काल-निर्धारण की विधियां Ageing Methods

पुरातात्विक साक्ष्यों के काल-निर्धारण के लिए विभिन्न विधियों का प्रयोग किया जाता है। 40 हजार वर्षों के विभिन्न युगों के तिथि निर्धारण के लिए C-14 तिथि निर्धारण, रेडियो कार्बन तिथि निर्धारण विधि का इस्तेमाल किया जाता है। 40,000 वर्षों से अधिक की जानकारी के लिए पोटाशियम-आर्गन विधि तथा यूरेनियम लेड विधि का इस्तेमाल किया जाता है। भारत में तिथि निर्धारण की रेडियो कार्बन विधि का सर्वाधिक उपयोग होता है।

पृथ्वी का इतिहास भू- वैज्ञानिक दृष्टि से पृथ्वी लगभग 48 अरब वर्ष प्राचीन है और इस पर जीवन का प्रारम्भ लगभग 35 अरब वर्ष पूर्व हुआ।

मानव नूतनजीव (Cenozoic) महाकल्प के चतुर्थ चरण (कल्प) क्वाटरनरी (Quaternary) में रह रहा है। इसके तीन युग हैं-

  1. नूतनतम् (होलोसीन) 10 हजार वर्ष पूर्व,
  2. अत्यंत नूतन (प्लीस्टोसेन) 20 लाख वर्ष पूर्व,
  3. अति नूतन जीवन (प्लीआसिन) 1 करोड़ 20 लाख वर्ष पूर्व।

मनुष्य की पूर्वज परम्परा को अधिक से अधिक मध्य नूतन युग तक खींचा जा सकता है। अत्यन्त नूतन युग में आकर मनुष्य ने इस बात का निश्चित संकेत दिया कि उसने अपनी जैविक क्षमता को अधिक अनुकूल बनाया है।

लगभग 2 करोड़ वर्ष पूर्व महाकपि का एक समूह जो रामापिथेकस के नाम से जाना जाता था, वह दो समूहों में विभाजित हो गया। उसकी एक शाखा जंगलों में रह गयी परन्तु धरती पर रहने के लिए वह अधिक अनुकूलित थी। अतः यह शाखा महाकपि वर्ग के रूप में विकसित हुयी। परन्तु इसकी दूसरी शाखा ने खुले घास के मैदान में रहना पसंद किया। अत: वह ऑस्ट्रेलोपिथकस के नाम से जाना जाने लगा। यही ऑस्ट्रेलोपिथकस मानव का आदि पूर्वज था। कालांतर में ऑस्ट्रेलोपिथकस से इरेक्टस का और फिर इरेक्टस से नियान्डरथल का विकास हुआ और लगभग 30 हजार वर्ष पूर्व आधुनिक मानव होमोसेपियन का विकास हुआ।

अत्यन्त नूतन काल (प्लीस्टोसेन) में गाय, हाथी एवं घोड़े भी उत्पन्न हुए। सम्भवत: यह घटना अफ्रीका में लगभग 26 लाख वर्ष पूर्व ही हुई होगी। आदि मानव के जीवाश्म भारत में प्राप्त नहीं होते। भारत में मानव के प्राचीनतम अस्तित्व के संकेत पत्थर के औजारों में मिलते हैं, जिनका काल लगभग 5 लाख ई.पू. से 2 लाख 50 हजार ई.पू. निर्धारित किया गया है। किन्तु अभी हाल में महाराष्ट्र के बोरी नामक स्थान से मानव की उपस्थिति लगभग 14 लाख वर्ष पूर्व निर्धारित की गयी है पर अभी यह शोध का विषय है।


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