भारत और विश्व व्यापार संगठन India And The World Trade Organization

गैट की स्थापना के बाद बहुराष्ट्रीय व्यापार प्रणाली के विकास के फलस्वरूप 1 जनवरी, 1995 को विश्वव्यापार संगठन की स्थापना हुई। 15 अप्रैल, 1994 को 123 देशों के वाणिज्य मत्रियों ने मराकेश में उरुग्वे दौर में ऑतम अधिनियम पर अपने हस्ताक्षर किए थे। विश्व व्यापार संगठन एक स्थायी संगठन है तथा इसकी स्थापना सदस्य राष्ट्रों की संसदों द्वारा अनुमोदित एक अंतरराष्ट्रीय संधि के आधार पर हुई है।

1947 में विचार-विमर्श करके, गैट 1 जनवरी, 1948 को एक अंतरिम व्यवस्था के रूप में अस्तित्व में आया। मूलतः इसमें 23 हस्ताक्षरकर्ता थे जो उस समय अंतरराष्ट्रीय व्यापार संगठन के लिए विस्तृत दिशा-निर्देशों संबंधी स्थापित प्रोपेटरी समिति के सदस्य थे, हालांकि, जो कभी अस्तित्व में नहीं आया। गैट के अधीन व्यवस्था थी कि सभी सदस्य समय-समय पर आपस में मिलकर बहुपक्षीय व्यापार समझौतों द्वारा अंतरराष्ट्रीय व्यापार में आने वाली रुकावटों को कम करने की चेष्टा करें तथा आयात प्रशुल्कों व मात्रात्मक प्रतिबंधों को कम करें। सदस्यों की इन बैठकों को दौर (rounds) की संज्ञा दी जाती थी। गैट के तत्वावधान में कुल आठ दौर हुए। इन सभी दौर में कई व्यापारिक प्रतिबंधों को समाप्त किया गया, कई वस्तुओं के व्यापार को सरल बनाया गया, तथा कई मात्रात्मक प्रतिबंध हटाए गए। सबसे लंबा और कठिन दौर आठवां दौर था जो आठ वर्ष तक चलता रहा। इस दौर में विकसित और विकासशील देशों के मध्य कई मुद्दों पर बहुत अंतर रहे और काफी विवाद चलते रहे।

दिसम्बर 1993 में, डि फेक्टो के आधार पर गैट नियमों को 111 हस्ताक्षरित दलों और 22 अन्य देशों ने लागू किया। 15 अप्रैल 1994 को मराकेश (मोरक्को) में 123 देशों के वाणिज्य मंत्रियों द्वारा हस्ताक्षर किए गए थे। उरुग्वे दौर की वार्ताओं में डंकल प्रस्तावों के अंतर्गत निम्नलिखित क्षेत्रों में समझौते हुए। वे हैं: कृषि, बाजार पहुंच, व्यापार संबंधी बौद्धिक संपदा अधिकार, माल, सेवाओं, व्यापार संबंधी निवेश उपाय, बहुतंतु समझौता और विवाद निपटारण निकाय। बाद में 1 जनवरी, 1995 को विश्व व्यापार संगठन अस्तित्व में आया।

औपचारिक रूप से गैट 1995 के अंत में भंग कर दिया गया। मराकेश समझौते में गैट के संपर्क दलों को दिसम्बर 1996 तक नए संगठन में मूल सदस्यों के रूप में शामिल होने की अनुमति दी। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यू.टी.ओ.) लगभग 30 समझौतों के प्रशासन के लिए अस्तित्व में आया, (इसमें कृषि से कपड़े तक, और सेवाओं से बौद्धिक संपदा तक के विस्तृत किस्म के मामले आते हैं) यह गैट के उरुग्वे दौर के अंतिम अधिनियम में शामिल हैं। यह सदस्यों के बीच व्यापार मतभेदों को सुलझाने की व्यवस्था प्रदान करता है, और यदि आवश्यक हुआ, तो इन विवादों पर अधिनिर्णय भी देता है; और टैरिफ को कम करने या खत्म करने और अन्य व्यापार संबंधी बाधाओं पर बातचीत जारी रखने का मंच प्रदान करता है। इसका मुख्यालय जेनेवा, स्विट्जरलैंड में है।

हालांकि गैट केवल संधि थी, विश्व व्यापार संगठन एक निर्णायक अंतरराष्ट्रीय संगठन है।

1 दिसम्बर, 2004 को उरुग्वे संधि के सभी प्रावधान वैश्विक कानून का हिस्सा बन गये।

संगठन के सभी सदस्यों ने सभी बहुपक्षीय समझौतों (एकल उपक्रम) के लिए सदस्यता ले ली, हालांकि, टोकियो दौरे में चार समझौतों पर बातचीत की गई और इन्हें बहुपक्षीय समझौते के तौर पर जाना गया। ये केवल इन्हें स्वीकार करने वाले देशों पर बाध्य थे। ये समझौते नागरिक विमान, सरकारी प्राप्ति, डेयरी उत्पाद और पशुओं के मांस संबंधी विषयों से संबंधित थे।


विश्व व्यापार संगठन की चौथी मंत्रिस्तरीय बैठक 14 नवम्बर, 2001 को दोहा (कतर) में संपन्न हुई। इस बैठक में एक व्यापक कार्य योजना स्वीकार की जिसे दोहा विकास एजेंडा कहा गया। इसके जरिए कुछ मुद्दों पर वार्ताएं शुरू की गई और कृषि तथा सेवाओं पर कुछ अतिरिक्त मापदण्ड और समय सीमाएं तय की गई। डब्ल्यूटीओ फैसलों के अनुरूप ये 1 जनवरी, 2000 से लागू हो गए। दोहा की इस बैठक में ट्रिप्स समझौता, सार्वजनिक स्वास्थ्य और कार्यान्वयन संबंधी मुद्दों और चिंताओं पर एक घोषणा भी जारी की।

1 अगस्त, 2004 को, डब्ल्यूटीओ जेनेवा में कृषि एवं अन्य मुद्दों में व्यापार पर आगे बातचीत या समझौता करने के लिए एक संशोधित फ्रेमवर्क पर सहमत हुआ, जिसे इसकी जनरल कॉसिल द्वारा तैयार किया गया था।

यह निर्णय किया गया कि 2004 के अंत के आगे भी समग्र रूप में दोहा समझौता जारी रहेगा और इसके लिए कोई अंतिम तिथि तय नहीं की गई।

विश्व व्यापार संगठन का 6ठा मंत्रिस्तरीय सम्मेलन दिसम्बर 2005 में हांगकांग में सम्पन्न हुआ। हांगकांग दस्तावेज में, मुख्य रूप से कृषि सब्सिडी, निर्यात औद्योगिक प्रशुल्कों में कमी करना तथा सेवाओं में कुछ संशोधित प्रस्ताव करने जैसे प्रमुख मुद्दे शामिल थे, जिसे 2006 में पूरा करने का संकल्प लिया गया था।

29 जून से 2 जुलाई, 2006 तक जिनेवा में चली विश्व व्यापार संगठन की चार दिवसीय मत्रिस्तरीय बैठक बिना किसी परिणाम के समाप्त हो गई।

विश्व व्यापार संगठन और भारत के मध्य नकारात्मक-सकारात्मक पक्ष

विश्व व्यापार संगठन की स्थापना से विकासशील राष्ट्रों व विकसित राष्ट्रों के आर्थिक हितों की पुनर्परिभाषा हुई है एवं एक नवीन आर्थिक विश्व व्यवस्था की नींव रखी गयी है। संगठन में शामिल होने या न होने के मुद्दे के संदर्भ में विकासशील राष्ट्रों में तीव्र विचार-विमर्श की स्थिति देखने को मिली।

भारत विश्व व्यापार संगठन के संस्थापक सदस्यों में से है। भारतीय अर्थव्यवस्था के अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था से समेकन के अनेक सकारात्मक एवं नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं।

विश्व व्यापार संगठन की स्थापना एवं नवीन व्यवस्था के प्रभावी होने पर विश्व आय में $ 213-274 बिलियन प्रतिवर्ष की वृद्धि होने का अनुमान व्यक्त किया गया है। गैटद्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार व्यापार में सर्वाधिक वृद्धि वस्त्र, वन व मत्स्य उत्पादों, और खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में होने की संभावना प्रकट की गई है। गैट द्वारा घोषित उच्च वृद्धि दर क्षेत्रों में भारत की स्थिति सापेक्षतया लाभ की है जिससे उसे भविष्य में व्यापार वृद्धि का लाभ अवश्य प्राप्त होगा।

विश्व की आय व व्यापार में वृद्धि के आंकड़ों को अविश्वसनीय आधारों एवं अनिश्चितताओं को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। गैट ने किसी पूर्वी-एशियाई मुद्रा संकट का प्रावधान नहीं किया था।

यह कहना अनुचित नहीं होगा कि भारत की सफलताओं की अपनी सीमाएं हैं व अवसरों का लाभ उठाने के लिए नियोजित प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। ट्रिप्स, ट्रिम्स व सेवाओं के व्यापार से संबंधी प्रस्ताव भारत के हितों के सर्वाधिक विरुद्ध हैं। जिन पर विस्तार से चर्चा आवश्यक हो जाती है।

बातचीत की मौजूदा स्थिति और भारत का रुख

डब्ल्यूटीओ के सदस्यों में व्यापक मतभेद के कारण (विशेष रूप से कृषि को घरेलू समर्थन के मुद्दे को लेकर तथा औद्योगिक वस्तुओं के लिए बाजारों को खोलने के मुद्दे को लेकर) जुलाई 2006 में बातचीत स्थगित करने के बाद, 16 नवम्बर, 2006 को एक बार फिर से वार्ताओं को दोबारा प्रारंभ करने के प्रति नरमी आई। इसके बाद 7 फरवरी, 2007 को वार्ताओं को पूरी तरह दोबारा शुरू किया गया इस संकल्प के साथ कि समझौता-वार्ता का स्वरूप बना रहे, सभी को शामिल रखा जाए तथा जो प्रगति की जा चुकी है उसे बनाए रखा जाए तथा ऐसा परिणाम प्राप्त हो जो संतुलित, महत्वाकांक्षी तथा विकास-अनकूल हो।

6 दिसंबर, 2008 को डब्ल्यूटीओ ने कृषि और गैर-कृषि वार्ता से संबंधित दो संशोधित प्रस्ताव जारी किए। परंतु इन संशोधित प्रस्तावों पर विचार विमर्श केवल सितंबर 2009 में ही शुरू हो सका। अंशतः अमेरिका एवं भारत में राष्ट्रीय चुनावों के कारण तथा अंशतः जिनेवा में सामान्य गतिरोध एवं मतभेदों को कम करने के प्रति गंभीरतापूर्वक प्रयास करने की अनिच्छा के कारण।

विश्व व्यापार संगठन की नौवीं मत्रिस्तरीय बैठक: इस बैठक का आयोजन 3-6 दिसंबर, 2013 को इंडोनेशिया के बाली में संपन्न हुआ। इस बैठक में डब्ल्यूटीओ के सभी 159 सदस्य देश शामिल हुए। डब्ल्यूटीओ के सभी सदस्य देशों ने व्यापार सुविधा, कृषि, कपास एवं विकास मुद्दों पर 10 दस्तावेजों के बाली पैकेज को अपनाया। बाली सम्मेलन सफलता के लिहाज से सवाधिक सफल सम्मेलन रहा। इस नौवें मत्रिस्तरीय सम्मेलन में 6 दिसंबर, 2013 को विभिन्न देशों को खाद्य पदार्थों पर सब्सिडी बिना किसी दंडात्मक कार्रवाई के उपलब्ध कराने की अनुमति प्रदान की। भारत इसके लिए लम्बे समय से प्रयासरत था। भारत के कठोर रुख को देखते हुए विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देशों ने बाली पैकेज की घोषणा की।

इस प्रस्ताव के अंतर्गत भारत सहित तमाम देश न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों से अनाजों की खरीद कर सकेंगे साथ ही इसे गरीबों को सब्सिडी पर उपलब्ध करा सकेंगे। विश्व व्यापार संगठन ने खाद्य भण्डारण को भी मंजूरी दी है। इससे किसानों और गरीबों के हितों की रक्षा होगी।

बाली उद्घोषणा के भारत एवं अन्य विकासशील देशों के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ हैं। खाद्य सुरक्षा एवं व्यापार सुगमता दो मुख्य मुद्दे थे जिस पर सहमति बनी। खाद्य सुरक्षा भारत एवं अन्य विकासशील देशों की चिंताओं से सम्बद्ध था जिसमें निर्धनों को सब्सिडी पर खाद्यान्न उपलब्ध कराने की आवश्यकता बताई गई जबकि व्यापार सुगमता विकसित एवं विकासशील दोनों ही देशों के लिए महत्वपूर्ण था।

कृषि पर केंद्रीय विचार-विमर्श का मुद्दा खाद्य भंडार के आकलन की कीमत को लेकर था। भारत चाहता था कि कीमतें चालू आधार पर हीं लेकिन अमेरिका एवं अन्य देश इससे सहमत नहीं थे। अन्य कारणों में यह कहा गया कि यह उरुग्वे दौर के समझौतों को संशोधित करने की बात करता है। अमेरिका का चार वर्षों के लिए सनसेट क्लॉज का सुझाव भारत को स्वीकार्य नहीं था। कुल मिलाकर इन मुद्दों को इस बैठक में सुलझा लिया गया।

भुगतान संतुलन एव व्यापार संतुलन

अंतरराष्ट्रीय व्यापार में किसी देश के भुगतान संतुलन से तात्पर्य सुनिश्चित अवधि (सामान्यतः 1 वर्ष) में शेष विश्व के साथ उसके मौद्रिक सौदों का लेखा होता है।

अंतरराष्ट्रीय व्यापार के अंतर्गत वस्तु, सेवाओं व पूंजी का आयात-निर्यात सम्मिलित होता है।

भुगतान संतुलन लेखे के दो भाग होते हैं- चालूलेखा एवं पूंजीगतलेखा। चालूलेखे के अंतर्गत दृश्य व अदृश्य आयात-निर्यात से संबंधित भुगतान एवं प्राप्तियों को शामिल किया जाता है। दृश्य आयात-निर्यात के अंतर्गत मुख्यतः वस्तुएं आती हैं। अदृश्य आयात-निर्यात के अंतर्गत बैंकों, जहाजी व बीमा कंपनियों, विशेषज्ञों की सेवाओं, विदेशी ऋणों पर व्याज, उपहार के अंतर्गत संबंधित देश को प्रदान कराई गई सेवाओं व संबंधित देश द्वारा शेष विश्व को प्रदान की गई सेवाओं के भुगतान व प्राप्तियों को सम्मिलित किया जाता है। चालू लेखे पर भुगतान संतुलन ज्ञात करने के लिए वस्तु व सेवाओं के निर्यात में निवेश आय एवं विदेशों से विशुद्ध हस्तांतरण का योग किया जाता है और इसमें से वस्तु व सेवाओं के आयात एवं ऋण सेवा भुगतानों को घटाया जाता है। पूंजी खाते पर भुगतान संतुलन ज्ञात करने के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश एवं विशुद्ध विदेशी ऋण का योग कर इसमें से घरेलू बैंकिंग व्यवस्था की विदेशी परिसंपत्तियों में वृद्धि एवं घरेलू बाह्य प्रवाह (राष्ट्र द्वारा शेष विश्व में निवेश) को घटाने पर प्राप्त होता है। संबंधित राष्ट्र के विदेशी विनिमय भंडार में कमी या बढ़ोतरी चालू लेखे एवं पूंजी लेखे में घाटे व अधिशेष की स्थितियों से निर्धारित होती है। यदि चालू एवं पूंजी लेखे के योग के उपरांत घाटे की स्थिति सामने आती है तो विदेशी विनिमय भंडारों में कमी होगी अन्यथा वृद्धि होगी।

चालू खाता: भुगतान संतुलन में चालू खाता, पूंजी खाता, भूल-चूक और विदेशी मुद्रा प्रारक्षित निधियों में परिवर्तन शामिल है। भुगतान संतुलन (बीओपी) के चालू लेखे के तहत् लेन-देनों को पण्य (निर्यात तथा आयात) और अदृश्य लेखों में वर्गीकृत किया जाता है। अदृश्य लेखों को पुनः तीन वर्गों में बांटा जाता है, अर्थात् (क) सेवाएं-यातायात, परिवहन, बीमा,अन्यत्र असम्मिलित सरकार (जीएनआईई), तया विविध जिसमें बाद में संचार, निर्माण, वित्तीय, सॉफ्टवेयर, समाचार एजेंसी, रॉयल्टी, प्रबन्ध तथा कारोबारी सेवाओं को शामिल किया गया है, (ख) आय और (ग) अन्तरण (अनुदान, उपहार, विप्रेषण आदि) जिनका कोई मुआवजा नहीं है।

पूंजी खाता: पूंजी लेखे के तहत्, पूंजी अन्तर्ग्रवाह को लिखत (ऋण अथवा इक्विटी) और परिपक्वता (अल्प अथवा दीर्घावधि) द्वारा वर्गीकृत किया जा सकता है। पूंजी लेखे के मुख्य संघटकों में विदेशी निवेश,ऋण तथा बैंकिंग पूंजी शामिल है। विदेशी निवेश में विदेशी प्रत्यक्ष और (एफडीआई) तथा पोर्टफोलियो निवेश में विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) निवेश एवं अमरीकी निक्षेपागार रसीद वैश्विक निक्षेपागार रसीद (एडीआरजीडीआर) ऋण भिन्न देयताओं को संकलित करता है, जबकि ऋण (विदेशी सहायता, विदेशी वाणिज्यिक उधार तथा व्यापार ऋण) तथा अप्रवासी भारतीय जमा राशियों सहित बैंकिंग पूंजी ऋण देयताएं हैं।

अदृश्य लेखे: अदृश्य भुगतान संतुलन (बीओपी) लेखा सेवाओं में अन्तरराष्ट्रीय व्यापार, अनिवासी परिसम्पतियों से सम्बद्ध आय तथा देयताएं, श्रम, सम्पति, सीमा पार अन्तरण जिसमें मुख्यतः कामगार विप्रेषण शामिल है, से सम्बन्धित लेन-देन का संयुक्त प्रभाव परिलक्षित होता है।

चालू खता घाटा: चालू खाता संतुलन और निवेश और अन्य पूंजीगत प्रवाह संतुलनकारी मदों (कमियों और अपकृत्यों) के साथ मिलकर दिखाते हैं कि क्या देश में समग्र अधिशेष अर्जित किया है या घाटा। इसके अनुरूप, यदि भुगातन संतुलन अधिशेष की स्थिति में है, तो देश अपने विदेशी आरक्षित कोष में इजाफा कर सकता है, यदि आवश्यक हुआ तो अपने उधारों का पुनर्भुगतान कर सकता है; यदि यह घाटे की स्थिति में है तो इसे विदेशी आरक्षित कोष द्वारा या ऋण लेकर पूरा किया जाता है।

भुगतान संतुलन संबंधी चुनौतियां: प्रथम, कई उन्नत देशों में उच्च राजकोषीय और लोक ऋण के साथ परिधीय यूरो-जोन देशों में अनवरत संप्रभु ऋण जोखिम और इस बात का डर कि यह वितीय क्षेत्र तक फैल सकता था, वैश्विक सुधार के लिए एक जोखिम है। संकट के शुरुआत में ही, पूंजीप्रवाहों के विपर्यय और निर्यातों में गिरावटों के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था में गिरावट आ सकती है।

द्वितीय, नाजुक वैश्विक सुधार और जोरदार घरेलू वृद्धि से उच्च व्यापार और चालू लेखा घाटा हुआ, जो कुछ चिंता का विषय है। यह समस्या अन्तरराष्ट्रीय तेल कीमतों में बढ़ोतरी से आगे और बढ सकती है।

तृतीय, पूंजी प्रवाहों के आवधिक बहाव से संपत्ति मूल्यों, मुद्रा अधिमूल्यन और मुद्रास्फीति में तेजी के साथ अर्थव्यवस्था में अवशोषण क्षमता की समस्या हो सकती है। पूंजी प्रवाहों में ऐसी बढ़ोतरी का प्रबन्धन करना चुनौतीपूर्ण है।

चतुर्थ, विदेशी प्रत्यक्ष निवेश अन्तर्वाह जो स्थिर और उत्पादक रूप में हैं, पूंजी अन्तप्रवाहों की बड़ी मात्रा विदेशी संस्थागत निवेश के रूप में है जो स्वरूप में अस्थिर है। पूंजी के अन्य रूपों की तुलना में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए कदम उठाने होंगे।

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