कार्बन Carbon

कार्बन (Carbon) आवर्त सारणी के वर्ग 14 का सदस्य है। इस वर्ग के अन्य सदस्य सिलिकन, जर्मेनियम, टिन तथा लेड हैं। चूंकि कार्बन आवर्त सारणी के वर्ग 14 का प्रथम सदस्य है, इस कारण इस उपवर्ग के तत्वों को कार्बन वर्ग के तत्व (Elements of Carbon Family) कहते है। कार्बन का संकेत C तथा परमाणु संख्या 6 होता है। इसका इलेक्ट्रॉनिक विन्यास 1s2, 2s22p2 होता है। इसमें संयोजी इलेक्ट्रॉनों की संख्या 4 होती है। कार्बन वर्ग के तत्वों में लेड को छोड़कर सभी अपरूपता (Allotropy) का गुण प्रदर्शित करते हैं। कार्बन और सिलिकन अधातु (Non-Metal) हैं, जर्मेनियम उपधातु (Metalloid) है, जबकि टिन और लेड धातु (Metal) हैं।

प्राप्ति (Occurrence): प्रकृति में कार्बन मुक्त और संयुक्त दोनों ही अवस्थाओं में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। कार्बन मुक्त अवस्था में हीरा, ग्रेफाइट तथा कोयले के रूप में पाया जाता है। संयुक्तअवस्था में कार्बन धातु के कार्बोनेट, बाइकार्बोनेटस, CO2 हाइड्रोकार्बन, प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट तथा अन्य जटिल यौगिकों के रूप में पाया जाता है।

कार्बन को एक सार्वभौमिक तत्व (Universal Element) माना जाता है। कार्बन के कुल यौगिकों की संख्या 5 लाख से भी अधिक है, जबकि अन्य तत्वों के यौगिकों की कुल संख्या 50 हजार के आस-पास है। प्रकृति में कार्बन ही एक ऐसा तत्व है, जिसके सबसे अधिक यौगिक पाये जाते हैं। कार्बन एक ऐसा तत्व है, जिसमें श्रृंखलन (Catenation) का गुण सबसे अधिक पाया जाता है। किसी तत्व के परमाणुओं के आपस में बंधित होने के गुण को श्रृंखलन कहते हैं। श्रृंखलन के गुण के कारण ही कार्बन के सर्वाधिक यौगिक हैं। कार्बन के विभिन्न रूपों को जिनके रासायनिक गुणों में समानता, किन्तु भौतिक गुणों में अंतर रहता है, कार्बन के अपरूप (Allotrops of Carbon) कहते हैं। कार्बन रवेदार तथा बेरवेदार दोनों ही रूपों में पाया जाता है।

हीरा (Diamond): हीरा कार्बन का क्रिस्टलीय अपरूप हैं। इसका प्राकृतिक स्रोत किम्बरलाइट पत्थर होता है। यह विश्व में दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील, सं० रा० अ०, आस्ट्रेलिया आदि देशों में पाया जाता है। भारतवर्ष में हीरा गोलकुण्डा, अनन्तपुर, बेलारी, पन्ना आदि स्थानों पर मिलता है। संसार के कुछ विख्यात हीरों में कुलिनान (3032 कैरेट), होप (445 कैरेट), कोहिनूर (186 कैरेट) और पिट (136.2 कैरेट) प्रमुख हैं। कृत्रिम हीरा को सर्वप्रथम मोयासां (Moisson) ने 1893 ई० में बनाया था। शुद्ध हीरा पारदर्शक एवं रंगहीन होता है, किन्तु अशुद्धियों की उपस्थिति के कारण यह भिन्न-भिन्न रंगों का होता है। कुछ हीरे काले रंग के होते हैं, जिसे बोर्ट (Bort) कहते हैं। यह सभी पदार्थों से अधिक कठोर होता है। इसका आपेक्षिक घनत्व 3.52 होता है। यह कांच को आसानी से काट देता है। इसके रवे घनाकार (Cubical) होते हैं। इसका अपवर्तनांक 2.417 होता है। अतः पूर्ण आंतरिक परावर्तन के कारण ही यह बहुत चमकता है। यह ताप और विद्युत् का कुचालक है। यह किसी द्रव में नहीं घुलता है। इस पर अम्ल, क्षार आदि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। वायु में 800°C ताप पर गर्म करने पर यह CO2 गैस देता है। वायु की अनुपस्थिति में 2000°C ताप तक गर्म करने पर यह ग्रेफाइट में परिवर्तित हो जाता है। यह X-किरणों के लिए पारदर्शी होता है।

हीरा का उपयोग: रंगहीन हीरे आभूषण बनाने में प्रयुक्त होते हैं। काला हीरा जिसे बोर्ट कहते हैं, कांच काटने, चट्टानों में छेद करने तथा अन्य पत्थरों पर पॉलिश करने के काम में लाया जाता है।

नोट:

  • काला हीरा को कार्बोनेडो (Carbonado) भी कहा जाता है।
  • हीरा की संरचना नियमित चतुष्फलकीय (Regular Tetrahedral) होती है।

ग्रेफाइट (Graphite): ग्रेफाइट भी कार्बन का एक अत्यंत ही उपयोगी क्रिस्टलीय अपरूप है। यह मुख्यतः भारत, श्रीलंका, साइबेरिया, इटली, USA आदि में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। भारत में उड़ीसा राज्य में यह प्रचुर मात्रा में मिलता है। कृत्रिम ग्रेफाइट एचीसन विधि (Acheson’s Process) से तैयार किया जाता है। ग्रेफाइट की संरचना षट्कोणीय जालक सतह (Hexagonal Lattice Layer) के रूप में होती है। ग्रेफाइट में मुक्त इलेक्ट्रॉन होते हैं, जो सम्पूर्ण रवा-जालक (Crystal Lattice) में गमन करते हैं। इसी कारण ग्रेफाइट विद्युत् का सुचालक होता है। यह राख के रंग का मुलायम रवेदार ठोस पदार्थ है। इसमें धातुई चमक (Metallic Lusture) पायी जाती है। इसके रवे (Crystal) षटकोणिक (Hexagonal) होते हैं। कागज पर रगड़ने से यह उस पर काला निशान बना देता है। इस कारण इसे काला सीसा (Black Lead) भी कहते हैं। इसका आपेक्षिक घनत्व 2.2 होता है। यह ताप एवं विद्युत् का सुचालक होता है। अतः इसका व्यवहार इलेक्ट्रोड तथा कार्बन आर्क बनाने में किया जाता है। हवा या ऑक्सीजन में उच्च ताप पर गर्म किये जाने पर यह जलकर CO2 देता है। तनु अम्लों या तनु क्षारों का इस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। पोटैशियम क्लोरेट (KClO3) और सान्द्र HNO3 के साथ गर्म किये जाने पर यह ग्रेफाइटिक अम्ल (Graphitie Acid) में परिणत हो जाता है। पोटैशियम डाइक्रोमेट (K2Cr2O7) तथा सान्द्र H2SO4 के साथ गर्म करने पर यह ऑक्सीकृत होकर CO2 में परिवर्तित हो जाता है।


ग्रेफाइट का उपयोग: (i) धातुओं को गलाने के लिए प्रयुक्त होने वाले उच्च तापसह क्रुसीबल (Refractory Crucibles) के निर्माण में (ii) शुष्क सेलीं और विद्युत् अपघटन क्रियाओं आदि में इलेक्ट्रोड के रूप में (iii) पेंसिल (Pencil) तथा रंग बनाने में (iv) ग्रेफाइट चूर्ण का उपयोग मशीनों में शुष्क स्नेहक (Dry Lubricant) के रूप में होता है। (v) काफी उच्च दाब पर उत्प्रेरक की उपस्थिति में ग्रेफाइट को गर्म करने पर हीरा में परिवर्तित हो जाता है।

नोट: पेंसिल में प्रयुक्त होने वाला काला सीसा ग्रेफाइट होता है।

हीरा एवं ग्रेफाइट में अंतर
हीरा ग्रेफाइट
1. यह कठोर होता है। 1. यह मुलायम होता है।
2. यह विद्युत् का कुचालक होता है। 2. यह विद्युत् का सुचालक होता है।
3. यह कागज पर निशान नही बनाता है। 3. यह कागज पर रगड़ने से काला निशान बनाता है।
4. इसका आपेक्षिक घनत्व 3.52 होता है। 4. इसका आपेक्षिक घनत्व 2.2 होता है।
5. इसके रवों की संरचना समचतुष्फलकीय होती है। 5. इसके रवों की संरचना षटकोणीय जालक सतह के रूप में होती है।
6. यह आभूषण निर्माण के काम आता है। 6. इसके आभूषण निर्मित नहीं होते हैं।
7. यह पारदर्शी एवं रंगहीन होता है। 7. यह अपारदर्शी एवं राख के रंग का होता है।

 

चारकोल (Charcoal): यह कार्बन का अशुद्ध रूप है। यह कई प्रकार का होता है- (i) काष्ठ चारकोल (Wood Charcoal) (ii) अस्थि चारकोल (Bone Charcoal) (iii) चीनी चारकोल (Sugar Charcoal) (iv) रक्त चारकोल (Blood Charcoal)

लकड़ी को हवा की अपर्याप्त मात्रा में जलाकर काष्ठ चारकोल प्राप्त किया जाता है। काष्ठ चारकोल का उपयोग जलाने, गैस को अवशोषित करने, बारूद बनाने, अवकारक के रूप में, कीटाणुओं को नष्ट करने आदि कामों में किया जाता है। अस्थि चारकोल (Bone Charcoal) चर्बीरहित (Degreased) हड्डियों के भंजक स्रवण (Destructive Distillation) से प्राप्त किया जाता है। चीनी चारकोल चीनी से तैयार किया जाता है। बोन चारकोल का प्रयोग कार्बनिक पदार्थों के विरंजन में किया जाता है। चीनी का विरंजन इसी से किया जाता है। रक्त चारकोल सूखे हुए रक्त का भंजक स्रवण करने पर प्राप्त होता है।

काजल (Lamp Black or Soot): काजल कार्बन युक्त पदार्थों को हवा की अपर्याप्त मात्रा में जलाकर प्राप्त धुएँ को कम्बलों पर एकत्र कर प्राप्त किया जाता है। इसमें लगभग 95% कार्बन मौजूद होता है। इसका उपयोग प्रिटिंग की स्याही, काला रंग तथा जूते की पॉलिश बनाने में किया जाता है। यह ऑखों में लगाने (अंजन के रूप में) के काम में भी लाया जाता है।

कोयला (Coal): कोयला मुख्यतः कार्बन के यौगिकों का मुक्त कार्बन का मिश्रण है। जिस रासायनिक प्रक्रिया द्वारा वानस्पतिक पदार्थों का परिवर्तन कोयला में होता है, उसे कार्बनीकरण (Carbonisation) कहते हैं। यह ऊर्जा का अनवीकरणीय स्रोत है। कार्बनीकरण की मात्रा के आधार पर कोयला चार किस्मों का होता है। बिट्यूमिनस सामान्य किस्म का कोयला होता है, जबकि एन्थ्रासाइट कोयला उच्च कोटि का कोयला है। लिग्नाइट को भूरा कोयला (BrownCoal) कहते हैं। पीट (Peat) कोयला निर्माण की प्रारंभिक अवस्था है इस कारण उसमें कार्बन की मात्रा सबसे कम होती है। पीट कोयला सबसे निम्न कोटि का होता है। बिट्यूमिनस कोयला की मुलायम कोयला (soft Coal) कहते हैं। घरेलू कार्यों में बिट्यूमिनस कोयले का उपयोग होता है। विश्व में खनन किये जाने वाले कोयले का 80% भाग बिट्यूमिनस कोयला ही होता है। विश्व का 90% कोयला उत्तरी गोलार्द्ध में तथा शेष 10% दक्षिणी गोलार्द्ध में पाया जाता है।

कोयले के उपयोग: (i) ईधन (Fuel) के रूप में (ii) ईंधन गैसों के निर्माण में, (iii) संशिलष्ट पेट्रोल (Synthetic Petrol) के निर्माण में।

कोक (Coke): कोयले की वायु की अनुपस्थिति में गर्म करने पर इसके वाष्पशील अवयव निकल जाते हैं, जो अवशेष बचता है, उसे कोक कहा जाता है। इसमें 80 – 85% कार्बन पाया जाता है।

कोक का उपयोग: (i) धातुओं के निष्कर्षण में अवकारक के रूप में (ii) ईंधन के रूप में (iii) इलेक्ट्रॉड के बनाने में

कार्बन के समस्थानिक (Isotopes of Carbon): कार्बन के तीन समस्थानिक होते हैं- 6C12, 6C13 तथा 6C14 जिसमें 6C14 एक रेडियोसक्रिय समस्थानिक है। यह एक β-उत्सर्जक है। कार्बन के अन्य दो समस्थानिक 6C15 तथा 6C16 की खोज भी की जा चुकी है। ये दोनों समस्थानिक भी 6C14 की तरह रेडियोसक्रियता का गुण प्रदर्शित करते हैं। कार्बन का समस्थानिक 6C12 परमाणु भार का अंतर्राष्ट्रीय मानक है।

कार्बन के यौगिक

  1. कार्बन मोनोक्साइड (Carbon Monoxide): कार्बन मोनोक्साइड का अणुसूत्र CO तथा अणुभार 28 होता है। यह रंगहीन, स्वादहीन, विषैली, जल में अत्यंत अल्प घुलनशील, हवा के बराबर भारी तथा ज्वलनशील गैस है। यह नीली लौ या ज्वाला के साथ जलती है। मोटरगाड़ियों के धुएँ में कैंसर उत्पन्न करने वाली गैस कार्बन मोनोक्साइड ही होती है। यह नगरीय क्षेत्र का प्रदूषक है। कार्बन मोनोक्साइड गैस मानव रक्त के हीमोग्लोबीन के साथ मिलकर कार्बोक्सी हीमोग्लोबीन (Carboxy Haemoglobin) नामक एक लाल पदार्थ बनाता है, जिससे रक्त में ऑक्सीजन ग्रहण करने की क्षमता समाप्त हो जाती है। फलतः मनुष्य की श्वास क्रिया रुकने
पीट 50-60% कार्बन
लिग्नाइट 60-70% कार्बन
बिट्यूमिनस 70-86% कार्बन
एन्थ्रासाइट 90-98% कार्बन

लगती है और अंत में मृत्यु हो जाती है। यह सूर्य प्रकाश की उपस्थिति में क्लोरीन के साथ संयोग कर फॉस्जीन या कार्बोनिल क्लोराइड (Phosgene or Carbonyl Chloride) का निर्माण करती है, जो कि एक विषैली गैस है।

कार्बन मोनोक्साइड के उपयोग: (i) फॉस्जीन गैस बनाने में (ii) मिथाइल ऐल्कोहॉल तथा सोडियम फॉर्मेट बनाने में (iii) अवकारक के रूप में धातुकर्म में (iv) शुद्ध निकेल धातु तैयार करने में (v) प्रोड्यूशर गैस और जल गैस के रूप में ईंधन के लिए।

  1. कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide): कार्बन डाइऑक्साइड पौधों के लिए प्राणदायिनी गैस है। वायुमंडल में पायी जाने वाली गैसों में CO2, की मात्रा 0.03% होती है। CO2, गैस जन्तु जगत द्वारा श्वांस के रूप में बाहर छोड़ी जाती है। पौधे दिन के समय CO2 गैस ही ग्रहण करते हैं। CO2 गैस ग्रीन हाऊस प्रभाव (Green House Effect) के लिए मुख्य रूप से उत्तरदायी होती है। प्रकाश संश्लेषण (Photosynthesis) की क्रिया में CO2 गैस प्रयुक्त होती है। किण्वन (Fermentation) की प्रक्रिया के दौरान भी CO2 गैस बाहर निकलती है। CO2 गैस की प्रकृति अम्लीय होती है। CO2 गैस चूने के जल को दुधिया कर देती है। कैल्सियम कार्बोनेट को हाइड्रोक्लोरिक अम्ल के साथ गर्म करने पर CO2 गैस मुक्त होती है। कैल्सियम कार्बोनेट (CaCO3) को अकेले गर्म करने पर भी CO2 गैस निकलती है। सोडावाटर में अधिक दाब पर CO2 गैस घुली रहती है। शीतल पेय पदार्थों के बोतलों (Cold Drinks) में उच्च दाब पर CO2 गैस भरी होती है। ठोस कार्बन डाइऑक्साइड को शुष्क बर्फ या Dry Ice या Drikold कहते हैं। CO2 गैस आग बुझाने के काम आता है। अग्निशामक यंत्रों में सोडियम बाइकार्बोनेट के घोल पर तनु सल्फ्यूरिक अम्ल की प्रतिक्रिया कराकर CO2 गैस तैयार की जाती है। ठोस कार्बन डाइऑक्साइड का उपयोग रेफ्रीजरेशन में होता है। कार्बन डाइऑक्साइड का जलीय घोल कार्बोनिक अम्ल (H2CO3) कहलाता है। पेड़-पौधे रात्रि के समय कार्बन डाइऑक्साइड गैस बाहर छोड़ते हैं। इस कारण रात में पेड़ के नीचे नहीं सोना चाहिए।

कार्बन डाइऑक्साइड के उपयोग: (i) सोडावाटर, लेमोनेड आदि में (ii) चीनी उद्योग में, चूना को अवक्षेपित करने में (iii) सफेद लेड के उत्पादन में (iv) कड़ा इस्पात (Hardsteel) के निर्माण में (v) अग्निशमन में।

नोट:

  • जल गैस काबन मोनोक्साइड व हाइड्रोजन गैसों का मिश्रण होता है।
  • प्रोड्यूशर गैस कार्बन मोनोक्साइड व नाइट्रोजन गैसों का मिश्रण होता है।
  • बुलेट प्रूफ (Bullet Proof) पॉलिकार्बोनेट्स के बने होते हैं।
  • आजकल एयरक्राफ्ट बनाने में काबन फाइबर का प्रयोग किया जा रहा है।

Leave a Reply to Anonymous Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *