भारत के कृषि प्रदेश Agricultural Regions Of India

कृषि प्रदेश

भारत में भौगोलिक विभिन्नताओं ने कृषि फसलों में भी अनेक विभिन्नताओं को जन्म दिया है। वर्षा, तापमान, समुद्र तल से ऊंचाई, भूमि का ढलान, मिट्टी और फसल आदि मिलकर कृषि में विविधता उत्पन्न करते हैं। विभिन्न विद्वानों और संस्थाओं द्वारा कृषि प्रदेशों का वर्गीकरण योजनाओं के निर्माण तथा कृषि प्रबंध हेतु विभिन्न भागों में किया गया है।

एक कृषि क्षेत्र का निर्माण निम्नलिखित में से एक या अधिक कारकों के आधार पर किया जाता है-

  • भू-आकृतिक कारक, जैसे-स्थलाकृति, मृदा, नमी का स्तर तथा जलवायविक परिस्थितियां इत्यादि।
  • कृषि पद्धतियों की विविधता।
  • उस क्षेत्र विशेष में अपनाया जाने वाला फसल संयोजन।
  • कृषि उत्पादकता।

कृषि क्षेत्रीकरण कई उद्देश्यों की पूर्ति करता है- प्रथम, यह एक नियोजन उपकरण के रूप में कार्य करता है, क्योंकि यह कृषि को सुदृढ़ आर्थिक दृष्टिकोण से देखता है। द्वितीय, किन्ही दो क्षेत्रों की प्राकृतिक समानता से इन क्षेत्रों में एक साथ ही फसल संयोजन का निर्धारण होता है। तृतीय क्षेत्रीकरण से उत्पादकता के सम्बंध में मौजूद स्थानिक विभेद स्पष्ट हो जाते हैं तथा निम्न उत्पादकता वाले क्षेत्रों के ली एक समेकित नीति बनाना आसान हो जाता है। चतुर्थ, विभिन्न कृषि-आर्थिक कारकों के आधार पर कृषि क्षेत्रीकरण के माध्यम से अल्प वितीय संस्थानों का बेहतर उपयोग किया जा सकता है।


भारत में कृषि क्षेत्रीकरण की एक योजना तैयार करने के लिए अनेक प्रयास किये गये हैं। इन प्रयासों के अंतर्गत निम्न योजनाएं शामिल हैं:

डॉ. रंधावा के कृषि क्षेत्र

डॉ. एम.एस. रंधावा द्वारा 1958 में अपनी योजना प्रस्तुत की गयी, जो अक्षांश, ऊंचाई, वायु तापमान, मृदा, फसल, प्राकृतिक वनस्पति तथा पशु संसाधन पर आधारित है। इन्होंने मुख्यतः जलवायविक परिस्थितियों के आधार पर भारत को पांच कृषि क्षेत्रों में विभाजित किया है। जो इस प्रकार है-


1. शीतोष्ण हिमालय क्षेत्र  The Temperate Himalayan Region- इस क्षेत्र के दो मुख्य उप-क्षेत्र हैं-

  • आर्द्र पूर्वी हिमालय क्षेत्र  The Eastern Himalayan: इसके अंतर्गत सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश तथा पूर्वाचल की पहाड़ियां शामिल हैं। एक उच्च वर्षापात वाला क्षेत्र होने के कारण यह क्षेत्र घने वनों से आच्छादित है। निम्न भूमियों पर चावल तथा ढालों पर चाय उगायी जाती है।
  • पश्चिमी हिमालय क्षेत्र  The western temperate Himalayan: इसके अंतर्गत उत्तराखण्ड की कुमाऊं पहाड़ियां, हिमाचल प्रदेश का हिमालयी क्षेत्र तथा जम्मू व कश्मीर शामिल हैं। यह क्षेत्र घाटियों की एक श्रृंखला तथा मध्यम वर्षा के लिए पहचाना जाता है। कश्मीर, कांगड़ा एवं कुल्लू की घाटियों में चावल पैदा किया जाता है। ढालों पर सेब, अखरोट, चेरी, बादाम जैसी बागानी फसलों के साथ-साथ आलू एवं मक्का भी उगाया जाता है। ढालों पर पशुचारण गतिविधियां भी सामान्य होती हैं।

2. उत्तरी शुष्क (या गेहू) क्षेत्र The Northern Dry (Wheat) Region: इस क्षेत्र में पंजाब, हरियाणा, प. उत्तर प्रदेश, उत्तरी गुजरात, पश्चिमी मध्य प्रदेश एवं राजस्थान शामिल है। इस क्षेत्र में 75 सेंमी. से भी कम वर्षा होती है तथा यहां शीत ऋतु काफी ठंडी होती है। नहरों तथा कुंओं से प्राप्त सिंचाई की व्यापक सुविधाएं इस क्षेत्र की विशेषता है। इस क्षेत्र की प्रमुख फसलों में गेहूं, जौ, दाल, मक्का, ज्वार एवं बाजरा शामिल हैं। कपास एक महत्वपूर्ण व्यावसायिक फसल है।

3. पूर्वी नम (या चावल) प्रदेश The Eastern Wet (Rice) Region: इस क्षेत्र के अंतर्गत पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, प. बंगाल, उत्तरी-पूर्वी राज्य, ओडीशा, तटीय आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु को शामिल किया जाता है। ग्रीष्म मानसून के दौरान इस क्षेत्र में 100 सेंमी. से अधिक वर्षा होती है। चावल प्रमुख खाद्यान्न फसल पर ज्वार, बाजरा एवं रागी जैसी शुष्क फसलें उगायी जाती हैं।

4. पश्चिमी नम क्षेत्र The Western Wet (Malabar) Region: इसके अंतर्गत केरल तथा कर्नाटक के पश्चिमी तटीय मैदान एवं पश्चिमी घाट शामिल हैं। यह उच्च वर्षापात तथा लैटेराइट व जलोढ़ मिट्टी वाला क्षेत्र है। निम्न भूमियों में चावल प्रमुख खाद्यान्न फसल है। पहाड़ी भागों में रबड़, काली मिर्च, इलायची तथा कॉफ़ी जैसी पौध फसलें उगाई जाती हैं। तटीय भागों में नारियल, काजू टैपिओका आदि फसलें उगायी जाती हैं।

5. दक्षिणी क्षेत्र The Southern Coarse (Cereals) Region: इस क्षेत्र में प्रायद्वीपीय पठार तथा गंगा के मैदान के दक्षिणी भाग (उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक व तमिलनाडु) का विस्तृत भूभाग शामिल है। इस क्षेत्र में 100 सेंमी. से कम वर्षा होती है तथा यहां लाल, लेटेराइट एवं काली मिट्टियां पायी जाती हैं। इस क्षेत्र में सिंचाई की सुविधाएं सीमित हैं। ज्वार, बाजरा, मूंगफली, दालें तथा कपास आदि इस क्षेत्र में उगायी जाने वाली मुख्य फसलें हैं। चावल दक्षिणी भाग की तथा गेहूं उत्तरी भाग की प्रमुख खाद्यान्न फसलें हैं। सिंचित क्षेत्रों में गन्ना महत्वपूर्ण नकदी फसल है।


पी. सेनगुप्ता और जी.एस. दयाक का क्षेत्र

सेनगुप्ता और दयाक के द्वारा भारत के आर्थिक क्षेत्रीकरण शीर्षक से 1968 में भारत को 4 सम कृषि क्षेत्रों, 11 मध्यवर्ती क्षेत्रों तथा 60 सूक्ष्म क्षेत्रों में विभाजित किया गया। ये विभाजन कृषि तथा कृषि आगतों व निर्गतों (श्रम, सिंचाई, फसल गहनता, वर्षा तथा मृदा सूचक स्तर इत्यादि) के विभिन्न प्रकारों पर आधारित है। जो इस प्रकार है-

1. हिमालय कृषि क्षेत्र: इस कृषि क्षेत्र में वर्षा की विविधता पायी जाती है। यहां वार्षिक वर्षा औसतन 120 से.मी. से लेकर 250 से.मी. तक होती है। इस कृषि क्षेत्र के अंतर्गत हिमाचल प्रदेश, जम्मू एवं कश्मीर, कुमाऊं हिमालय, दार्जिलिंग, असम हिमालय, अरुणाचल प्रदेश आदि क्षेत्र आते हैं। कृषि की दृष्टि से यह क्षेत्र बहुत अनुकूल नहीं है, फिर भी कुछ फसलें हैं, जिनकी कृषि यहां की जाती है- गेहूं, धान, मक्का, चना और आलू। फलों का उत्पादन भी यहां किया जाता है।

2. पश्चिमी क्षेत्र: इस कृषि क्षेत्र को चार उपखण्डों में विभाजित किया जा सकता है- पूर्वी मैदान, प्रायद्वीपीय पठार, पूर्वी पहाड़ियां एवं पठार तथा पश्चिमी समुद्र तटीय प्रदेश। पूर्वी मैदान के अंतर्गत उपरी ब्रह्मपुत्र घाटी, निचली ब्रह्मपुत्र घाटी, पश्चिमी बंगाल, भागीरथी डेल्टा, ओडिशा के तटवर्ती क्षेत्र आदि आते है, प्रायद्वीपीय पठार के अंतर्गत छोटानागपुर पठार, उपरी महानदी बेसिन, ओडीशा की पहाड़ी, बस्तर का पठार तथा मध्यवर्ती मध्य प्रदेश आते हैं, पूर्वी पहाड़ियां एवं पठार के अंतर्गत मनुपिर, मिजो एवं गारो पहाड़ियां, मिकिर, कचर, खासी, जयंतिया और नागालैण्ड क्षेत्र आदि आते हैं तथा पश्चिमी समुद्र तटीय प्रदेश के तहत् खम्भात तट, उत्तरी कोंकण तट, कर्नाटक तट, दक्षिणी कोंकण तट, उत्तरी और दक्षिण मालाबार तट आदि क्षेत्र आते हैं। इस क्षेत्र में वार्षिक वर्षा औसतन 100 से.मी. से लेकर 125 से.मी. तक होती है। आर्द्र कृषि क्षेत्र में उत्पादित होने वाली फसलों में प्रमुख हैं- धान, तिलहन, गेहूं, मोटे अनाज, चाय, नारियल, चना, गन्ना, जूट आदि।

3. अल्पार्द्र कृषि क्षेत्र: इस क्षेत्र को स्थूल रूप से तीन उप- खंडों में विभाजित किया जाता है- ऊपरी एवं मध्य गंगा का मैदान, अल्पार्द्र प्रायद्वीपीय पठार तथा अल्पार्द्र समुद्रतटीय क्षेत्र। उपरी एवं गंगा का मैदान के अंतर्गत उपरी गंगा का तारे क्षेत्र, पूर्वी उत्तर-प्रदेश, मध्य गंगा का मैदान, दक्षिणी गंगा का मैदान, अवध का मैदान आदि क्षेत्र आते हैं। अल्पार्द्र प्रायद्वीपीय दक्षिणी आंध्र तट, कृष्णा- गोदावरी डेल्टा, तमिलनाडु का समुद्र तट, दक्षिण पूर्वी तमिलनाडु, गुजरात का समुद्र तट आदि आते हैं। यहां वार्षिक वर्षा 75 से.मी. से लेकर 100 से.मी. तक होती है। विभिन्न क्षेत्रों में वर्षा के औसत में विविधता पायी जाती है। सिंचाई की सुविधा प्राप्त होने पर कृषि कार्य को प्रोत्साहन मिलता है। इस कृषि क्षेत्र में मुख्य रूप से निम्न फसलें उपजायी जाती हैं- गेहूं , धान, गन्ना, चना, मक्का, मोटे अनाज, कपास, मूंगफली, तिलहन और तम्बाकू आदि।

4. शुष्क कृषि क्षेत्र: इसके अंतर्गत देश के वे भाग आते हैं, जहां कृषि कार्य के लिए जल की विशेष कमी होती है। इस क्षेत्र को दो उप-खण्डों में विभक्त किया जाता है- शुष्क उत्तरी-पश्चिमी प्रदेश तथा शुष्क प्रायद्वीपीय पठार। शुष्क उत्तरी-पश्चिमी मैदान के अंतर्गत राजस्थान का मरुस्थलीय मैदान, अर्ध-मरुस्थलीय मैदान, उत्तरी पंजाब का मैदान, अरावली की पहाड़ियां, सौराष्ट्र व कच्छ क्षेत्र आदि आते हैं जबकि शुष्क प्रायद्वीपीय पठार के अंतर्गत तपती-नर्मदा दोआब, ऊपरी गोदावरी घाटी, उत्तरी भीमा-कृष्णा नदी, तुंगभद्रा घाटी, रॉयल सीमा का पठार आदि क्षेत्र आते हैं। इस कृषि क्षेत्र में उपजायी जाने वाली फसलें हैं-कपास, तिलहन, मोटे अनाज, गेहूं, मूंगफली, चना आदि।


अग्रणी फसल वाले कृषि क्षेत्र

जे.टी. कॉपीक द्वारा 1964 में प्रस्तुत न्यूनतम वर्गों की पद्धति का उपयोग करते हुए 11 फसल क्षेत्रों (प्रथम क्रम के क्षेत्र) तथा 38 फसल संयोजन क्षेत्रों का निर्धारण किया गया है। ये क्षेत्र 11 प्रथम श्रेणी की फसलों-चावल, ज्वार, गेहूं, मक्का, बाजरा, दालें, रागी, जौ, कपास, मूंगफली एवं चाय पर आधारित हैं, जो एक या अधिक जिलों के कुल फसल क्षेत्र के अधिकतम भाग में उगायी जाती हैं। अन्य फसलों को प्रमुख फसलों के साथ संयोजित करके उगाया जाता है। प्रमुख फसलों का प्रतिशत 40 से 100 प्रतिशत तक हो सकता है।

भारत की प्रमुख फसलों व उनके क्षेत्रों तथा अन्य संयोजित फसलों का विवेचन इस प्रकार है-

चावल

भारत में ऐसे सात क्षेत्र हैं, जहां चावल प्रथम श्रेणी की फसल के रूप में उगाया जाता है-

  1. चावल एकल कृषि क्षेत्र: इस क्षेत्र के अंतर्गत पूर्वी मध्य प्रदेश, छोटानागपुर पठार, तटीय ओडीशा, प. बंगाल, ब्रह्मपुत्र घाटी, त्रिपुरा, मणिपुर, नागालैंड, अंडमान व निकोबार द्वीप समूह तथा कृष्णा, गोदावरी, कावेरी के डेल्टाओं को शामिल किया जाता है। इन क्षेत्रों में केवल चावल उगाया जाता है।
  2. पश्चिमी तट: इस क्षेत्र में केरल तथा कोंकण तट शामिल हैं। इस क्षेत्र की अन्य फसलों में सुपारी, रागी, चारा, नारियल, सब्जियां एवं रबड़ इत्यादि हैं।
  3. पूर्वी तट: इसके अंतर्गत तमिलनाडु के गैर-डेल्टाई क्षेत्र शामिल हैं। मूंगफली, बाजरा, कपास, ज्वार एवं दलहन इस क्षेत्र में उगायी जाने वाली अन्य फसलें हैं।
  4. पूर्वी उत्तर प्रदेश एव बिहार के गंगा मैदान: इस क्षेत्र में चावल के अतिरिक्त गेहूं, जौ, दालें, गन्ना एवं मक्का इत्यादि फसलें उगाई जाती हैं।
  5. दक्षिणी कर्नाटक पठार: इस क्षेत्र की अन्य फसलों में कॉफी, रागी, दाल, इलायची, नारियल एवं खट्ठे फल शामिल हैं।
  6. प. बगाल का उत्तरी पहाड़ी जिला: चाय एवं मक्का इस क्षेत्र की अन्य फसलें है तथा जूट जलपाईगुड़ी में उगाया जाता है।
  7. मेघालय पठार: इस क्षेत्र में आलू, मक्का एवं कपास को संयोजित फसलों के रूप में उगाया जाता है।

गेहूं

चावल के बाद गेहूं दूसरी सर्वाधिक महत्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है। गेहूं का कोई एकल कृषि क्षेत्र नहीं है। गेहूं उत्पादन क्षेत्र के 40 प्रतिशत फसल क्षेत्र में गेहूं उगाया जाता है। ऐसे चार क्षेत्र हैं, जहां गेहूं प्रथम श्रेणी की फसल मानी जाती है-

  1. गंगा-यमुना दोआब: दालें, चावल, मक्का, गन्ना, बाजरा एवं चारा इत्यादि इस क्षेत्र की अन्य फसलें हैं।
  2. पूर्वी हरियाणा: इस क्षेत्र में दलहन, बाजरा, ज्वार, गन्ना एवं चारा को संयोजित फसलों के रूप में उगाया जाता है।
  3. हिमाचल प्रदेश एव पंजाब के भागः इसके अंतर्गत पंजाब के गुरदासपुर एवं होशियारपुर जिले शामिल हैं। मक्का, चावल, दालें इत्यादि इस क्षेत्र की अन्य फसलें हैं।
  4. शेष पंजाब: इस क्षेत्र में गेहूं के अलावा मक्का, चारा, कपास, दालें तथा मूंगफली इत्यादि फसलों को उगाया जाता है।

ज्वार

यह चावल के बाद सर्वाधिक विस्तृत क्षेत्र में उगायी जाने वाली फसल है। इसे चार क्षेत्रों में प्रथम श्रेणी की फसल माना जाता है-

  1. तमिलनाडु उच्च भूमि (सलेम कोयंबटूर): मूंगफली, बाजरा चावल, रागी, जौ, दलहन
  2. उत्तरी कर्नाटक पठार एव पश्चिमी महाराष्ट्र: इस क्षेत्र की अन्य फसलों में बाजरा, रागी, जौ, चावल, मूंगफली एवं दालें शामिल हैं।
  3. उत्तरी महाराष्ट्र एव मध्य प्रदेश के भाग: दाल, गेहूं, कपास तथा चावल इस क्षेत्र की संयोजित फसलें हैं।
  4. तेलंगाना एव चद्रपुर (महाराष्ट्र): ज्वार के अतिरिक्त इस क्षेत्र में चावल एवं दालें भी उगायी जातीं हैं।

मक्का

यह निम्नलिखित दो क्षेत्रों में प्रथम श्रेणी की फसल हैं-

  1. दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान तथा मध्य प्रदेश गुजरात को संलग्न क्षेत्र: इस क्षेत्र में मक्का के अतिरिक्त चावल, गेहूं, मूंगफली, चना, चारा व दालें इत्यादि को उगाया जाता है।
  2. हिमाचल प्रदेश एव कश्मीर की पहाड़िया: इस क्षेत्र में अन्य फसलों के रूप में ढालों पर बागानी फसलें तथा घाटी तल पर चावल उगाया जाता है।

बाजरा

यह कच्छ, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश व हरियाणा के कुछ भागों की प्रथम श्रेणी की फसल है। इसके क्षेत्रों में दालें, चारा व गेहूं आदि की खेती भी की जाती है।

रागी

यह दक्षिणी कर्नाटक तथा तमिलनाडु के धरमपुरी जिले के प्रथम श्रेणी की फसल है। इस क्षेत्र की अन्य फसलों के रूप में चावल, दलहन, मूंगफली, ज्वार एवं नारियल को उगाया जाता है।

जौ

इसे लाहोल-स्पीति एवं किन्नौर में प्रथम श्रेणी की फसल माना जाता है। जई तथा गेहूं  इस क्षेत्र की अन्य फसलें हैं।

कपास

यह महाराष्ट्र के पूर्वी तथा उत्तरी भागों, गुजरात के पूर्वी भाग तथा मध्य प्रदेश के कुछ भागों की प्रथम श्रेणी की फसल है। इन क्षेत्रों में कपास के अलावा ज्वार, बाजरा, मूंगफली एवं चारा की फसलें उगायी जाती हैं।

मूंगफली

यह दक्षिणी आंध्र प्रदेश के अंनतपुर, कुडप्पा तथा चितूर जिलों एवं गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र की प्रथम श्रेणी फसल है।

चाय

इसे तमिलनाडु का नीलगिरि तथा प. बंगाल की उत्तरी पहाड़ियों में प्रथम श्रेणी की फसल के रूप में उगाया जाता है। नीलगिरि क्षेत्र में चाय के अलावा कॉफी एवं सब्जियां भी उगायी जाती हैं।

दलहन फसलें

ये गंगा के दक्षिण में स्थित मध्य उच्च भूमियों तथा उत्तरी-पश्चिमी राजस्थान में प्रथम श्रेणी की फसलों के रूप में उगायी जाती हैं। इनके साथ-साथ बाजरा, कपास व चारा फसलें भी उगायी जाती हैं।

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