औरंगजेब Aurangzeb

अबुल मुजफ्फर मूही-उद-दीन मुहम्मद बिन औरंगजेब 6वाँ और अंतिम महान मुगल शासक था जिसे सामान्यतः औरंगजेब के नाम से ही जाना जाता है| औरंगजेब को ‘आलमगीर’ की शाही उपाधि भी मिली थी जिसका अर्थ होता है ‘विश्वविजेता’| औरंगजेब का जन्म 4 नवम्बर, 1618 को दाहोद, गुजरात में हुआ था। वो शाहजहाँ और मुमताज़ की छठी संतान और तीसरा बेटा था। उसके पिता उस समय गुजरात के सूबेदार थे। जून 1626 में जब उसके पिता द्वारा किया गया विद्रोह असफल हो गया तो औरंगजेब और उसके भाई दारा शिकोह को उनके दादा जहाँगीर के लाहौर वाले दरबार में नूर जहाँ द्वारा बंधक बना कर रखा गया। 26 फरवरी, 1628 को जब शाहजहाँ को मुग़ल सम्राट घोषित किया गया तब औरंगजेब आगरा किले में अपने माता पिता के साथ रहने के लिए वापस लौटा। यहीं पर औरंगजेब ने अरबी और फारसी की औपचारिक शिक्षा प्राप्त की।

मुग़ल प्रथाओं के अनुसार, शाहजहाँ ने 1634 में शहज़ादा औरंगज़ेब को दक्कन का सूबेदार नियुक्त किया। औरंगज़ेब किरकी (महाराष्ट्र) को गया जिसका नाम बदलकर उनसे औरंगाबाद कर दिया। 1637 में उसने रबिया दुर्रानी से शादी की।

औरंगजेब दक्षिण (डेक्कन) में अपने लंबे समय तक लड़े गये युद्ध के लिए और अपने धार्मिक कट्टरपंथ के लिए प्रसिद्ध था| औरंगजेब ने मुगल साम्राज्य का सबसे अधिक विस्तार किया, परंतु विशाल दक्कन के क्षेत्रों को जीतने और नियंत्रित करने की कोशिश में, अपने शासन के खिलाफ विद्रोह को दबाने में उसने अपने साम्राज्य को कंगाल कर दिया, जिससे कारण यहाँ की जनता भी दरिद्र हो गयी| सन् 1652 में शाहजहा बीमार पड़ गया और ऐसा लगने लगा की उसकी मृत्यु हो सकती है, जिसके पश्चात शाहजहाँ के पुत्रों में उत्तराधिकार का संघर्ष शुरू हो गया| जून 1658 में औरंगजेब ने आगरे के किले पर कब्जा कर लिया और अपने बीमार पिता शाहजहां को वहाँ क़ैद करके उसके विशाल खजाने और हथियारों पर कब्जा कर लिया|

1659 में औरंगज़ेब ने शाहजहाँ को कैद करने के बाद अपना राज्याभिषेख करवाया| कुछ ही समय में उसने दिल्ली का ताज पहना और स्वयं को ‘आलमगीर’ की उपाधि दी| इसके पश्चात औरंगजेब ने जानलेवा गृहयुद्ध में अपने तीन भाइयों दारा शिकोह, शाह शुजा और मुराद बख्श की हत्या कर दी| उसकी यह जीत सुनिश्चित थी क्योंकि उसके पास कुशल रणकौशल और अपनी पिता की सेना में दस साल तक गुजरात और दक्षिण में लड़े गये अनेक युद्धों का अनुभव था| 1644 में औरंगज़ेब की बहन भी एक दुर्घटना में जलकर मर गई थी|

अपने शासन के पहले पच्चीस वर्षों के लिए, औरंगजेब ने शाहजहानाबाद (दिल्ली) में अपनी राजधानी बनाए रखा| राजस्थान के साथ युद्ध छेड़ने के पश्चात उसके पड़ावों के साथ उसकी राजधानी भी स्थानांतरित होती रही| अपने जीवन के अंतिम वर्षों में वह दक्कन के क्षेत्रों में अपनी सेना के साथ घूमता रहा| 1660 से 1670 के बीच उत्तर में मिली असफलताओं के कारण उसने अपने राज्य को समृद्ध बनाने के लिए  दक्षिण के राज्यों की ओर कूच करने का फ़ैसला किया|

1660 और 1670 में अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए औरंगजेब के आरंभिक प्रयासों को मिश्रित सफलता मिली| 1660 में, उत्तर पूर्व में उन क्षेत्रों को पुनः प्राप्त करने के लिए युद्ध शुरू किया, जिसे वह अपने उत्तराधिकार के युद्ध में खो चुका था| बंगाल की राजधानी राजमहल को राजमहल से पूर्व की ओर ढाका ले जाया गया और 1663 मे असम पर अधिकार कर लिया गया| 1664 में चटगांव बंदरगाह जो की समुद्री डाकुओं और गुलामों के व्यापार के लिए कुख्यात था उस पर कब्जा कर लिया गया और इसका नाम बदलकर इस्लामाबाद कर दिया गया| दक्षिण बिहार में उसने पलामू के राजा को हराया और 1661 में उसके राज्य पर कब्जा कर लिया| 1679 मेी वह  मारवाड़ को जीतने अजमेर गया, यह लड़ाई करीब ढाई साल तक चली|

1667 में, उत्तर पश्चिम में स्वात घाटी की यूसुफ़ज़ई जनजाति ने विद्रोह कर दिया, परंतु इस विद्रोह को क्रूरता से कुचल डाला गया| 1672 में पुनः इनके अफ़रीदी मुखिया ने खुद को राजा घोषित कर दिया और खैबर दर्रा बंद कर दिया| उसने मुगल सैनिकों की हत्या करनी शुरू कर दी, अंततः औरंगजेब ने खुद उत्तर की ओर शाही सेना का नेतृत्व किया यहाँ उसने ताक़त और रिश्वत दोनो का उपयोग किया और उसने उत्तर पश्चिम सीमा पर मुगल अधिकार पुनः बहाल किया| इस जीत के औरंगजेब को बहुत उँची कीमत चुकानी पड़ी| अगले बीस वर्षों तक कई सुविधाओं और लगातार सब्सिडी के कारण खैबर दर्रा खुला रहा|


औरंगजेब में कर्तव्य की एक मजबूत भावना थी और वह एक आत्म अनुशासित व्यक्ति था, उसने कभी चार पत्नियों से अधिक शादियाँ नहीं की| औरंगजेब के दस संताने थी, जिसमें 5 लड़के और 5 लड़कियाँ थी, जिसमे आधे उसके पहली पत्नी से थे| औरंगजेब एक कट्टर इस्लाम का पालन करने वाला व्यक्ति था| औरंगजेब पवित्र जीवन व्यतीत करता था। अपने व्यक्तिगत जीवन में वह एक आदर्श व्यक्ति था। वह सब दुर्गुणों से सर्वत्र मुक्त था| वह खाने-पीने, वेश-भूषा और जीवन की अन्य सभी-सुविधाओं में संयम बरतता था। औरंगजेब इस्लामी न्यायशास्त्र के हनाफी स्कूल का एक अनुयायी था, उसने सम्राट रहते हुए पूरी कुरान याद करने के लिए सात साल समर्पित कर दिए| उनकी आत्ममुखी स्वाभाव उसकी सादगी, क्रूर और संदिग्ध प्रकृति ने उसे बहुत अलोकप्रिय और नफ़रत का पात्र बना दिया था|

औरंगजेब ने एक शताब्दी से अधिक समय से चली आ रही सहिष्णु मुगल नीति को समाप्त करते हुए 1679 में गैर मुसलमानों पर सर्वेक्षण कर (जिज़या-jizya) पुनः लगा दिया, जिसे अकबर ने 1564 में समाप्त कर दिया था| औरंगज़ेब ने ‘क़ुरान’ को अपने शासन का आधार बनाया। उसने सिक्कों पर कलमा खुदवाना, नौरोज का त्यौहार मनाना, भांग की खेती करना, नृत्य-संगीत आदि पर रोक लगा दी। 1663 ई. में उसने सती प्रथा पर प्रतिबन्ध लगाया। उसने  ‘झरोखा दर्शन’ और ‘तुलादान प्रथा’ पर प्रतिबन्ध लगा दिया| 1668 ई. में उसने हिन्दू त्यौहारों पर भी प्रतिबन्ध लगाया| बड़े शहरों में औरंगज़ेब द्वारा ‘मुहतसिब’ (सार्वजनिक सदाचारा निरीक्षक) को नियुक्त किया गया। 1699 ई. में उसने हिन्दू मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया और बनारस के ‘विश्वनाथ मंदिर’ एवं मथुरा के ‘केशव राय मदिंर’ को तुड़वा दिया। उसने नये हिंदू मंदिरों के निर्माण पर भी रोक लगाई और पुराने मंदिरों को नष्ट करने की अनुमति भी दे दी और  नौवें सिक्ख गुरु, गुरु तेग बहादुर की हत्या करवा दी। उसने शरीयत के विरुद्ध लिए जाने वाले लगभग 80 करों को समाप्त करवा दिया। इन्हीं में ‘आबवाब’ नाम से जाना जाने वाला ‘रायदारी’ (परिवहन कर) और ‘पानडारी’ (चुंगी कर) नामक स्थानीय कर भी शामिल थे। औरंगज़ेब ‘दारुल हर्ब’ (क़ाफिरों का देश भारत) को ‘दारुल इस्लाम’ (इस्लाम का देश) में परिवर्तित करने को अपने जीवन का महत्वपूर्ण उद्देश्य मानता था।

औरंगज़ेब के समय हिन्दुओं को मुसलमान बनाया गया। उस समय के कवियों की रचनाओं में औरंगज़ेब के अत्याचारों का उल्लेख है | तोड़े गये मंदिरों की जगह पर मस्जिद और सराय बनाई गईं तथा मकतब और कसाईखाने कायम किये गये। उसके समय में गो−वध करने की खुली छूट दे दी गई।

औरंगजेब ने ब्रज और मथुरा को तहस-नहस कर दिया, अत: ब्रज के अनेक धर्माचार्य एवं भक्तजन अपने परिवार के साथ अपने पैतृक आवासों को छोड़ कर निकटवर्ती हिन्दू राजाओं के राज्यों में जाकर बसने लगे| इस अभूतपूर्व धार्मिक निष्क्रमण के फलस्वरूप ब्रज में वृन्दावन, गोवर्धन और गोकुल जैसे समृद्ध धर्मस्थल उजड़ गए और मथुरा से अधिक महावन, सहार और सादाबाद का महत्व हो गया था, वहाँ मुसलमानों की संख्या भी अपेक्षाकृत अधिक थी।

उसकी इस विभेदकारी और नफ़रातभारी नीति ने हिंदुओं और सिक्खों के कई समूहों को विद्रोह करने के लिए मजबुए कर दिया| औरंगज़ेग की अति रूढ़िवादी नीतियों से भारत की बहुसांस्कृतिक राजनीति के सद्‍भाव बिखर गया, जिसने गैर मुसलमानों को ईमानदारी और सम्मानजनक ढंग से मुगल वंश की सेवा करने की अनुमति दी थी| मुगल साम्राज्य का पतन औरंगजेब के साथ शुरू हुआ जिसकी कठोर असहिष्णुता ने क मजबूत हिंदू राष्ट्रवाद बनाने में मदद की और इसने मराठों, राजपूतों, और सिक्खों के साथ ही दक्षिण में भी विद्रोहो का नेतृत्व किया| कई कई रूढ़िवादी मुसलमानों ने उसे उसकी कट्टर धर्मपरायणता विशेष रूप से जीवन के अंतिम दिनों मे, के कारण सभी मुगल सम्राटों मे सबसे श्रेष्ठ माना है|

औरंगजेब की शाही सेना बहुत विशाल थी, जिसमे हज़ारों हाथी, विशाल संख्या में बंदूकें. और घुड़सवार सेना के साथ एक बहुत बड़ी पैदल सेना भी थी, जी की लगभग 30 मील या 48 किमी. तक लंबी हो सकती थी| दक्षिण में युद्ध छेड़ने के पश्चात औरंगज़ेब 1682 में दक्कन में औरंगाबाद में अपनी राजधानी ले गया, जो की उसके बाकी जीवन मे यहाँ बनी रही| औरंगजेब की यह विशाल सेना हमला करने के लिए शायद उतनी शक्तिशाली नहीं थी| महान मराठा हिंदू नेता शिवाजी भोंसला (1627-1680) ने अत्यधिक सफल गुरिल्ला रणनीति विकसित की थी| शिवाजी ने 1664 में मुगल बंदरगाह सूरत पर कब्जा कर लिया था और औरंगज़ेब शिवाजी की मृत्यु के पश्चात 1686 में पश्चिम में बीजापुर और 1687 नें पूर्व में गोलकोंडा पर कब्जा कर पाया| परंतु औरंगज़ेब ने जल्द ही जीते गये क्षेत्रों को खो दिया| दक्कन का युद्ध जितना लंबा खींच रहा था, मुगल सेना उतनी कमजोर होती जा रही थी और मराठा उतने शक्तिशाली| ऐसा कहा जा रहा था की ‘औरंगज़ेब अपनी ही परछाईं का पीछा कर रहा है’ और मुगल सेना का मनोबल घट रहा था|

दक्षिण में अपने अभियान के आखिरी चरण में औरंगजेब ने व्यक्तिगत रूप से हर बरसात के मौसम के बाद अपनी सेना का नेतृत्व किया और 1698 और 1707 के बीच उसने एक दर्जन गढ़ों पर कब्जा कर लिया| उसकी सेना अत्यधिक गतिशील थी और उसकी सेना ने सक्रियता से अपने शत्रुओं का सामना किया| 1702 में  मराठों ने हैदराबाद पर मुगल सहयोगियों पर हमला और लूटपाट जारी रखा| दक्षिण में चल रहे इस युद्ध से अर्थव्यवस्था तबाह हो गयी और उत्तर के साथ लंबी दूरी का व्यापार पूरी तरह से 1702 और 1704 के बीच बंद हो गया| युद्ध के साथ औरंगजेब के जुनून और दिल्ली से उनकी अनुपस्थिति ने भी मुगलों की कीमत पर अंग्रेजी, डच, और फ्रेंच को अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए सक्षम बना दिया| साम्राज्य के कई क्षेत्रों में, राज्यपालों, जमींदारों, और किसानों ने सफलतापूर्वक शाही कानूनों की अवहेलना की| आगरा के आसपास जाट, पंजाब में सिखों, और दक्कन के विशेष रूप से मराठों के रूप में इस तरह के समूहों द्वारा विद्रोह संख्या बढ़ती चली गयी और इन समूहों ने आग्नेयास्त्रों के अवैध लेकिन बड़े पैमाने पर उत्पादन शुरू कर दिया|

औरंगजेब 3 मार्च सन 1707 में, लगभग नब्बे साल की उम्र में मर गया और औरंगाबाद (खुल्दाबाद, औरंगाबाद से 25 किमी दूर) में एक सड़क के किनारे उसे एक मामूली कब्र में दफनाया गया था| उसका साम्राज्य लंबे समय तक उनकी मृत्यु के पश्चात जीवित नहीं रह सका|

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