भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग Competition Commission of India – CCI

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग पर पूरे भारत में प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 को लागू कराने की जिम्मेदारी है और साथ ही ऐसी गतिविधियों को रोकना है जो भारत में प्रतियोगिता या प्रतिस्पर्द्धा पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं। सीसीआई का गठन 14 अक्टूबर, 2003 को किया गया। मई 2009 में 1 अध्यक्ष और 6 सदस्यों के साथ इसने पूरी तरह से कार्य करना प्रारंभ कर दिया।

प्रतिस्पर्द्धा अधनियम प्रतिस्पर्द्धा को सुनिश्चित और बाजारी शक्तियों के दुरूपयोग और प्रभाव को रोकने के लिए एक औपचारिक तथा विधायी ढांचा प्रदान करता है। प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 में प्रावधान है कि इसका एक अध्यक्ष होगा और कम से कम दो और अधिकतम छह सदस्य होंगे। इसके अतिरिक्त यह प्रावधान भी है कि एक प्रतिस्पर्धी अपील ट्रिब्यूनल स्थापित होगा जो आयोग के आदेशों के खिलाफ अपील पर सुनवाई तथा निपटारा करेगा। प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम के प्रमुख उद्देश्य हैं-

प्रतिस्पर्द्धा पर विपरीत प्रभाव वाले क्रियाकलापों को ख़त्म करना, प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देना, उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करना तथा भारतीय बाजारों में व्यापार की स्वतंत्रता सुनिश्चित करना।

प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम की धारा 49(3) के अंतर्गत आयोग पर यह जिम्मेदारी होगी की प्रतिस्पर्द्धा समर्थन को बढ़ावा देने तथा प्रतिस्पर्द्धा मामलों के बारे में प्रशिक्षण देने के लिए उचित कदम उठाए। इसके लिए आयोग ने छात्रों और औद्योगिक संगठनों, सार्वजानिक क्षेत्र उपक्रमों, उपभोक्ता संगठनों, व्यवसायिक संस्थानों आदि के साथ मिलकर विभिन्न कार्यशालाएं सम्मेलन आदि आयोजित की हैं।

सीसीआई के कृत्य एवं दायित्व

  • बाजार को उपभोक्ताओं के कल्याण एवं लाभ का हितैषी बनाना।
  • देश में अर्थव्यवस्था के विकास एवं तीव्र तथा समावेशी वृद्धि के लिए आर्थिक गतिविधियों में स्वस्थ एवं स्वच्छ प्रतिस्पर्द्धा को सुनिश्चित करना।
  • आर्थिक संसाधनों के बेहद दक्ष उपयोग के उद्देश्य के साथ प्रतिस्पर्द्धा नीतियों का क्रियान्वयन करना।
  • प्रतिस्पर्द्धा को प्रभावी रूप से फैलाना और भारतीय अर्थव्यवस्था में प्रतिस्पर्द्धा संस्कृति को विकसित एवं स्थापित करने के लिए सभी अंशधारियों के बीच प्रतिस्पर्द्धा के लाभों की सूचना का प्रसार करना।

भारतीय प्रतिस्पर्द्धा आयोग का मूल्यांकन

सीसीआई सभी क्षेत्रों की कंपनियों पर नियंत्रण रखती है। सीसीआई का उद्देश्य कार्टल एवं एकाधिकार के दुरूपयोग जैसी प्रतिस्पर्द्धा विरोधी प्रचलनों का उन्मूलन करना है, और साथ ही साथ उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा एवं आर्थिक दक्षता प्राप्ति के लिए प्रतिस्पर्द्धा विरोधी सभागमों एवं अधिग्रहणों की रोकना भी है। इसके अलावा, सीसीआई के एजेंडे में प्रतियोगिता की वकालत करना एक अन्य विशेषण है। सीसीआई सक्रिय रूप से रियल एस्टेट, मनोरंजन, सीमेंट, पेट्रोलियम, स्टील, पर्यटन उद्योग, स्वास्थ्य एवं शिक्षा जैसे क्षेत्रों की जांच कर रही है। वर्तमान में, यह प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 के तहत् प्रतियोगिता मापदण्डों के उल्लंघन के 39 मामलों की जांच कर रहा है। हालाँकि, यह अपने नीति उन्मिख कार्यों में अक्षम रहा है। यद्यपि सेमिनार एवं वर्कशॉप भी सीसीआई को समझने में मदद करते हैं। ये मुख्य रूप से जागरूकता सृजित करते हैं, लेकिन प्रतियोगिता संस्कृति के प्रोत्साहन में चुनौतीपूर्ण नीतियां एवं प्रचलन भी शामिल हैं जो प्रतियोगिता संस्कृति को नुकसान पहुंचाते हैं।


सीसीआई बड़ी कम्पिनियों के बीच भारी-भरकम अर्थदंड लगाने के भय द्वारा प्रतिस्पर्द्धा विरोधी कृत्यों को रोकने का भरसक प्रयास करता है। यह अर्थदण्ड उनकपनियों पर लगाया जाता है जो एकाधिकार उत्पन्न करने और बाजार कीमतों पर प्रभुत्व हासिल करने के लिए प्रतियोगिता उपबंधों का उल्लंघन करते हैं। यह नियामक एजेंसियों के व्यवहार को भी नियंत्रित करता है। उदाहरण के लिए, उपभोक्ताओं ने रिजर्व बैंक से पूर्व भुगतान जुर्माने की शिकायत की। हालांकि मामले पर अधिक गौर नहीं किया गया। जब उपभोक्ता, इस मामले को भारतीय प्रतिस्पद्धि आयोग के समक्ष ले गए, जिससे आरबीआई भयभीत हो गया, और पूर्व-भुगतान जुर्मानों को समाप्त करने की घोषणा कर दी। इसी प्रकार .का समान प्रभाव अन्य नियामक एजेंसियों पर भी देखा जा रहा है।

वर्ष 2011 में, सीसीआई ने नेशनल स्टॉक एक्सचेंज द्वारा करेंसी डेरिवेटिव्स बाजार में अपनी प्रभुत्वशाली स्थिति का दुरुपयोग करने के लिए उस पर 55.5 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया। इसी प्रकार, इसने डीएलएफ पर हैसियत का दुरुपयोग करके क्रेताओं के साथ एकतरफा समझौता करने के लिए 680 करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया। यह मामला प्रतिस्पर्द्धा अपीली न्यायाधिकरण के सम्मुख लंबित पड़ा है।

वर्ष 2012 में, सीसीआई ने 11 सीमेंट कपनियों पर कार्टेल के लिए 6300 करोड़ का जुर्माना लगाया। सीसीआई ने एक गैर-सरकारी संगठन- सीयूटीएस इंटरनेशनल की रिपोर्ट के आधार पर गूगल के खिलाफ जांच कराई।

इन अन्वेषणों ने भविष्य के लिए एक आशा बंधाई है और सभी क्षेत्रों की कंपनियों के लिए कुछ हद तक अवरोध का कार्य किया है। इसके बावजूद, सीसीआई के आदेशों की अक्सर आलोचना की जाती है कि इनमें आर्थिक तार्किकता का अभाव होता है जो एनएसई और डीएलएफ के मामलों में देखने को मिली है।

इससे अधिक, सीसीआई द्वारा आरोपित जुर्मानों को उचित निर्देशों के अभाव में अत्यधिक पाया गया है।

प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम में भी कुछ कमियां हैं जिन्हें सुधारने की जरूरत है जो सीसीआई के प्रभावी कार्यकरण से तालमेल नहीं बैठा पाते। अधिनियम की धारा 26 सीसीआई के लिए कोई उपबंध नहीं करती कि वह किसी मामले को बंद कर दे, यदि महानिदेशक की रिपोर्ट अधिनियम के उल्लंघन की मान्यता देती है। अन्वेषण इकाई की क्षमता निर्माण की आवश्यकता है।

सीसीआई के अधिकारियों की प्रशिक्षित किए जाने की जरूरत है जिससे आदेशों में तार्किक दृष्टि प्रतिबिम्बित हो सके। इससे बढ़कर, सीसीआई के स्टाफ को बेहतर आर्थिक आकलन के लिए भी बेहतर कौशल की जरूरत है।

प्रतिस्पर्धी अपीलीय ट्रिब्यूनल (कैट)

प्रतिस्पर्धी अपीलीय ट्रिब्यूनल में एक अध्यक्ष तथा दो सदस्य हैं। इन्हें निम्न शक्तियां प्राप्त हैं-

  1. प्रतिस्पर्द्धा अधिनियम, 2002 के अंतर्गत स्थापित सीसीआई द्वारा जारी कोई निर्देश या निर्णय अथवा पारित आदेश के खिलाफ दाखिल अपील को सुनना और निस्तारित करना,
  2. आयोग की जांच से सामने आने वाले क्षतिपूर्ति के दावे या आयोग की जांच के खिलाफ अपील में ट्रिब्यूनल के आदेशों तथा उस अधिनियम के अंतर्गत क्षतिपूर्ति की रिकवरी के लिए पारित दावों पर फैसला सुनाना।

उल्लेखनीय है कि पूर्व के एमआरटीपी आयोग के भंग हो जाने पर भारत सरकार के अक्टूबर 2010 के आदेश में एमआरटीपी आयोग के समक्ष लंबित सभी मामलों की सुनवाई कैट को दे दी गई।

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