भारत का संविधान – भाग 12 वित्त, संपत्ति, संविदाएं और वाद

भाग 12

वित्त, संपत्ति , संविदाएं और वाद

अध्याय 1 — वित्त

साधारण

[1][264. निर्वचन–इस भाग में,  “वित्त आयोग” से अनुच्छेद 280 के अधीन गठित वित्त आयोग अभिप्रेत है ।]

265. विधि के प्राधिकार के बिना करों का अधिरोपण न किया जाना–कोई कर विधि के प्राधिकार से ही अधिरोपित या संगॄहीत किया जाएगा, अन्यथा नहीं  ।

266. भारत और राज्यों की संचित निधियां और लोक लेखे–(1) अनुच्छेद 267 के उपबंधों के तथा कुछ करों और शुल्कों के शुद्ध आगम पूर्णतः या भागतः राज्यों को सौंप  दिए  जाने के संबंध में इस अध्याय के उपबंधों के अधीन रहते हुए, भारत सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, उस सरकार द्वारा राज हुंडियां निर्गमित करके, उधार द्वारा या अर्थोपाय अग्रिमों द्वारा लिए  गए  सभी उधार और उधारों के प्रतिसंदाय में उस सरकार को प्राप्त सभी धनराशियों की एक संचित निधि बनेगी जो  “भारत की संचित निधि” के नाम से ज्ञात होगी तथा किसी राज्य सरकार को प्राप्त सभी राजस्व, उस सरकार द्वारा राज हुंडियां निर्गमित करके, उधार द्वारा या अर्थोपाय  अग्रिमों द्वारा लिए  गए  सभी उधार और उधारों के प्रतिसंदाय में उस सरकार को प्राप्त सभी धनराशियों की एक संचित निधि बनेगी जो “राज्य की संचित निधि” के नाम से ज्ञात होगी ।


(2) भारत सरकार या किसी राज्य सरकार द्वारा या उसकी ओर से प्राप्त सभी अन्य लोक धनराशियां, यथास्थिति, भारत के लोक लेखे में या राज्य के लोक लेखे में जमा की जाएंगी ।

(3) भारत की संचित निधि या राज्य की संचित निधि में से कोई धनराशियां विधि के अनुसार तथा इस संविधान में उपबंधित  प्रयोजनों के लिए  और रीति से ही विनियोजित की जाएंगी, अन्यथा नहीं  ।

267. आकस्मिकता निधि–(1) संसद्, विधि द्वारा, अग्रदाय के स्वरूप  की एक आकस्मिकता निधि की स्थापना  कर सकेगी जो  “भारत की आकस्मिकता निधि” के नाम से ज्ञात होगी जिसमें ऐसी  विधि द्वारा अवधारित राशियां समय-समय पर जमा की जाएंगी और अनवेक्षित व्यय का अनुच्छेद 115 या अनुच्छेद116 के अधीन संसद् द्वारा, विधि द्वारा, प्राधिकॄत किया जाना लंबित रहने तक ऐसी निधि में से ऐसे व्यय की पूर्ति  के लिए अग्रिमधन देने के लिए राष्ट्रपति  को समर्थ बनाने के लिए  उक्त निधि राष्ट्रपति के व्ययनाधीन रखी जाएगी ।

(2) राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, अग्रदाय के स्वरूप  की एक आकस्मिकता निधि की स्थापना  कर सकेगा जो  “राज्य की आकस्मिकता निधि” के नाम से ज्ञात होगी जिसमें ऐसी  विधि द्वारा अवधारित राशियां समय-समय पर जमा की जाएं गी और अनवेक्षित व्यय  का अनुच्छेद 205 या अनुच्छेद 206 के अधीन राज्य के विधान-मंडल द्वारा, विधि द्वारा, प्राधिकॄत किया जाना लंबित रहने तक ऐसी  निधि में से ऐसे  व्यय  की पूर्ति  के लिए  अग्रिम धन देने के लिए राज्यपाल को समर्थ बनाने के लिए  उक्त निधि राज्य के राज्यपाल [2]* * *के व्ययनाधीन रखी जाएगी ।

संघ और राज्यों के बीच राजस्वों का वितरण

268. संघ द्वारा उद्गॄहीत किए  जाने वाले किंतु  राज्यों द्वारा संगॄहीत और विनियोजित किए  जाने वाले शुल्क–(1) ऐसे  स्टांफ-शुल्क तथा औषधीय और प्रसाधन निार्मितियों पर ऐसे  उत्पाद-शुल्क, जो संघ सूची में वार्णित हैं, भारतसरकार द्वारा उद्गॄहीत किए  जाएंगे, किंतु  —

(क) उस दशा में, जिसमें ऐसे  शुल्क [3][संघ राज्यक्षेत्रटके भीतर उद्ग्रहणीय हैं भारत सरकार द्वारा, और

(ख) अन्य दशाओं में जिन-जिन राज्यों के भीतर ऐसे शुल्क उद्ग्रहणीय हैं, उन-उन राज्यों द्वारा, संगॄहीत किए जाएंगे ।

(2) किसी राज्य के भीतर उद्ग्रहणीय किसी ऐसे शुल्क के किसी वित्तीय वर्ष में आगम, भारत की संचित निधि के भाग नहीं होंगे, किन्तु उस राज्य को सौंप दिए जाएंगे ।

[4][268क. संघ द्वारा उद्गॄहीत किए  जाने वाला और संघ तथा राज्यों द्वारा संगॄहीत और विनियोजित किया जाने वाला सेवा-कर–(1) सेवाओं पर कर भारत सरकार द्वारा उद्गॄहीत किए  जाएंगे और ऐसा  कर खंड (2) में उपबंधित  रीति से भारत सरकार तथा राज्यों द्वारा संगॄहीत और विनियोजित किया जाएगा  ।

(2) किसी वित्तीय वर्ष में, खंड (1) के उपबंध  के अनुसार, उद्गॄहीत ऐसे  किसी कर के आगमों का–

(क) भारत सरकार और राज्यों द्वारा संग्रहण ;

(ख) भारत सरकार और राज्यों द्वारा विनियोजन, संग्रहण और विनियोजन के ऐसे  सिद्धान्तों के अनुसार किया जाएगा , जिन्हें संसद् विधि द्वारा बनाए  ।]

269. संघ द्वारा उद्गॄहीत और संगॄहीत किंतु  राज्यों को सौपें  जाने वाले कर–[5][(1) माल के क्रय  या विक्रय  पर कर और माल के परेषण पर कर, भारत सरकार द्वारा उद्गॄहीत और संगॄहीत किए  जाएंगे किन्तु खंड (2) में उपबंधित  रीति से राज्यों को 1 अप्रैल, 1996 को या उसके पश्चात् सौंप  दिए  जाएंगे या सौंप  दिए  गए  समझे जाएंगे।

स्पष्टीकरण —इस खंड के प्रयोजनों के लिए —

(क) “माल के क्रय  या विक्रय पर कर” पद से समाचार पत्रों  से भिन्न माल के क्रय  या विक्रय  पर उस दशा में कर अभिप्रेत है जिसमें ऐसा  क्रय  या विक्रय  अंतरराज्यिक  व्यापार  या वाणिज्य के दौरान होता है  ;

(ख) “माल के परेषण पर कर” पद से माल के परेषण पर (चाहे परेषण उसके करने वाले व्यक्ति  को या किसी अन्य व्यक्ति  को किया गया हो) उस दशा में कर अभिप्रेत है जिसमें ऐसा  परेषण अंतरराज्यिक  व्यापार  या वाणिज्य के दौरान होता है ।

(2) किसी वित्तीय वर्ष में किसी ऐसे  कर के शुद्ध आगम वहां तक के सिवाय, जहां तक वे आगम संघ राज्यक्षेत्रों से प्राप्त हुए आगम माने जा सकते हैं, भारत की संचित निधि के भाग नहीं  होंगे, किंतु  उन राज्यों को सौंप  दिए जाएंगे जिनके भीतर वह कर उस वर्ष में उद्ग्रहणीय हैं और वितरण के ऐसे  सिद्धांतों के अनुसार, जो संसद् विधि द्वारा बनाए, उन राज्यों के बीच वितरित किए  जाएंगे ।]

[6][(3) संसद्, यह अवधारित करने के लिए  कि [7][माल का क्रय  या विक्रय  या परेषण] कब अंतरराज्यिक  व्यापार  या वाणिज्य के दौरान होता है, विधि द्वारा सिद्धांत बना सकेगी ।]

[8][270.उद्गॄहीत कर और उनका संघ तथा राज्यों के बीच वितरण–(1) क्रमशः [9][अनुच्छेद 268 और अनुच्छेद 269]में निर्दिष्ट शुल्कों और करों के सिवाय, संघ सूची में निर्दिष्ट सभी कर और शुल्क ; अनुच्छेद 271 में निर्दिष्ट करों और शुल्कों पर अधिभार और संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि के अधीन विनिर्दिष्ट प्रयोजनों के लिए उद्गॄहीत कोई उपकर भारत सरकार द्वारा उद्गॄहीत और संगॄहीत किए  जाएंगे तथा खंड (2) में उपबंधित  रीति से संघ और राज्यों के बीच वितरित किए  जाएंगे ।

(2) किसी वित्तीय वर्ष में किसी ऐसे  कर या शुल्क के शुद्ध आगमों का ऐसा प्रतिशत, जो विहित किया जाए, भारत की संचित निधि का भाग नहीं होगा, किन्तु उन राज्यों को सौंप दिया जाएगा जिनके भीतर वह कर या शुल्क उस वर्ष में उद्ग्रहणीय है और ऐसी  रीति से और ऐसे  समय से, जो खंड (3) में उपबंधित रीति से विहित किया जाए, उन राज्यों के बीच वितरित किया जाएगा  ।

(3) इस अनुच्छेद में, “विहित” से अभिप्रेत है–

(त्) जब तक वित्त आयोग का गठन नहीं  किया जाता है तब तक राष्ट्रपति  द्वारा आदेश द्वारा विहित ; और

(त्त्) वित्त आयोग का गठन किए जाने के पश्चात्  वित्त आयोग की सिफारिशों पर विचार करने के पश्चात्  राष्ट्रपति  द्वारा आदेश द्वारा विहित । ]

271. कुछ शुल्कों और करों पर संघ के प्रयोजनों के लिए  अधिभार–अनुच्छेद 269 और अनुच्छेद 270 में किसी बात के होते हुए  भी, संसद् उन अनुच्छेदों में निर्दिष्ट शुल्कों या करों में से किसी में किसी भी समय संघ के प्रयोजनों के लिए  अधिभार द्वारा वॄद्धि कर सकेगी और किसी ऐसे  अधिभार के संपूर्ण  आगम भारत की संचित निधि के भाग होंगे ।

[10]272. [कर जो संघ द्वारा उद्गॄहीत और संगॄहीत किए जाते हैं तथा जो संघ और राज्यों के बीच वितरित किए  जा सकेंगे] — संविधान (अस्सीवां संशोधन) अधिनियम, 2000 की धारा 4 द्वारा लोप किया गया ।

273. जूट पर और जूट उत्पादों  पर निर्यात शुल्क के स्थान पर अनुदान–(1) जूट पर और जूट उत्पादों   पर निर्यात शुल्क के प्रत्येक वर्ष के शुद्ध आगम का कोई भाग असम, बिहार, उड़ीसा और पश्चिमी  बंगाल राज्यों को सौंप  दिए  जाने के स्थान पर उन राज्यों के राजस्व में सहायता अनुदान के रूप  में प्रत्येक वर्ष भारत की संचित निधि पर ऐसी  राशियां भारित की जाएं गी जो विहित की जाएं  ।

(2) जूट पर और जूट उत्पादों  पर जब तक भारत सरकार कोई निर्यात शुल्क उद्गॄहीत करती रहती है तब  तक या इस संविधान के प्रारंभ से दस वर्ष की समाप्ति तक, इन दोनों में से जो भी पहले  हो, इस प्रकार विहित राशियां भारत की संचित निधि पर भारित बनी रहेंगी ।

(3) इस अनुच्छेद में, “विहित” पद का वही अर्थ है जो अनुच्छेद 270 में है ।

274. ऐसे  कराधान पर जिसमें राज्य हितबद्ध है, प्रभाव डालने वाले विधेयकों के लिए  राष्ट्रपति  की पूर्व  सिफारिश की अपेक्षा –(1) कोई विधेयक या संशोधन, जो ऐसा कर या शुल्क, जिसमें राज्य हितबद्ध है, अधिरोपित  करता है या उसमें परिवर्तन  करता है अथवा जो भारतीय आय-कर से संबंधित अधिनियमितियों के प्रयोजनों के लिए  परिभाषित  “कृषि-आय” पद के अर्थ में परिवर्तन करता है अथवा जो उन सिद्धांतों को प्रभावित करता है जिनसे इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंधों में से किसी उपबंध के अधीन राज्यों को धनराशियां वितरणीय हैं या हो सकेंगी अथवा जो संघ के प्रयोजनों के लिए  कोई ऐसा  अधिभार अधिरोपित  करता है जो इस अध्याय के पूर्वगामी उपबंधों में वार्णित है, संसद् के किसी सदन में राष्ट्रपति  की सिफारिश पर ही पुरःस्थाफित या प्रस्तावित किया जाएगा, अन्यथा नहीं  ।

(2) इस अनुच्छेद में, “ऐसा  कर या शुल्क, जिसमें राज्य हितबद्ध हैं” पद से ऐसा  कोई कर या शुल्क अभिप्रेत है–

(क) जिसके शुद्ध आगम पूर्णतः या भागतः किसी राज्य को सौंप  दिए  जाते हैं, या

(ख) जिसके शुद्ध आगम के प्रति निर्देश से भारत की संचित निधि में से किसी राज्य को राशियां तत्समय संदेय हैं ।

275. कुछ राज्यों को संघ से अनुदान–(1) ऐसी राशियां, जिनका संसद् विधि द्वारा उपबंध  करे, उन राज्यों के राजस्वों में सहायता अनुदान के रूप  में प्रत्येक वर्ष भारत की संचित निधि पर भारित होंगी जिन राज्यों के विषय में संसद् यह अवधारित करे कि उन्हें सहायता की आवश्यकता है और भिन्न-भिन्न राज्यों के लिए  भिन्न-भिन्न राशियां नियत की जा सकेंगी :

परंतु  किसी राज्य के राजस्वों में सहायता अनुदान के रूप  में भारत की संचित निधि में से ऐसी  पूंजी  और आवर्ती राशियां संदत्त की जाएं गी जो उस राज्य को उन विकास स्कीमों के खर्चों को पूरा  करने में समर्थ बनाने के लिए  आवश्यक हों जिन्हें उस राज्य में अनुसूचित जनजातियों के कल्याण की अभिवॄद्धि करने या उस राज्य में अनुसूचित क्षेत्रों के प्रशासन स्तर को उस राज्य के शेष क्षेत्रों के प्रशासन स्तर तक उन्नत करने के प्रयोजन के लिए  उस राज्य द्वारा भारत सरकार के अनुमोदन से हाथ में लिया जाए :

परंतु  यह और कि असम राज्य के राजस्व में सहायता अनुदान के रूप  में भारत की संचित निधि में से ऐसी  पूंजी  और आवर्ती राशियां संदत्त की जाएंगी–

(क) जो छठी अनुसूची के पैरा  20 से संलग्न सारणी के [11][भाग 1] में विनिर्दिष्ट  जनजाति क्षेत्रों के प्रशासन के संबंध में इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पूर्ववर्ती दो वर्ष के दौरान औसत व्यय  राजस्व से जितना अधिक है, उसके बराबर हैं ; और

(ख) जो उन विकास स्कीमों के खर्चों के बराबर हैं जिन्हें उक्त क्षेत्रों के प्रशासन स्तर को उस राज्य के शेष क्षेत्रों के प्रशासन स्तर तक उन्नत करने के प्रयोजन के लिए  उस राज्य द्वारा भारत सरकार के अनुमोदन से हाथ में लिया जाए ।

[12][(1क) अनुच्छेद 244क के अधीन स्वशासी राज्यके बनाए  जाने की तारीख को और से —

(त्) खंड (1) के दूसरे परंतु क के खंड (क) के अधीन संदेय कोई राशियां स्वशासी राज्य को उस दशा में संदत्त की जाएं गी जब उसमें निर्दिष्ट सभी जनजाति क्षेत्र उस स्वशासी राज्य में समाविष्ट हों और यदि स्वशासी राज्य में उन जनजाति क्षेत्रों में से केवल कुछ ही समाविष्ट हों तो वे राशियां असम राज्य और स्वशासी राज्य के बीच ऐसे  प्रभाजित की जाएं गी जो राष्ट्रपति  आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट  करे ;

(त्त्) स्वशासी राज्य के राजस्वों में सहायता अनुदान के रूप  में भारत की संचित निधि में से ऐसी  पूंजी  और आवर्ती राशियां संदत्त की जाएं गी जो उन विकास स्कीमों के खर्चों के बराबर है जिन्हें स्वशासी राज्यके प्रशासन स्तर को शेष असम राज्य के प्रशासन स्तर तक उन्नत करने के प्रयोजन के लिए  स्वशासी राज्य द्वारा भारत सरकार के अनुमोदन से हाथ में लिया जाए ।]

(2) जब तक संसद् खंड (1) के अधीन उपबंध  नहीं  करती है तब तक उस खंड के अधीन संसद् को प्रदत्त शक्तियां  राष्ट्रपति  द्वारा, आदेश द्वारा, प्रयोक्तव्य होंगी और राष्ट्रपति  द्वारा इस खंड के अधीन किया गया कोई आदेश संसद् द्वारा इस प्रकार किए  गए  किसी उपबंध  के अधीन रहते हुए प्रभावी होगा :

परंतु  वित्त आयोग का गठन किए  जाने के पश्चात् राष्ट्रपति  द्वारा इस खंड के अधीन कोई आदेश वित्त आयोग की सिफारिशों पर विचार करने के पश्चात्  ही किया जाएगा , अन्यथा नहीं  ।

276. वॄत्तियों, व्यापारों, आजीविकाओं और नियोजनों पर कर–(1) अनुच्छेद 246 में किसी बात के होते हुए  भी, किसी राज्य के विधान-मंडल की ऐसे  करों से संबंधित कोई विधि, जो उस राज्य के या उसमें किसी नगरपालिका, जिला बोर्ड, स्थानीय बोर्ड या अन्य स्थानीय प्राधिकारी के फायदे के लिए वॄत्तियों, व्यापारों, आजीविकाओं या नियोजनों के संबंध में है, इस आधार पर अविधिमान्य नहीं  होगी कि वह आय पर कर से संबंधित है ।

(2) राज्य को या उस राज्य में किसी एक नगरपालिका , जिला बोर्ड, स्थानीय बोर्ड या अन्य स्थानीय प्राधिकारी को किसी एक व्यक्ति  के बारे में वॄत्तियों, व्यापारों , आजीविकाओं और नियोजनों पर करों के रूप  में संदेय कुल रकम [13][दो हजार पांच  सौ रूपए] प्रति वर्ष से अधिक नहीं  होगी ।

2*     *      *      *      *      *      *      *      *

(3) वॄत्तियों, व्यापारों , आजीविकाओं और नियोजनों पर करों के संबंध में पूर्वोक्त रूप  में विधियां बनाने की राज्य के विधान-मंडल की शक्ति  का यह अर्थ नहीं  लगाया जाएगा  कि वह वॄत्तियों, व्यापारों, आजीविकाओं और नियोजनों से प्रोदभूत  या उदभूत आय पर करों के संबंध में विधियां बनाने की संसद् की शक्ति को किसी प्रकार सीमित करती है ।

277. व्यावृत्ति –ऐसे  कर, शुल्क, उपकर या फीसें, जो इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले  किसी राज्य की सरकार द्वारा अथवा किसी नगरपालिका या अन्य स्थानीय प्राधिकारी या निकाय द्वारा उस राज्य, नगरपालिका, जिला या अन्य स्थानीय क्षेत्र के प्रयोजनों के लिए  विधिपूर्वक उद्गॄहीत की जा रही थी, इस बात के होते हुए भी कि वे कर, शुल्क, उपकर या फीसें संघ सूची में वार्णित हैं, तब तक उद्गॄहीत की जाती रहेंगी और उन्हीं  प्रयोजनों के लिए  उपयोजित की जाती रहेंगी जब तक संसद् विधि द्वारा इसके प्रतिकूल उपबंध नहीं करती है ।

278. [कुछ  वित्तीय विषय के संबंध में पहली अनुसूची के भाग ख के राज्यों से करार ।] संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा निरसित ।

279. शुद्ध आगमआदि की गणना–(1) इस अध्याय के पूर्व गामी उपबंधों में “शुद्ध आगम” से किसी कर या शुल्क के संबंध में उसका वह आगम अभिप्रेत है जो उसके संग्रहण के खर्चों को घटाकर आए और उन उपबंधों के प्रयोजनों के लिए किसी क्षेत्र में या उससे प्राप्त हुए माने जा सकने वाले किसी कर या शुल्क का अथवा किसी कर या शुल्क के किसी भाग का शुद्ध आगम भारत के नियंत्रक-महालेखाफरीक्षक द्वारा अभिनिश्चित और प्रमाणित किया जाएगा  और उसका प्रमाणपत्र अंतिम होगा ।

(2) जैसा ऊपर कहा गया है उसके और इस अध्याय के किसी अन्य अभिव्यक्त उपबंध के अधीन रहते हुए, किसी ऐसी  दशा में, जिसमें इस भाग के अधीन किसी शुल्क या कर का आगम किसी राज्य को सौंप दिया जाता है या सौंप दिया जाए, संसद् द्वारा बनाई गई विधि या राष्ट्रपति का कोई आदेश उस रीति का, जिससे आगम की गणना की जानी है, उस समय का, जिससे या जिसमें और उस रीति का, जिससे कोई संदाय किए जाने हैं, एक वित्तीय वर्ष और दूसरे वित्तीय वर्ष में समायोजन करने का और अन्य आनुषांगिक या सहायक विषयों का उपबंध कर सकेगा ।

280. वित्त आयोग–(1) राष्ट्रपति , इस संविधान के प्रारंभ से दो वर्ष के भीतर और तत्पश्चात प्रत्येक पांच वें वर्ष की समाप्ति पर या ऐसे  पूर्व तर समय पर, जिसे राष्ट्रपति आवश्यक समझता है, आदेश द्वारा, वित्त आयोग का गठन करेगा जो राष्ट्रपति  द्वारा नियुक्त किए जाने वाले एक अध्यक्ष और चार अन्य सदस्यों से मिलकर बनेगा ।

(2) संसद् विधि द्वारा, उन अर्हताओं का, जो आयोग के सदस्यों के रूप में नियुक्ति  के लिए अपेक्षित  होंगी और उस रीति का, जिससे उनका चयन किया जाएगा, अवधारण कर सकेगी ।

(3) आयोग का यह कर्तव्य होगा कि वह–

(क) संघ और राज्यों के बीच करों के शुद्ध आगमों के, जो इस अध्याय के अधीन उनमें विभाजित किए  जाने हैं या किए जाएं, वितरण के बारे में और राज्यों के बीच ऐसे  आगमों के तत्संबंधी भाग के आबंटन के बारे में ;

(ख) भारत की संचित निधि में से राज्यों के राजस्व में सहायता अनुदान को शासित करने वाले सिद्धांतों के बारे में ;

[14][(खख) राज्य के वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर राज्य में पंचायतों  के संसाधनों की अनुपूर्ति  के लिए  किसी राज्य की संचित निधि के संवर्धन के लिए  आवश्यक अध्युपायों के बारे में ;]

[15][(ग) राज्य के वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर राज्य में नगरपालिकाओं  के संसाधनों की अनुपूर्ति  के लिए  किसी राज्य की संचित निधि के संवर्धन के लिए  आवश्यक अध्युपायों के बारे में ;]

[16][(घ) सुदृढ़ वित्त के हित में राष्ट्रपति  द्वारा आयोग को निर्दिष्ट किए गए किसी अन्य विषय के बारे में, राष्ट्रपति  को सिफारिश करे ।]

(4) आयोग अपनी  प्रक्रिया  अवधारित करेगा और अपने  कॄत्यों के पालन  में उसे ऐसी  शक्तियां  होंगी जो संसद्, विधि द्वारा, उसे प्रदान करे ।

281. वित्त आयोग की सिफारिशें–राष्ट्रपति  इस संविधान के उपबंधों के अधीन वित्त आयोग द्वारा की गई प्रत्येक सिफारिश को, उस पर की गई कार्रवाई के स्पष्टिकारक ज्ञाफन सहित, संसद् के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाएगा ।

प्रकीर्ण वित्तीय उपबंध

282. संघ या राज्य द्वारा अपने  राजस्व से किए  जाने वाले व्यय–संघ या राज्य किसी लोक प्रयोजन के लिए  कोई अनुदान इस बात के होते हुए  भी दे सकेगा कि वह प्रयोजन ऐसा  नहीं  है जिसके संबंध में, यथास्थिति  , संसद् या  उस राज्य का विधान-मंडल विधि बना सकता है ।

283. संचित निधियों, आकस्मिकता निधियों और लोक लेखाओं में जमा धनराशियों की अभिरक्षा आदि–(1)भारत की संचित निधि और भारत की आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा, ऐसी निधियों में धनराशियों के संदाय, उनसे धनराशियों के निकाले जाने, ऐसी  निधियों में जमा धनराशियों से भिन्न भारत सरकार द्वारा या उसकी ओर से प्राप्त लोक धनराशियों की अभिरक्षा, भारत के लोक लेखे में उनके संदाय और ऐसे लेखे से धनराशियों के निकाले जाने का तथा पूर्वोक्त विषयों से संबंधित या उनके आनुषांगिक अन्य सभी विषयों का विनियमन संसद् द्वारा बनाई गई विधि द्वारा किया जाएगा  और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध  नहीं  किया जाता है तब तक राष्ट्रपति  द्वारा बनाए  गए  नियमों द्वारा किया जाएगा  ।

(2) राज्य की संचित निधि और राज्य की आकस्मिकता निधि की अभिरक्षा, ऐसी निधियों में धनराशियों के संदाय, उनसे धनराशियों के निकाले जाने, ऐसी निधियों में जमा धनराशियों से भिन्न राज्य की सरकार द्वारा या उसकी ओर से प्राप्त लोक धनराशियों की अभिरक्षा, राज्य के लोक लेखे में उनके संदाय और ऐसे लेखे से धनराशियों के निकाले जाने का तथा पूर्वोक्त  विषयों से संबंधित या उनके आनुषांगिक अन्य सभी विषयों का विनियमन राज्य के विधान-मंडल द्वारा बनाई गई विधि द्वारा किया जाएगा  और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध  नहीं  किया जाता है तब तक राज्य के राज्यपाल  4* * * द्वारा बनाए गए नियमों द्वारा किया जाएगा  ।

284. लोक सेवकों और न्यायालयों द्वारा प्राप्त वादकर्ताओं की जमा राशियों और अन्य धनराशियों की अभिरक्षा–ऐसी सभी धनराशियां, जो–

(क) यथास्थिति, भारत सरकार या राज्य की सरकार द्वारा जुटाए गए या प्राप्त राजस्व या लोक धनराशियों से भिन्न हैं, और संघ या किसी राज्य के कार्यकलाप के संबंध में नियोजित किसी अधिकारी को उसकी उस हैसियत में, या

(ख) किसी वाद, विषय , लेखे या व्यक्तियों  के नाम में जमा भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर किसी न्यायालय को, प्राप्त होती है या उसके पास निक्षिप्त की जाती है, यथास्थिति, भारत के लोक लेखे में या राज्य के लोक लेखे में जमा की जाएगी ।

285. संघ की संपत्ति को राज्य के कराधान से छूट–(1) वहां तक के सिवाय, जहां तक संसद् विधि द्वारा अन्यथा उपबंध करे, किसी राज्य द्वारा या राज्य के भीतर किसी प्राधिकारी द्वारा अधिरोपित  सभी करों से संघ की संपत्ति को छूट होगी ।

(2) जब तक संसद् विधि द्वारा अन्यथा उपबंध  न करे तब तक खंड (1) की कोई बात किसी राज्य के भीतर किसी प्राधिकारी को संघ की किसी संपत्ति  पर कोई ऐसा  कर, जिसका दायित्व इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले, ऐसी  संपत्ति  पर था या माना जाता था, उद्गॄहीत करने से तब तक नहीं  रोकेगी जब तक वह कर उस राज्य में उद्गॄहीत होता रहता है ।

286. माल के क्रय या विक्रय पर कर के अधिरोपण के बारे में निर्बंधन–(1) राज्य की कोई विधि, माल के क्रय  या विक्रय पर, जहां ऐसा क्रय या विक्रय —

(क) राज्य के बाहर, या

(ख) भारत के राज्यक्षेत्र में माल के आयात या उसके बाहर निर्यात के दौरान, होता है वहां, कोई कर अधिरोपित  नहीं  करेगी या अधिरोपित  करना प्राधिकॄत नहीं  करेगी ।

[17]* * * * * *

[18][(2) संसद्, यह अवधारित करने के लिए कि माल का क्रय या विक्रय खंड (1) में वार्णित रीतियों में से किसी रीति से कब होता है विधि द्वारा, सिद्धांत बना सकेगी ।]

[19][(3) जहां तक किसी राज्य की कोई विधि–

(क) ऐसे  माल के, जो संसद् द्वारा विधि द्वारा अंतरराज्यिक  व्यापार  या वाणिज्य में विशेष महत्व का माल घोषित किया गया है, क्रय  या विक्रय  पर कोई कर अधिरोपित  करती है या कर का अधिरोपण  प्राधिकॄत करती है ; या

(ख) माल के क्रय  या विक्रय  पर ऐसा कर अधिरोपित  करती है या ऐसे  कर का अधिरोपण  प्राधिकॄत करती है, जो अनुच्छेद 366 के खंड (29क) के उपखंड(ख), उपखंड (ग) या उपखंड (घ) में निर्दिष्ट प्रकॄति का कर है, वहां तक वह विधि, उस कर के उद्ग्रहण की पद्धति, दरों और अन्य प्रसंगतियों के संबंध में ऐसे निबंधनों और शर्तों के अधीन होगी जो संसद् विधि द्वारा विनिर्दिष्ट  करे ।]]

287. विद्युत पर करों से छूट–वहां तक के सिवाय, जहां तक संसद् विधि द्वारा अन्यथा उपबंध  करे, किसी राज्य की कोई विधि (किसी सरकार द्वाराया अन्य व्यक्तियों  द्वारा उत्पादित ) विद्युत के उपभोग या विक्रय  पर जिसका —

(क) भारत सरकार द्वारा उपभोग किया जाता है या भारत सरकार द्वारा उपभोग किए  जाने के लिए  उस सरकार को विक्रय  किया जाता है, या

(ख) किसी रेल के निर्माण, बनाए रखने या चलाने में भारत सरकार या किसी रेल कंपनी द्वारा, जो उस रेल को चलाती है, उपभोग किया जाता है अथवा किसी रेल के निर्माण, बनाए  रखने या चलाने में उपभोग के लिए  उस सरकार या किसी ऐसी  रेल कंफनी को विक्रय  किया जाता है,  कोई कर अधिरोपित  नहीं  करेगी या कर का अधिरोपण  प्राधिकॄत नहीं  करेगी और विद्युत के विक्रय  पर कोई कर अधिरोपित  करने या कर का अधिरोपण  प्राधिकॄत करने वाली कोई ऐसी  विधि यह सुनिाश्चित करेगी कि भारत सरकार द्वारा उपभोग किए  जाने के लिए  उस सरकार को, या किसी रेल के निर्माण, बनाए  रखने या चलाने में उपभोग के लिए यथा पूर्वोक्त  किसी रेल कंफनी को विक्रय  की गई विद्युत की कीमत, उस कीमत से जो विद्युत का प्रचुर मात्रा में उपभोग करने वाले अन्य उपभोक्ताओं से ली जाती है, उतनी कम होगी जितनी कर की रकम है ।

288. जल या विद्युत के संबंध में राज्यों द्वारा कराधान से कुछ दशाओं में छूट–(1) वहां तक के सिवाय जहां तक राष्ट्रपति  आदेश द्वारा अन्यथा उपबंध  करे, इस संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले किसी राज्य की कोई प्रवॄत्त विधि किसी जल या विद्युत के संबंध में, जो किसी अंतरराज्यिक नदी या नदी-दून के विनियमन या विकास के लिए  किसी विद्यमान विधि द्वारा या संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा स्थाफित किसी प्राधिकारी द्वारा संचित, उत्पादित, उपभुक्त, वितरित या विक्रीत  की जाती है, कोई कर अधिरोपित  नहीं  करेगी या कर का अधिरोपण  प्राधिकॄत नहीं करेगी ।

स्पष्टीकरण —इस खंड में, “किसी राज्य की कोई प्रवॄत्त विधि” पद के अंतर्गत किसी राज्य की ऐसी  विधि होगी जो इस संविधान के प्रारंभ से पहले  पारित  या बनाई गई है और जो पहले  ही निरसित नहीं  कर दी गई है, चाहे वह या उसके कोई भाग उस समय बिल्कुल या विशिष्ट क्षेत्रों में प्रवर्तन में न हों ।

(2) किसी राज्य का विधान-मंडल, विधि द्वारा, खंड (1) में वार्णित कोई कर अधिरोपित  कर सकेगा या ऐसे  कर का अधिरोपण  प्राधिकॄत कर सकेगा, किन्तु ऐसी  किसी विधि का तब तक कोई प्रभाव नहीं  होगा जब तक उसे राष्ट्रपति  के विचार के लिए  आरक्षित रखे जाने के पश्चात्  उसकी अनुमति न मिल गई हो और यदि ऐसी  कोई विधि ऐसे  करों की दरों और अन्य प्रसंगतियों को किसी प्राधिकारी द्वारा, उस विधि के अधीन बनाए जाने वाले नियमों या आदेशों द्वारा, नियत किए  जाने का उपबंध  करती है तो वह विधि ऐसे  किसी नियम या आदेश के बनाने के लिए  राष्ट्रपति  की पूर्व  सहमति अभिप्राप्त किए  जाने का उपबंध  करेगी ।

289. राज्यों की संपत्ति  और आय को संघ के कराधान से छूट–(1) किसी राज्य की संपत्ति और आय को संघ के करों से छूट होगी ।

(2) खंड (1) की कोई बात संघ को किसी राज्य की सरकार द्वारा या उसकी ओर से किए जाने वाले किसी प्रकार के व्यापार  या कारबार के संबंध में अथवा उससे संबंधित किन्हीं  क्रियाओं  के संबंध में अथवा ऐसे  व्यापार या कारबार के प्रयोजनों के लिए  प्रयुक्त या अधिभुक्त किसी संपत्ति के संबंध में अथवा उसके संबंध में प्रोदभूत या उदभूत किसी आय के बारे में, किसी कर को ऐसी मात्रा तक, यदि कोई हो, जिसका संसद् विधि द्वारा उपबंध करे, अधिरोपित करने या कर का अधिरोपण प्राधिकॄत करने से नहीं रोकेगी । (3) खंड (2) की कोई बात किसी ऐसे  व्यापार  या कारबार अथवा व्यापार  या कारबार के किसी ऐसे  वर्ग को लागू नहीं  होगी जिसके बारे में संसद् विधि द्वारा घोषणा करे कि वह सरकार के मामूली कॄत्यों का आनुषांगिक  है ।

290. कुछ व्ययों और पेंशनों के संबंध में समायोजन–जहां इस संविधान के उपबंधों के अधीन किसी न्यायालय या आयोग के व्यय  अथवा किसी व्यक्ति को या उसके संबंध में, जिसने इस संविधान के प्रारंभ से पहले भारत में क्राउन के अधीन अथवा ऐसे  प्रारंभ के पश्चात्  संघ के या किसी राज्य के कार्यकलाप के संबंध में सेवा की है, संदेय पेंशन  भारत की संचित निधि या किसी राज्य की संचित निधि पर भारित है वहां, यदि —

(क) भारत की संचित निधि पर भारित होने की दशा में, वह न्यायालय या आयोग किसी राज्य की पृथक्  आवश्यकताओं में से किसी की पूर्ति  करता है या उस व्यक्ति  ने किसी राज्य के कार्यकलाप के संबंध में पूर्णतः  या भागतः सेवा की है, या

(ख) किसी राज्य की संचित निधि पर भारित होने की दशा में, वह न्यायालय या आयोग संघ की या अन्य राज्य की पृथक् आवश्यकताओं में से किसी की पूर्ति करता है या उस व्यक्ति ने संघ या अन्य राज्य के कार्यकलाप के संबंध में पूर्णतः या भागतः सेवा की है,

तो, यथास्थिति, उस राज्य की संचित निधि पर अथवा, भारत की संचित निधि अथवा अन्य राज्य की संचित निधि पर, व्यय या पेंशन के संबंध में उतना अंशदान, जितना करार पाया जाए या करार के अभाव में, जितना भारत के मुख्य न्यायमूार्ति द्वारा नियुक्त मध्यस्थ अवधारित करे, भारित किया जाएगा और उसका उस निधि में से संदाय किया जाएगा  ।

[20][290क. कुछ देवस्वम् निधियों को वार्षिक  संदाय–प्रत्येक वर्ष छियालीस लाख फचास हजार रूपए  की राशि केरल राज्य की संचित निधि पर भारित की जाएगी और उस निधि में से तिरूवांकुर देवस्वम् निधि को संदत्त की जाएगी और प्रत्येक वर्ष तेरह लाख फचास हजार रूपए  की राशि  [21][तमिलनाडु] राज्य की संचित निधि पर भारित की जाएगी और उस निधि में से 1 नवंबर, 1956 को उस राज्य को तिरुवांकुर-कोचीन राज्य से अंतरित राज्यक्षेत्रों के हिन्दू मंदिरों और पवित्र स्थानों के अनुरक्षण के लिए उस राज्य में स्थाफित देवस्वम् निधि को संदत्त की जाएगी ।]

291. [शासकों की निजी थैली की राशि ।]–संविधान (छब्बीसवां संशोधन) अधिनियम, 1971 की धारा 2 निरसित ।

अध्याय 2–उधार लेना

292. भारत सरकार द्वारा उधार लेना–संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार, भारत की संचित निधि की प्रतिभूति पर ऐसी  सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें संसद् समय-समय पर विधि द्वारा नियत करे, उधार लेने तक और ऐसी  सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें इस प्रकार नियत किया जाए, प्रत्याभूति देने तक है ।

293. राज्यों द्वारा उधार लेना–(1) इस अनुच्छेद के उपबंधों के अधीन रहते हुए , राज्य की कार्यपालिका  शक्ति  का विस्तार उस राज्य की संचित निधि की प्रतिभूति पर ऐसी  सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों,जिन्हें ऐसे राज्य का विधान-मंडल समय-समय पर विधि द्वारा नियत करे, भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर उधार लेने तक और ऐसी  सीमाओं के भीतर, यदि कोई हों, जिन्हें इस प्रकार नियत किया जाए, प्रत्याभूति देने तक है ।

(2) भारत सरकार, ऐसी  शर्तों के अधीन रहते हुए, जो संसद् द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन अधिकथित की जाएं , किसी राज्य को उधार दे सकेगी या जहां तक अनुच्छेद 292 के अधीन नियत किन्हीं  सीमाओं का उल्लंघन नहीं  होता है वहां तक किसी ऐसे राज्य द्वारा लिए  गए  उधारों के संबंध में प्रत्याभूति दे सकेगी और ऐसे उधार देने के प्रयोजन के लिए अपेक्षित राशियां भारत की संचित निधि पर भारित की जाएंगी ।

(3) यदि किसी ऐसे उधार का, जो भारत सरकार ने या उसकी पूर्ववर्ती सरकार ने उस राज्य को दिया था अथवा जिसके संबंध में भारत सरकारने या उसकी पूर्ववर्ती सरकार ने प्रत्याभूति दी थी, कोई भाग अभी भी बकाया है तो वह राज्य, भारत सरकार की सहमति के बिना कोई उधार नहीं  ले सकेगा ।

(4) खंड (3) के अधीन सहमति उन शर्तों के अधीन, यदि कोई हों, दी जा सकेगी जिन्हें भारत सरकार अधिरोपित करना ठीक समझे ।

अध्याय 3–संपत्ति , संविदाएं , अधिकार, दायित्व, बाध्यताएं और वाद

294. कुछ दशाओं में संपत्ति , आास्तियों, अधिकारों, दायित्वों और बाध्यताओं का उत्तराधिकार–इस संविधान के प्रारंभ से ही–

(क) जो संपत्ति और आस्तियां ऐसे  प्रारंभ से ठीक पहले  भारत डोमिनियन की सरकार के प्रयोजनों के लिए  हिज मजेस्टी में निहित थीं और जो संपत्ति  और आस्तियां ऐसे  प्रारंभ से ठीक पहले  प्रत्येक राज्यपाल  वाले प्रांत की सरकार के प्रयोजनों के लिए  हिज मजेस्टी में निहित थीं , वे सभी इस संविधान के प्रारंभ से पहले  पाकिस्तान डोमिनियन के या पश्चिमी  बंगाल, पूर्वी  बंगाल, पश्चिमी पंजाब  और पूर्वी पंजाब प्रांतों के सॄजन के कारण किए गए या किए  जाने वाले किसी समायोजन के अधीन रहते हुए  क्रमशः  संघ और तत्स्थानी राज्य में निहित होंगी;

और

(ख) जो अधिकार, दायित्व और बाध्यताएं भारत डोमिनियन की सरकार की और प्रत्येक राज्यपाल  वाले प्रांत की सरकार की थीं ,चाहे वे किसी संविदा से या अन्यथा उदभूत हुई हों, वे सभी इस संविधान के प्रारंभ से पहले  पाकिस्तान डोमिनियन के या पश्चिमी  बंगाल, पूर्वी  बंगाल, पश्चिमी  पंजाब  और पूर्वी  पंजाब  प्रांतों के सॄजन के कारण किए गए या किए जाने वाले किसी समायोजन के अधीन रहते हुए क्रमशः भारत सरकार और प्रत्येक तत्स्थानी राज्य की सरकार के अधिकार, दायित्व और बाध्यताएं होंगी ।

295. अन्य दशाओं में संपत्ति, आास्तियों, अधिकारों, दायित्वों और बाध्यताओं का उत्तराधिकार–(1) इस संविधान के प्रारंभ से ही —

(क) जो संपत्ति  और आस्तियां ऐसे  प्रारंभ से ठीक पहले  पहली  अनुसूची के भाग ख में विनिर्दिष्ट  राज्य के तत्स्थानी किसी देशी राज्य में निहित थीं , वे सभी ऐसे  करार के अधीन रहते हुए , जो भारत सरकार इस निमित्त उस राज्य की सरकार से करे, संघ में निहित होंगी यदि वे प्रयोजन जिनके लिए ऐसे प्रारंभ से ठीक पहले  ऐसी  संपत्ति  और आस्तियां धारित थीं, तत्पश्चात  संघ सूची में प्रगणित किसी विषय से संबंधित संघ के प्रयोजन हों,

और

(ख) जो अधिकार, दायित्व और बाध्यताएं पहली  अनुसूची के भाग ख में विनिर्दिष्ट राज्य के तत्स्थानी किसी देशी राज्य की सरकार की थीं, चाहे वे किसी संविदा से या अन्यथा उदभूत हुई हों, वे सभी ऐसे करार के अधीन रहते हुए, जो भारत सरकार इस निमित्त उस राज्य की सरकार से करे, भारत सरकार के अधिकार, दायित्व और बाध्यताएं होंगी यदि वे प्रयोजन, जिनके लिए  ऐसे  प्रारंभ से ठीक पहले  ऐसे  अधिकार आर्जित किए  गए  थे अथवा ऐसे  दायित्व या बाध्यताएं उपगत की गई थीं, तत्पश्चात संघ सूची में प्रगणित किसी विषय से संबंधित भारत सरकार के प्रयोजन हों ।

(2) जैसा ऊपर कहा गया है उसके अधीन रहते हुए , पहली  अनुसूची के भाग ख में विनिर्दिष्ट  प्रत्येक राज्य की सरकार, उन सभी संपत्ति और आास्तियों तथा उन सभी अधिकारों, दायित्वों और बाध्यताओं के संबंध में, चाहे वे किसी संविदा से या अन्यथा उदभूत हुई हों, जो खंड (1) में निर्दिष्ट से भिन्न हैं, इस संविधान के प्रारंभ से ही तत्स्थानी देशी राज्य की सरकार की उत्तराधिकारी होगी ।

296. राजगामी या व्यपगत या स्वामीविहीन होने से प्रोदभूत संपत्ति —इसमें इसके पश्चात् यथा उपबंधित के अधीन रहते हुए, भारत के राज्यक्षेत्रों में कोई संपत्ति जो यदि यह संविधान प्रवर्तन में नहीं आया होता तो राजगामी या व्यपगत होने से या अधिकारवान् स्वामी के अभाव में स्वामीविहीन होने से, यथास्थिति, हिज मजेस्टी को या किसी देशी राज्य के शासक को प्रोदभूत  हुई होती, यदि वह संपत्ति  किसी राज्य में स्थित है तो ऐसे  राज्य में और किसी अन्य दशा में संघ में निहित होगी :

परंतु  कोई संपत्ति , जो उस तारीख को जब वह इस प्रकार हिज मजेस्टी को या देशी राज्य के शासक को प्रोदभूत हुई होती, भारत सरकार के या किसी राज्य की सरकार के कब्जे या नियंत्रण में थी तब, यदि वे प्रयोजन, जिनके लिए वह उस समय प्रयुक्त  या धारित थीं , संघ के थे तो वह संघ में या किसी राज्य के थे तो वह उस राज्य में निहित होगी ।

स्पष्टीकरण —इस अनुच्छेद में, “शासक” और “देशी राज्य” पदों  के वही अर्थ हैं जो अनुच्छेद 363 में हैं ।

[22][297. राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड या महाद्वीपीय मग्नतट भूमि में स्थित मूल्यवान चीजों और अनन्य आार्थिक क्षेत्र के संपत्ति  स्रोतों का संघ में निहित होना–(1) भारत के राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड या महाद्वीपीय मग्नतट भूमि या अनन्य आार्थिक क्षेत्र में समुद्र के नीचे की सभी भूमि, खनिज और अन्य मूल्यवान चीजें संघ में निहित होंगी और संघ के प्रयोजनों के लिए धारण की जाएंगी ।

(2) भारत के अनन्य आार्थिक क्षेत्र के अन्य सभी संपत्ति  स्रोत भी संघ में निहित होंगे और संघ के प्रयोजनों के लिए  धारण किए जाएंगे ।

(3) भारत के राज्यक्षेत्रीय सागर-खंड, महाद्वीपीय मग्नतट भूमि, अनन्य आार्थिक क्षेत्र और अन्य सामुद्रिक क्षेत्रों की सीमाएं वे होंगी जो संसद् द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन समय-समय पर विनिर्दिष्ट की जाएं  ।]

[23][298. व्यापार  करने आदि की शक्ति — संघ की और प्रत्येक राज्य की कार्यपालिका  शक्ति  का विस्तार, व्यापार  या कारबार करने और किसी प्रयोजन के लिए  संपत्ति  का अर्जन, धारण और व्यय न तथा संविदा करने पर, भी होगा :

परंतु  —

(क) जहां तक ऐसा  व्यापार  या कारबार या ऐसा  प्रयोजन वह नहीं  है जिसके संबंध में संसद् विधि बना सकती है वहां तक संघ की उक्त कार्यपालिका  शक्ति  प्रत्येक राज्य में उस राज्य के विधान के अधीन होगी ;

और

(ख) जहां तक ऐसा  व्यापार  या कारबार या ऐसा  प्रयोजन वह नहीं  है जिसके संबंध में राज्य का विधानमंडल विधि बना सकता है वहां तक प्रत्येक राज्यकी उक्त कार्यपालिका शक्ति संसद  के विधान के अधीन होगी ।]

299. संविदाएं —(1) संघ की या राज्य की कार्यपालिका  शक्ति  का प्रयोग करते हुए  की गई सभी संविदाएं, यथास्थिति, राष्ट्रपति  द्वारा या उस राज्य के राज्यपाल  [24]* * *द्वारा की गई कही जाएंगी और वे सभी संविदाएं  और संपत्ति  संबंधी हस्तांतरण-पत्र, जो उस शक्ति  का प्रयोग करते हुए  किए  जाएं, राष्ट्रपति  या राज्यपाल  2* * *की ओर से ऐसे  व्यक्तियों  द्वारा और रीति से निष्पादित किए जाएंगे जिसे वह निर्दिष्ट या प्राधिकॄत करे ।

(2) राष्ट्रपति  या किसी राज्य का राज्यपाल 2* * * *इस संविधान के प्रयोजनों के लिए या भारत सरकार के संबंध में इससे पूर्व प्रवॄत्त किसी अधिनियमिति के प्रयोजनों के लिए  की गई या निष्पादित की गई किसी संविदा या हस्तांतरण-पत्र के संबंध में वैयक्तिक रूप से दायी नहीं होगा या उनमें से किसी की ओर से ऐसी  संविदा या हस्तांतरण-पत्र करने या निष्पादित करने वाला व्यक्ति  उसके संबंध में वैयक्तिक रूप  से दायी नहीं  होगा ।

300. वाद और कार्यवाहियां–(1) भारत सरकार भारत संघ के नाम से वाद ला सकेगी या उस पर वाद लाया जा सकेगा और किसी राज्य की सरकार उस राज्य के नाम से वाद ला सकेगी या उस पर वाद लाया जा सकेगा और ऐसे  उपबंधों के अधीन रहते हुए , जो इस संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों के आधार पर अधिनियमित संसद् के या ऐसे  राज्य के विधान-मंडल के अधिनियम द्वारा किए जाएं , वे अपने -अपने कार्यकलाप के संबंध में उसी प्रकार वाद ला सकेंगे या उन पर उसी प्रकार वाद लाया जा सकेगा जिस प्रकार, यदि यह संविधान अधिनियमित नहीं  किया गया होता तो, भारत डोमिनियन और तत्स्थानी प्रांत या तत्स्थानी देशी राज्य वाद ला सकते थे या उन पर वाद लाया जा सकता था ।

(2) यदि इस संविधान के प्रारंभ पर–

(क) कोई ऐसी  विधिक कार्यवाहियां लंबित हैं जिनमें भारत डोमिनियन एक पक्षकार है तो उन कार्यवाहियों में उस डोमिनियन के स्थान पर भारत संघ प्रतिस्थापित किया गया समझा जाएगा  ; और

(ख) कोई ऐसी  विधिक कार्यवाहियां लंबित हैं जिनमें कोई प्रांत या कोई देशी राज्य एक पक्षकार है तो उन कार्यवाहियों में उस प्रांत या देशी राज्य के स्थान पर तत्स्थानी राज्य प्रतिस्थापित किया गया समझा जाएगा  ।

[25][अध्याय 4 — संपत्ति  का अधिकार

300क. विधि के प्राधिकार के बिना व्यक्तियों  को संपत्ति  से वंचित न किया जाना–किसी व्यक्ति  को उसकी संपत्ति से विधि के प्राधिकार से ही वंचित किया जाएगा , अन्यथा नहीं  ।]

 

 


[1] संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा अनुच्छेद 264 के स्थान पर  प्रतिस्थापित ।

[2] संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख”शब्दों का लोप किया गया ।

[3] संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “पहली अनुसूची के भाग ग में विनिर्दिष्ट राज्य”के स्थान पर  प्रतिस्थापित ।

[4] संविधान (अठासीवां संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 2 द्वारा (प्रवर्तन की तारीख से) अंतःस्थापित ।

[5] संविधान (अस्सीवां संशोधन) अधिनियम, 2000 की धारा 2 द्वारा खंड(1) के स्थान पर  प्रतिस्थापित ।

[6] संविधान (छठा संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 3 द्वारा अंतःस्थापित  ।

[7] संविधान (छियालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1982 की धारा 2 द्वारा “माल का क्रय या विक्रय”शब्दों के स्थान पर  प्रतिस्थापित ।

[8] संविधान (अस्सीवां संशोधन) की धारा 3 द्वारा (1-4-1996 से) अनुच्छेद 270 के स्थान पर  प्रतिस्थापित ।

[9] संविधान (अठासीवां संशोधन) अधिनियम, 2003 की धारा 3 के प्रवार्तित होने पर  “अनुच्छेद 268 और अनुच्छेद 269”शब्दों के स्थान पर  “अनुच्छेद 268, अनुच्छेद 268क और अनुच्छेद 269” प्रतिस्थापित किए जाएंगे  ।

[10] संविधान (अस्सीवां संशोधन) अधिनियम, 2000 की धारा 4 द्वारा अनुच्छेद 272 का लोप किया गया ।

[11] पूर्वोत्तर क्षेत्र (पुनर्गठन ) अधिनियम, 1971 (1971 का 81) कीधारा 71 द्वारा (21-1-1972 से) “भाग क”के स्थान पर  प्रतिस्थापित ।

[12] संविधान (बाईसवां संशोधन) अधिनियम, 1969 की धारा 3 द्वारा अंतःस्थापित  ।

[13] संविधान (साठवां संशोधन) अधिनियम, 1988 की धारा 2 द्वारा “दो सौ पचास रूपए ”शब्दों के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

[14] संविधान (तिहत्तरवां संशोधन) अधिनियम, 1992 की धारा 3 द्वारा (24-4-1993 से) अंतःस्थापित  ।

[15] संविधान (चौहत्तरवां संशोधन) अधिनियम, 1992 की धारा 3 द्वारा (1-6-1993 से) अंतःस्थापित  ।

[16] संविधान (चौहत्तरवां संशोधन) अधिनियम, 1992 की धारा 3 द्वारा (1-6-1993 से) उपखंड (ग) को उपखंड  (घ) के रूप  में पुनः अक्षरांकित किया गया ।

[17] संविधान (छठा संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 4 द्वारा खंड (1) के स्पष्टीकरण का लोप किया गया ।

[18] संविधान (छठा संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 4 द्वारा खंड (2) और खंड (3) के स्थान पर प्रतिस्थापित।

[19] संविधान (छियालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1982 की धारा 3 द्वारा खंड(3) के स्थान पर प्रतिस्थापित ।

[20] संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 19 द्वारा अंतःस्थापित  ।

[21] मद्रास राज्य (नाम परिवर्तन) अधिनियम, 1968 (1968 का 53) की धारा 4 द्वारा (14-1-1969 से) “मद्रास”के स्थान पर  प्रतिस्थापित ।

[22] संविधान (चालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1976 की धारा 2 द्वारा (27-5-1976 से) अनुच्छेद 297 के स्थान पर  प्रतिस्थापित ।

[23] संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 20 द्वारा अनुच्छेद 298 के स्थान पर  प्रतिस्थापित ।

[24] संविधान (सातवां संशोधन) अधिनियम, 1956 की धारा 29 और अनुसूची द्वारा “या राजप्रमुख”शब्दों का लोप किया गया ।

[25] संविधान (चवालीसवां संशोधन) अधिनियम, 1978 की धारा 34 द्वारा (20-6-1978 से) अंतःस्थापित  ।

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