भूगोल की विभिन्न शाखाएं Branches of Geography

भूगोल की प्राचीन शाखाएं

आरम्भ में भूगोल विषय पाँच भागों में विभाजित था

1. खगोलीय भूगोल- इसमें पृथ्वी का सूर्य और चन्द्रमा से सम्बन्ध, चन्द्रग्रहण, सूर्यग्रहण, दिन और रात, आदि का अध्ययन किया जाता था।

2. यात्रा भूगोल- प्रारम्भिक दिनों में अनेक यात्राएँ की जाती थीं। ये यात्राएँ व्यापार, दूसरे देशों के सम्बन्ध में जानकारी तथा साम्राज्य के विस्तार के लिए की जाती थीं। आरम्भ में ये यात्राएँ स्थलमार्ग से होती थीं, बाद में नदियों और सागरीय मार्गों से होने लगी। अपनी इन यात्राओं का वर्णन अनेक यात्रियों ने लिखा है जो भूगोल की धरोहर है।

3. संसाधन भूगोल- मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विभिन्न साधनों का उपयोग करता रहा है। खनिज पदार्थों की खोज, उत्तम चरागाह और कृषि प्रदेशों की खोज में मानव प्रारम्भ से ही उद्यत रहा है जिसने अनेक संस्कृतियों का विकास किया।

4. मानचित्रांकन- प्राचीन काल में मनुष्यों ने अपनी यात्राओं, संसाधन की खोज, आदि के लिए विश्व मानचित्रों का निर्माण किया, टालमी ने सर्वप्रथम विश्व का मानचित्र तैयार किया था। उसके पश्चात् अरबवासियों ने भूगोल के विकास में इन मानचित्रों का निर्माण कर योगदान दिया। जटिल तथ्यों को स्पष्ट करने के लिए मानचित्रों, चार्टों, आलेखों तथा आरेखों का प्रयोग करने की बढ़ती हुई प्रवृति मानचित्रकला की व्यापकता का द्योतक है। यही मानचित्रकला भूगोल है।

5. गणितीय भूगोल- अरब और मिस्त्र में गणितीय भूगोल का विकास हुआ जिसके अन्तर्गत स्थानों की दूरी, दिन और रात की अवधि, अक्षांश तथा देशान्तर रेखाएं, आदि का अध्ययन गणितीय भूगोल के अन्तर्गत किया जाता था।


2. भूगोल की वर्तमान शाखाएं Modern Branches of Geography

वर्तमान में भूगोल को अनेक प्रकार से विभाजित एवं उपविभाजित करने का प्रयास किया गया है। परम्परा के आधार पर भूगोल की दो प्रधान शाखाएँ निम्न हैं, जिनको पुनः अनेक प्रकार से उपविभाजित किया जा सकता है। ये हैं-

1.भौतिक भूगोल,  2.मानव भूगोल

भौतिक भूगोल की उपशाखाएँ  Branches Physical Geography

1. भूगणितीय भूगोल- इसमें पृथ्वी के स्वरूप, पृथ्वी के विस्तार, अक्षांश-देशान्तर एवं पृथ्वी के ग्रहीय सम्वन्ध, आदि की दूरियों एवं तथ्यात्मक स्थिति की गणना की जाती है। अरब काल से ही इस उपशाखा को वैज्ञानिक आधार मिलता रहा है। अत: इसमें पृथ्वी के एवं सम्बन्धित ग्रहीय तथ्यों का स्वरूप गणितीय गणना द्वारा प्राप्त किया जाता है।

2. स्थलाकृति विज्ञान- धरातलों के विभिन्न स्थलरूपों का अध्ययन किया जाता है।

3. ऋतु विज्ञान एवं जलवायु विज्ञान- यह आधुनिक भूगोल की सहसम्बन्धित एवं महत्वपूर्ण शाखाएं हैं। ऋतु विज्ञान के अन्तर्गत भूतल के प्रदेश विशेष के प्रतिदिन के परिवर्तनशील मौसम या ऋतु के तत्वों का यथावत अध्ययन एवं आलेख होता है जबकि ऋतु के तत्वों (ताप, वर्षा, नमी, वायुवेग, वायुदाब, आदि) की औसत या माध्य दशाओं के आधार पर वायुमण्डल की सामान्य एवं विशेष दशाओं की औसत विशेषताओं का वर्णन ही जलवायु विज्ञान का आधार है। अतः यह भूगोल की प्रधान शाखाओं में से है।

4. समुद्र विज्ञान- भूपटल के 71% भाग पर महासागरीय जल का विस्तार है। अत: महासागरीय जल के तापमान, खारापन, यहां की विशाल जल राशियों की विविध गतियां, महासागरीय तली का स्वरूप आदि का वर्णन इसके अन्तर्गत किया जाता है।

5. जैव भूगोल- इसके अन्तर्गत वनस्पति भूगोल एवं जन्तु भूगोल का विस्तृत अध्ययन किया जाता है। यह उप-शाखा जीव विज्ञान (Biology) से निकट से सम्बन्धित है। प्राणी जगत स्थल एवं जल दोनों में सर्वत्र पाये जाते हैं, अतः इसकी गतिशीलता के लक्षणों का वर्णन सावधानी पूर्वक किया जाता है। वनस्पति नमी या जल प्राप्ति के अनुसार, स्थल एवं महाद्वीपीय चबूतरे तक सागरजल में पाई जाती है। अत: भू-सतह पर विस्तार की महत्ता के कारण ही इनका भूगोल में महत्वपूर्ण स्थान है।

4. मृदा भूगोल- धरातल पर पायी जाने वाली विभिन्न प्रकार की मिट्टियों, उनका वितरण मृदा भूगोल में किया जाता है।

5. नृवंश भूगोल- मानव समूह के विकास, उनके शरीर की विविध रचना, रंग एवं उनके भूतल पर विस्तार स्वरूप, आदि का प्रजातियों (Races) में विभाजन आदि का वर्णन इसके अन्तर्गत आता है। मानव सांस्कृतिक भूगोल का आधारभूत अंग होते हुए भी पृथ्वी तल का प्राणी होने से भौतिक भूगोल की प्रमुख शाखा मानी जाती है।

6. पारिस्थितिकी भूगोल- यह भूगोल की नवीन शाखा है। इसका सर्वप्रथम विकास जीवविज्ञान में हुआ। वर्तमान में पर्यावरण के बदलते स्वरूप, जीवों के विकास की आदर्श दशाएं, अनुकूल अवस्थान (Habitat) की पारिस्थिति एवं पारिस्थितिकी तंत्र तथा मानव द्वारा उनके साथ खिलवाड़ करते हुए उनमे उचित-अनुचित संशोधन व पृथ्वी पर निरन्तर फैलता हुआ पर्यावरणीय अविक्रमण एवं असन्तुलन, आदि का इसमें वर्णन किया जाता है। आधुनिक भूगोल में इसका महत्वपूर्ण स्थान है।

मानव भूगोल Human Geography

मानव भूगोल, भूगोल की एक शाखा है जिसमें मानव की विभिन्न क्रियाओं, मानव का धरातल पर वितरण, उसका वातावरण तथा उनके अन्तर्सम्वन्ध का अध्ययन किया जाता है। मानव और उसकी विभिन्न क्रियाओं का अध्ययन इन विषयों के अन्तर्गत किया जाता है, ये मानव भूगोल की शाखाएं हैं अतः भूगोल की उपशाखाएं हैं।

1. सांस्कृतिक भूगोल- सांस्कृतिक भूगोल के अन्तर्गत विभिन्न क्षेत्रों एवं प्रदेशों में मानव की सांस्कृतिक प्रतिरूपों, धार्मिक क्रियाओं, भाषाओं, रीति-रिवाजों का अध्ययन किया जाता है।

2. राजनीतिक भूगोल- राजनीतिक भूगोल के अन्तर्गत विभिन्न राष्ट्रों की सीमाओं, राष्ट्रों के संसाधनों और विभिन्न राष्ट्रों के आपसी सम्वन्धों का अध्ययन किया जाता है।

प्रत्येक राजनीतिक तन्त्र जब किसी भूगोलवेत्ता की दृष्टि से देखा जाता है तो उसकी दो आधारभूत विशेषताएं होती हैं 1. जिन प्रक्रियाओं से यह तन्त्र कार्य करते हैं तथा 2. यह तन्त्र जिस देश में लागू हैं। राजनीतिक भूगोल में राजनैतिक तथ्यों का क्षेत्रीय विश्लेषण किया जाता है-यह विश्लेषण या तो उस देश के राजनीतिक निर्णय के आधार पर अथवा उसके राजनीतिक क्षेत्र के अध्ययन के आधार पर किया जाता है।

3. आर्थिक भूगोल- आर्थिक भूगोल के अन्तर्गत आर्थिक वस्तुओं का उत्पादन, उपभोग का स्थानीयकरण का अध्ययन किया जाता है। आरम्भ में प्रत्येक वस्तु का विश्व वितरण एवं उत्पादन का अध्ययन किया जाता था। इनका भौगोलिक पर्यावरण से सम्बन्ध तथा आर्थिक क्षेत्रों का सीमांकन करना भी इसके अध्ययन में समिलित किया जाता है।

आर्थिक भूगोल की कई अन्य उपशाखाएं भी हैं अ) कृषि भूगोल, ब) वाणिज्य भूगोल, स) संसाधन भूगोल, द) परिवहन भूगोल, य) विनिर्माण उद्योग, आदि।

4. जनसंख्या भूगोल- पृथ्वी के विभिन्न भागों में जनसंख्या का वितरण,उनका स्थानान्तरण, मानव-साधन सम्बन्धी आवास की समस्या, जनसंख्या समस्या, आदि का अध्ययन किया जाता है।

5. ऐतिहासिक भूगोल- प्राचीन देशों का भूगोल, उनकी अर्थव्यवस्था परिवर्तन, उन देशों के विकास अथवा उजड़ने की अवस्था, उनके आर्थिक विकास की अवस्था का अध्ययन किया जाता है।

6. प्रादेशिक भूगोल- पृथ्वी के विभिन्न क्षेत्रों का प्रादेशिक अध्ययन किया जाता है। उन प्रदेशों का वर्गीकरण, वातावरण, धरातल का अध्ययन किया जाता है।

7. आवासीय भूगोल Settlement Geography- मानव अपने रहने के लिए स्थायी निवास बनाता है, वह किस प्रकार के आवास बनाता है, नगरों में निवास करता है अथवा ग्रामों में इस आधार पर आवासीय भूगोल की दो उपशाखाएं हैं –

(क) ग्रामीण भूगोल- जिसमें ग्रामीण बस्तियों का अध्ययन किया जाता है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था और भूमि उपयोग का भी अध्ययन किया जाता है।

(ख) नगरीय भूगोल- इसके अन्तर्गत नगरों की स्थिति, उनका विकास तथा विभिन्न प्रकार के क्षेत्रों का अध्ययन किया जाता है।

भौगोलिक अध्ययन के उपागम Approaches of Geographical Studies

भूगोल के अन्तर्गत पृथ्वी के परिवर्तनशील भौतिक तथा सांस्कृतिक भूदृश्यों का अध्ययन किया जाता है। प्राचीन काल से भूगोल की विषय-वस्तु को शीर्षकों में बांटकर उनका क्रमबद्ध रूप से अध्ययन किया जाता रहा है। बाद में बड़े क्षेत्रों को उनकी विशेषताओं और एकरूपता के आधार पर प्रदेशों में बांटकर अध्ययन किया जाने लगा। आधुनिक काल में मात्रात्मक विश्लेषणों और पर्यावरण की समस्याओं को भूगोल के अध्ययन में सम्मिलित किया गया है। इस प्रकार भूगोल विषय का अध्ययन निम्न उपागमों के अन्तर्गत किया जा सकता है-

1. क्रमबद्ध उपागम Systematic approach

क्रमबद्ध उपागम को प्रकरण रीति (Topical approach) भी कहते हैं। इसमें भूगोल के विभिन्न तत्वों का अलग-अलग अध्ययन किया जाता है। इस प्रकार के अध्ययन में भूआकृति, जलवायु, मिट्टियां, वनस्पति, परिवहन, व्यापार, आदि का अलग से समस्त पृथ्वी के लिए अध्ययन किया जाता है। उदाहरण के लिए, विश्व में ताप, जलवायु, वनस्पति, आदि का वितरण बताए जाने वाले अध्ययन को इसके अन्तर्गत रखा जाता है।

2.  प्रादेशिक उपागम Regional approach

इसके अन्तर्गत पृथ्वी को प्रदेशों में विभाजित किया जाता है। यह प्रदेश अपने में पूर्ण और एकरूपता लिए होते हैं। ऐसे प्रदेशों का सम्पूर्ण भौगोलिक अध्ययन किया जाता है। उदाहरण के लिए, तराई के मैदानी भाग का प्रादेशिक अध्ययन किया जाएगा तो निम्न प्रकार से होगा-

तराई के मैदान की भूरचना, प्रवाह प्रणाली, जलवायु, भिट्टियां, प्राकृतिक वनस्पति, जनसंख्या, आर्थिक संसाधन, कृषि, खनिज उद्योग, परिवहन व व्यापार, आदि सांस्कृतिक तथ्यों का विकासमान स्वरूप एवं मुख्य नगर।

क्रमबद्ध एवं प्रादेशिक भूगोल में अन्तर एवं अन्तर्सम्बन्ध- जैसा कि ऊपर स्पष्ट किया गया है कि जब किसी भौगोलिक तथ्य या तत्व की व्याख्या, वर्णन या अध्ययन सम्पूर्ण भूमण्डल के आधार पर किया जाए तो वह क्रमबद्ध या वर्गीकृत भूगोल में आएगा। उदाहरणार्थ, भूतल के भौतिक लक्षणों या भौतिक पर्यावरण के किसी भी तत्व का विश्वव्यापी वितरण एवं लक्षण। जैसे – पर्वत, पठार, मैदान, हिमानी, नदियां, तापमान, वायुदाब, वर्षा, ज्वारभाटा, धाराएं महासागरीय निक्षेप आदि का (विश्वव्यापी अध्ययन) अथवा भूगोल के सांस्कृतिक लक्षणों जैसे कृषि फसलें, पशुओं का, विविध उद्योगों का, रेलमार्ग या अन्य मार्गों का विश्वव्यापी अध्ययन इसकी आधारभूत विषय सामग्री है। जबकि प्रादेशिक भूगोल में पृथ्वी के क्षेत्र विशेष या प्रदेश विशेष का सम्पूर्ण भौगोलिक अध्ययन आएगा। इसमें पृथ्वी को या उसके एक देश को उद्देश्य के अनुसार विविध प्रदेशों में विभाजित कर उसका सम्पूर्ण भौगोलिक वर्णन करते हैं। ऐसे प्रदेश वृहत् या लघु क्षेत्र भी हो सकते हैं। जैसे-मानसूनी वृहत् प्रदेश, ऊपरी गंगा घाटी का प्रदेश अथवा तराई का क्षेत्र, आदि।

वास्तव में भूगोल के उपर्युक्त दोनों ही उपागम या अध्ययन विधितन्त्र एक-दूसरे के पूरक हैं, दोनों को अलग-अलग नहीं किया जा सकता, विश्वव्यापी वर्णन के पश्चात् प्रादेशिक एवं क्षेत्रीय वर्णन अनिवार्य हो। जाता है। वर्तमान में प्रदेश एवं क्षेत्रीय भूगोल इस विज्ञान का हृदय या आधार माना गया है।

3. विश्लेषणात्मक उपागम Analytical Approach

आधुनिक भूगोल की लगभग प्रत्येक शाखा के अध्ययन में आंकड़ों और उनकी विधियों का समावेश हुआ है। इसे भूगोल में मात्रात्मक विश्लेषण कहते हैं। इसके अलावा तन्त्र विश्लेषण (System Analysis) भूगोल में अत्याधुनिक उपागम सम्मिलित किया गया है। इस प्रकार भूगोल के अध्ययन के लिए अत्याधुनिक उपागम है।

4. पर्यावरण उपागम Environmental Approach

विश्व में मानवीय क्रियाकलापों से पर्यावरण हास, ओजोन की परत का पतला होना, वायु, जल, , ध्वनि, सामाजिक प्रदूषण, आदि पर्यावरण की समस्याएं अन्य प्राकृतिक तथा सामाजिक विज्ञानों के साथसाथ भूगोल के लिए भी चिन्ता का विषय है। अतः 1970 के दशक के बाद भौगोलिक तथ्यों का अध्ययन पर्यावरण के परिप्रेक्ष्य में किया जाने लगा। इसे हम भूगोल का पर्यावरण उपागम कहते हैं।

भूगोल की विषय-वस्तु तथा विषय क्षेत्र

भूगोल के अन्तर्गत मुख्य रूप से प्रकृति (Nature) और मानव (Man) का अध्ययन किया जाता है। इसकी विषय-वस्तु में धरातल की भूआकृतियों, वायुमण्डलीय घटनाएं, जलमण्डल के तथ्य, मानव तथा मानवीय क्रियाकलापों के साथ-साथ पर्यावरण और उसकी समस्याओं के अध्ययन को सम्मिलित किया गया है। सम्पूर्ण रूप से इसकी विषय-वस्तु को निम्नलिखित श्रेणियों में बांटा जा सकता है-

  1. भूगोल के मूलभूत सिद्धान्त
  2. भूगोल की संकल्पनाएं
  3. भूगोल के मूल तत्व
  4. भूगोल में मानवीय पक्षों का अध्ययन
  5. भूगोल में मानवीय क्रियाकलापों का अध्ययन।
  6. पर्यावरणीय प्रदूषण तथा उनके निराकरण के उपायों का अध्ययन
  7. जन्तु जगत तथा पादप जगत का अध्ययन।

भूगोल की विषय-वस्तु ही भूगोल के विषय क्षेत्र का निर्धारण करती है। भूगोल की विषय-वस्तु अनेक प्राकृतिक एवं मानवीय विज्ञानों से प्राप्त की गयी है अतः इसका विषय क्षेत्र अत्यन्त व्यापक है। इसके विषय क्षेत्र का निर्धारण समय-समय पर बदलता रहा है। इसके निर्धारण में टॉलमी, स्ट्रैबो, प्लिनी, जैसे ग्रीक एवं रोमन विद्वानों, काण्ट, हम्बोल्ट, रिटर, रैटलेज, कु. सेम्पुल, टेलर, हार्टशोर्न जैसे भूगोलवेत्ताओं का महत्वपूर्ण स्थान है। इसके अन्तर्गत निम्नलिखित तथ्य आते हैं :

  1. पृथ्वी का गृह के रूप में अध्ययन।
  2. पृथ्वी के सौर सम्वन्धों का अध्ययन
  3. धरातल के भौतिक स्वरूप- प्रथम क्रम, द्वितीय क्रम तथा तृतीय क्रम के भूस्वरूप
  4. वायुमण्डलीय घटनाएँ तथा जलवायु
  5. जल संसाधन तथा महासागरीय अध्ययन।
  6. जैविक जगत का अध्ययन
  7. जनसंख्यावितरण, घनत्व, संरचना, आदि का अध्ययन
  8. मानव प्रजातियों का अध्ययन।
  9. खनिज तथा शक्ति के संसाधनों का अध्ययन।
  10. कृषि, पशुपालन, उद्योगों, वाणिज्य तथा व्यापार का अध्ययन
  11. मानव बस्तियों का अध्ययन।
  12. धर्म, भाषा, संस्कृति तथा समाज का अध्ययन।
  13. राजनीतिक परिवर्तनों तथा घटनाओं का अध्ययन
  14. पर्यावरण की समस्याओं का अध्ययन।

इनके अलावा भूगोल की वर्तमान नवीन शाखाओं के विषय-क्षेत्र के अन्तर्गत मानव स्वास्थ्य, चिकित्सा, पोषण, नृत्य, संगीत, कला, मेला, त्योहारों, आदि को भी सम्मिलित किया गया है।

भूगोल का अन्य विषयों से सम्बन्ध Relationship With Other Subjects

भूगोल विषय में भौतिक एवं सांस्कृतिक वातावरण के सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है, भूगोल की अधिकांश विषय-वस्तु प्राकृतिक विज्ञानों (Natural sciences) तथा मानवीय विज्ञानों (Human sciences) से ली गयी है। अतः भूगोल विषय का प्राकृतिक विज्ञान और सामाजिक विज्ञानों से घनिष्ट सम्बन्ध है। भौतिक विज्ञानों में भूगोल का सम्बन्ध भू-गर्भ विज्ञान (Geology), ऋतु विज्ञान (Meterology), खगोल विज्ञान (Astronomy) तथा प्राणी विज्ञान (Zoology) से है। सामाजिक विज्ञानों में इतिहास, राजनीतिशास्त्र समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र आदि से भी सम्बन्ध है।

भूगोल एवं भू-विज्ञान

भूविज्ञान में धरातल की बनावट, चट्टानें, उनकी उत्पत्ति एवं वितरण, पृथ्वी का भूवैज्ञानिक कालक्रम, चट्टानों में पाए जाने वाले खनिज, पृथ्वी की आन्तरिक संरचना का अध्ययन, आदि किया जाता है। भूगोल में भी पृथ्वी के धरातल का अध्ययन किया जाता है जिसका सम्बन्ध पृथ्वी की आन्तरिक अवस्था से रहता है। पर्वत, पठार, मैदान, वलन, भ्रंशन, आदि का सम्बन्ध पृथ्वी की आन्तरिक अवस्था में रहता है। चट्टानों और भूस्वरूप भूगोल के अध्ययन में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। इनका अध्ययन भूगोल की भौतिक भूगोल शाखा के अन्तर्गत किया जाता है। अतः भूगोल और भू-विज्ञान में निकट का सम्बन्ध है।

भूगोल एवं ऋतु विज्ञान

भूगोल का ऋतुविज्ञान से निकट का सम्बन्ध है। विज्ञान में ताप, वायुदाब, हवाओं, जलवायु विभाग का अध्ययन किया जाता है। भूगोल में ही जलवायु विज्ञान के अन्तर्गत धरातल पर ताप, वर्षा और वायुदाब का अध्ययन किया जाता है। जलवायु का प्रभाव मानव की आर्थिक क्रियाओं को प्रभावित करता है। कृषि की उपज, वनस्पति, उद्योग और व्यवसाय उस प्रदेश की जलवायु से प्रभावित रहते हैं। इनका अध्ययन भूगोल में किया जाता है। अतः भूगोल और ऋतु विज्ञान में निकट का सम्बन्ध है।

भूगोल एवं वनस्पति विज्ञान

वनस्पति विज्ञान (Botany) में वनस्पति और उनका वितरण का अध्ययन किया जाता है। हम्बोल्ट ने अपनी दक्षिणी अमरीका यात्रा के समय वनस्पति और प्राकृतिक वातावरण के आपसी सम्बन्ध को स्पष्ट किया था। किसी स्थान की वनस्पति जलवायु और मिट्टी से प्रभावित होती है। जलवायु, मिट्टी तथा वातावरण भूगोल के अध्ययन की सामग्री है। इसके अलावा इनके अध्ययन के लिए भूगोल की स्वतन्त्र शाखा पादप भूगोल (Phytogeography) विकसित की गयी है। अत: भूगोल और वनस्पति विज्ञान एक-दूसरे के निकट हैं।

भूगोल एवं जन्तुविज्ञान

विश्व में जीवजन्तुओं का वितरण भी भूगोल का अध्ययन क्षेत्र है। जीवजन्तु मानव को भोज्यसामग्री, पहनने के लिए वस्त्र (खाल और समूर) तथा उद्योगों के लिए कच्चा माल उपलब्ध कराते हैं। जन्तुविज्ञान (Zoology) में जीवजन्तुओं के संवर्धन एवं उनके विकास का अध्ययन किया जाता है। जन्तु विज्ञान की विषय-वस्तु के आधार पर जन्तु भूगोल (Zoogeography) का विकास किया गया है । अतः जन्तु विज्ञान और भूगोल का घनिष्ट सम्बन्ध है।

भूगोल एवं इतिहास

इतिहास और भूगोल का निकट का सम्बन्ध है। विश्व का सम्पूर्ण इतिहास प्रकृति की क्रिया से प्रभावित है। मानव सभ्यता का इतिहास नदियों की घाटी और उपजाऊ मैदानी भागों से आरम्भ होता है। मनुष्य और धरातल का अटूट सम्बन्ध है। इसके अध्ययन के लिए ऐतिहासिक भूगोल (Historical Geography ) नामक शाखा का विकास किया गया है। इस प्रकार इतिहास और भूगोल एक-दूसरे से सम्बंधित हैं।

भूगोल एवं राजनीतिशास्त्र

राजनीति विज्ञान में राज्यों के विकास, शासन प्रणालियों और शासन तन्त्रों का अध्ययन किया जाता है। भूगोल में भू-राजनीति (Geo-Politics) और अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है। अन्तर्राष्ट्रीय, राष्ट्रीय तथा प्रादेशिक स्तर पर भौगोलिक तथ्यों का वहाँ की राजनीति पर क्या प्रभाव पड़ता है। सोवियत संघ का विघटन, जर्मनी का एकीकरण, आदि के कारण भूगोल की विषय-वस्तु में भी शामिल किए गए हैं। इन राजनीतिक घटनाओं का अध्ययन राजनीतिक भूगोल (Political Geography ) के अन्तर्गत किया जाता है। इस प्रकार राजनीति शास्त्र तथा भूगोल का घनिष्ट सम्बन्ध है।

भूगोल एवं समाजशास्त्र

समाजशास्त्र के अन्तर्गत विश्व में विभिन्न भागों के मनुष्यों, समुदाय, उनके जीवन, आचार-व्यवहार, सामाजिक, संगठन, आदि का अध्ययन किया जाता है। मानव समाज का अंग है और मानव भूगोल में भी मानव की विभिन्न क्रियाओं, उसके सामाजिक संगठन तथा उनके जीवन पर वातावरण का क्या प्रभाव पड़ता है। इसका अध्ययन करते हैं। इनका अध्ययन सामाजिक भूगोल (social Geography) के अन्तर्गत किया जाता है। अत: दोनों ही विज्ञान एक-दूसरे से सम्बन्धित हैं।

भूगोल एवं अर्थशास्त्र

अर्थशास्त्र में उत्पादन, उपभोग, वितरण, विनिमय एवं व्यापार, मूल्य, मुद्रा तथा अन्य आर्थिक गतिविधियों का अध्ययन किया जाता है। भूगोल ने मानव के सम्पूर्ण आर्थिक क्रियाकलापों को अपनी विषय-वस्तु में विशेष स्थान प्रदान किया है। मानव के प्राथमिक आर्थिक क्रियाकलाप आखेट, वन वस्तु संग्रह, लकड़ी काटना, आदि, द्वितीयक आर्थिक क्रियाकलाप- पशुपालन एवं कृषि तृतीयक आर्थिक क्रियाकलाप- व्यावसायिक कृषि, व्यावसायिक पशुपालन, उद्योग, वाणिज्य व्यापार, आदि का अध्ययन अर्थशास्त्र और भूगोल के अन्तर्गत किया जाता है। इस प्रकार भूगोल और अर्थशास्त्र का घनिष्ठ सम्बन्ध है।

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