प्रकाश से सम्बंधित महत्वपूर्ण तथ्य Important Facts Related to Light

  • ज्योति तीव्रता का मात्रक केन्डिला एवं लेंस की क्षमता डायप्टर होता है।
  • तराशा हुआ हीरा अपने उच्च उपवर्तनांक के कारण पूर्ण आन्तरिक परावर्तन से चमकता है।
  • भारत का सबसे बड़ा सौर दूरदर्शी कोडाईकनाल (तमिलनाडु) में स्थित है।
  • अपवर्तन की क्रिया में प्रकाश का वेग, आयाम, तरंगदैर्ध्य तो बदल जाता है लेकिन आवृत्ति अपरिवर्तित रहती है।
  • यदि किसी लेंस को ऐसे माध्यम में रखा जाए जिसका अपवर्तनांक लेंस के पदार्थ के अपवर्तनांक से अधिक हो, तो लेंस की फोकस दूरी बदलने के साथ-साथ उसकी प्रकृति भी उलट जाती है और अवतल लेंस, उत्तल लेंस की भाँति व्यवहार करने लगता है।
  • व्यतिकरण प्रारूप (इंटरफ्रेंस पैटर्न) में ऊर्जा का पुनर्वितरण होता है कुल ऊर्जा संरक्षित रहती है।
  • पनडुब्बी के अन्दर से बाहर की वस्तुओं को देखने के लिए पेरिस्कोप का प्रयोग किया।
  • बुनकरों द्वारा विभिन्न प्रकार के रंगीन डिज़ाइन देखने के लिए कैलिडोस्कोप का उपयोग किया जाता है।
  • कुछ वस्तुएं एक प्रकार से प्रकाश का शोषण करती हैं और दूसरे रंग के प्रकाश की किरणें निकालती हैं। कैल्सियम क्लोराइड बैंगनी किरणों का शोषण करता है परंतु नीली किरणे निकालता है। इस प्रकार की घटना को प्रतिदीप्ति कहा जाता है।
  • भारत के नरेन्द्र सिंह कपानी को ऑप्टिकल फाइबर के खोजकर्ताओं में से एक के रूप में माना जाता है।
  • जब प्रकाश की किरण वायु से कांच में प्रवेश करती है तो उसका तरंगदैर्ध्य घट जाता है।
  • नेत्र की वह क्षमता, जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित करके निकट तथा दूरस्थ वस्तुओं को फोकसित कर लेता है, नेत्र की समंजन क्षमता कहलाती है।
  • वह अल्पतम दूरी, जिस पर रखी वस्तु को नेत्र बिना किसी तनाव के सुस्पष्ट देख सकता है, उसे नेत्र का निकट बिंदु अथवा सुस्पष्ट दर्शन की अल्पतम दूरी कहते हैं। सामान्य दृष्टि के वयस्क के लिए यह दूरी लगभग 25 से.मी. होती है।
  • दृष्टि से सामान्य अपवर्तक दोष हैं- निकट-दृष्टि, दीर्घ-दृष्टि तथा जरा-दूरदृष्टिता। निकट-दृष्टि को उचित क्षमता के अवतल लेंस द्वारा संशोधित किया जाता है। दीर्घ-दृष्टि दोष को उचित क्षमता के उत्तल लेंस द्वारा संशोधित किया जाता है। वृद्धावस्था में नेत्र की समंजन क्षमता घट जाती है।
  • यदि किसी पारदर्शी गुटक को किसी द्रव में डुबाने पर दिखाई नहीं पड़े तो दोनों का अवर्तनांक बराबर होता है।
  • हेरनर ने 1876 में सर्वप्रथम मनुष्यों में वर्णान्धता का वर्णन किया।
  • नॉल और रस्का (1933) ने इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोप का आविष्कार किया।
  • मनुष्य उस विद्युत चुम्बकीय विकिरण को देख सकता है, जिसका तरंगदैर्ध्य 400 मिमी. से 700 मिमी. के बीच हो।
  • स्पैक्ट्रम के दृश्य प्रकाश में तरंगदैर्ध्य होता है।
  • प्रकाश उर्जा का एक रूप है। प्रकाश तरंगें, विद्युत चुंबकीय तरंगें हैं, जिनके नाम के लिए भौतिक माध्यम की आवश्यकता नहीं होती।
  • प्रकाश के परावर्तन के दो नियम हैं- आपतित किरण, परावर्तित किरण और आपतन बिंदु पर अभिलंब, सभी एक ही समतल में होते हैं, 2. आपतन कोण और परावर्तन कोण बराबर होते हैं।
  • समतल दर्पण के बिना प्रतिबिम्ब सीधा एवं काल्पनिक होता है तथा दर्पण से उतना ही पीछे बनता है, जितनी वस्तु दर्पण से आगे रहती है।
  • गोलीय दर्पण के मुख्य अक्ष समांतर और निकट आपतित सभी किरणे, दर्पण से परावर्तन के बाद मुख्य अक्ष पर जिस बिंदु पर अभिसारित होती हैं या जिस बिंदु से अपसारित होती प्रतीत होती हैं, वह बिंदु गोलीय दर्पण का मुख्य फोकस कहा जाता है।
  • अवतल दर्पण से वास्तविक और काल्पनिक, दोनों प्रकार के प्रतिबिम्ब बन सकते है। वास्तविक प्रतिबिम्ब बड़ा या छोटा हो सकता है, किन्तु काल्पनिक प्रतिबिम्ब बड़ा होता है।
  • उत्तल दर्पण से हमेशा सीधा, छोटा और काल्पनिक प्रतिबिम्ब बनता है।
  • प्रतिबिम्ब की उंचाई, आकार और वस्तु की उँचाई या आकार के अनुपात को आवर्धन कहते हैं।
  • जब प्रकाश एक माध्यम से दूसरे माध्यम में प्रवेश करता है, तब प्रकाश की दिशा में परिवर्तन को प्रकाश का अपवर्तन कहते हैं।
  • प्रकाश के अपवर्तन के दो नियम हैं- आपतित किरण, अपवर्तित किरण और आपतन बिंदु पर अभिलंब सभी एक समान ही समतल में होते हैं। 2. प्रकाश के किसी विशेष वर्ण के लिए आपतन कोण की ज्या (Sine) तथा आपर्वन कोण की ज्या (Sine) का अनुपात किन्ही दो माध्यमों के लिए एक नियतांक होता है, इस नियम को स्नेल का नियम भी कहते हैं।
  • एक माध्यम से दूसरे माध्यम में जाती हुई एक प्रकाश-किरण के लिऐ अनुपात का मान, पहले माध्यम की अपेक्षा दूसरे माध्यम का अपवर्तनांक कहलाता है।
  • आयताकार कांच के स्लैब से प्रकाश का अपवर्तनांक दो बार होता है, पहला हवा-कांच अंतरा पृष्ठ पर और दूसरा कांच हवा अंतरापृष्ठ पर निर्गत किरण, आपतित किरण के समांतर तो होती है, परंतु वह पार्श्विक रूप से विस्थापित हो जाती है।
  • पूर्ण आतरिक परावर्तन के लिए दो शर्ते हैं- प्रकाश की किरणों को सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाना चाहिए और 2. सघन माध्यम से आपतन कोण, क्रांतिक कोण से बड़ा होना चाहिए।
  • उत्तल लेंस द्वारा वास्तविक और काल्पनिक या आभासी, दोनों प्रकार के प्रतिबिंब बनते हैं, जबकि अवतल लेंस द्वारा केवल आभासी प्रतिबिम्ब ही बनते हैं।
  • निकट दृष्टिता, नेत्रगोलक के लंबा हो जाने के कारण होता है और बहुत दूर स्थित वस्तु बिम्ब नेत्र लेंस द्वारा रेटिना के आगे बनाता है। इस दोष का सुधार लेंस द्वारा होता है।
  • प्रकाश सरल रेखाओं में गमन करता प्रतीत होता है।
  • दर्पण तथा लेंस वस्तुओं के प्रतिबिंब बनाते हैं बिंब की स्थिति के अनुसार प्रतिबिंब वास्तविक अथवा आभासी हो सकते हैं।
  • सभी प्रकार के परावर्ती पृष्ठ, परावर्तन के नियमों का पालन करते हैं। अपवर्ती पृष्ठ, अपवर्तन के नियमों का पालन करते हैं।
  • गोलीय दर्पणों तथा लेंसों के लिए नयी कार्तीय चिन्ह-परिपाटी अपनाई जाती है।
  • दर्पण सूत्र [latex]\frac { 1 }{ v } +\frac { 1 }{ u } =\frac { 1 }{ f }[/latex] बिंब-दूरी प्रतिविम्ब-दूरी तथा गोलीय दर्पण की फोकस दूरी में संवध दर्शाता है।
  • किसी गोलीय दर्पण की फोकस दूरी, उसकी वक्रता त्रिज्या की आधी होती है।
  • किसी गोलीय दर्पण द्वारा उत्पन्न आवर्धन, प्रतिबिंब की ऊँचाई तथा बिंब की ऊँचाई का अनुपात होता है।
  • सघन माध्यम से विरल माध्यम में तिरछी गमन करने वाली कोई प्रकाश किरण, अभिलंब से परे झुक जाती है। विरल माध्यम से सघन माध्यम में तिरछी गमन करने वाली प्रकाश किरण अभिलंब की ओर झुक जाती है।
  • निर्वात में प्रकाश 3 × 108ms-1 की अत्यधिक चाल से गमन करता है। विभिन्न माध्यमों में प्रकाश की चाल भिन्न-भिन्न होती है।
  • किसी पारदर्शी माध्यम का अपवर्तनांक, प्रकाश की निर्वात में चाल तथा प्रकाश की माध्यम में चाल का अनुपात होता है।
  • किसी आयताकार काँच के स्लैब के प्रकरण में, अपवर्तन वायु-काँच अंतरापृष्ठ एवं काँच-वायु अंतरापृष्ठ दोनों पर होता है। निर्गत किरण, आपतित किरण की दिशा के समांतर होती है।
  • किसी लेंस की क्षमता, उसकी फोकस दूरी का व्युत्क्रम होती है। लेंस की क्षमता का SI मात्रक डाइऑप्टर है।
  • दूर दृष्टिता, नेत्रगोलक के छोटा हो जाने के कारण होता है और सामान्य निकट बिंदु (25 mm की दूरी) पर स्थित वस्तु का प्रतिबिम्ब नेत्र लेंस द्वारा रेटिना के पीछे बनाता है। इस दोष का सुधार उत्तल लेन्स द्वारा होता है।
  • जरा दूरदर्शिता, वृद्धावस्था में होती है और इसे दूर करने के लिए बेलनाकार लेंस का उपयोग किया जाता है।
  • सरल सूक्ष्मदर्शी छोटी फोकस दूर का एक उत्तल लेंस होता है जो अपनी फोकस दूरी से कम दूरी पर रखे वस्तु का सीधा, आवर्धित तथा काल्पनिक प्रतिबिम्ब बनाता है।
  • संयुक्त सूक्ष्मदर्शी में कम फोकस दूर के दो समाक्षीय उत्तल लेन्स होते हैं, जिनके बीच की दूरी बदली जा सकती है। अभिदृश्यक अपने निकट रखी छोटी वस्तु का उलटा, बड़ा तथा वास्तविक प्रतिबिम्ब बनाता है और नेत्रिका इस प्रतिविंब का और भी आवर्धित तथा काल्पनिक प्रतिबिम्ब बनाती है।
  • प्रतिबिम्ब की ऊंचाई और वस्तु की ऊंचाई के अनुपात को आवर्धक कहते हैं। लेन्स की क्षमता उसकी फोकस दूरी के व्युत्क्रम द्वारा व्यक्त की जाती है और इसका मात्रक डाई आक्साईट संकेत में D होता है।
  • उत्तल या अभिसारी लेंस की क्षमता धनात्मक और अब तक या अपसारी लेंस की क्षमता ऋणात्मक होती है।
  • नेत्र-लेंस द्वारा किसी वस्तु का उल्टा एवं वास्तविक प्रतिबिम्ब रेटिना पर बनता है। दृक तंत्रिका द्वारा मष्तिष्क तक संचारित होता है।
  • आंख की व क्षमता जिस कारण नेत्र-लेंस की आकृति अर्थात फोकस दूरी स्वत: नियंत्रित होती रहती है, नेत्र की समंजन क्षमता कही जाती है।
  • उस दूरस्थ बिंदु को, जहां तक आंख साफ-साफ देख सकती है, दूर बिंदु कहा जाता है। सामान्य आंख के लिए दूर बिंदु अनंत पर होना चाहिए।
  • खगोलीय दर बीच में समाक्षीय उत्तल लेन्स होते हैं, जिनके बीच की दूरी बदली जा सकती है। अभिदृष्यात्मक बहुत दूर की वस्तु का उलटा, छोटा और वास्वविक प्रतिबिम्ब अपने फोकसी समतल पर बनाता है। नेत्रिका इस प्रतिबिम्ब को अनंत पर बनाती है।
  • किसी अपारदर्शी वस्तु का वर्ण jas उसके द्वारा लौटाए गए अर्थात परावर्तित प्रकाश पर निर्भर करता है।
  • बैंगनी वर्ण के प्रकाश का तरंगदैर्ध्य सबसे कम तथा लाल वर्ण के प्रकाश का तरंगदैर्ध्य सबसे अधिक होता है।
  • पिरामेंट बहुत छोटे कण होते हैं, जो किसी वस्तु को रंगीन रूप देते हैं। पिरामेंट के तीन प्राथमिक वर्ण हैं- स्यान, मैजेण्टा और पीला समुचित अनुपात में स्यान, मैजेण्टा और पीला तथा काला मिलाने पर किसी भी प्रकार का वर्ण उत्पन्न किया जा सकता है।
  • तराशा हुआ हीरा अपने उच्च अपवर्तनांक के कारण पूर्ण आन्तरिक परावर्तन से चमकता है।
  • भारत का सबसे बड़ा सौर दूरदर्शी कोडाईकनाल, तमिलनाडु में स्थित है।

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