विज्ञान से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य Important Facts Related to Science

  • एडवांस भरी जल रिएक्टरों (Advanced Heavy Water Reactor AHWR) में कूल्ड सोडियम प्रयोग किया जाता है।
  • बार्क (BARC) ने एरियल गामा स्पेक्ट्रोमेट्रिक सर्वे (Aerial Gamma Spectrometric Survey) जोधपुर में सफलतापूर्वक संपन्न किया।
  • मेघालय के सैन्डस्टोन प्रमुख क्षेत्रों में एकेन्थेसी कुल के झाड़ी पादप स्ट्रोबिलेन्थस (Strobilanthes ofAcanthaceae family) की यूरेनिफेरस सैंडस्टोन (Uraniferous Sandstone) के संसूचक (Indicator) के रूप में पहचान की गई।
  • बार्क (BARC) ने लेजर एन्हैंस्ड आयोनाइजेशन स्पेक्ट्रोमीटर (Laser Enhanced Ionization Spectrometer-LEIS) विकसित किया है, जो ज्वाला (Flame) में एटॉमिक एवं मॉलिक्यूलर स्पीशीज (Atomic and molecular species) का अध्ययन करेगा।
  • कैट (CAT) इन्दौर द्वारा विकसित नाइट्रोजन लेजर जले हुए जख्मों (Burn wounds) की चिकित्सा में प्रयोग किया जाता है।
  • जल का त्रिक् बिन्दु वह ताप है जिस पर बर्फ, जल तथा जलवाष्प तीनों ही तापीय संतुलन (thermal equilibrium) में रहते हैं।
  • स्टेरेडियन (Steradian): यह ठोसीय कोणों (solid angles) को मापने का मात्रक है।

परिभाषा; किसी गोले की सतह पर उसकी त्रिज्या के बराबर भुजा वाले वर्गाकार क्षेत्रफल द्वारा गोले के केन्द्र पर बनाए गए घनकोण को 1 स्टेरेडियन कहते हैं।

  • सौर दिवस (Solar day): जब सूर्य आकाश में चलते हुए सबसे ऊंचे बिन्दु पर होता है तो उस समय को मध्याह्न (noon) कहते हैं। दो क्रमागत (successive) मध्यान्हों बीच के समय-अन्तराल को सौर दिवस कहते हैं।
  • कोटिमान (Order of magnitude): यदि हम किसी राशि के परिमाण को निकटतम 10 की घात के रूप में लिखें और घात को निकटतम पूर्णाक के रूप में व्यक्त करें तो उस मान को उस राशि का कोटिमान कहते हैं।
  • रॉकेट तथा जेट प्लेन में मुख्य अंतर यह है कि रॉकेट में ईंधन को जलाने के लिए अन्दर ही ऑक्सीजन की आपूर्ति विद्यमान होती है, जबकि जेट प्लेन में ईंधन कैरोसीन (पैराफिन) होता है, जिसे जलाने के लिए वायुमण्डल से ऑक्सीजन प्राप्त की जाती है।
  • बल-आघूर्ण का मात्रक = बल का मात्रक × दूरी का मात्रक = न्यूटन मीटर
  • बल-आघूर्णो का सिद्धांत: “संतुलन की स्थिति में वामावर्ती आघूर्णो का योग = दक्षिणावर्ती आघूर्णो का योग”
  • उत्तोलक का सिद्धांत: आयाम x आयाम भुजा = भार x भार
  • भुजा बल-युग्म (Couple): जब किसी वस्तु के दो भिन्न-भिन्न बिन्दुओं पर दो समान्तर तथा विपरीत और बराबर बल लगाते हैं तो वे एक बल-युग्म बनाते हैं, जिसकी प्रवृत्ति उस वस्तु को घुमाने की होती है। इस प्रवृत्ति को बल-युग्म के आघूर्ण द्वारा मापा जाता है।
  • बल-युग्म का आघूर्ण = एक बल × दोनों बलों के बीच की लंबवत् दूरी
  • = F × d
  • W, kW, MW तथा p. सामथ्र्य के मात्रक हैं।
  • Wh, kWh कार्य अथवा ऊर्जा के मात्रक हैं।
  • वायुमण्डल के ऊपरी भाग में प्रति वर्ग मीटर पर प्रति सेकण्ड लगभग 1370 जूल और ऊर्जा आपतित होती है। इस ऊर्जा का कुछ भाग अन्तरिक्ष में (पृथ्वी से परे) परावर्तित हो जाता है और कुछ को वायुमण्डल में उपस्थित जल वाष्प, ओजोन, धूल के कण तथा CO2, अवशोषित कर लेते हैं। अन्त में केवल 47% भाग (लगभग 640 जूल) पृथ्वी तल पर प्रति वर्ग मीटर प्रति सेकण्ड पहुंचता है।
  • अर्द्धचालक (Semiconductor): अर्द्धचालक ऐसे पदार्थ हैं, जो न तो पूर्णतः विद्युत् के अचालक हैं और न पूर्णतः विद्युत् के सुचालक हैं, बल्कि उनकी विद्युत् चालकता इन दोनों के मध्य होती है। उदाहरण के लिए, सिलिकॉन, गैलियम, जर्मेनियम आदि। बोरोंन, फॉंस्फोरस, ऐण्टिमनी आदि की अशुद्धि मिलाकर इनकी चालकता बढ़ाई जाती है।
  • परमाणु तत्व का वह सूक्ष्मतम भाग, जिसका कोई अस्तित्व होता है।
  • अणु: पदार्थ का वह सूक्ष्मतम भाग, जिसका प्रकृति में स्वतंत्र अस्तित्व होता है।
  • तत्व: वह पदार्थ जो एक ही परमाणु क्रमांक वाले परमाणुओं से बना होता है।
  • परमाणु क्रमांक: परमाणु में उपस्थित प्रोटॉनों की संख्या को उसका परमाणु क्रमांक कहते हैं।
  • अणु, पदार्थ का वह सूक्ष्मतम कण है जिसमें उसके सभी भौतिक व रासायनिक गुण पाए जाते हैं तथा जिसका प्रकृति में भी स्वतंत्र अस्तित्व होता है।
  • हाइड्रोजन के एक अणु में दो परमाणु होते हैं, परंतु DNA के एक अणु में लाखों H, C, N, O तथा P परमाणु होते हैं।
  • समान परिस्थितियों में किसी द्रव का घनत्व उसे वाष्प के घनत्व से ~103 कोटि (order of) अधिक होता है। उदाहरणार्थ, 100°C ताप तथा 1 वायुमण्डलीय दाब पर जल का घनत्व 958 ग्राम सेमी3 तथा उसी ताप और दाब पर जल वाष्प का दाब 0.000588 ग्राम सेमी3 होता है।
  • यदि वस्तु का घनत्व द्रव के घनत्व से कम है तो वह उस द्रव में तैरती है, अन्यथा डूब जाती है। लोहा, पारे पर तैरता है।
  • तरल (fluid): द्रव तथा गैस, दोनों को ही तरल कहते हैं।
  • समुद्री जल का घनत्व अधिक होता है, अतः उसमें तैरना आसान होता है।
  • जब बर्फ पानी पर तैरती है तो उसके आयतन का 1/10 भाग पानी के ऊपर होता है।
  • किसी बर्तन में पानी भरा है और उस पर बर्फ तैर रही है। जब बर्फ पूरी तरह पिघल जाएगी तो पात्र में पानी का तल बढ़ता नहीं है, पहले के समान ही रहता है।
  • वायुदाब के मात्रक
  • 1 सेमी पारा दाब = 33 × 103 पास्कल
  • 1 पास्कल = 1 न्यूटन/मी2
  • 1 बार = 105 न्यूटन/मी
  • 1 मिलीबार = 102 पास्कल

विभिन्न वायुदाबमापी

  • फोर्टिन वायुदाबमापी: यह सरल वायुदाबमापी का एक संशोधित रूप है, जिससे दाब का मापन अधिक शुद्धता से किया जाता है।
  • निर्द्रव (aneroid) वायुदाबमापी: यह एक छोटा सुवाह्य (portable) दाबमापी है, जिसमें किसी द्रव का प्रयोग नहीं किया जाता है।
  • तुंगतामापी (altimeter): जब निद्रव वायुदाबमापी में ऊंचाई मापने के निशान बना दिए जाते हैं तो उसे ऊंचाईमापी या तुंगतामापी कहते हैं।
  • पोंड स्केटर (pond skater) नामक कीट पानी की सतह पर बड़ी आसानी से चलता है। कीट की टांगों के नीचे पानी की सतह कुछ दब जाती है। इससे ज्ञात होता है कि पानी की सतह एक प्रत्यास्थ झिल्ली (elastic membrance) की तरह कार्य करती है।
  • पतली सुई पृष्ठ तनाव के कारण ही पानी पर तैराई जा सकती है।
  • साबुन, डिटर्जेण्ट, आदि जल का पृष्ठ तनाव कम कर देते हैं, अतः वे मैल में गहराई तक चले जाते हैं।
  • पानी पर मच्छरों के लार्वा तैरते रहते हैं, परंतु पानी में मिट्टी का तेल मिला देने पर उसका पृष्ठ तनाव कम हो जाता है, जिससे लार्वा पानी में डूबकर मर जाते हैं, और मच्छरों की वृद्धि रूक जाती है।
  • गर्म सूप स्वादिष्ट लगता है, क्योंकि गर्म द्रव का पृष्ठ तनाव कम होता है अत: वह जीभ के ऊपर सभी भागों में अच्छी तरह फैल जाता है।
  • संपर्क में रखी दो वस्तुओं में से जब एक वस्तु से आन्तरिक ऊर्जा दूसरी में जाती है तो उसे ऊष्मा कहते हैं, अर्थात स्थानान्तरण के समय ही ऊर्जा (energy in transit), ऊष्मा कहलाती है।
  • जिस कारण से यह ऊर्जा स्थानान्तरण होता है, उसे ताप कहते हैं।
  • इस तरह का कथन अर्थहीन है कि इस वस्तु में ऊष्मा की मात्रा 100 कैलोरी है। इसे हमें कहना चाहिए कि इस वस्तु की आंतरिक ऊर्जा की वृद्धि 100 कैलोरी है।
  • पहले सेल्सियस पैमाने को सेण्टीग्रेड पैमाना कहा जाता था।
  • केल्विन में व्यक्त ताप में डिग्री (°) नहीं लिखा जाता है, जैसे, 273°K लिखना अब अशुद्ध माना जाता है। इसे केवल 273K लिखना चाहिए।
  • शुद्ध रूप से केल्विन पैमाने पर हिमांक व भाप-बिन्दु के मान क्रमश: 16K तथा 373.16K होते हैं।
  • आजकल विशिष्ट ऊष्मा को विशिष्ट ऊष्मा धारिता तथा गुप्त ऊष्मा को विशिष्ट गुप्त ऊष्मा लिखा जाता है।
  • जल की विशिष्ट ऊष्मा धारित 4,186 जूल/किग्रा°C तथा बर्फ के गलन की विशिष्ट गुप्त ऊष्मा 3,36,000 जूल प्रति किलोग्राम होती है।
  • कोहरा (Fog): जाड़े की ठण्डी रातों में, जब धूल, धुंआ, आदि के कणों पर जलवाष्प द्रवित होकर छोटी-छोटी बूंदों के रूप में जमा हो जाती है तो वायुमण्डल धुंधला दिखाई देता है। इस धुन्ध को कोहरा कहते हैं।
  • प्रतिध्वनि (Echo): परावर्तित ध्वनि को प्रतिध्वनि कहते हैं। स्पष्ट प्रतिध्वनि सुनने के लिए परावर्तक सतह, श्रोता से कम-से-कम 17 मीटर दूर होनी चाहिए।
  • ध्वनि का अपवर्तन (Refraction): गरम वायु में ध्वनि का वेग अधिक होता है। अत: वायु की विभिन्न सतहों से गुजरते समय ध्वनि बदल जाती है (क्योंकि प्रत्येक सतह का ताप अलग होता है), इसे ध्वनि का अपवर्तन कहते हैं। इसी के कारण रात्रि में तथा ठण्डे दिनों में ध्वनि अधिक दूर तक सुनी जा सकती है।
  • अनुनाद (Resonance): जब किसी वस्तु को कपनों की स्वाभाविक आवृत्ति किसी चालक बल के कंपनों की आवृत्ति के बराबर होती है तो वह वस्तु बहुत अधिक आयाम से कपन करने लगती है। इस घटना को अनुनाद कहते हैं।
  • तारत्व (Pitch): यह ध्वनि की वह विशेषता है, जिससे हम मोटी और तीखी ध्वनि में अंतर करते हैं। बच्चे की आवाज का पिच अधिक और युवक की आवाज का कम होता है। स्त्रियों की आवाज का पिच भी अधिक होता है।
  • गुणवत्ता (Quality): जिस गुण के कारण समान पिच व तीव्रता की ध्वनियों में अंतर किया जाता है उसे गुणवत्ता कहते हैं, जैसे, तबला व सारंगी की ध्वनि।
  • सूर्य-ग्रहण: जब सूर्य तथा पृथ्वी के ठीक बीच में चन्द्रमा आ जाता है तो चन्द्रमा की छाया पृथ्वी पर पड़ती है और उस भाग में सूर्य नहीं दिखाई देता है। इसे ही सूर्य-ग्रहण कहते हैं।
  • चन्द्र-ग्रहण: जब सूर्य या चन्द्रमा के बीच में पृथ्वी आ जाती है और पृथ्वी की छाया चन्द्रमा पर पड़ती है तो चन्द्रमा का वह भाग दिखाई नहीं देता है। इसे ही चन्द्र ग्रहण कहते हैं।

अवतल दर्पण का उपयोग

  • बड़ी फोकस दूरी वाला अवतल दर्पण दाढ़ी बनाने में काम आता है। मनुष्य का चेहरा दर्पण के ध्रुव व फोकस के मध्य होता है, अत: उसका बड़ा और सीधा प्रतिबिम्ब बनता है।
  • डॉक्टर प्रकाश की किरणों को छोटे अवतल दर्पण से परावर्तित करके आँख, नाक, कान, गले में डालकर आतंरिक भागों को स्पष्ट देखते हैं।

उत्तल दर्पण के उपयोग

  • उत्तल दर्पण मोटर कार में चालक की सीट के पास पीछे के दृश्य को देखने के लिए लगाया जाता है क्योंकि इससे प्रतिबिम्ब सीधे बनते हैं और आकार में छोटे होते हैं, अत: अधिक दूरी तक की वस्तुओं को देखा जा सकता है। उत्तल दर्पण का दृष्टि क्षेत्र (field of view) अधिक होता है।
  • प्रकाश के स्रोत: सूर्य व तारे प्राकृतिक स्रोत हैं। कुछ जीव (जैसे जुगनू) भी प्रकाश देते हैं, इसे जैव-प्रकाश (bioluminescence) कहते हैं। इनके अतिरिक्त कृत्रिम स्रोत हैं, लैम्प आदि।
  • तीक्ष्ण धार वाले किनारों पर प्रकाश का मुड़ना तथा अवरोध द्वारा बनी ज्यामितीय छाया में प्रकाश के अतिक्रमण की घटना को प्रकाश का विवर्तन कहते हैं।
  • प्रदीप्त वस्तुएं Luminous Bodies: जो वस्तुएं अपने प्रकाश से ही प्रकाशित होती हैं उन्हें प्रदीप्त वस्तुएं कहते हैं, जैसे-सूर्य, मरकरी बल्ब आदि।
  • अप्रदीप्त वस्तुएं Non-luminous Bodies: जीन वस्तुओं का अपना प्रकाश नहीं होता है, वे परावर्तित प्रकाश से दिखाई देती हैं।
  • चुम्बक को क्षैतिज तल में स्वतंत्रतापूर्वक लटकाने पर उसका एक ध्रुव सदैव उत्तर की ओर तथा दूसरा ध्रुव सदैव दक्षिण की ओर ठहरता है। उत्तर की ओर ठहरने वाले ध्रुव को उत्तरी ध्रुव (north pole) तथा दक्षिण की ओर ठहरने वाले ध्रुव को दक्षिणी ध्रुव (southpole) कहते हैं। चुम्बक के दोनों ध्रुवों को मिलाने वाली रेखा को चुम्बकीय अक्ष (magnetic axis) कहते हैं।
  • दो चुम्बकों के विजातीय ध्रुव (उत्तरी-दक्षिणी) एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं तथा सजातीय ध्रुव (उत्तरी-उत्तरी अथवा दक्षिणी-दक्षिणी) एक-दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं।
  • डोमेन Domains: लौह चुम्बकीय पदार्थ में प्रत्येक परमाणु ही एक चुम्बक होता है और उनमें असंख्य परमाणुओं के समूह होते हैं, जिन्हें डोमेन कहते हैं। एक डोमेन में 1018 से 1021 तक परमाणु होते हैं। लौह चुम्बकीय पदार्थों का तीव्र चुम्बकत्व इन डोमेनों के कारण ही होता है।
  • क्यूरी ताप Curie Temperature: जब किसी लौह-चुम्बकीय पदार्थ को गरम किया जाता है तो एक ऐसा ताप आता है, जब उसका लौह चुम्बकत्व, अनु चुम्बकत्व में बदल जाता है। इस ताप को क्यूरी ताप कहते हैं। लोहा और निकल के लिए क्यूरी ताप के मान क्रमश: 770°C तथा 358°C होते हैं।
  • नाभिक में उपस्थित प्रोटॉनों तथा न्यूट्रॉनों की कुल संख्या को परमाणु की द्रव्यमान संख्या (mass number) कहते हैं।
  • नाभिक का घनत्व 1017 किग्रा-मीटर3 की कोटि का होता है।
  • इलेक्ट्रॉन Electron: इलेक्ट्रॉन की खोज 1897 में अंग्रेज वैज्ञानिक जे जे थॉमसन ने कैथोड किरणों के रूप में की।
  • प्रोटॉन Proton: प्रोटॉन की खोज अंग्रेज वैज्ञानिक रदरफोर्ड ने सन् 1919 में नाइट्रोजन नाभिकों पर α-कणों का प्रहार करके की,

[latex]_{ 7 }^{ 14 }{ N }+_{ 2 }^{ 4 }{ He }\rightarrow _{ 8 }^{ 17 }{ O }+_{ 1 }^{ 1 }{ H }[/latex] (प्रोटॉन)

  • न्यूट्रॉन (Neutron): न्यूट्रॉन की खोज अंग्रेज वैज्ञानिक चैडविक ने सन् 1932 में बेरेलियम पर कणों का प्रहार करके की,

[latex]_{ 4 }^{ 9 }{ Be }+_{ 2 }^{ 4 }{ He }\rightarrow _{ 6 }^{ 12 }{ C }+_{ 0 }^{ 1 }{ n }[/latex] (न्यूट्रॉन)

  • प्रत्येक मूल कण के साथ हम एक प्रकार का आंतरिक कोणीय संवेग संबद्ध कर सकते हैं, जिसे उस कण की स्पिन कहते हैं, मानो कण अपनी अक्ष के परितः वामावर्त या दक्षिणावर्त दिशा में घूमता है।
  • पाई-मेसोन Meson: पाई-मेसोन मूल कणों की सैद्धांतिक खोज सन् 1935 में वैज्ञानिक युकावा ने की थी। ये कण तीन प्रकार के होते हैं – उदासीन (p°), धनात्मक (p+) व ऋणात्मक (p) पाई-मेसान। ये अस्थायी कण होते हैं।
  • फोटॉन Photon: फ़ोटॉन उर्जा के बण्डल (packets) होते हैं जो प्रकाश की चाल से चलते हैं। सभी प्रकार की विद्युत् चुम्बकीय किरणों का निर्माण इन्हीं मूल कणों से होता है।
  • अर्द्ध-आयु Half-life: किसी रेडियोऐक्टिव तत्व में किसी क्षण पर उपस्थित परमाणुओं के आधे परमाणु जितने समय में विघटित (disintegrate) हो जाते हैं, उस समय को उस तत्व की अर्द्ध-आयु कहते हैं।
  • कार्बन काल-निर्धारण Carbon dating: इस विधि द्वारा जीव के अवशेषों की आयु का पता लगाया जाता है। जीवित अवस्था में प्रत्येक जीव (पौधे या जन्तु) कार्बन-14 (एक रेडियोऐक्टिव समस्थानिक) तत्व को ग्रहण करता रहता है और मृत्यु के बाद उसका ग्रहण करना बंद हो जाता है।
  • परमाणु बम (Atom bomb): नाभिकीय विखण्डन क्रिया पर जब किसी प्रकार का नियंत्रण नहीं होता है तो विखण्डन क्रिया की दर बहुत तीव्र होती है, जिस कारण कुछ ही क्षणों में प्रचण्ड विस्फोट हो जाता है। परमाणु बम में अनियंत्रित विखण्डन क्रिया होती है। प्रथम परमाणु बम सन् 1945 में बनाया गया था।
  • समृद्धित यूरेनियम (Enriched Uranium): परमाणु बम के निर्माण में पर्याप्त यूरेनियम-235 की आवश्यकता होती है, परन्तु प्राकृतिक यूरेनियम में केवल 7% ही यूरेनियम-235 होता है। शेष यूरेनियम-238 होता है, जिसका विखण्डन मंद न्यूट्रॉनों द्वारा नहीं होता है। अत: प्राकृतिक यूरेनियम से यूरेनियम-235 अलग किया जाता है। वह यूरेनियम जिसमें विखण्डनीय यूरेनियम-235 की प्रचुर मात्रा होती है, उसे समृद्धित यूरेनियम कहते हैं।
  • नाभिकीय रिएक्टर Nuclear Reactor: यह एक ऐसी युक्ति है जिसमें यूरेनियम-235 का नियंत्रित विखण्डन कराया जाता है।
  • नाभिकीय ईंधन Nuclear Fuel: इनमें विखण्डनीय (fissile) पदार्थ होता है। यह प्राय: समृद्धित यूरेनियम होता है।
  • मन्दक Moderator: यह विखण्डन अभिक्रिया में उत्पन्न तीव्र न्यूट्रॉनों को मन्दित करता है। इसके लिए प्रायः ग्रेफाइट या भारी जल (heavy water) का उपयोग किया जाता है।
  • नियंत्रक छड़े Control Rods: विखण्डन की श्रृंखला अभिक्रिया को नियंत्रण में रखने के लिए कैडमियम या बोरॉन की लंबी छड़ों का उपयोग किया जाता है, जिनकी कुछ लंबाई को रिएक्टर के विखण्डन कक्ष (fission chamber) के अंदर तथा कुछ को बाहर रखा जाता है। ये छड़ें विखण्डन में उत्पन्न होने वाले न्यूट्रॉनों को अवशोषित कर लेती हैं, अतः विखण्डन की श्रृंखला रूक जाती है।
  • ब्रीडर रिएक्टर Breeder Reactor: ऐसा रिएक्टर जो प्रयुक्त किए गए विखण्डनीय पदार्थ की तुलना में अधिक विखण्डनीय पदार्थ उत्पन्न करता है, ब्रीडर रिएक्टर कहलाता है अर्थात इसमें प्रयुक्त पदार्थ ही और अधिक मात्रा में उत्पन्न किया जाता है।
  • नाभिकीय संलयन Nuclear Fusion: जब दो या अधिक हल्के नाभिक संयुक्त होकर एक भारी नाभिक बनाते हैं तथा अत्यधिक ऊर्जा विमुक्त करते हैं तो इस अभिक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं।
  • हाइड्रोजन बम: परमाणु बम विखण्डन अभिक्रिया पर आधारित है जबकि हाइड्रोजन बम, संलयन अभिक्रिया पर आधारित होता है।
  • पृथ्वी अंतरिक्ष तथा उसमें उपस्थित सभी खगोलीय पिण्ड (तारे, मंदाकिनियां आदि) एवं संपूर्ण ऊर्जा को समग्र रूप से विश्व (Universe) कहते हैं।
  • विश्व की रचना मंदाकिनियों (galaxies) से हुई है, जिन्हें आकाशगंगा भी कहते हैं। अनुमानत: विश्व में खरबों (1011) आकाशगंगाएं हैं तथा प्रत्येक आकाशगंगा में खरबों तारे होते हैं और बहुत-से तारों का अपना-अपना परिवार हो सकता है, जैसे हमारे सूर्य (जो एक मध्यम प्रकार का तारा है) के परिवार में पृथ्वी सहित 9 ग्रह हैं।
  • विश्व की उत्पत्ति: आकाशगंगाएं दूर भाग रही हैं और विश्व का लगातार विस्तार हो रहा है। यह डॉप्लर प्रभाव द्वारा ज्ञात किया गया है।
  • नीहारिकाएं Nebula: नीहारिकाएं आकाश में चमकीले धब्बों के समान दिखाई देती हैं, परन्तु वास्तव में ये तारों के गुच्छे (clusters of stars) हैं तथा इनमें गैसों के बादल भी हैं।
  • तारामंडल Constellations: आकाश में वैसे तो अनेक धुंधले तारे दिखाई देते हैं, परन्तु उनमें कुछ चमकीले तारों के समूह भी होते हैं, जिनकी कुछ विशेष आकृतियां होती हैं। इन्हें ही तारामण्डल कहते हैं।
  • सौर मण्डल Solar System: सूर्य का मध्यम प्रकार का तारा है। सूर्य के चारों ओर 9 ग्रह परिक्रमा करते हैं तथा कुछ अन्य खगोलीय पदार्थ [जैसे क्षुद्र ग्रह (asteroids), धूमकेतु (comets), उल्काएं (meteors) भी सूर्य की परिक्रमा करते हैं। अत: सूर्य तथा उसकी परिक्रमा करने वाले सभी पदार्थों को सामूहिक रूप से सौर मण्डल या सौर परिवार कहते हैं।
  • ग्रहों का क्रम, सूर्य से दूरी के अनुसार: बुध, शुक्र, पृथ्वी, मंगल, बृहस्पति, शनि, अरूण, वरूण और यम।
  • पृथ्वी से दूरी के अनुसार: शुक्र, मंगल, बुध, बृहस्पति, शनि, अरूण, वरूण और यम।
  • आकार के अनुसार: बृहस्पति, शनि, अरूण, वरूण, पृथ्वी, शुक्र, मंगल, बुध और यम।
  • उपग्रह Satellites: ग्रह की परिक्रमा करने वाले खगोलीय पिण्ड की उपग्रह कहते हैं। पृथ्वी का उपग्रह चन्द्रमा है।
  • मंगल के दो उपग्रह हैं – फोबोस तथा डीमोस (Phobos and Deimos)।
  • बृहस्पति के कुछ मुख्य उपग्रह हैं – इओ (Io), यूरोपा (Europa), गैनीमीड (Ganymede) तथा कैलिस्टो (Callisto)।
  • शनि के प्रमुख उपग्रह हैं – टाइटन (Titan), येपेटस (Iapetua), रिया (Rhea), डियोन (Dione) तथा टीथिस (Tethys)।
  • अरूण के प्रमुख उपग्रह हैं – मिरण्डा (Miranda), एरिएल (Ariel), अम्ब्रीएल (Umriel), टाइटेनिया (Titanea) तथा ओबेरॉन (Oberon)।
  • वरुण के मुख्य उपग्रह हैं – ट्राइटन (Triton) तथा नेरेइड (Nereid)। यम का उपग्रह है – शेरॉन (Cheron)।
  • गैनीमीड: सौर मण्डल में सबसे बड़ा उपग्रह है, उससे छोटा उपग्रह टाइटन है। गैनीमीड, कैलिस्टो तथा वाइटन – ये उपग्रह तो बुध ग्रह से भी बड़े हैं।
  • क्षुद्र ग्रह Asteroids: मंगल तथा बृहस्पति ग्रहों के मध्य की पट्टी (belt) में बहुत अधिक छोटे-बड़े कण हैं, जो ग्रहों की तरह ही सूर्य की परिक्रमा करते हैं। अत: उन्हें क्षुद्र ग्रह कहा जाता है।
  • धूमकेतु Comets: धूमकेतु भी सौर मण्डल के सदस्य हैं। ये भी संभवत: वही मलबा (debris) हैं जो ग्रहों के बनते समय छूट गया, अर्थात् ग्रह बनने से रह गया और इधर-उधर छिटक कर सूर्य की परिक्रमा करने लगा।
  • हेली का धूमकेतु: विश्वास किया जाता है कि सर्वप्रथम 467 ईसा पूर्व में हेली के धूमकेतु के प्रेक्षण को रिकार्ड किया गया था। एडमण्ड हेली (1656-1742) ने सर्वप्रथम इसका अध्ययन किया और घोषणा की कि यह धूमकेतु सन् 1758 की क्रिसमस की रात्रि को दिखाई देगा। हेली की यह भविष्यवाणी सत्य हुई और तब से इस धूमकेतु का नाम हेली का धूमकेतु पड़ गया।
  • पृथ्वी की संरचना (Structure ofthe Earth): पृथ्वी के मुख्यत: तीन भाग हैं: भूपर्पटी (crust), प्रावार (mantle) तथा क्रोड (core)।


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