भारत का संविधान – भाग 14 क अधिकरण

[1][भाग 14क

अधिकरण

323क. प्रशासनिक अधिकरण–(1) संसद्, विधि द्वारा, संघ या किसी राज्य के अथवा भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के नियंत्रण के अधीन किसी स्थानीय या अन्य प्राधिकारी के अथवा सरकार के स्वामित्व या नियंत्रण के अधीन किसी निगम के कार्यकलाप से संबंधित लोक सेवाओं और पदों  के लिए  भर्ती तथा नियुक्त व्यक्तियों  की सेवा की शर्तों के संबंध में विवादों और परिवादों के प्रशासनिक अधिकरणों द्वारा न्यायनिर्णयन या विचारण के लिए उपबंध कर सकेगी ।

(2) खंड (1) के अधीन बनाई गई विधि–

(क) संघ के लिए  एक प्रशासनिक अधिकरण और प्रत्येक राज्य के लिए  अथवा दो या अधिक राज्यों के लिए  एक पृथक् प्रशासनिक अधिकरण की स्थापना  के लिए  उपबंध  कर सकेगी ;

(ख) उक्त अधिकरणों में से प्रत्येक अधिकरण द्वारा प्रयोग की जाने वाली अधिकारिता, शक्तियां  (जिनके अंतर्गत अवमान के लिए  दंड देने की शक्ति  है) और प्राधिकार विनिर्दिष्ट कर सकेगी ;

(ग) उक्त अधिकरणों द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया  के लिए  (जिसके अंतर्गत परिसीमा के बारे में और साक्ष्य के नियमों के बारे में उपबंध  हैं) उपबंध कर सकेगी ;


(घ) अनुच्छेद 136 के अधीन उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता के सिवाय सभी न्यायालयों की अधिकारिता का खंड (1) में निर्दिष्ट विवादों या परिवादों के संबध में अपवर्जन  कर सकेगी ;

(ङ) प्रत्येक ऐसे  प्रशासनिक अधिकरण को उन मामलों के अंतरण के लिए  उपबंध  कर सकेगी जो ऐसे  अधिकरण की स्थापना  से ठीक पहले  किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकारी के समक्ष लंबित हैं और जो, यदि ऐसे वाद हेतुक जिन पर ऐसे  वाद या कार्यवाहियां आधारित हैं, अधिकरण की स्थापना के पश्चात् उत्पन्न होते तो, ऐसे अधिकरण की अधिकारिता के भीतर होते ;

(च) राष्ट्रपति  द्वारा अनुच्छेद 371घ के खंड (3) के अधीन किए  गए  आदेश का निरसन या संशोधन कर सकेगी ;

(छ) ऐसे  अनुपूरक, आनुषांगिक और पारिणामिक उपबंध  (जिनके अंतर्गत फीस के बारे में उपबंध  हैं) अंतर्विष्ट  कर सकेगी जो संसद् ऐसे  अधिकरणों के प्रभावी कार्यकरण के लिए  और उनके द्वारा मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए और उनके आदेशों के प्रवर्तन के लिए  आवश्यक समझे ।

(3) इस अनुच्छेद के उपबंध  इस संविधान के किसी अन्य उपबंध  में या तत्समय प्रवॄत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए  भी प्रभावी होंगे ।

323ख. अन्य विषयों के लिए  अधिकरण–(1) समुचित विधान-मंडल, विधि द्वारा, ऐसे विवादों, परिवादों या अपराधों के अधिकरणों द्वारा न्यायनिर्णयन या विचारण के लिए  उपबंध  कर सकेगा जो खंड (2) में विनिर्दिष्ट  उन सभी या किन्हीं  विषयों से संबंधित हैं जिनके संबंध में ऐसे  विधान-मंडल को विधि बनाने की शक्ति  है ।

(2) खंड (1) में निर्दिष्ट विषय निम्नलिखित हैं, अर्थात् :–

(क) किसी कर का उद्ग्रहण, निर्धारण, संग्रहण और प्रवर्तन ;

(ख) विदेशी मुद्रा, सीमाशुल्क सीमांतों के आर-फार आयात और निर्यात ;

(ग) औद्योगिक और श्रम विवाद ;

घ) अनुच्छेद 31क में यथापरिभाषित  किसी संपदा या उसमें किन्हीं  अधिकारों के राज्य द्वारा अर्जन या ऐसे  किन्हीं  अधिकारों के निर्वापन या उपांतरण द्वारा या कृषि भूमि की अधिकतम सीमा द्वारा या किसी अन्य प्रकार से भूमि सुधार ;

(ङ) नगर संपत्ति  की अधिकतम सीमा ;

(च) संसद् के प्रत्येक सदन या किसी राज्य विधान-मंडल के सदन या प्रत्येक सदन के लिए  निर्वाचन, किन्तु अनुच्छेद 329 और अनुच्छेद 329क में निर्दिष्ट विषयों को छोड़कर ;

(छ) खाद्य पदार्थों का (जिनके अंतर्गत खाद्य तिलहन और तेल हैं) और ऐसे अन्य माल का उत्पादन, उपापन, प्रदाय और वितरण, जिन्हें राष्ट्रपति, लोक अधिसूचना द्वारा, इस अनुच्छेद के प्रयोजन के लिए  आवश्यक माल घोषित करे और ऐसे माल की कीमत का नियंत्रण ;

[2][(ज)[किराया, उसका विनियमन और नियंत्रण तथा कराएदारी संबंधी विवाद्यक, जिनके अंतर्गत मकान मालिकों और किराएदारों के अधिकार, हक और हित हैं ; ]

[3][(झ)]उपखंड (क) से उपखंड [4][(ज)]में विनिर्दिष्ट  विषयों में से किसी विषय से संबंधित विधियों के  विरुद्ध अफराध और उन विषयों में से किसी की बाबत फीस ;

2[(ञ)] उपखंड (क) से उपखंड [5][(झ)] में विनिर्दिष्ट विषयों में से किसी का आनुषांगिक कोई विषय ।

(3) खंड (1) के अधीन बनाई गई विधि —

(क) अधिकरणों के उत्व्रम की स्थापना  के लिए  उपबंध  कर सकेगी  ;

(ख) उक्त अधिकरणों में से प्रत्येक अधिकरण द्वारा प्रयोग की जाने वाली अधिकारिता, शक्तियां  (जिनके अंतर्गत अवमान के लिए  दंड देने की शक्ति  है) और प्राधिकार विनिर्दिष्ट  कर सकेगी ;

(ग) उक्त अधिकरणों द्वारा अनुसरण की जाने वाली प्रक्रिया  के लिए  (जिसके अंतर्गत फरिसीमा के बारे में और साक्ष्य के नियमों के बारे में उपबंध  हैं ) उपबंध  कर सकेगी ;

(घ) अनुच्छेद 136 के अधीन उच्चतम न्यायालय की अधिकारिता के सिवाय सभी न्यायालयों की अधिकारिता का उन सभी या किन्हीं  विषयों के संबंध में अपवर्जन  कर सकेगी जो उक्त अधिकरणों की अधिकारिता के अंतर्गत आते हैं ;

(ङ) प्रत्येक ऐसे  अधिकरणको उन मामलों के अंतरण के लिए  उपबंध  कर सकेगी जो ऐसे  अधिकरण की स्थापना  से ठीक पहले  किसी न्यायालय या अन्य प्राधिकारी के समक्ष लंबित हैं और जो, यदि ऐसे  वाद हेतुक जिन पर ऐसे  वाद या कार्यवाहियां आधारित हैं, अधिकरण की स्थापना  के पश्चात्  उत्पन्न  होते तो ऐसे  अधिकरण की अधिकारिता के भीतर होते ;

(च) ऐसे  अनुपूरक , आनुषांगिक  और पारिणामिक   उपबंध  (जिनके अंतर्गत फीस के बारे में उपबंध  हैं) अंतर्विष्ट  कर सकेगी जो समुचित विधान-मंडल ऐसे  अधिकरणों के प्रभावी कार्यकरण के लिए  और उनके द्वारा मामलों के शीघ्र निपटारे  के लिए  और उनके आदेशों के प्रवर्तन के लिए  आवश्यक समझे ।

(4) इस अनुच्छेद के उपबंध  इस संविधान के किसी अन्य उपबंध  में या तत्समय प्रवॄत्त किसी अन्य विधि में किसी बात के होते हुए  भी प्रभावी होंगे ।

स्पष्टीकरण —इस अनुच्छेद में, किसी विषय के संबंध में, “समुचित विधान-मंडल” से, यथास्थिति, संसद् या किसी राज्य का विधान-मंडल अभिप्रेत है, जो भाग 11 के उपबंधों के अनुसार ऐसे  विषय के संबंध में विधि बनाने के लिए  सक्षम है ।

 


[1] संविधान (बयालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 46 द्वारा (3-1-1977 से) अंतःस्थापित  ।

[2] संविधान (पचहत्तरवां  संशोधन) अधिनियम, 1993 की धारा 2 द्वारा (15-5-1994 से) अंतःस्थापित  ।

[3] संविधान (पचहत्तरवां  संशोधन) अधिनियम, 1993 की धारा 2 द्वारा (15-5-1994 से) उपखंड (ज) और (झ) को उपखंड (झ) और (ञ) के रूप में पुनःअक्षरांकित किया जाएगा ।

[4] संविधान (पचहत्तरवां  संशोधन) अधिनियम, 1993 की धारा 2 द्वारा (15-5-1994 से) “(छ)”के स्थान पर  प्रतिस्थापित ।

[5] संविधान (पचहत्तरवां  संशोधन) अधिनियम, 1993 की धारा 2 द्वारा (15-5-1994 से) “(ज)”के स्थान पर  प्रतिस्थापित ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *