बहादुर शाह प्रथम Bahadur Shah I

सन 1707 से 1712 तक अंतिम सफल मुग़ल शासक (जीवन काल, 14 October 1643, Burhanpur – 27 February 1712, Lahore)

बहादुर शाह प्रथम,  महान मुग़ल सम्राट औरंगजेब का जयेष्ट पुत्र था, जिसका वास्तविक नाम कुतुब उद-दीन मुहम्मद मुअज्ज़म (Qutb ud-Din Muhammad Mu’azzam) था| औरंगजेब उसे शाह आलम (Shah Alam) भी कहकर बुलाता था| अपने पिता की मौत के बाद, भारत पर शासन करने वाला वह 8वां मुग़ल शासक था और उस समय उम्र 63 वर्ष थी| वह 5 वर्ष से ज्यादा शासन नहीं कर सका| चूँकि मुग़ल परंपरा के अनुसार कोई उत्तराधिकारी नामित नहीं किया जाता था, अतः उत्तराधिकार के लिए अक्सर खुनी संघर्ष होता था| औरंगजेब के सबसे महत्वाकांक्षी बेटे, अकबर, अपने पिता के खिलाफ विद्रोह किया था और औरंगजेब की मृत्यु से काफी पहले निर्वासन में उसकी मृत्यु हो गई थी| मुअज्ज़म को गद्दी पर बैठने के लिए अपने भाई आलम शाह से संघर्ष करना पड़ा, जिसने खुद को शहंशाह घोषित कर दिया था| एक सामान्य से संघर्ष में आलम शाह मारा गया और 1707 में वह बहादुर शाह के नाम से मुग़ल शासन की गद्दी पर बैठा| मुअज्ज़म का दूसरा भाई मुहम्मद काम बख्श, 1709 में मारा गया|

बहादुर शाह प्रथम ने अपने समर्थकों को नई पदवियाँ तथा ऊचें दर्जे प्रदान किए। मुनीम ख़ाँ को वज़ीर नियुक्त किया गया। औरंगज़ेब के वज़ीर, असद ख़ाँ को ‘वकील-ए-मुतलक’ का पद दिया था, तथा उसके बेटे जुल्फ़िकार ख़ाँ को मीर बख़्शी बनाया गया। परन्तु बहादुर शाह के शासन काल में ही उसके दरबार में षड्यन्त्र बढ़ने लगे थे, जिसके कारण दरबार में दो दल बन गए थे – ईरानी दल और तूरानी दल, ईरानी दल ‘शिया मत’ को मानने वाले थे, जिसमें असद ख़ाँ तथा उसके बेटे जुल्फिकार ख़ाँ जैसे सरदार थे, जबकि तुरानी दल ‘सुन्नी मत’ के समर्थक थे, जिसमें ‘चिनकिलिच ख़ाँ तथा फ़िरोज़ ग़ाज़ीउद्दीन जंग जैसे लोग थे।

एक उदार शासक के रूप में उसे अपने पहले से ही निर्धारित दुश्मनों जयपुर और उदयपुर के राजपूत शासकों का सामना करना पड़ा| पंजाब के सिखों ने भी लंबे समय तक मुगल शासन का विरोध किया था| उनके दसवें और आखिरी गुरु, गोविंद सिंह, 1699 में दीक्षा, संस्कार और गौरव, ‘खालसा’ की स्थापना की थी| बहादुर शाह को इन अदम्य योद्धाओं के खिलाफ युद्ध लड़ना था| गुरु गोविन्द सिंह 1708 में मारे गए और इसके आगे कोई सिख गुरु नहीं हुआ, परन्तु बंदा बहादुर एक शक्तिशाली सिख सैन्य नेता के रूप में उभरा जिसे महान मुगल वश में नहीं कर सका|

बहादुर शाह ने राजपूतों के साथ संधि की नीति अपनायी, उसने मारवाड़ के राजा अजीत सिंह को पराजित कर, उसे 3500 का मनसब एवं महाराज की उपाधि प्रदान की, परन्तु बहादुर शाह के दक्षिण की तरफ अभियानों में जाने पर अजीत सिंह, दुर्गादास एवं जयसिंह कछवाहा ने मेवाड़ के महाराज अमरजीत सिंह के नेतृत्व में अपने को स्वतंत्र घोषित कर लिया और राजपूताना संघ का गठन किया। बहादुर शाह प्रथम ने इन राजाओं से संघर्ष करने से बेहतर सन्धि करना उचित समझा और उसने इन शासकों को मान्यता दे दी।

बहादुर शाह ने मराठाओं के साथ शांति स्थापित करने की कोशिश भी की, जो मुग़ल वंश के लिए सबसे बड़ा खतरा थे| औरंगजेब ने शाहू, जो शिवाजी का पौत्र था, उसे अपने दरबार में बंधक रखा हुआ था| बहादुर शाह ने शाहू को सतारा का राजा बनाकर मराठों को शांत रखने की कोशिश की| शाहू एक उदार प्रशासक था, और वह मुगलों की सेवा करने लिए उपयुक्त भी था| परन्तु उसने पुणे के चतुर चितपावन ब्राह्मण बालाजी विश्वनाथ को पेशवा के रूप में नियुक्त किया, जिसका बेटा बाजीराव फिर मुगल शासन के लिए सबसे बड़ी चुनौती के रूप में उभरा|

बहादुर शाह प्रथम ने बुन्देला सरदार ‘छत्रसाल’ से मेल-मिलाप कर लिया। छत्रसाल एक निष्ठावान सामन्त बना रहा। बादशाह ने जाट सरदार चूड़ामन से भी दोस्ती कर ली। चूड़ामन ने बन्दा बहादुर के ख़िलाफ़ अभियान में बादशाह का साथ दिया।


इस प्रकार बहादुर शाह की नीतियाँ विफलता में समाप्त हो गयीं, जो आगे चलकर मुग़ल साम्राज्य के पतन का कारण बनी| बहादुर शाह की मौत के बाद उसके बेटे जहांदार शाह द्वारा गद्दी संभाली गयी| जिसका शासनकाल अपने पिता की तुलना में और भी कम भाग्यशाली था|

इसके बाद मुग़ल साम्राज्य अपने स्वयं के प्रयोजनों के लिए की जाने वाली पार्टियों के कारण खोखला होता चला गया, और अठारहवीं सदी के भारत में बहादुर शाह के उत्तराधिकारी सत्ता के खेल में मात्र प्यादे बन कर रह गए| बहादुर शाह अपने शासन के प्रति इतना अधिक लापरवाह था, कि लोग उसे “शाहे बेख़बर” कहने लगे थे।

बहादुर शाह ने जिजया कर को समाप्त नहीं किया, पर इसे उदार बना दिया गया| अपने संक्षिप्त शासन काल के दौरान बहादुर शाह ने संगीत को नए सिरे से समर्थन भी दिया| इसके शासन-काल के दौरान मंदिरों को भी नहीं तोडा गया|

27 फरवरी 1712 को लाहौर में शालीमार बाग़ (shalimar garden) का पुनर्निर्माण करते समय बहादुर शाह की मौत हो गयी| उसकी कब्र मेहरौली में 13 वीं शताब्दी की, सूफी संत, कुतबुद्दीन बख्तियार काकी की दरगाह के निकट शाह आलम द्वितीय, और अकबर द्वितीय के साथ मोती मस्जिद में ही है|

बहादुर शाह अंतिम सफल मुग़ल सम्राट था, जिसके बारे में कुछ अच्छे शब्द कहे जा सकते हैं|

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