आठ देशों का समूह G8 (forum)

यह समूह विश्व के आठ प्रमुख औद्योगिक देशों को उच्चतम स्तर पर परामर्श और नीति-समन्वयन के लिये एकजुट करता है।

सदस्य: कनाडा, फ़्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, रूस, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका।

[24 मार्च, 2014 को रूस को यूक्रेन में क्रीमिया संकट में संलग्न होने के चलते समूह की सदस्यता से निलम्बित कर दिया है। यूरोपीय आयोग भी जी-8 की बैठकों में शामिल होता है।]

आउटरीच फाइवः ब्राजील, चीन, भारत, मैक्सिको और दक्षिण अफ्रीका।

उद्भव एवं विकास

इस समूह के गठन की प्रक्रिया नवम्बर 1975 में शुरू हुई जब फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति वेलारी गिस्कार्ड डी इस्टेंग और जर्मनी के तत्कालीन चांसलर व्हेलमेट श्मिङ्ट ने तेल के बढ़ते मूल्यों से उत्पन्न संकट पर विचार करने के लिये संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन, इटली और जापान को चेट्अऊ ऑफ रेमब्यूलेट (फ़्रांस) (Chateau of Rambouillet–France) की बैठक में सम्मिलित होने का निमंत्रण दिया। एक अन्य सदस्य- कनाडा, ने जून 1976 में सैन जुआन (प्यूर्टो रिको) में आयोजित बैठक में भाग लिया तथा सात देशों के समूह (जी-7) का औपचारिक रूप से गठन हुआ। जी-7 आर्थिक विकास, मुद्रास्फीति, बेरोजगारी, व्यापार समस्याओं तथा विकसित देशों की अन्य अनेक समस्याओं पर विचार करने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय मंच बन गया। बाद में इसने राजनीतिक विषयों पर भी चर्चा करना शुरू कर दिया।

मई 1977 में लंदन मे आयोजित शिखर सम्मेलन में यूरोपीय समुदाय आयोग (ईईसी) के अध्यक्ष ने भी हिस्सा लिया। जुलाई 1984 में नेपल्स (इटली) में आयोजित 20वें शिखर सम्मेलन में रूस को समूह के आदि-सदस्य (proto-member) के रूप में सम्मिलित किया गया। डेनबर (संयुक्त राज्य अमेरिका) शिखर सम्मेलन, 1997 में रूस एक पूर्णकालिक सदस्य बन गया तथा जी-7 का नाम जी-8 या G-7+1 हो गया। लेकिन रूस सिर्फ राजनीतिक वार्ताओं में भाग लेता है, आर्थिक मामलों में इसकी कोई भूमिका नहीं है।


जी-8 का न तो कोई मुख्यालय है और न ही इसके लिए सदस्य राष्ट्रों द्वारा किसी प्रकार के बजट का कोई प्रावधान है। इसका पूरा खर्च वही देश उठाता है, जो इसका आयोजन करता है और आयोजनकर्ता राष्ट्र ही इसका अध्यक्ष भी होता है।

उद्देश्य

इस समूह का मुख्य उद्देश्य प्रमुख आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक विषयों पर विचार-विमर्श करना तथा रणनीति विकसित करना है।

संरचना

जी-8 की कोई औपचारिक संस्थागत संरचना नहीं है। जी-7+1 की क्षमता (competence) के अधीन विषयों पर चर्चा करने के लिये सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों/शासनाध्यक्षों तथा यूरोपीय संघ के प्रतिनिधियों का वार्षिक सम्मेलन होता है। 1986 के शिखर सम्मेलन में यह निर्णय लिया गया कि जी-7 वित्त मंत्री वार्षिक शिखर सम्मेलनों के मध्य नियमित रूप से कार्य करेगा तथा शिखर सम्मेलनों में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा। सदस्य देशों के विदेश और आर्थिक मंत्रालयों के वरिष्ठ अधिकारी समूह की कार्यसूची तैयार करने के लिये उत्तरदायी होते हैं।

गतिविधियां

जी-7 की स्थापना मूलतः आर्थिक मुद्दों पर विचार करने के लिये की गई थी। अतः यह अंतरराष्ट्रीय वित्तीय विषयों तथा प्रासंगिक बहुपक्षीय वित्तीय  संस्थाओं, विशेषकर अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ), के कार्य से घनिष्ठ रूप से जुड़ा हुआ है। जी-7 सदस्यों का विश्व बैंक, आईएमएफ और अनेक अन्य आर्थिक संस्थाओं पर अत्यधिक वर्चस्व है तथा वे इन संस्थाओं की ऋण-पद्धति को परिवर्तित कर सकते हैं। यह समूह मुक्त बाजार व्यवस्था; सरकारी अनियंत्रण (असमान्य परिस्थितियों को छोड़कर); पूरे विश्व की राजकोषीय और मौद्रिक नीति में पारदर्शिता की वकालत करता है; अंतरराष्ट्रीय आर्थिक और मौद्रिक संस्थाओं पर बल देता है, तथा; अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डब्ल्यूटीओ को मजबूत करने का पक्षधर है। रूसी अर्थव्यवस्था को मुक्त बाजार व्यवस्था में परिवर्तित करने की प्रक्रिया में जी-7 की भूमिका अग्रणी रही है।

तृतीय विश्व-ऋण व्यवस्था भी जी-7 के लिये एक प्रमुख विचारणीय विषय रहा है। 1998 के शिखर सम्मेलन ने पेरिस क्लब (औद्योगिक देशों का समूह, जो विभिन्न देशों के बीच सरकारी ऋण समझौतों का प्रबंधन करता है) से आग्रह किया कि वह निर्धनतम देशों पर ऋण भार को कम करने के लिये उपलब्ध सभी विकल्पों की तुलना के लिये एक फार्मूला विकसित करे। वर्ष 1994 में नेपल्स शिखर सम्मेलन ने 47 निर्धनतम देशों, जिन पर 400 बिलियन डॉलर से अधिक ऋण भार था, के लिये निर्मुक्ति (amnesty) योजना को अपनाया। 1996 में जी-7 ने अत्यधिक ऋणग्रस्त गरीब देश अभिक्रम (Highly Indebted Poor Countries–HIPC) शुरू किया, जिसके तहत आईएमएफ के संरचनात्मक सुधार कार्यक्रम अपनाने के बदले गरीब देशों के ऋण के एक हिस्से को रद्द करने की व्यवस्था थी। कोलगन शिखर सम्मेलन, 1999 में जी-7 के नेता कोलगन ऋण अभिक्रम पर सहमत हुये। इस अभिक्रम में विश्व के 36 निर्धनतम देशों के विदशी ऋण में तीव्र, गहरी और विस्तृत कमी लाने का प्रावधान है।

जहां तक गैर-आर्थिक मुद्दों का प्रश्न है, जी-7 ने बढ़ते अंतरराष्ट्रीय अपराध, शस्त्र प्रसार तथा अनेक राजनीतिक संकटों (राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय दोनों) पर चिन्ता व्यक्त की है।

विश्व के आठ औद्योगिक देशों के समूह जी-8 का 38वां शिखर सम्मेलन अमेरिका के कैम्प डेविड में 18-19 मई, 2012 को संपन्न हुआ। 37वां सम्मेलन मई 2011 में फ्रांस में संपन्न हुआ। हालांकि जी-8 का 38वां सम्मेलन पहले शिकागो में आयोजित होना था लेकिन 20-21 मई, 2012 की वहां नाटो शिखर सम्मेलन होने के कारण जी-8 के शिखर सम्मेलन के आयोजन स्थल में परिवर्तन कर दिया गया। इस शिखर सम्मेलन में विचारणीय मुख्य मुद्दों में यूनान का वित्तीय संकट तथा वहां सरकार के गठन में हुई विफलता, यूरोप का ऋण तथा जी-8 के 37वें ड्यूविले सम्मेलन में निष्कर्षहीन रहे मुद्दे शामिल थे। यूरो जोन के मजबूत बने रहने को महत्वपूर्ण स्वीकार करते हुए यूनान के यूरो जोन में बने रहने के प्रति रुचि जी-8 राष्ट्रों ने व्यक्त की। सम्मेलन में स्वीकार किए गए घोषणा-पत्र में आर्थिक वृद्धि को प्रोत्साहित करने वाली रणनीतियों के महत्व को स्वीकार करते हुए विश्व के 5 करोड़ निर्धनों को खाद्य सुरक्षा उपलब्ध कराने के लिए पहल पर सहमति व्यक्त की गई है। ईरान पर दबाव बढ़ाते हुए उसे परमाणु कार्यक्रम से संबंधित अपने सभी मुद्दे तेजी से निपटाने को जी-8 ने कहा। ईरान पर प्रतिबंध के बावजूद विभिन्न देशों को कच्चे तेल की समय पर आपूर्ति सुनिश्चित करने को कदम उठाने की बात घोषणा-पत्र में कही गई। सीरिया के लिए कोफी अन्नान की समाधान योजना का समर्थन जहां जी-8 ने किया है, वहीं उत्तर कोरिया को उकसावे की कार्यवाही से बचने का आग्रह करते हुए अपने अंतरराष्ट्रीय दायित्वों का पालन करने तथा मिसाइल लांच जैसी उत्तेजक कार्यवाही से बचने की नसीहत भी कैम्प डेविड घोषणा-पत्र में दी गई।

जी-8 का 39वां शिखर सम्मेलन ब्रिटेन के तत्वावधान में 17-18 जून, 2013 को उत्तरी आयरलैंड के लॉफ अर्ने में आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में विश्व अर्थव्यवस्था, सीरियाई स्थिति, आतंकवाद जैसे मुद्दों के साथ-साथ विकसित एवं विकासशील देशों के अहम मुद्दों- मुक्त व्यापार, कर अपवंचन एवं चोरी की रोकथाम एवं पारदर्शिता अभिवृद्धि-पर भी बातचीत की गई। जैसाकि इस सम्मेलन का केंद्रीय विषय कर अपवंचन एवं पारदर्शिता था। उल्लेखनीय है कि इस बैठक में यूरोपीय संघ एवं अमेरिका एक खरब अमेरिकी डॉलर के मूल्य तक का मुक्त व्यापार समझौता वार्ता शुरू करने का फैसला किया, जो शिखर सम्मेलन की प्रथम उपलब्धि रही। सम्मेलन में सीरिया मुद्दे पर सात सूत्रीय योजना पर सहमति के साथ-साथ कर सूचनाओं को साझा करना, खनन कपनियों के लिए नए नियमों का निर्माण करना तथा अपहरणकर्ताओं से अपहृत व्यक्ति की छुड़ाने के बदले उन्हें धन नहीं देने की प्रतिबद्धता आदि प्रमुख क्षेत्र भी शामिल थे।

वर्ष 2009 से वैश्विक खाद्य आपूर्ति जी-8 के ध्यान का मुख्य केंद्र रहा है। 2009 के एल एक्विला सम्मेलन में तीन वर्षों के भीतर इस पर 20 बिलियन डॉलर व्यय करने की वचनबद्धता जाहिर की गई थी लेकिन तब से मात्र 22 प्रतिशत फंड ही प्रदान किया गया।

2012 के सम्मेलन में एक ऐसी योजना एवं नीति अपनाने की बात की गई जो वैश्विक खाद्य निवेश का निजीकरण करेगी।

24 मार्च, 2014 को क्रोमिया मामले में रूस की संलग्नता को लेकर उसे जी-8 से निलम्बित कर दिया गया। इसके परिणामस्वरूप रूस के सोची शहर में होने वाले शिखर सम्मेलन को निरस्त कर बुसेल्स में करना तय किया गया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *