फसल गहनता Crop Intensification

देश की तेजी से बढ़ती जनसंख्या की खाद्य एवं अन्य जरूरतों को केवल दो ही तरह से पूरा किया जा सकता है- एक, या तो विशुद्ध कृषित क्षेत्र में वृद्धि की जाय या दूसरे, मौजूदा कृषित क्षेत्र में फसल गहनता को अपनाया जाय। देश के शुद्ध बुआई क्षेत्र में स्वतंत्रता के बाद से लगभग 20 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है और यह उस बिंदु पर पहुंच गयी, जिसके बाद सुगमतापूर्वक किसी प्रकार की वृद्धि प्राप्त करना संभव नहीं हैं। इस प्रकार फसल गहनता में वृद्धि लाना ही एकमात्र उपाय बचता है।

फसल गहनता के अंतर्गत एक ही खेत से एक कृषि वर्ष के दौरान कई फसलें प्राप्त की जाती हैं, इसे निम्न सूत्र द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है:

crop

इस प्रकार उच्च फसल गहनता का अर्थ है कि एक कृषि वर्ष के दौरान शुद्ध बुआई क्षेत्र में एक से अधिक फसल उगायी जाए। यह एक कृषि वर्ष की अवधि में कृषि योग्य भूमि की प्रति इकाई उच्च उत्पादकता का संकेत भी देती है।

फसल गहनता व्यापक स्थानिक विभेदों को दर्शाती है। फसल गहनता उत्तरी मैदानों में उच्च स्तर पर पायी जाती है। राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक के शुष्क एवं वर्षाधीन क्षेत्रों में निम्न स्तर पर पायी जाती है।

फसल गहनता बढ़ाने के उपाय

सिंचाई: सिंचाई द्वारा उत्तरी राज्यों की फसल गहनता बढ़ने में महत्वपूर्ण योगदान दिया गया है। सिंचाई द्वारा शुष्क मौसम के दौरान भी फसल की वृद्धिशील बनाये रखने के परिणामतः फसल गहनता में वृद्धि की जाती है।


उर्वरक: भूमि के पोषक तत्वों की पुनः प्राप्ति हेतु भूमि को कुछ समय के लिए परती छोड़ना पड़ता है किन्तु इसकी क्षतिपूर्ति उर्वरकों के उपयोग तथा अन्य उपयुक्त फसल पद्धतियों को अपनाकर की जा सकती है।

फसल चक्रण: यह निरंतर फसलों को उगने का उपयुक्त व्यवस्थापन है, जिसमें विभिन्न फसलों द्वारा अलग-अलग अनुपात एवं स्तरों पर पोषक तत्व प्राप्त और निर्गमित किये जाते हैं। उदाहरण के लिए यदि अनाजों के ठीक पहले फलीदार (दाल, चना इत्यादि) और तिलहन फसलें उगायी जाएं तो वे मिट्टी में वायुमंडलीय नाइट्रोजन को स्थिर कर देती है जिसे अनाज की फसलों द्वारा अवशोषित किया जा सकता है।

मिश्रित फसल: यह भी समान सिद्धांत पर कार्य करती है। इसमें गेहूं-जई या गेहूं-चना या जौ-चना को साथ-साथ उगाया जाता है ताकि विभिन्न पोषकों के मध्य खपत का संतुलन कायम रह सके।

निर्भर फसल: इसके अंतर्गत एक ही खेत में अलग-अलग परिपक्व काल की विभिन्न फसलें बोयी जाती हैं तथा उन्हें एक के बाद एक करके काटा जाता है। उदाहरणस्वरूप अत्यधिक उर्वरक खपत वाली गणना एवं तम्बाकू की फसल के बाद अनाज की फसलें उगाई जाती है ताकि अवशिष्ट पोषकों का उपयोग किया जा सके।

चयनित यांत्रिकीकरण: ट्रैक्टर, थ्रेसर, हेलॉन इत्यादि का प्रयोग दो फसलों को उगने के बीच के समय की बचत हेतु किया जा सकता है। इस प्रकार यांत्रिकीकरण करने से एकाधिक फसलों की बुआई में सुगमता होती है।

तीव्रता से परिपक्व होने वाली किस्मों का प्रयोग: ये किस्में एक मौसम में एक से अधिक फसल उगाने में सहायक होती हैं।

उपयुक्त पौध सुरक्षा: इसके अंतर्गत जैवनाशक एवं कीटनाशकों के प्रयोग, बीज उपचार, कृतक तथा खर-पतवार नियंत्रण जैसे उपायों को शामिल किया जाता है।

ये उपाय एक क्षेत्र के किसानों द्वारा सामूहिक रूप से अपनाये जाने पर ही प्रभारी सिद्ध होते हैं। इसलिए ये उपाय संस्थात्मक आधार पर ही प्रोत्साहित किये जाने चाहिए। साथ ही मृदा संरक्षण उपायों द्वारा भी उपज में मजबूत सुधार किया जा सकता है। कृषि की दृष्टि से उन्नत राज्यों में आधुनिक कृषि आगतों द्वारा फसल गहनता वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गयी है।

आधुनिक आगतों के प्रयोग से फसल गहनता में वृद्धि हुई है। इसे कृषि की दृष्टि से विकसित एवं सामान्य विकसित राज्यों, जैसे-पंजाब (विकसित) एवं गुजरात (सामान्य विकसित) में आधुनिक आगतों के प्रसार की तुलना करके समझा जा सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *