प्रत्यावती धारा Alternating Current

प्रत्यावर्ती धारा (Alternating current, a.c.): यह एक ऐसी धारा है, जिसका परिमाण एवं दिशा समय के साथ बदलते हैं। यह धारा पहले एक दिशा में शून्य से अधिकतम व अधिकतम से शून्य तथा फिर विपरीत दिशा में शून्य से अधिकतम व अधिकतम से शून्य हो जाती है। इसे प्रत्यावर्ती धारा का एक चक्र (cycle) कहते हैं। प्रत्यावर्ती धारा को उत्पन्न करने वाला विभवान्तर (वि० वा० बल) भी प्रत्यावर्ती होता है। इसका समीकरण है-

भारत के घरों में सप्लाई की जाने वाली प्रत्यावर्ती धारा का शिखर (peak) वोल्टेज ± 311 वोल्ट तथा आवृत्ति 50Hz होती है। दिष्ट धारा (d.c.) की अपेक्षा समान वोल्टेज प्रत्यावर्ती धारा (a.c.) अधिक खतरनाक होती है। कारण यह है कि 220v की a.c. का वास्तविक मान -311v से + 311v तक होता है, जबकि 220v की d.c. का वास्तविक मान 220v ही होता है।

प्रत्यावती धारा आमीटर एवं बोल्टमीटर (a.c. Ammeter & voltmeter): प्रत्यावर्ती धारा के पूरे चक्र (cycle) के लिए धारा का मान शून्य होता है। अतः यदि प्रत्यावर्ती धारा किसी विद्युत् चुम्बकीय आमीटर या धारामापी में प्रवाहित की जाय, तो उसका निर्देशक शून्य पर ही रहेगा। इसी कारण प्रत्यावर्ती धारा एवं विभवान्तर को मापने के लिए तप्त तार आमीटर एवं वोल्टमीटर का प्रयोग किया जाता है। प्रत्यावर्ती धारा आमीटर के पाठ्यांक से सीधे धारा का वर्ग माध्य मूल मान (rms value) प्राप्त होता है। इसी प्रकार प्रत्यावर्ती वोल्टमीटर के पाठ्यांक से सीधे वोल्टेज का वर्ग माध्य मूल मान (rms value) प्राप्त होता है।

वाटहीन धारा (wattless current): जब प्रत्यावर्ती धारा (a.c.) परिपथ में बिना ऊर्जा का व्यय किए प्रवाहित होती हो, तो ऐसी धारा को वाटहीन धारा कहते हैं। ऐसी धारा तभी प्रवाहित होगी, जब परिपथ में ओमीय प्रतिरोध का मान शून्य हो।

दिष्ट धारा (d.c.) की तुलना में प्रत्यावर्ती धारा (a.c.) के दोष: प्रत्यावर्ती धारा के निम्न दोष है-

(i) प्रत्यावर्ती धारा के द्वारा विद्युत्-अपघटन (Electrolysis) नहीं हो सकता है, इसलिए एल्युमिनियम कारखाने तथा अन्य कारखानों में जहाँ विद्युत्-अपघटन की आवश्यकता होती है, वहाँ दिष्ट धारा का प्रयोग किया जाता है। इसी कारण से कलई (Electro-plating) करने के काम में भी दिष्ट धारा का व्यवहार किया जाता है।

(ii) प्रत्यावर्ती को दिष्ट धारा के समान संचायक सेल (Accumalator Cell) में संचित नहीं किया जाता है।


(iii) विद्युत् चुम्बकों (Electro-magnets) में केवल दिष्ट धारा का प्रयोग किया जाता है।

चोक-कुण्डली (Choke coil): विद्युत् परिपथ में प्रत्यावर्ती धारा की प्रबलता कम करने वाली कुंडली को चोक-कुंडली कहा जाता है। प्रतिरोध की सहायता से धारा घटाने पर विद्युत् ऊर्जा का अपव्यय ऊष्मा ऊर्जा के सृजन के रूप में होता है जबकि चोक-कुंडली की सहायता से धारा घटाने पर ऊर्जा का अपव्यय बहुत ही कम होता है। अल्प आवृत्ति की प्रत्यावर्ती धारा के साथ व्यवहार में लाये गए चोक-कुंडली का क्रोड़ (core) नर्म लोहे (चुम्बकीय) का बना होता है। अधिक आवृति की प्रत्यावर्ती धारा के साथ व्यवहार में लाए गए चोक-कुण्डली का क्रोड़ (core) लोहे का बना होता है।

नरम लोहे से बने कुंडली का प्रेरकत्व काफी अधिक होता है और आवृति कम होने पर भी इसका प्रतिघात का मान अधिक होता है। लोहे से बने कुंडली का प्रेरकत्व कम होता है और उसकी आवृति अधिक होती है, इसीलिए इसका भी प्रतिघात काफी अधिक होता है। चोक-कुंडली का प्रयोग घरों की ट्यूब लाइट, रेडियो तथा परानली लैम्प में किया जाता है।

ट्रांसफॉर्मर (Transformer): यह एक ऐसा उपकरण है, जिससे बिना विद्युत् शक्ति नष्ट किए हुए प्रत्यावर्ती धारा के वि० वा० बल का मान बढ़ाया या घटाया जाता है। यह विद्युत्-चुम्बकीय प्रेरण (Electro-magnetic induction) के सिद्धांत पर कार्य करता है। एक परतदार नर्म लोहे की आयताकार क्रोड (laminatedsoftiron rectangular core) पर आमने सामने दो कुंडलियां लपेटकर ट्रांसफॉर्मर बनाया जाता है। a.c. स्रोत से जुड़ने वाली कुण्डली को प्राथमिक कुण्डली (Primary Coil) एवं बाह्य परिपथ से जुड़नेवाली कुंडली को द्धितीयक कुंडली (secondary Coil) कहा जाता है।

ट्रांसफॉर्मर की क्षमता VA (अर्थात् वोल्ट एम्पियर) में मापी जाती है। इसके अन्य बड़े मात्रक kVA (अर्थात् किलो वोल्ट एम्पियर) एवं MVA (अर्थात् मेगा वोल्ट एम्पियर) होते हैं।

नोट : ट्रांसफॉर्मर केवल प्रत्यावतीं धारा (a.c.) के लिए प्रयुक्त किया जाता है।

डायनमो या ए.सी. जेनेरेटर (Dynamo or a.c. Generator): यह एक ऐसा यंत्र है जो, यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तित कर देता है। यह विद्युत् चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य करता है। जब तारों की एक कुंडली को स्थायी चुम्बकीय क्षेत्र में घुमाया जाता है, तो उसमें प्रेरित विद्युत् धारा उत्पन्न हो जाती है। यह बाह्य परिपथ में a.c. भेजता है।a.c. जेनरेटर के सर्पी वलयों (slip rings) के स्थान पर विभक्त वलय (split rings) प्रयुक्त किए जाय, तो a.c. जेनरेटर d.c. जेनरेटर में बदल जाता है। यह बाह्य परिपथ में दिष्ट धारा भेजता है।

माइक्रोफोन (Microphone): इसकी सहायता से ध्वनि ऊर्जा को विद्युत् उर्जा में परिवर्तित किया जाता है। इसकी सहायता से ध्वनि को एक स्थान से दूसरे स्थान तक भेजा जाता है। माइक्रोफोन का सिद्धांत विद्युत् चुम्बकीय प्रेरण (Electro-magnetic Induction) पर आधारित होता है। इसमें धातु के दो प्लेटों के मध्य कार्बन के दाने (carbon granules) रखे होते हैं। इन प्लेटों में एक प्लेट स्थिर तथा दूसरी प्लेट गतिशील होती है। इसे डायफ्रॉम (Diaphram) कहते हैं। जब कोई वक्ता बोलता है डायफ्रॉम कम्पन करने लगता है। डायफ्रॉम के साथ एक कुंडली जुड़ी रहती है, जो एक चुम्बकीय क्षेत्र में रखी होती है तथा डायफ्रॉम के साथ-साथ कम्पन करती है। इस कारण इसमें एक विद्युत् वाहक बल उत्पन्न हो जाता है। इस वि० वा० ब० का मान उच्चायी ट्रांसफॉर्मर की सहायता से बढ़ा दिया जाता है। यह विद्युत् ऊर्जा जब दूसरे स्थान पर पहुँचता है तो लाऊडस्पीकर या टेलीफोन अभिग्राही (telephone receiver) के द्वारा पुनः ऊर्जा में परावर्तित कर दिया जाता है।

लाउडस्पीकर (Loudspeaker): इसकी सहायता से माइक्रोफोन द्वारा प्रेषित विद्युत् तरंगों को पुनः ध्वनि तरंगों में परिवर्तित किया जाता है। इसमें एक कुंडली होती है, जो एक शक्तिशाली चुम्बकीय क्षेत्र में रखी होती है तथा एक शंक्वाकार कागज या धातु के बेलन से जुड़ी होती है, जिसे डायफ्रॉम कहते हैं। जब माइक्रोफोन से प्रेषित धारा कुंडली से प्रवाहित होती है, तो यह चुम्बकीय क्षेत्र में कम्पन करने लगता है। डायफ्रॉम का आकार काफी बड़ा होता है, अतः इसके कम्पन से बड़े आयाम के कम्पन उत्पन्न होते हैं, जिससे तीव्र ध्वनि उत्पन्न होती है।

विद्युत् मोटर (Electric Motor): विद्युत् धारा के कारण उत्पन्न चुम्बकीय क्षेत्र द्वारा किसी चालक में गति उत्पन्न की जा सकती है। इसी सिद्धांत पर विद्युत् मोटर कार्य करती है। विद्युत् मोटर के इस सिद्धान्त को माइकल फैराडे (Michael Faraday) ने दिया था। इन्होंने ने ही सर्वप्रथम प्रयोग द्वारा यह दिखाया था किसी धारावाही चालक में चुम्बक द्वारा गति उत्पन्न की जा सकती है।

विद्युत् मोटर में तार की एक कुंडली होती है, जो आयताकार होती है। यह कुंडली किसी आर्मेचर (Armature) पर लिपटी रहती है। आर्मेचर चुम्बक के ध्रुवों के बीच धुरी पर घूर्णन करने के लिए स्वतंत्र होती है। कुंडली में धारा प्रवाहित करने पर चुम्बकीय क्षेत्र कुंडली की विपरीत भुजाओं को ऊपर तथा नीचे की ओर धकेल देती है। इससे कुंडली दक्षिणावर्त (rightnand) घूम जाती है, लेकिन दिक्-परिवर्तक ध्रुवता में कुंडली के आधे घूर्णन के बाद परिवर्तन आ जाता है। इस परिवर्तन के कारण अब भुजाओं पर लगने वाला बल उल्टा हो जाता है। इस प्रकार लगातार घूर्णन होते रहने से विद्युत् मोटर गतिशील रहती है। विद्युत् मोटर इस प्रकार विद्युत् ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में बदलता है। विद्युत् मोटर विद्युत्-चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य नहीं करती है।

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