जन्तु ऊतक Animal Tissue

ऊतकों का अध्ययन जीव विज्ञान की जिस शाखा के अन्तर्गत किया जाता है, उसे औतिकी (Histology) कहते हैं। इस शाखा की स्थापना इटली के वैज्ञानिक मारसेलो मैल्पीधी (1628-1694 ई.) ने की थी। इस शाखा का हिस्टोलॉजी (Histology) नामकरण मायर (1819 ई.) नामक वैज्ञानिक ने किया। ऊतक (Tissue) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम विचंट (1771-1802 ई.) ने किया था। ऊतक एक समान अथवा आपस में मिलती-जुलती कोशिकाओं का ऐसा समूह है जिनकी कोशिकाएँ एक समान कार्य करती है तथा उनकी उत्पत्ति भी समान कोशिकाओं से होती हैं विभिन्न प्रकार के ऊतक मिलकर एक सुव्यवस्थित अंग (Organ) का निर्माण करते हैं।

जन्तु ऊतक (AnimalTissue): अधिकांश बहुकोशिकीय जन्तुओं में निम्नलिखित चार प्रकार के ऊतक पाये जाते हैं-

  1. उपकला या एपिथोलियमी ऊतक (Epithelial tissue)
  2. संयोजी ऊतक (Connective tissue)
  3. पेशी ऊतक (Muscular tissue) तथा
  4. तंत्रिका ऊतक (Nervous tissue)
  5. उपकला या एपिथीलियमी ऊतक (Epithelial tissue): एपिथोलियमी ऊतक अंगों की बाहरी पतली परत तथा आंतरिक अंगों की भीतरी स्तर का निर्माण करती है। ऐसे ऊतक में अंतरकोशकीय स्थान (Inter cellular space) नहीं होते हैं। इनकी कोशिकाएँ एक-दूसरे से करीब-करीब सही होती हैं। ऐसे ऊतक अंगों की रक्षा करते हैं। ये विसरण (Diffusion), स्रावण (secretion) तथा अवशोषण (Absorption) में सहायता करते हैं। इस प्रकार के ऊतक की कोशिकाओं का आकार उनके स्थान तथा कार्य के अनुसार अलग-अलग होता है।

एपिथोलियमी ऊतक सामान्यतः 4 प्रकार के होते हैं-

(i) शल्की या शल्काभ एपिथीलियम (Squamous epithelium)

(ii) स्तम्भाकार एपिथीलियम (Columnar epithelium)

(iii) क्यूबाइडल एपिथीलियम (Cuboidal epithelium) तथा

(iv) पक्ष्माभी या पक्षमाल एपिथीलियम (Ciliated epithelium)


(i) शल्की या शल्काभ एपिथीलियम (Squamous epithelium): ऐसी ऊतक की कोशिकाएँ चपटी और अत्यधिक पतली होती हैं। इन कोशिकाओं के केन्द्रक (Nucleus) भी चपटे होते हैं । इस प्रकार के ऊतक की कोशिकाएँ फर्श या दीवार पर लगी चपटी ईंटों की तरह दिखती हैं।

शल्काभ एपिथोलियम त्वचा की बाहरी परत पर पाया जाता है। इसके अलावा ऐसे ऊतक मुख गुहा, जिह्वा (Tongue), ग्रासनली (Oesophagus) तथा आहारनाल (Alimentary canal) के स्तर बनाते हैं। ये रक्त वाहिनियों (Blood vessels) तथा फेफड़े के वायुकोषों (Alveoli) में भी पाये जाते हैं। इनका कार्य आंतरिक अंगों को सुरक्षा देना तथा रक्त वाहिनियों एवं वायुकोषों में पदार्थों के विसरण में सहायता देना है। त्वचा की सतह पर स्थित शल्की या शल्काभ एपिथोलियम त्वचा की सुरक्षा हेतु कई परतों में सजी होती है। ऐसे शल्की या शल्काभ एपिथीलियम स्तरित शल्की एपिथीलियम (Striated squamous epithelium) कहलाती है।

(ii) स्तम्भाकार एपिथोलियम (Columnar Epithelium): ऐसे ऊतक एक ही स्तर में सजे स्तंभाकार कोशिकाओं के बने होते हैं। कोशिकाओं के मुक्त सिरे पर सूक्ष्म रसांकुर (Microvilli) होते हैं। ये आहार नाल के वैसे भाग में पाये जाते हैं जहाँ पदार्थों का अवशोषण (Absorption) तथा स्रवण (secretion) होता है। जैसे- छोटी ऑत का भीतरी स्तर। अवशोषण एवं स्रवण के अतिरिक्त ये अंगों को यांत्रिक सहारा भी प्रदान करते हैं।

(iii) घनाकार एपिथोलियम (Cuboidal epithelium): ऐसे ऊतक की कोशिकाएँ घनाकार होती हैं। प्रत्येक कोशिका में एक स्पष्ट गोलाकार केन्द्रक (Nucleus) होता है। यह लार ग्रन्थि (Salivary gland), स्वेद ग्रंथि (Sweat gland), वृक्क नलिकाओं (Uriniferous tubules) में पायी जाती है। अवशोषण (Absorption) और स्रवण (secretion) के अलावा ये अंगों को यांत्रिक सहारा (Mechanical support) भी प्रदान करते हैं।

(iv) पक्ष्माभी या पक्षमाल एपिथीलियम (Ciliated epithelium): इस प्रकार के ऊतक में स्तम्भाकार अथवा घनाकार कोशिकाएँ होती हैं जिनकी मुक्त सतह पर रोम (Cilia) होते हैं। रोम का कार्य कणों, मुक्त कोशिकाओं अथवा म्यूकस में एपिथोलियम सतह के ऊपर विशिष्ट दिशा में गति कराना है। यह अण्डवाहिनी, श्वासनली तथा मुख गुहा में पायी जाती है।

  1. संयोजी ऊतक (Connective Tissue): संयोजी ऊतक विभिन्न अंगों और ऊतकों की सम्बद्ध करता है तथा उन्हें कुछ सहारा (अवलम्ब) भी देता है। इस प्रकार के ऊतक में कोशिकाओं की संख्या कम होती है तथा अंतरकोशिकीय पदार्थ अधिक होता है। अंतरकोशिकीय पदार्थ को मैट्रिक्स (Matrix) कहा जाता है। मैट्रिक्स तंतुवत (Fibrous), ठोस, जेली की तरह तरल, सघन या कठोर अवस्था में रह सकता है। संयोजी ऊतक आन्तरिक अंगों के रिक्त स्थानों में भरी रहती है। इसके अतिरिक्त ये रक्त नलिकाओं एवं तंत्रिका (Nerves) के चारों ओर तथा अस्थिमज्जा (Bone marrow) में पायी जाती है।

संयोजी ऊतक निम्नलिखित तीन प्रकार के होते हैं-

  1. वास्तविक संयोजी ऊतक (Connective tissue proper)
  2. कंकाल ऊतक (Skeletal tissue) तथा
  3. C. तरल ऊतक या संवहन ऊतक (Fluid tissue or vascular tissue)
  4. वास्तविक संयोजी ऊतक (Connective tissue proper): इसके अन्तर्गत निम्नलिखित ऊतक आते हैं-

(i) एरियोलर ऊतक (Areolar tissue): ये बहुतायत में मिलने वाले ऊतक हैं। इस ऊतक के मैट्रिक्स में कई प्रकार की कोशिकाएँ तथा दो प्रकार के तन्तु (श्वेत एवं पीला) पाये जाते हैं। कोशिकाएँ निम्नलिखित प्रकार की होती हैं-

(a) फाइब्रोब्लास्ट (Fibroblast): ये चपटी एवं शाखीय होती हैं तथा तन्तु बनाती हैं।

(b) हिस्टोसाइट्स (Histocytes): ये चपटी, अनियमित आकार की तथा केन्द्रकयुक्त (Nucleated) होती हैं। ये जीवाणुओं का भक्षण करती हैं।

(c) प्लाज्मा कोशिकाएँ (Plasma Cells): ये गोलाकार अथवा अण्डाकार होती हैं। ये एण्टीबॉडी (Antibody) का निर्माण करती हैं।

(d) मास्ट कोशिकाएँ (Mast cells): ये केन्द्रक युक्त, गोलाकार या अण्डाकार होती हैं। ये रुधिर वाहिनियों को फैलाने के लिए हिस्टामिन (Histamin), रुधिर के एंटीकोएगुलेट के लिए हिपैरिन (Heparin) तथा रुधिर वाहिनियों को सिकुड़ने के लिए सोरोटोनिन नामक प्रोटीन स्रावित करती है।

(e) श्वेत कण (Leucocytes): इस ऊतक में विभिन्न प्रकार के श्वेतकण (Leucocytes) जैसे- लिम्फोसाइट, इओसिनोफिल, न्यूट्रोफिल आदि भी पाये जाते हैं।

उपर्युक्त कोशिकाओं के अतिरिक्त मैट्रिक्स (Matrix) में दो प्रकार के तंतु पाये जाते हैं। ये हैं-

(i) श्वेत तन्तु (white fibre): ये अशाखीय तथा अलचीले होते हैं। ये कोलेजन (Collagen) नामक रसायन से बने होते हैं।

(ii) पीला तंतु (Yellow fibre): ये शाखीय या अशाखीय तथा लचीले (Elastic) होते हैं। ये एलास्टिन (Elastin) नामक पदार्थ से बने होते हैं।

एरियोलर ऊतक के कार्य (Function of areolar tissue):

(i) यह त्वचा एवं मांसपेशियों अथवा दो मांसपेशियों को जोड़ने का कार्य करता है।

(ii) यह विभिन्न आन्तरिक रचनाओं को ढीले रूप से बाँधकर उन्हें अपने स्थान पर रखने में मदद करता है।

(iii) लिम्फोसाइट्स का सम्बन्ध एंटीबॉडी संश्लेषण से है।

वसा संयोजी ऊतक (Adipose tissue): इस प्रकार के ऊतक में गोलकार एवं अण्डाकार कोशिकाएँ पायी जाती हैं। इन कोशिकाओं में वसा (Fator Lipid) की बूंदें भरी रहती हैं। यह ऊतक त्वचा के नीचे चर्बी के रूप में, आंतरिक अंगों के बीच तथा मेढ़क के वृक्क के शीर्ष पर स्थित वसापुंजों (Fat bodies) में पाया जाता है। यह ऊतक संचित भोज्य पदार्थ का कार्य करता है जिसका उपयोग आवश्यकता के समय होता है। यह बाहरी चोटों से अंगों की रक्षा करता है। यह ऊतक तापरोधक होने के कारण ठण्ड से शरीर की सुरक्षा करता है। इसलिए ठण्डे प्रदेशों के जन्तुओं के शरीर में यह ऊतक अधिक मात्रा में पाया जाता है। इस ऊतक के अधिक मात्रा में संचय से शरीर मोटा हो जाता है।

श्वेत तन्तुमय ऊतक (white fibrous tissue): इस ऊतक में एक-दूसरे के समानांतर स्थित सघन श्वेत तन्तु पाये जाते हैं। तन्तुओं के बीच कुछ कोशिकाएँ बिखरी होती हैं। इनमें मैट्रिक्स (Matrix) बहुत कम मात्रा में होता है। यह ऊतक टेंडन (Tendon) का निर्माण करता है जो मांसपेशी को अस्थियों अथवा दूसरी मांसपेशियों से जोड़ता है। ऐसे ऊतक अत्यधिक मजबूत तथा आंशिक लचीले होते हैं।

पीला तन्तुमय ऊतक (Yellow fibrous tissue): इस प्रकार के ऊतक के तन्तु एरियोलर ऊतक के पीले तन्तु से ज्यादा मोटे होते हैं। इनमें मैट्रिक्स (Matrix) कम होता है तथा तन्तुओं के बीच में कई कोशिकाएँ होती हैं। ये ऊतक अधिक मजबूत एवं लचीले (Elastic) होते हैं। यह ऊतक लिगामेंट (Ligament) का निर्माण करता है। लिगामेंट अस्थियों को अस्थियों से जोड़ने का कार्य करता है।

जालवत संयोजी ऊतक (Reticular connective tissue): इस प्रकार के ऊतक में तारा जैसी कोशिकाएँ होती हैं। इन कोशिकाओं से जीवद्रव्य (Protoplasm) के कई पदार्थ निकले होते हैं जो मैट्रिक्स में एक जाल जैसी रचना बनाते हैं। इसके मैट्रिक्स में अन्य प्रकार की कोशिकाएँ भी होती हैं। ऐसे ऊतक प्लीहा, यकृत तथा अस्थिमज्जा में पाये जाते हैं।

  1. कंकाल ऊतक (Skeletal tissue): कंकाल ऊतक शरीर की तथा अन्य ऊतक को सहारा प्रदान करता है और उन्हें मजबूती से जोड़ता है। यह हमेशा शरीर के अंदर पाया जाता है। यह शरीर का अन्तः कंकाल (Endo Skeleton) बनाता है। यह कशेरुकी जन्तुओं का विशेष लक्षण है। यह कोमल अंगों, जैसे मस्तिष्क आदि की रक्षा करता है। कंकाल ऊतक दो प्रकार के होते हैं-

(i) उपास्थि ऊतक (Cartilaginous tissue): उपास्थि का मैट्रिक्स लसलसा होता है। इसमें बहुत ही पतले तथा महीन कोलेजन तंतु (Collagen fibre) होते हैं। इसके मैट्रिक्स की रचना एक प्रकार के प्रोटीन से होती है, जिसे कोड्रिन (Chondrin) कहते हैं। इसमें कोशिकाएँ रहती हैं जिसे कोड्रियोब्लास्ट (Chondrioblast) कहते हैं। कोशिकाओं के चारों ओर द्रव भरा आवरण होता है, जिसे लैकुना (Lacuna) कहते हैं। प्रत्येक लैकुना में 2 से 4 तक कोशिकाएँ होती हैं। इनके मैट्रिक्स में रक्तवाहिनियों का अभाव होता है परन्तु यह एक वाहिनीयुक्त उपास्थि आवरण पेरिकोंड्रियम (Perichondrium) से ढंका रहता है। उपास्थि का कार्टिलेज अस्थियों के जोड़ को चिकना बनाती है। ये बाह्य कर्ण, नाक, श्वासनली, कण्ठ, स्तरनम (sternum) तथा अंतरकशेरुकी स्थानों (Intervertebral spaces) में पाई जाती हैं।

(ii) अस्थि (Bone): इस ऊतक की कोशिकाएँ ऑस्टियोब्लास्ट (Osteoblasts) कहलाती हैं। ऑस्टियोब्लास्ट कठोर मैट्रिक्स में स्थित होते हैं। मैट्रिक्स में कैल्सियम एवं फास्फोरस के लवण पाये जाते हैं जिसके कारण मैट्रिक्स कठोर होता है। ऑस्टियोब्लास्ट मैट्रिक्स में स्थित स्थान लैकुनी (Lacunae) में पायी जाती है। लैकुनी एक-दूसरे से पतली नलिकाओं से सम्बद्ध रहती है जिन्हें कैनालीकुली (Canaliculi) कहते हैं। अस्थि के मध्य में एक गुहा होती है जो अस्थि मज्जा (Bone marrow) से भरी होती है। लैकुनी में स्थित ऑस्टियोब्लास्ट के प्रोटोप्लाज्मिक प्रवर्द्धन (Protoplasmic process) कैनालीकुली द्वारा ही अन्य कोशिकाओं से सम्बन्ध स्थापित करते हैं। अस्थिमज्जा (Bone marrovv) में रक्त नलिकाएँ रहती हैं जिनसे पोषक तत्व कैनालीकुली द्वारा ही विसरण (Diffusion) से अस्थि की सभी जीवित कोशिकाओं में पहुँचता है। मैमेलियन अस्थि की अनुप्रस्थ काट में अनेक नलिकाएँ दिखलायी पड़ती हैं जिन्हें हैवर्सियन नलिकाएँ (Haversian canals) कहते हैं। प्रत्येक हैवर्सियन नलिका अपने चारों ओर स्थित लैमेली, लैकुनी, अस्थि कोशिकाओं (Osteoblasts) और कैनालीकुली के साथ एक हैवर्सियन तंत्र (Haversian system) बनाती है जो वर्ग मैमेलिया की अस्थियों की प्रमुख पहचान है।

  1. C. तरल ऊतक या संवहनीय ऊतक (Fluid tissue or vascular tissue): रक्त या रुधिर एवं लसिका को तरल संयोजी ऊतक कहते हैं। इनका अंतरकोशिकीय (Intercellular) पदार्थ तरल (Fluid) होता है जिसमें कोशिकाएँ बिखरी रहती हैं। इस कारण इन्हें तरल ऊतक (Fluid tissue) कहा जाता है।

 

पेशी ऊतक (Muscular tissue): प्रचलन तथा विभिन्न प्रकार की गतियों के लिए पेशी ऊतकों की आवशककता होती है। पेशी ऊतक पेशी कोशिकाओं से बनते हैं। इस प्रकार के ऊतक की कोशिकाएँ लम्बी होती हैं। इन कोशिकाओं के भीतर पाये जाने वाले तरल को सार्कोप्लाज्म (sarcoplasm) कहते हैं। इस सार्कोप्लाज्म में केन्द्रक होता है। जन्तुओं के शारीरिक अंगों में गति पेशी ऊतक के कारण ही होता है।

औतिकी और कार्यिकी के आधार पर पेशी ऊतक तीन प्रकार की होती है-

(i) अरेखित या अनैच्छिक (smooth or unstriped or involuntary muscles)

(ii) रेखित या ऐच्छिक (Striped or skeletal or voluntary muscles)

(iii) हृदपेशी (Cardiac or Heart muscles)

(i) अरेखित पेशी (Unstriped muscles): ये पेशियाँ नेत्र की आइरिस (Iris), वृषण (Testes) और उनकी नलिकाओं में, मूत्रवाहिनियों और मूत्राशय में तथा रक्तवाहिनियों में पायी जाती हैं। आहारनाल की भित्ति में ये अनुदैर्ध्य और गोलाकार पेशी स्तरों के रूप में दिखायी देती हैं। अरेखित पेशी या कोशिका तर्कु की आकृति (spindle shaped) की होती है जिसमें प्रचुर मात्रा में कोशिकाद्रव्य और एक केन्द्रक पाया जाता है। अरेखित पेशी का संकुचन जन्तु के इच्छाधीन नहीं होता है। इसलिए इन्हें अनैच्छिक पेशी (Involuntary muscles) कहते हैं। आहारनाल के एक भाग से दूसरे भाग में भोजन का प्रवाह इसी पेशी के संकुचन एवं प्रसार के कारण होता रहता है।

(ii) रेखित पेशी (striped muscles): ये पेशियाँ जन्तु के कंकाल से सम्बद्ध रहती हैं और इनमें ऐच्छिक गति होती है। इस कारण इन्हें काल पेशी (skeletal muscles) या ऐच्छिक पेशी (voluntary muscles) भी कहते हैं। यह पेशी अनेक बहुकेन्द्रक तंतुओं द्वारा बनती है। प्रत्येक तंतु या कोशिका एक पतली झिल्ली सार्कोलेमा (sarcolemma) से घिरी रहती है। इसके अंदर के कोशिकाद्रव्य को सार्कोप्लाज्म (Sarcoplasm) कहते हैं जिसमें अनेक मायोफाइब्रिल (Myofibril) होते हैं। यह पेशी शरीर के बाहु (Arm), पैर, गर्दन आदि में पायी जाती है एवं इसका भार शरीर के भार का प्राय: 50% होता है। रेखित पेशियाँ तंत्रिका द्वारा उत्तेजित होती हैं।

(iii) हृद्धपेशी (Cardiac muscles): इस प्रकार की पेशी से हृदय की भिति बनती है। रेखित पेशी की भाँति इसमें भी अनुप्रस्थ धारियाँ पायी जाती हैं। इसके तन्तु शाखावत तथा बड़े, अंडाकार एवं केन्द्रकयुक्त होते हैं। दो तंतुओं के जोड़ की जगह में डिस्क (Disc) रहता है। प्रत्येक तंतु के चारों ओर सार्कोलेमा एवं अंदर में सार्कोप्लाज्म रहता है। सार्को-प्लाज्म में उपस्थित मायोफाइब्रिल के कारण पेशीधारियों जैसी दिखायी पड़ती है। हृद् पेशी स्वभावतः अनैच्छिक (Involuntary) होती है एवं इसमें हमेशा संकुचन एवं प्रसरण (Contraction and expansion) होता रहता है जो आजीवन चलता रहता है जिसके कारण हृदय से रुधिर शरीर के विभिन्न भागों में प्रवाहित होता रहता है।

  1. तंत्रिका ऊतक (Nervous Tissue): शरीर के समस्त अंगों व कार्यों में सामंजस्य स्थापित करना तंत्रिका ऊतक की प्रमुख विशेषता है। जन्तुओं के शरीर के मस्तिष्क (Brain), मेरुरज्जु (spinal Cord) तथा तंत्रिकाएँ (Nerves) तंत्रिका ऊतक के बने होते हैं। तंत्रिका ऊतक संवेदना को शरीर के एक भाग से दूसरे भाग में भेजने का कार्य करती है। तंत्रिका ऊतक की इकाई न्यूरॉन (Neuron) या तंत्रिका कोशिका (Nerve cells) होती है। तंत्रिका कोशिका के तीन मुख्य भाग होते हैं-

(i) साइटॉन (Cyton): यह तंत्रिका कोशिका का मुख्य भाग होता है। इसमें एक केन्द्रक तथा कोशिका द्रव्य होता है। इसके कोशिका द्रव्य में अनेक प्रोटीनयुक्त रंगीन कण होते हैं, जिन्हें निसिल्स कण कहते हैं।

(ii) डेन्ड्रन (Dendron): साइटॉन से निकले हुए तन्तु जो एक या अधिक होते हैं, डेन्ड्रन (Dendron) कहलाते हैं। डेन्ड्रन पुनः शाखित होकर पतले-पतले डेन्ड्राइट्स (Dendrites) बनाता है जो आवेग को साइटॉन में लाता है।

(iii) ऐक्सॉन (Axon): साइटॉन से शुरू होकर एक बहुत पतला एवं लम्बा तंत्रिका तंतु निकलता है। यह एक न्यूरॉन से दूसरे न्यूरॉन तक संदेशवाहक का कार्य करता है। इसे ही ऐक्सॉन (Axon) कहते हैं। यह आवेग को साइटॉन से आगे की ओर ले जाता है।

साधारणतः एक लम्बे ऐक्सॉन को तंत्रिका तंतु (Nerve fibre) कहते हैं। तंत्रिका तंतु के बाहरी कोमल आच्छद को न्यूरीलेम आच्छद (Neurilemma sheath) कहते हैं। इसके नीचे स्थित मायलीन आच्छद को मज्जा आच्छद (Medullary or Myelin sheath) कहते हैं। यह जगह-जगह संकुचित होता है। संकुचित स्थान को रैनवियर की नोड (Node of ranvier) कहते हैं। जब एक से ज्यादा तन्तु संयोजी ऊतक से घिरे रहते हैं तब इसे तंत्रिका (Nerve) कहते हैं। साइटन (Cyton) के समूह को गुच्छिका (Ganglia) कहते हैं।

तंत्रिका ऊतक से मस्तिष्क एवं मेरुरज्जु बनते हैं। इन दोनों अंगों से तंत्रिकाएँ शरीर के विभिन्न भागों में जाती एवं आती हैं। इनमें से कुछ तंत्रिकाएँ आवेगों को शरीर के अन्दर या बाहर से प्राप्त करके मस्तिष्क का मेरुरज्जु में ले जाता है। अन्य कुछ तंत्रिकाएँ आवेगों को मस्तिष्क एवं मेरुरज्जु से शरीर के अन्यान्य भागों में ले जाते हैं, जो अनुरूप ढंग से उत्तेजित होते हैं।

सिनेप्स (Synapse): एक न्यूरॉन के ऐक्सॉन के अन्तिम छोर की शाखाएँ दूसरे न्यूरॉन के डेन्ड्राइट्स से जुड़कर सिनैप्स बनाती हैं।

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