सीमेण्ट Cement

सीमेण्ट कैल्सियम ऐलुमिनेट तथा कैल्सियम सिलिकेट का मिश्रण होता है। यह एक धूसर (grey) रंग का बारीक चूर्ण होता है, जिसमें जल के साथ अभिक्रिया करके जमने तथा दृढ़ होने का गुण होता है। सीमेण्ट का प्रयोग सबसे पहले इंग्लैंड निवासी जोसेफ आस्पडिन (Joseph Aspdin) नामक अंग्रेज वैज्ञानिक ने 1824 ई० में किया था। उन्होंने इसका नाम पोर्टलैंड सीमेण्ट रखा, क्योंकि उनके द्वारा निर्मित यह सीमेण्ट पोर्टलैंड में पाए जाने वाले चूना प्रस्तरों से काफी हद तक समानता प्रदर्शित करता था। सीमेण्ट में चूना, सिलिका, ऐलुमिना, मैग्नीशिया व आयरन तथा सल्फर के ऑक्साइड मिले रहते हैं। सीमेण्ट् जब जल के सम्पर्क में आता है, तो उसमें उपस्थित कैल्सियम के सिलिकेट व ऐलुमिनेट जल से क्रिया करके एक कोलाइडी विलयन बनाते हैं। यही कोलाइडी विलयन जमकर कड़ा हो जाता है। सीमेण्ट में चूना की मात्रा अधिक रहने पर जमते समय उसमें दरारें पड़ जाती हैं, जबकि सीमेण्ट में ऐलुमिना की मात्रा अधिक रहने पर वह शीघ्र जमता है।

गारा या मोर्टार (Mortar): जब सीमेण्ट के साथ बालू व जल मिलाया जाता है, तो इस मिश्रण को मोर्टार कहा जाता है। यह भवन निर्माण की एक महत्वपूर्ण सामग्री है।

क्रीट (Concrete): जब सीमेण्ट के साथ बालू, जल व छोटे-छोटे कंकड़ पत्थर मिलाये जाते हैं, तो इस मिश्रण को कंक्रीट कहते हैं। यह भवन निर्माण की एक महत्वपूर्ण सामग्री है।

प्रवलित सीमेण्ट कंक्रीट (Reinforced Cement Concrete): जब  करने के लिए इस्पात या लोहे की छड़ों, सलाखों अथवा तार के जालों का व्यवहार होता है तब उसे प्रवलित सीमेण्ट कंक्रीट कहते हैं। इसका उपयोग मकान की छतों, खम्भों, पुलों, बाँधों आदि के निर्माण में होता है।

नोट: सीमेण्ट के उत्पादन के लिए चूना प्रस्तर एवं चिकनी मिट्टी का उपयोग कच्चे माल (Raw Materials) के रूप में किया जाता है। चूना प्रस्तर कैल्सियम ऑक्साइड प्रदान करता है एवं चिकनी मिट्टी सिलिका, ऐलुमिना एवं फेरिक ऑक्साइड प्रदान करती है।

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