नाभिकीय रसायन से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य Important Facts Related to Nuclear Chemistry

  • भारी नाभिक वाले परमाणुओं का दो लगभग समान द्रव्यमान वाले नाभिकों में विभक्त हो जाना, नाभिकीय विखंडन कहलाता है।
  • सर्वप्रथम जर्मन वैज्ञानिक ऑटोहॉन एवं स्ट्रॉसमैन ने 1939 ई. यूरेनियम परमाणु पर मन्द गति के न्यूट्रॉन की बौछार करके इसके नाभिक को दो लगभग बराबर द्रव्यमान वाले नाभिकों में विभक्त किया।
  • इस प्रक्रिया में अत्यधिक मात्रा में ऊर्जा तथा दो या तीन न्यूट्रान उत्सर्जित होते हैं। इस अभिक्रिया को नाभिकीय विखण्डन तथा इससे प्राप्त ऊर्जा को नाभिकीय ऊर्जा कहते हैं।
  • प्रत्येक यूरेनियम के विखण्डन से लगभग 200 Mev ऊर्जा उत्पन्न होती है जिसमें सर्वाधिक ऊष्मा तथा शेष प्रकाश, गामा किरणें तथा उत्पादित नाभिक एवं न्यूट्रानों की गतिज ऊर्जा होती है।
  • यह ऊर्जा द्रव्यमान क्षति के कारण उत्पन्न होती है। द्रव्यमान की यह क्षति, आइन्सटीन के द्रव्यमान ऊर्जा समीकरण के (E=MC2) अनुसार परिवर्तित होती है।
  • यूरेनियम 235 पर न्यूट्रॉन की बौछार करने पर नाभिक दो बराबर भाग में टूट जाता है, जिससे 200 Mev ऊर्जा एवं तीन नये न्यूट्रान निकलते हैं।
  • ये नये न्यूट्रान यूरेनियम के अन्य तीन परमाणुओं का विखण्डन करते हैं फलस्वरुप 9 न्यूट्रॉन उत्पन्न होते हैं जो अन्य 9 परमाणुओं का विखण्डन करते हैं। इस प्रकार नाभिक के विखण्डन की एक श्रृंखला बन जाती है।
  • इस प्रकार की क्रिया को श्रृंखला अभिक्रिया कहते हैं। यह क्रिया तब तक होती रहती है, जब तक सम्पूर्ण यूरेनियम विखण्डित नहीं हो जाता है। श्रृंखला अभिक्रिया दो प्रकार ही होती है-नियंत्रित व अनियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया।
  • यदि यूरेनियम 235 के नाभिकीय विखण्डन अभिक्रिया के प्रारम्भ में उत्सर्जित न्यूट्रॉनों की गति को इस प्रकार नियंत्रित किया जा सके कि श्रृंखला अभिक्रिया होती रहे परन्तु उसकी दर बढ़ने न पाये, तो ऐसी श्रृंखला अभिक्रिया को नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया कहते हैं।
  • इससे मुक्त ऊर्जा को नियंत्रित दर से प्राप्त किया जा सकता है, जिसका उपयोग मानवता के विकास के लिए किया जाता है।
  • इसमें मन्दक के रुप में भारी जल (D2O) एवं ग्रेफाइट आदि का प्रयोग किया जाता है। नियंत्रित श्रृंखला अभिक्रिया का उपयोग नाभिकीय रिएक्टर या परमाणु भट्टी में किया जाता है।
  • नाभिकीय विखण्डन क्रिया की दर को किसी भी प्रकार से जब नियंत्रित नहीं किया जाता और प्राप्त ऊर्जा को विनाशकारी होने से बचाया नहीं जा सकता तो होने वाली क्रिया अनियंत्रित श्रृंखला, अभिक्रिया कहलाती है।
  • U-235 के विखण्डन की दर प्रारम्भ होने के 10-5 सेकेण्ड बाद 500 गुना एवं 11×10-15 सेकेण्ड बाद 1000 गुना तक बढ़ जाती है। परमाणु बम इसी सिद्धान्त पर कार्य करता है।
  • जब दो या दो अधिक हल्के नाभिक, अत्यधिक उच्च ताप पर परस्पर संयोग करके भारी नाभिक का निर्माण करते हैं तो इस प्रक्रिया को नाभिकीय संलयन कहते हैं।
  • नाभिकीय संलयन की प्रक्रिया अति उच्च तापमान लगभग 2×107 °C पर होती है जिस कारण इसे ताप नाभिकीय अभिक्रिया भी कहते हैं।
  • चार प्रोटानों के संलयन से एक हीलियम नाभिक, दो पाजीट्रॉन, दो न्यूट्रिनों तथा 7 Mev ऊर्जा प्राप्त होती है। संलयन से प्राप्त ऊर्जा, विखण्डन से प्राप्त ऊर्जा (200 Mev) से कम है। वास्तव में ऐसा नहीं है।
  • समान द्रव्यमान के हल्के नाभिकों के संलयन से प्राप्त ऊर्जा, भारी नाभिकों के विखण्डन से प्राप्त ऊर्जा से अधिक होती है क्योंकि हल्के पदार्थ के एकांक द्रव्यमान में परमाणु की संख्या, भारी पदार्थ के एकांक द्रव्यमान में परमाणुओं की संख्या से बहुत अधिक होती है। हाइड्रोजन बम नाभिकीय संलयन के सिद्धान्त पर बनाया गया है।
  • नाभिकीय रिएक्टर एक विशेष प्रकार की भट्टी होती है, जिसकी सहायता से नाभिकीय विखण्डन की नियन्त्रित श्रृंखला अभिक्रिया द्वारा ऊर्जा उत्पन्न की जाती है।
  • पहला नाभिकीय रिएक्टर सन् 1942 में शिकागो विश्वविद्यालय में अमेरिकन वैज्ञानिक फर्मी और उनके साथियों ने बनाया था।
  • भारत ने अपना पहला रिएक्टर सन् 1952 में मुम्बई के निकट ट्रॉम्बे में बनाया, जिसका नाम अप्सरा रखा।
  • ऐसे रिएक्टर, जिनमें मन्दगामी न्यूट्रानों द्वारा यूरेनियम-235 का विखण्डन करके ऊर्जा प्राप्त की जाती है, उन्हें तापीय रिएक्टर कहते हैं।
  • ऐसे रिएक्टर, जिनमें उत्पादित प्लूटोनियम-239 तथा यूरेनियम-233 की मात्रा व्यय होने वाले पदार्थो यूरेनियम-238 तथा थोरियम-232 से अधिक होती है, ब्रीडर रिएक्टर कहलाते हैं।

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