कैबिनेट सचिवालय Cabinet Secretariat

भारत सरकार (कामकाज का आबंटन) नियम, 1961 के प्रावधानों के तहत मंत्रिमंडल सचिवालय प्रत्यक्षतः प्रधानमंत्री के अधीन कार्य करता है। इसका प्रशासनिक प्रमुख कैबिनेट सचिव होता है जो सिविल सर्विसेज बोर्ड का पदेन अध्यक्ष भी है। कैबिनेट सचिव का कार्य होता है-

  1. मंत्रिमंडल समितियों को सचिवालय सहयोग और
  2. कार्य नियम।

कैबिनेट सचिवालय, भारत सरकार (कार्य संचालन) नियम, 1961 और भारत सरकार (कार्य आबंटन) नियम, 1961 के प्रशासन के लिए पालन करते हुए सुचारू रूप से कार्य संचालन की सुविधा प्रदान करता है। विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय स्थापित करते हुए और मंत्रालयों के बीच मतभेदों को दूर करटे हुए यह सचिवालय सरकार को निर्णय लेने में मदद करता है तथा सचिवालय की स्थाई/तदर्थ समितियों के जरिए आपस में सहमति बनाए रखता है। इस विधि से नई नीतियों की पहल को प्रोत्साहित भी किया जाता है।

कैबिनेट सचिवालय यह सुनिश्चित करता है कि सभी मंत्रालयों/विभागों की प्रमुख गतिविधियों के बारे में हर महीने एक सारांश बनाकर राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति और मंत्रियों को उससे अवगत कराया जाए। देश में किसी बड़े संकट के समय उसका प्रबंधन करना तथा ऐसी परिस्थितियों में विभिन्न मंत्रालयों की गतिविधियों में समन्वय स्थापित करना भी कैबिनेट सचिवालय का एक काम है। कैबिनेट सचिव, सिविल सर्विसेज का प्रमुख भी होता है। इसलिए विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय को बढ़ावा देने के लिए कैबिनेट सचिवालय एक उपयोगी माध्यम है। सचिव यह महसूस करते हैं कि उनकी गतिविधियों के बारे में कैबिनेट सचिव को समय-समय पर सूचित करते रहना आवश्यक है। कार्य नियमों के संचालन के लिए भी यह आवश्यक है कि समय-समय पर विभिन्न गतिविधियों के बारे में, विशेषकर यदि कहीं नियमों का पालन नहीं हो रहा है तो उसके बारे में कैबिनेट सचिव को सूचित किया जाए।

महत्वपूर्ण मंत्रालय एवं विभाग

मंत्रालयों का गठन

संविधान के अनुच्छेद 77 के अंतर्गत भारत सरकार (कार्य आबंटन) नियम 1961 के अंतर्गत प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा केंद्र सरकार के विभागों का गठन किया जाता है।

भारतीय शासन व्यवस्था के अंतर्गत सरकार के मंत्रालय में या तो केवल एक ही विभाग होता है या फिर एक से अधिक विभाग होते हैं। भारत सरकार की समस्त शक्तियां एवं कार्य विभिन्न मंत्रालयों में विभाजित हैं। केन्द्र सरकार के मंत्रालयों की संरचना त्रि-स्तरीय है, जो कि निम्नांकित है-


  1. राजनीतिक स्तर: प्रत्येक मंत्री अपने विभाग का राजनीतिक अध्यक्ष होता है। विभागीय कार्यों में उसकी सहायता हेतु राज्य मंत्री, उप-मंत्री एवं संसदीय सचिव होते हैं। साथ ही ये सभी संसद के भी सदस्य होते हैं। मंत्री के प्रमुख कार्यों के अंतर्गत अपने विभाग से सम्बधित नीतियों का निर्माण करना तथा बनाई गयी नीतियों के क्रियान्वयन एवं निष्पादन पर दृष्टि रखना आदि सम्मिलित हैं। इसके अतिरिक्त मंत्री अपने विभाग द्वारा किए गए समस्त कायों के प्रति उत्तरदायी होता है।
  2. सचिवालय: सचिवालय को प्रशासन का मस्तिष्क कहा जा सकता है, जो सम्पूर्ण प्रशासनिक क्रिया-कलापों का संचालन एवं नियंत्रण करता है। सचिव सचिवालय का प्रमुख होता है। इसका प्रमुख कार्य मंत्री की विभाग से सम्बन्धित समस्त क्रिया-कलापों तथा नीतियों पर परामर्श प्रदान करना है। इस प्रकार वह मंत्री का प्रमुख परामर्शदाता होता है। सचिव भारतीय प्रशासनिक सेवा का वरिष्ठ सदस्य होता है। सचिवालय के अंतर्गत अधिकारी एवं अधीनस्थ कर्मचारी नामक दो प्रकार के कर्मचारी होते हैं। अधिकारी वर्ग के अंतर्गत सचिव, उप-सचिव तथा अवर सचिव होते हैं। विभाग के बड़ा होने की स्थिति में संयुक्त सचिव अथवा अतिरिक्त सचिव भी होते हैं। अधीनस्थ कर्मचारियों के अंतर्गत अनुभाग अधिकारी, सहायक तथा लिपिक वर्ग के कार्मिक सम्मिलित होते हैं।
  3. विभाग अथवा कार्यकारी संगठन: नीति-निर्माण के सम्बन्ध में सचिवालय का कार्य जहां केवल परामर्श देना है वहीं निर्मित नीतियों का कार्यान्वयन का दायित्व विभिन्न संगठनों का होता है, जिन्हें विभाग अथवा मंत्रालय का कार्यकारी संगठन कहा जाता है। मंत्रालय के कार्यात्मक तन्त्र को, जो कि एक पृथक् संगठन होता है, विभाग कहा जाता है। इनका स्वयं का विभागाध्यक्ष होता है, जिसे पृथक्-पृथक् नामों से भी जाना जाता है, जैसे- महानिदेशक, निदेशक, महानिरीक्षक, आयुक्त, इत्यादि। इस इन विभागाध्यक्षों के संगठन का होता है।

मंत्रालय अथवा विभाग के कार्य

  1. मंत्री के नीति निर्माण सम्बन्धी कार्यों तथा नियतकालिक पुनरीक्षण कार्यों में सहायता प्रदान करना।
  2. विधियों, नीतियों एवं विनियमों, इत्यादि के निर्माण में सहायता प्रदान करना।
  3. नीतियों के क्रियान्वयन सम्बन्धी कार्यों का निरिक्षण एवं नियंत्रण करना।
  4. संसदीय उत्तरदायित्वों की पूर्ति करने में मंत्री की सहायता करना।
  5. क्षेत्रीय नियोजन एवं कार्यक्रमों का निर्माण करना।
  6. सचिवालय एवं क्रियान्वयन अधिकरणों की क्रमबद्ध एवं संगठनात्मक क्षमता का विकास करना।
  7. अपनी गतिविधियों के लिए बजट का निर्माण करना, उस पर नियंत्रण रखना तथा कार्यक्रमों के संचालन के लिए प्रशासनिक एवं वित्तीय समर्थन प्राप्त करना।
  8. नीतियों में समन्वय, सरकार की अन्य शाखाओं की सहायता तथा राज्य प्रशासन के साथ सम्पर्क बनाए रखना।

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