20 देशों का समूह Group of Twenty – G-20

यह संगठन औद्योगिक देशों और उभरते बाजारों के बीच अनौपचारिक परामर्श के लिये एक मंच का कार्य करता है।

सदस्यता: अर्जेंटीना, आस्ट्रेलिया, ब्राजील, कनाडा, चीन, फ़्रांस, जर्मनी, भारत, इंडोनेशिया, इटली, जापान, मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ।

गैर-राज्य भागीदार: विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष।

उद्भव एवं विकास

1990 के दशक के अंत में जी-7 के सदस्यों ने अनुभव किया कि यद्यपि उनका संगठन महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय आर्थिक मुद्दों पर अनौपचारिक और यथेष्ट चर्चा के लिये एक प्रभावी मंच सिद्ध हुआ था, तथापि, अंतरराष्ट्रीय अर्थ और वित्तीय व्यवस्था के विकास से संबंधित नीति विकसित करने में नये उभर रहे बाजारों के व्यापक प्रतिनिधित्व की आवश्यकता थी। कोलोगन शिखर सम्मेलन, 1999 में जी-7 के नेताओं ने दैहिक रूप से (systemically) महत्वपूर्ण देशों (जिनमें औद्योगिक देश तथा उभरते हुए बड़े बाजार सम्मिलित थे) के मध्य संवाद स्थापित करने के लिये ब्रेटन वुड्स संस्थागत प्रणाली के ढांचे के अन्दर एक अनौपचारिक तंत्र स्थापित करने के लिये अपने को समर्पित किया।

तदनन्तर 25 सितम्बर, 1999, को वाशिंगटन डीसी में जी-7 के वित्त मंत्रियों ने 20 देशों के समूह (जी-20) के गठन की घोषणा की। इस समूह में 19 देशों, यूरोपीय संघ तथा ब्रेटन वुड्स संस्थाओं (आईएमएफ और विश्व बैंक) को सम्मिलित किया गया।

जी-20 की स्थापना 20 अगस्त, 2003 को की गई। इस समूह का उदय कैनकुन, मैक्सिको में 10-14 सितम्बर, 2003 की डब्ल्यूटीओ की पांचवीं मंत्रिस्तरीय बैठक में हुआ।


उद्देश्य

जी-20 का प्रमुख उद्देश्य है- अंतरराष्ट्रीय वित्तीय स्थिरता लाने के लिये औद्योगिक देशों और उभरते हुए बड़े बाजारों के मध्य नीतिगत मुद्दों की समीक्षा और अध्ययन को प्रोत्साहित करना।

संरचना

जी-20 की कोई औपचारिक संरचना नहीं है। जी-20 के आकार और संरचना को इस प्रकार निर्मित किया गया है, जिससे कि अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर आम राय बन सके तथा विचारों का अनौपचारिक आदान-प्रदान हो सके। प्रत्येक वर्ष वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों की बैठक आयोजित होती है। मंत्रिस्तरीय बैठकों की तैयारी करने के उद्देश्य से मंत्रियों तथा गवर्नरों के प्रतिनिधियों की समय-समय पर बैठक होती है।

जी-7 की तरह जी-20 का भी कोई स्थायी सचिवालय नहीं है। अध्यक्ष देश सचिवालय सहायता प्रदान करता है।

गतिविधियां

औद्योगिक देशों तथा उभरते हुए प्रभुत्व बाजारों की भागीदारी के माध्यम से जी-20 विविध विचार-बिन्दुओं का प्रतिनिधित्व करता है। व्यापक रूप से, जी-20 वितीय क्षेत्र के विनियमन और पर्यवेक्षण, विवेकपूर्ण ऋण प्रबंधन, विनियम दर व्यवस्था में स्थायित्व, अंतरराष्ट्रीय संहिताओं और मानकों के क्रियान्वयन तथा वित्तीय संकट की संवेदनशीलता को कम करने के लिये उपाय के क्षेत्रों में कार्य करता है ताकि एक अधिक स्थायी अंतरराष्ट्रीय वित्त व्यवस्था स्थापित हो सके।

विश्व बैंक और आईएमएफ के अधिकारियों के सम्मिलित होने से यह सुनिश्चित होता है कि जी-20 की प्रक्रिया इन संस्थाओं की गतिविधियों से पूर्ण रूप से जुड़ी हुई है। जी-20 वितीय स्थायित्व मंच तथा अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक और वित्तीय समिति जैसी संस्थाओं के समन्वय में सहयोग देता है। जी-20 के सदस्यों के मध्य जटिल विषयों पर सामूहिक निर्णय लेने की क्षमता में विकास के अन्य मंचों पर भी निर्णय-प्रक्रिया में प्रगति लाने के लिए एक यंत्र विकसित होता है।

जी-20 में जी-8 के देशों-अमेरिका, रूस (मार्च 2014 से निलम्बित), फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, ब्रिटेन, इटली व् जापान के अतिरिक्त अर्जेंटीना, आस्ट्रेलिया, ब्राजील, चीन, भारत, इंडोनेशिया, मैक्सिको, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, तुर्की व यूरोपीय संघ शामिल हैं। विश्व की दो-तिहाई जनसंख्या को आश्रय देने वाले इन देशों की वैश्विक कारोबार में हिस्सेदारी जहां 80 प्रतिशत है, वहीं वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में उनकी हिस्सेदारी 90 प्रतिशत है।

विकसित एवं विकासशील देशों के समूह जी-20 का सातवां शिखर सम्मेलन 18-19 जून, 2012 को मैक्सिको में लॉस कॉबोस में संपन्न हुआ जिसके पश्चात् एक अन्य महत्वपूर्ण सतत् विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (रियो+20) ब्राजील के प्रमुख शहर रियो डि जेनेरो में 20-22 जून, 2012 को संपन्न हुआ। इस सम्मेलन में विचार का मुख्य मुद्दा यूरोप जोन का ऋण संकट ही था। वैश्विक विकास, रोजगार सृजन, बहुपक्षीय संस्थाओं की सुदृढ़ता, विश्व व्यापार एवं निवेश इत्यादि अंतरराष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर भी सम्मेलन में चर्चा की गई। नवम्बर 2011 में फ्रांस के कान में संपन्न छठे शिखर सम्मेलन के बाद की वैश्विक चुनौतियों पर विशेष रूप से ध्यान इस सम्मेलन में केन्द्रित किया गया। इस सम्मेलन में वैश्विक आर्थिक सुधार, सतत् विकास, निर्धनता उन्मूलन व रोजगार सृजन के लिए आधारिक संरचना में निवेश को बढ़ावा देने पर बल दिया गया। सियोल में जी-20 के पांचवें व कान (फ्रांस) में छठे शिखर सम्मेलन में भी ये मुद्दे उठाए गए थे। इस संदर्भ में बहुपक्षीय विकास बैंकों के संसाधन आधार में पर्याप्त वृद्धि के लिए कदम उठाने की आवश्यकता पर भी बल दिया गया, ताकि विकासशील राष्ट्रों के विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद की पर्याप्त क्षमता उनके पास रहे। भारत सहित ब्रिक्स देशों ने आईएमएफ के सुरक्षा कोष में 10 अरब डॉलर के योगदान की घोषणा की। वहीं चीन ने 42 अरब डॉलर का योगदान किया।

लॉस काबोस घोषणा-पत्र में स्वीकार किया गया है कि विगत् कान सम्मेलन के पश्चात् वैश्विक अर्थव्यवस्था के समक्ष चुनौतियां बनी रही हैं, जिनका प्रभाव आर्थिक वृद्धि व रोजगार संभावनाओं पर पड़ा है। इसके लिए लॉस काबोस ग्रोथ एण्ड जॉब्स एक्शन प्लान को सम्मेलन में स्वीकार किया गया। वित्तीय लेन-देनों के लिए एक लीगल एंटिटी आइडेंटिफायर प्रणाली विकसित करने की फाइनेंशियल स्टेबिलिटी बोर्ड की सिफारिशों का जी-20 घोषणा-पत्र में अनुमोदन किया गया। एलईआई प्रणाली मार्च 2013 से लागू कर दी गई। वैश्विक खाद्य सुरक्षा के लिए इसके विभिन्न पहलुओं के लिए कार्य योजनाओं का उल्लेख घोषणा-पत्र में किया गया है। वर्तमान एवं भविष्य की पीढ़ियों के लिए दीर्घकालिक विकास के लिए मौजूदा आर्थिक संकट से ऊपर उठकर पर्यावरण की हिफाजत की बात भी कही गई।

जी-20 का आठवां शिखर सम्मेलन 5-6 सितंबर, 2013 को रूस के सेंटपीटर्सबर्ग में आयोजित किया गया। इसमें गुणवत्तायुक्त रोजगार और निवेश, विश्वास और खुलेपन के साथ विकास एवं प्रभावी वित्तीय नियमन के साथ विकास संबंधी प्राथमिकताओं पर विशेष बल दिया गया। इस सम्मेलन में एक घोषणा-पत्र स्वीकार किया गया। जिसमें अमेरिका में निजी मांग में आई मजबूती और जापान एवं ब्रिटेन में विकास के जोर पकड़ने का उल्लेख करते हुए यूरो क्षेत्र में भी सुधार के लक्षण दिखाई देने की बात कही गई है। यद्यपि उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में भी विकास लगातार दिखाई दे रहा है, लेकिन कुछ देशों में इसकी रफ्तार धीमी है। वित्तीय बाजार दशाओं का सावधानीपूर्वक मॉनीटरिंग करने पर भी जोर दिया गया।

आर्थिक विकास एवं समृद्धि के लिए घोषणा-पत्र में नियम आधारित मुक्त व्यापार का समर्थन किया गया। इसके साथ ही एक मजबूत व बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली की स्थापना के लिए मांग की गई जिसमें संरक्षणवादी नीतियों को समाप्त कर व्यापार प्रक्रियाओं में खुलापन लाया जाएगा। घोषणा-पत्र में घरेलू स्तर पर वित्तीय सुधारों पर विशेष बल दिया गया।

वर्ष 2011 से, जब फ्रांस ने जी-20 की शिखर बैठक की अध्यक्षता की, शिखर सम्मेलन वर्ष में एक बार होने लगे। वर्ष 2008 के शिखर बैठक के पश्चात् जी-20 के नेता साल में 2 बार 2009 में लंदन और पिट्सबर्ग में, और 2010 में टोरंटो और सियोल में मिले। जी-20 के आगामी शिखर बैठक 2014 में आस्ट्रेलिया में और 2015 में तुर्की में प्रस्तावित हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *