिमरेखा की ऊंचाई अधिक पायी जाती है।


इन श्रृंखलाओं में विश्व के सर्वाधिक ऊंचे पर्वत शिखर मौजूद हैं जिनमें माउंट एवरेस्ट, मकालू, धौलागिरि, मानस्लू इत्यादि हैं। इस पर्वत श्रेणी में अनेक दर्रे मिलते हैं। कश्मीर में बुर्जिल व जोजीला, हिमाचल प्रदेश में शिपकी ला व बड़ा लाप्चा ला, उत्तराखंड में थाग ला, नीति और लिपुलेख तथा सिक्किम में नाथू ला व जेलेपा ला दर्रे महत्वपूर्ण हैं। नंगा पर्वत के निकट सिंधु नदी भारत की सबसे गहरी विशाल एवं संकीर्ण द्रोणी बनाती है।

बाह्य हिमालय या शिवालिक: यह हिमालय की सबसे बाहरी दक्षिण श्रेणी है। इसे उप-हिमालय भी कहते हैं। बाह्य हिमालय अर्थात् शिवालिक श्रेणी की औसत चौड़ाई 15-50 किमी. तथा औसत ऊंचाई 600-1500 मी. है। ये श्रेणियां मुख्यतः नदी निक्षेपों-मृत्तिका, बालू, स्लेट, कंकड़ इत्यादि से बनी हैं। इस भाग को निकृष्ट अपवाह तंत्र (तराई क्षेत्र) के लिए जाना जाता है। शिवालिक व मध्य हिमालय के बीच अनेक घाटियां पायी जाती हैं। इनको पश्चिम व मध्य भाग में दून और पूर्व में दुआर कहते हैं। कोटली व ऊधमपुर (जम्मू), देहरादून चौखंभा, कोठरी, दून व पतली दून (उत्तराखंड) इस भाग की प्रमुख घाटियां हैं।

लघु या मध्य हिमालय: वृहत् हिमालय के दक्षिण में लगभग उसके समानांतर पूर्व-पश्चिम दिशा में लघु हिमालय फैला हुआ है। इसकी ऊंचाई औसत 1000 मीटर से लेकर 4,500 मीटर तक है और चौड़ाई औसत 60 से लेकर 80 किलोमीटर तक है। इनकी प्रमुख श्रेणियां हैं- कश्मीर की पीर पंजाल श्रेणी और जम्मू कश्मीर तथा हिमालय प्रदेश में विस्तृत धौलाधार श्रेणी। वृहत् हिमालय और लघु हिमालय के बीच बहुत बड़ी घाटी फैली हुई है, जिससे कश्मीर घाटी और नेपाल की काठमांडू घाटी प्रसिद्ध है। लघु हिमालय के दक्षिणी ढलानों पर ही भारत के कई स्वास्थ्यवर्द्धक स्थान शिमला, मंसूरी, नैनीताल, दार्जिलिंग अवस्थित है। इन पर्वत श्रेणियों के ढाल पर पाए जाने वाले छोटे-छोटे घास के मैदानों को कश्मीर में मर्ग (जैसे-गुलमर्ग, सोनमर्ग) एवं उत्तराखण्ड में बुग्याल एवं पयार कहते हैं।

ट्रांस तथा तिब्बत हिमालय: यह महान हिमालय के उत्तर में स्थित है। यह श्रेणी मध्य भाग में 225 किमी. चौड़ी और पूर्वी-पश्चिमी किनारे पर इसकी चौड़ाई 40 किमी. है। महान हिमालय के उत्तर व उसके समानांतर जास्कर श्रेणी पायी जाती है। इसकी औसत ऊंचाई 6000 मीटर है। इस क्षेत्र में काराकोरम, लद्दाख, कैलाश, हिन्दुकुश, कुनलुन, हिंदुराज, तिएनसान, पामीर, अलाई तथा पार-अलाई श्रेणियां शामिल हैं। गशेरब्रम I व II, ब्रॉड पीक, नंगा पर्वत, माउंटेन K-2 (गॉडविन ऑस्टिन), राकापोशी तथा हारामोश महत्वपूर्ण पर्वत शिखर हैं। इसी भाग में सियाचिन, हिस्पर एवं बतुरा, बल्तेरो तथा बियाफो जैसे दुनिया के सबसे बड़े हिमनद पाए जाते हैं।

ये श्रृंखलाएं पठारों एवं घाटियों के साथ-साथ फैली हुई हैं। ये पठार प्राचीन काल की अपरदित सतह को चिहित करते हैं, जैसे-अक्साईचिन, दिओसाई, देपसांग, लिंगजीतांग, आदि, जो पूर्व क्रिटैशियस युग के उच्च-तरंगित मैदान हैं। घाटियों की उत्पत्ति विवर्तनिक घटनाओं के परिणामस्वरूप हुई है, जो हिमालय के प्रोत्थान से संबंधित हैं, जैसे-दून घाटियां। दून घाटियां मूलतः अस्थायी झीलें हैं, जो हिमालय के प्रोत्थान के दौरान नदी जल प्रवाह में आये अवरोधों के परिणामस्वरूप निर्मित हुई थीं। नदियों द्वारा अपना प्रवाह मार्ग बदल देने के साथ ही ये झीलें सूख गयीं। नदियों द्वारा छोड़े गये कंकड़ पत्थरों एवं मलबे से ये झीलें धीरे-धीरे समतल घाटियों में बदल गयीं।

हिमालय का प्रादेशिक विभाजन

हिमालय की विशाल पर्वतमालाओं को प्रादेशिक आधार पर चार भागों में विभाजित किया जाता है:

पंजाब हिमालय: सिंधु नदी और सतलज नदी के मध्य विस्तृत भाग 560 किमी. की दूरी तक फैला है। इस विस्तृत भाग को पंजाब हिमालय के नाम से जाना जाता है। इसका अधिकांश भाग हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में अवस्थित है, इसलिए इसे प्रायः हिमाचल हिमालय या कश्मीर हिमालय भी कहते हैं। इनकी पर्वत श्रेणियों में प्रमुख हैं- पीर पंजाल, लद्दाख, काराकोरम, धौलाधार और जॉस्कर। यहां पर जोजीला दर्रा भी स्थित है, जिसकी ऊंचाई 3,444 मीटर है। पंजाब हिमालय में स्थित घाटियां हैं-कांगड़ा, लाहुल और स्पीति। इसके अन्य दर्रे हैं- बनिहाल, बड़ालाप्चा, रोहतांग और बुर्जिल। हिमालय के इस भाग में ऊंचाई पूरब से पश्चिम की ओर कम होती जाती है।

कुमाऊं हिमालय: सतलज और काली नदी के मध्य 320 किमी. की दूरी तक विस्तृत हिमालय को कुमाऊं हिमालय कहते हैं। यह उत्तराखण्ड राज्य में फैला हुआ है। इसका पश्चिमी हैं-बद्रीनाथ और केदारनाथ। इसके अलावा त्रिशूल, माना, गंगोत्री, नंदा देवी, कामेत आदि अन्य चोटियाँ है। यमुना नदी और भागीरथी नदी का उद्गम स्थल यहीं है। नंदा देवी कुमाऊं हिमालय का सर्वोच्च शिखर है।

नेपाल हिमालय: काली नदी और तीस्ता नदी के मध्य लगभग 800 किमी. की दूरी तक फैले इस हिमालय को नेपाल हिमालय कहते हैं, क्योंकि इसका अधिकांश भाग नेपाल में है। इसे सिक्किम, दार्जिलिंग और भूटान के हिमालय का नाम भी दिया जाता है। नेपाल हिमालय के अंतर्गत सबसे महत्वपूर्ण चोटियां पाई जाती हैं। ये चोटियां हैं- एवरेस्ट, कंचनजंगा, मकालू, धौलागिरि तथा अन्नपूर्णा। हिमालय का यह सबसे ऊंचा भाग है और यहीं सबसे ऊंची चोटियां पाई जाती हैं। यहां की प्रमुख घाटी काठमांडू घाटी है। ऊंचे भाग में कटाव के कारण वनस्पति का सर्वथा आभाव है, जबकि नीचे के भागों में देवदार, स्प्रूस, चीड़, आदि कोणधारी वन मिलते हैं।

असम हिमालय: तीस्ता नदी और दिहांग (ब्रह्मपुत्र नदी) के बीच 720 किलोमीटर लम्बे भाग को असम हिमालय के नाम से जाना जाता है। यह श्रेणी नेपाल हिमालय की अपेक्षा नीचे स्थित है और सिक्किम, असम व अरुणाचल प्रदेश तथा भूटान देश में व्याप्त है। इस श्रेणी का ढाल और मैदान की ओर बहुत तीव्र है, किन्तु यह तीव्रता पूरब से पश्चिम को ओर कम होती जाती है। असम हिमालय की मुख्य चोटियाँ हैं- कुला, कांगड़ी, चुमलहारी, कोबस, जांग सांगला, पैहुनी और नामचा बरवा। इनकी पहाड़ियों में प्रमुख हैं- नागा, मिजो, मणिपुर, खासी, मिकिर आदि। इस भाग की प्रमुख नदियां दिवांग, लोहित तथा ब्रह्मपुत्र हैं। ये पर्वत मैदान से एक दम ऊपर उठे हुए हैं।

पूर्वांचल की पहाड़ियां: हिमालय में हिमालय के अलावा उत्तर-पूर्वी पर्वत भी शामिल हैं। इसको हम पूर्वाचल के नाम से भी जानते हैं। ये पर्वत श्रेणियां भारत-बर्मा सीमा पर उत्तर से दक्षिण की ओर फैली हुई हैं। इसके अंतर्गत पूर्वी अरुणाचल की मिशमी एवं पटकोई, नागा पहाड़ियां, मणिपुर पहाड़ियां, कछार पहाड़ियां, मिजो पहाड़ियां, त्रिपुरा पहाड़ियां शामिल हैं। डाफाबाम (4578 मीटर) मिशमी पहाड़ियों की सबसे ऊंची चोटी है। सारामती (3926 मी.) नागा पहाड़ियों की सबसे ऊँची छोटी है। इन पहाड़ी श्रृंखलाओं का निर्माण भी हिमालय के निर्माण के दौरान ही हुआ है।

हिमालय श्रेणियों में महत्वपूर्ण दर्रे

पश्चिमी हिमालय की कम ऊँची किन्तु अत्यधिक अपखंडित श्रेणियों में अनेक ऐतिहासिक दर्रे हैं जिनके द्वारा विदेशी आक्रांताओं ने प्राचीन काल में भारत में प्रवेश किया था। खैबर दर्रा पाकिस्तान में स्थित है तथा पेशावर को काबुल से जोड़ता है। यह व्यापारिक तथा सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा है। यह दर्रा 30 मील लंबा है और इसका सबसे संकरा भाग केवल 10 फुट चौड़ा है।

हिमालय के दर्रे भारत व् मध्य एशिया के बीच व्यापारिक, सामाजिक एवं राजनितिक अवरोध रहे हैं।

बनिहाल दर्रा: यह जम्मू-कश्मीर राज्य के दक्षिण-पश्चिम में पीर-पंजाल पर्वत श्रेणियों में स्थित हैं। इसकी ऊंचाई 2832 मीटर है। जम्मू-श्रीनगर सड़क जवाहर सुरंग से होते हुए इस दर्रे में प्रवेश करती है।

बड़ालाचा दर्रा: यह हिमाचल प्रदेश में जास्कर श्रेणियों के मध्य स्थित है। इसकी ऊंचाई 5000 मीटर है। मनाली से लेह जाने के राष्ट्रीय राजमार्ग को इसी दर्रे से गुजरना पड़ता है।

बोम्डिला दर्रा: यह अरुणाचल प्रदेश के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित है। बोम्डिला से तवांग होकर तिब्बत जाने का मार्ग है।

बुर्जिल दर्रा: यह हिमाचल प्रदेश में स्थित है। इसकी ऊंचाई 5000 मीटर है। इस दर्रे के द्वारा हिमाचल प्रदेश और लद्दाख के मध्य सम्पर्क क्षेत्र स्थापित होता है।

कराकोरम दर्रा: यह दर्रा जम्मू-कश्मीर राज्य के लद्दाख क्षेत्र में काराकोरम श्रेणियों के मध्य स्थित है। यह 5654 मीटर ऊंचा है। यहां से चीन जाने के लिए एक सड़क भी बनाई गई है। प्राचीन काल में इस दर्रे से यारकंद भी जाते थे।

जोजिला दर्रा: यह दर्रा जम्मू-कश्मीर राज्य की जास्कर श्रेणी में स्थित है। इसकी ऊंचाई 3529 मीटर है, जो कि जम्मू-कश्मीर को श्रीनगर के साथ कारगिल और लेह से जोड़ता है। श्रीनगर-जोजिला मार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित किया जा चुका है (एनएच 1D)।

माना दर्रा: यह उत्तरांचल की कुमायूं श्रेणियों में स्थित है। इस दर्रे से होकर भारतीय तीर्थ यात्री मानसरोवर झील और कैलाश घाटी के दर्शन के लिए जाते हैं।

नीति दर्रा: यह दर्रा भी उत्तराखंड के कुमायूं में स्थित है। यह 5389 मीटर ऊंचा है। यहां से भी मानसरोवर झील और कैलाश घाटी जाने का मार्ग खुलता है।

नाथू ला दर्रा: यह दर्रा भारत-चीन सीमा पर सिक्किम में स्थित है और प्राचीन चीन-रोम मार्ग की उपशाखा का भाग है। यह भारत-चीन युद्ध में अपने सामरिक महत्व के कारण अधिक चर्चित रहा था। यहां से दार्जिलिंग और चुंबी घाटी होकर तिब्बत जाने का मार्ग है। भारत और चीन के बीच 1962 में हुए युद्ध के बाद इसे बंद कर दिया गया था। अब इसे 5 जुलाई, 2006 से व्यापार के लिए खोल दिया गया है।

पांगसन दर्रा: यह दर्रा अरुणाचल प्रदेश और म्यांमार को आपस में जोड़ता है।

रोहतांग दर्रा: यह दर्रा हिमाचल प्रदेश में कुल्लू को लाहुल और स्पीति के साथ जोड़ता है, जोकि पीर-पंजाल श्रेणियों में स्थित है। इसकी ऊंचाई 4631 मीटर है।

शिपकी दर्रा: यह दर्रा हिमाचल प्रदेश की जास्कर श्रेणी में स्थित है। इस दर्रे से होकर शिमला से तिब्बत जाने का मार्ग है।

जेलेप ला दर्रा: यह दर्रा सिक्किम राज्य में स्थित है। भूटान जाने वाला मार्ग इसी दर्रे से गुजरता है। यहां से दार्जिलिंग और चुंबी घाटी होकर तिब्बत जाने का मार्ग है।

बाल घाट: यह प्रमुख दर्रा महाराष्ट्र राज्य में पश्चिमी घाट की श्रेणियों में स्थित है। इसकी ऊंचाई 583 मीटर है। यहां से होकर दिल्ली-मुंबई के प्रमुख सड़क व रेलमार्ग गुजरते हैं।

पालघाट: यह दर्रा केरल राज्य के मध्य-पूर्व में नीलगिरि की पहाड़ियों में स्थित है। इसकी ऊंचाई 305 मीटर है। कालीकट-त्रिचूर से कोयम्बटूर-इंडोर के रेल व सड़क मार्ग इसी दर्रे से गुजरते हैं।

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