मानव शरीर- श्वसन तंत्र Human Body- Respiratory System

प्रत्येक प्राणी साँस लेता है। सांस लेना एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें प्राणी खाद्य अणुओं को ऑक्सीकृत करके कोशिकाओं के लिए ऊर्जा पैदा करता है। सांस क्रिया के फलस्वरूप पानी और कार्बन डाईऑक्साइड बनते हैं। ये दोनों ही अपशिष्ट पदार्थ हैं, जिन्हें शरीर से बाहर निकालना जरूरी है। शरीर में हवा के अंदर जाने व बाहर निकलने की क्रिया निरंतर होती रहती है। सांस द्वारा हवा को अंदर लेने और बाहर निकालने की क्रियाओं में एक संबंध होता है। श्वास लेने वाली क्रिया को उच्छ्वास (Inspiration) और निकालने की क्रिया को निश्वसन (E×piration) कहते हैं। मनुष्य एक मिनट में 15 से 17 बार सांस लेता है। सांस की क्रिया तीन पदों में पूरी होती है–उच्छ्वास, निश्वसन तथा विश्राम।

विभिन्न प्रकार के नाइट्रोजनी अपशिष्टों के अनुसार प्राणियों की श्रेणियाँ
श्रेणी बनने वाला उत्पाद जल में घुलनशीलता उदाहरण
अमोनोत्सर्जी (Ammonotelic) अतिविषैली अमोनिया अति घुलनशील जलीय प्राणी, जैसे अस्तिथ मछलियाँ
यूरिओत्सर्जी (Ureotelic) कम विषैला यूरिया कम घुलनशील स्तनी जैसे मानव आदि जैसे मेंढक, टोड आदि
यूरिकोत्सर्जी (Urieotelic) कम विषैला यूरिक अम्ल अघुलनशील ठोस अथवा अर्धठोस स्वरूप पक्षी,सरीसृप तथा कीट

मनुष्य नाक या मुंह से हवा को शरीर के अंदर ले जाता है। हवा जब नाक से अंदर प्रवेश करती है तो यह हल्की-सी नम और गर्म हो जाती है। नाक धूल-कणों को भी हवा से दूर कर देती है। यह हवा श्वास नलिका (Windpipe) से होती हुई फेफड़ों में जाती है। श्वसन क्रिया के अंतर्गत उच्छ्वास में सीने का फूलना पेशियों की क्रिया है। यह क्रिया ऐच्छिक (Voluntary) और अनैच्छिक (Involuntrary) दोनों ही पेशियों द्वारा होती है। श्वसन की सामान्य क्रिया में केवल अंतरापर्शुका पेशियां (Intercostal Muscles) और डायफ्रॉम ही भाग लेते हैं। गहरी सांस लेते समय कधे, गर्दन और उदर की पेशियां भी सहायता करती हैं।

फेफड़े श्वसन तंत्र के अत्यंत महत्त्वपूर्ण अंग है। ये वक्ष-गुहा की मध्य रेखा (Middle Line of Thoracic Cavity) के दोनों ओर स्थित होते हैं। दायां फेफड़ा बाएं फेफड़े से कुछ बड़ा होता है। ये स्पंजी होते हैं और प्रत्येक फेफड़ा एक दोहरी झिल्ली के बने थैले में सुरक्षित रहता है, जिसे फुफ्फुसावरण (Pleura) कहते हैं। फेफड़ों में लाखों कोशिकाएं होती हैं। ये हृदय से आए हुए अशुद्ध रक्त को श्वसन क्रिया में आई हुई ऑक्सीजन से शुद्ध करते हैं तथा रक्त में घुली हुई कार्बन डाइऑक्साइड को बाहर निकालते हैं। रक्त की शुद्धि के बाद उसे पुनः हृदय को वापस भेज देते हैं।

श्वसन क्रिया का नियंत्रण मस्तिष्क के शवसन केंद्र द्वारा स्वाभाविक रूप से होता रहता है। यह केंद्र रक्त में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड के प्रति संवेदनशील होता है। जैसे ही रक्त में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती है, यह केंद्र अधिक बार सांस लेने के लिए संदेश भेजने लगता है और हमारी सांस दर बढ़ जाती है।

मनुष्य में श्वसनांग

  • श्वसन तंत्र के अंतर्गत वे सभी अंग आते हैं जिससे होकर वायु का आदान-प्रदान होता है जैसे- नासिका, ग्रसनी, लैरिंग्स, ट्रेकिया, ब्रोंकाई एवं बैक्रियोल्स और फेफड़े।
  • नासिका: नासिका-छिद्रों में वायु (O2) प्रवेश करती है। नासिका छिद्रों के भीतर रोम या बाल होते हैं, जो धूल के कण तथा सूक्ष्मजीवों को शरीर में प्रवेश करने से रोकता है।
  • नासिका: छिद्रों की गुहा म्यूकस कला (Mircus membrane) से स्तरित होती है, जो म्यूकस स्रावित कर वायु को नम बनाती है।
  • ग्रसनी (Pharynx): वायु नासिका-छिद्रों से ग्रसनी में आती है। इसकी पाश्र्व भित्ति में मध्यकर्ण की यूस्टेकियन नलिका (Eustachian tube) भी खुलती है।
  • लैरिंग्स (Larynx): इसे स्वर-यंत्र भी कहते हैं। इसका मुख्य कार्य ध्वनि उत्पादन करना है। श्वासनली का ऊपरी सिरा एक छोटे छिद्र के द्वारा ग्रसनी से जुड़ा होता है जिसे ग्लाटिस कहते हैं, ग्लाटिस एक कपाट द्वारा बंद होता है। इसे इपिग्लाटिस (Epiglatis) कहते हैं। यह ग्लाटिस द्वार को बंद करके भोजन को श्वासनली में जाने से रोकती है।
  • ट्रैकिया (Trachea): यह वक्ष गुहा में होती है। यहाँ यह दो शाखाओं में बँट जाती है-इसमें से एक दायें फेफड़े में तथा एक बायें फेफड़े में जाकर फिर शाखाओं में विभक्त हो जाती है।
  • ब्रोंकाई: ट्रैकिया, वक्षीय गुहा में जाकर दो भागों में बँट जाती हैं, जिसे ब्रोंकाई कहते हैं।
  • फेफड़े (Lung): यह वक्ष गुहा में एक जोड़ी अंग है जिसका आधार डायाफ्राम पर टिका रहता है। प्रत्येक फेफड़े में करोड़ों एल्वियोलाई (Alveoli) होते हैं।
  • प्रत्येक फेफड़ा एक झिल्ली द्वारा घिरा रहता है जिसे प्लूरल मेम्ब्रेन (Pleural membrane) कहते’ हैं, जिसमें द्रव भरा होता है जो फेफड़ों की रक्षा करती है।

मानव में श्वासोच्छवास की विधि

  • इसे फुफ्फुस संवातन भी कहते हैं। यह प्रक्रिया दो उपचरणों में विभाजित है:
  1. अंत:शवसन
  • अंत:श्वसन के दौरान डायफ्राम की अरीय मांसपेशियाँ तथा बाह्य अन्तरापर्शुक पेशी सिकुड़ती हैं।
  • इसके कारण डायफ्राम उदर की ओर झुक जाता है और फुफ्फुस में वायुदाब कम होने लगता है, इसलिए वायु, वातावरण से नासिका द्वारा फेफड़ों में प्रवेश करती है।
  • इस प्रकार अंत:श्वसन में फुफ्फुस के भीतर वायु का आना उसके भीतर के वायुदाब पर निर्भर करता है।
  1. निःश्वसन
  • नि:श्वसन के दौरान डायाफ्राम की आरीय पेशियों में तथा अन्तः अन्तरापर्शुक पेशियों में शिथलन होती है, जिसके कारण डायाफ्राम वक्ष की ओर ऊपर उठता है और वक्षीय भिति भीतर की ओर गति करती है। इससे फुफ्फुस में वायुदाब अधिक हो जाता है और फेफड़ों से वायु नासिका से होती हुई बाहर चली जाती है।

शवसन से संबंधित तथ्य


  • सामान्य अवस्था में श्वसन की दर 15-18 प्रति मिनट है।
  • कठिन परिश्रम या व्यायाम के समय श्वसन दर 20 से 25 गुना बढ़ जाती है।
  • श्वास लेने की क्रिया के प्रत्येक चक्र में लगभग 500 मिली. वायु का अंत: श्वसन एवं नि:श्वसन होता है।
  • 24 घंटे में हम 15000 लीटर वायु का अंत: श्वसन करते है।
  • वायु श्वसन के दौरान एक ग्लूकोज अणु से 36 से 38 ATP अणु बनते हैं, जबकि अवायु श्वसन में सिर्फ 2ATP अणु बनते हैं।

धूम्रपान करने वालों तथा क्षयरोग से ग्रस्त व्यक्तियों में श्वासधारिता बहुत कम हो जाती है। इसके विपरित खिलाड़ियों तथा गायकों में यह धारिता बहुत बढ़ जाती है।

एपिग्लॉटिस (Epiglottis) एक पल्ले जैसी संरचना होती है जो वाल्व का कार्य करती है। खाना निगलते समय यह फेफड़ों की सुरक्षा करती है। एपिग्लॉटिस निगले गए खाने को वायुनली में जाने से रोकता हैं।

श्वासन तथा श्वसन में अंतर
श्वासन (Breathing) श्वसन (Respiration)
1. यह एक भौतिक क्रिया है। 1. यह एक रासायनिक प्रक्रिया है।
2. इसमें श्वसन मार्ग तथा फेफड़े निहित हैं। 2. यह प्रत्येक कोशिका के भीतर होती है।
3. इसमें वायु का अंत:श्वासन तथा बाह्यश्वासन होता है। 3. इसमें ग्लूकोज़ का ऑक्सीकरण होता है, जिससे ऊर्जा का विमोचन होता है।

तीन सामान्य श्वासन (फुफ्फुस) दोष
दमा (Asthma) श्वास लेने में कठिनाई, क्योंकि श्वसनिकाएँ संकीर्ण हो गयी होती हैं। कभी-कभार पर्यावरण में पाए जाने वाले कुछ खास कारकों के कारण भी यह दोष हो जाता है।
निमोनिया (Pneumonia) बैक्टीरिया के संक्रमण से फेफड़ों में शोथ हो जाता है। प्रकट लक्षण हैं- ज्वर, पीड़ा तथा बहुत ज्यादा खांसी।
क्षयरोग (Tuberculosis) फेफड़ों के भीतर ऊतकों के पिंड से बन जाते हैं, जो बैक्टीरिया के कारण बनते हैं। यह एक संक्रामक रोग है। अतिसीमा हो जाने पर खांसते समय खून आ जाता है। BCG के टीकाकारण से क्षय रोग से बचा जा सकता है।

श्वसन के दौरान अदलते-बदलते आयतन
ज्वारीय आयतन (Tidal volume) बिना किसी प्रकट प्रयास के (यानी सामान्य श्वास लेने में) भीतर ले जायी जाने और बाहर निकाली जाने वाली वायु का आयतन 300 मि.ली.
सर्वाधिश्वास धारिता (Vital capacity) उस वायु का आयतन जो गहरे-से-गहरे सांस लेने और अधिक से अधिक साँस छोड़ने में शामिल है। 400 मि.ली.
अवशेष आयतन (Residual volume) उस वायु का आयतन जो अधिक-से-अधिक भींच कर सांस निकालने के बाद भी फेफड़ों में बची रह जाती है। 1000 मि.ली. से 1500 मि.ली तक
संपूर्ण फुफ्फुस धारिता  (Total Lung Capacity) सभी फुफ्फुस आयतनों का जोड़ (अधिकतम वायु जो किसी भी समय दोनों फेफड़ों में संग्रहित हो सकती है)। 5500 मि.ली. से 6000 मि.ली.

मानव के श्वसन अंगों की संरचना और उनके प्रकार्य
अंग संरचना प्रकार्य
नासा द्वार (Nostrils) नाक के छिद्र अनचाहे कणों का छन जाना
नासागुहा (Nasal cavity) श्लेष्मा झिल्ली एवं सीलिया से आवरित। धूल तथा बैक्टीरिया को फाँस लेते, वायु को गर्म एवं आर्द करते हैं।
ग्रसनी (Pharynx) पेशीय नली श्वसन और पाचन दोनों तंत्रों के मार्ग बनाती है, परंतु पीछे के भाग में दोनों को पृथक करने के लिए एक एपिग्लॉटिस होता है।
लैरिंक्स (Larynx) एक बड़ा कक्ष जिसके भीतर स्वर-रज्जु होते हैं। ग्रसनी को श्वासनली को साथ जोड़ता है।
श्वासनली (Trachea) (वायुनली) सी-आकृति के कार्टिलेजी वलयों द्वारा आलम्बित। श्वसनियों तक वायु का मार्ग, फेफड़ों में प्रवेश।
श्वसनी (Bronchus) (बहुवचन- Bronchi) । प्रत्यास्थ सिलियायित तथा श्लेष्मी फेफड़ों में श्वसनिकाओं के रूप में प्रवेश।
श्वसनिकाएँ (Bronchioles) श्वसनी की छोटी अंतिम शाखाएँ वायु को कूपिकाओं में पहुँचाती हैं।
कूपिकाएँ (Alveoli) (वायु कोश airsacs) इनमें रक्त कोशिकाएँ होती हैं। गैसों का विनिमय।

जन्तुओं के श्वसन वर्णक (Respiratory Pigments in Animal)
वर्णक स्थिति धातुयुक्त रंग विवरण
ऑक्सीजनित अनाक्सीजनित
हीमोग्लोबिन लाल रूधिराणु एवं लौह लाल लाल सभी केशरूक प्लाज्मा जन्तु, एनेलिड्स एवं मोलस्कस
हीमोसायनिन प्लाज्मा तांबा नीला रंगहीन अधिकांश मोलस्कस एवं आर्थोपोड
हीमोएरिथ्रिन रूधिराणु लौह लाल रंगहीन कुछ ऐनेलिड्स
क्लोरोक्लूओरिन प्लाज्मा तांबा हरा हरा कुछ ऐनेलिड्स
पिन्नोग्लोबिन प्लाज्मा मैग्नीज भूरा भूरा कुछ मोलस्कस

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